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चाइल्ड स्पेशिलिस्ट लेडी डॉक्टर की ब्रम्ह पिशाच अनुभूति भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज का जो अनुभव है यह ब्रह्म पिशाच साधना अनुभूति पर आधारित है। भेजने वाली एक साधिका है जो कि चाइल्ड स्पेशलिस्ट है गवर्नमेंट हॉस्पिटल में । तो चलिए जानते हैं। यह कौन है और क्या रहा है इनका अनुभव?

पत्र – नमस्कार गुरु जी, मेरा नाम उर्वशी है। जन्म स्थान पटना बिहार से मैं आती हूं और मैं एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर हूँ!

आजकल मैं दिल्ली में रहती हूं और यही एक गवर्नमेंट हॉस्पिटल में मेरी ड्यूटी चल रही है। यह अनुभव! मैं पहले शेयर करना चाहती थी पर शेयर करने का मन तो करता था लेकिन डर लगा रहता था कि कहीं माता पिता के पास यह खबर आ गई तो फिर न जाने क्या होगा? अभी मेरे माता-पिता दोनों स्वर्गवासी हो चुके हैं। इसलिए कोई परेशानी इस बात को लेकर नहीं है। हालांकि आज के मॉडर्न जमाने के हिसाब से बहुत से लोग साधना के क्षेत्र में बहुत कम विश्वास रखते हैं। फिर भी थोड़ा बहुत हर किसी को इसकी जानकारी है। कुछ ऐसा ही मैं खुद अनुभव भी कर चुकी हूं। इसलिए मेडिकल फील्ड में रहते हुए भी मैं इन सब पर विश्वास रखती हूँ। मेरी उन लोगों से निवेदन है कि सिर्फ किसी भी यूट्यूब वीडियो को देखकर साधना ना करें जब तक कि किसी योग्य गुरु से दीक्षा और जो अनुमति है वह ना ले ली गई हो

अगर हो सके तो आप पहले इसे पढ़ ले और अपने हिसाब से बाकी लोगों को बताइए कृपया मेरा ईमेल आईडी शेयर ना करें नाम और जगह आप बता सकते हैं इस अनुभव को मैंने सिर्फ धर्म रहस्य चैनल को भेजा है। और कहीं किसी जगह पर भी यह सामग्री शेयर अभी तक नहीं हुई है।

तो चलते हैं मेरे उस अनुभव पर जिसने मेरी साधना के क्षेत्र में रुचि और शिक्षा को बढ़ा दिया था। यह बात उन दिनों की है जब मुझे असम के कामाख्या नगर में पोस्टिंग मिली थी। नई-नई उस शहर में मैं गई थी। नई जगह और मन को शांत कर देने वाली वह जगह हरियाली पहाड़ और सुहाना मौसम मेरे मन को आनंद से भर देता था। फिर कामाख्या मंदिर तो भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है जिसके बारे में शायद ही कोई ना जानता हो। मेरी ड्यूटी सुबह 10:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक होती थी। सामान्य रूप से घूमने फिरने के लिए समय मिल जाता था और रोज का वही रूटीन रहता था। सुबह उठ कर फ्रेश हो जाओ। नाश्ता करो और फिर ड्यूटी के लिए रेडी हो जाओ। दिन भर ड्यूटी में और फिर शाम को ड्यूटी से आकर थोड़ी देर मार्केट फिर पास के ही घूमने वाली जगह में जाकर टाइम पास कर लिया करती थी।

साल भर निकल गया और जीवन इसी प्रकार चल रहा था। मन में अकेलापन आ ही जाता था। इन 1 सालों के दौरान कामाख्या में कुछ साधु संतों से जान पहचान भी हो गई थी। वह मेरी जॉब के कारण हुआ था। कुछ साधकों ने अपने सेवा ट्रस्ट में मुझे मेंबर बनाने की बात भी रखी थी। तब वहां की मेंबर भी बन गई मैं। अब दोस्तों के हिसाब से साधु संतों से जान पहचान बनी और सब के साथ फ्री भी हो चुकी थी। जैसे दोस्तों में रहा जाता है। लगभग 6 महीने बाद एक अघोरी गुरु जी से मेरी मुलाकात हुई जो तंत्र के एक बड़े ही जानकार व्यक्ति थे। उनसे अच्छी जान पहचान हुई और बातों ही बातों में यह पता चला कि वह श्मशान और तांत्रिक प्रयोग भी किया करते हैं। जैसे कि उनसे अच्छी जान पहचान हो चुकी थी तो मैंने एक दिन उनसे कहा कि गुरु जी क्या कोई ऐसी साधना है जिससे मुझे हर समय अकेलापन ना लगे और समय भी अच्छा कट जाए।

वह बोले, इसमें साधना की क्या जरूरत है दोस्त बनाओ। मैंने कहा नहीं, मैं साधना के हिसाब से ही बात कर रही हूँ। वह बोले हां है, पर तुम्हें कैसी साधना करने की इच्छा है? मैं चुप हो गई। 2 दिन दिन इसी प्रकार बीत चुके थे। मैं फिर एक दिन उनसे मिली और बातों ही बातों में वही चर्चा फिर से मैंने शुरू कर दी। यह ब्रह्म पिशाच क्या होता है। वह बोले यह पिशाच है जो ब्राह्मणों के कुल में पैदा हुआ होता है, परंतु अपने कर्मों की वजह से गलत योनि का भागी हो गया होता है। मैं पूछी फिर तो बहुत ही खतरनाक और डरावना होता होगा यह? वह बोले हां, आखिर पिशाच है, खतरनाक तो होगा ही।

मेरी नानी अपने समय की एक तांत्रिका रह चुकी थी और मैं बचपन से अपनी नानी से भूत प्रेत की कहानियां सुनते हुए आ रही हूं। इसलिए मुझे इस चीज के बारे में जानकारी पहले ही जानकारी मिल चुकी है। फिर मैं पहुंची और पूछी मुझे इसके बारे में आप डिटेल में बताइए आज नहीं संडे को मैं फ्री रहूंगा। तब इसके बारे में हम लोग बात करेंगे। मैंने कहा ठीक है! इस प्रकार वह बात बोल कर मैं रुक गई।

शाम को घर आने के बाद ब्रह्म पिशाच के बारे में जानने की इच्छा और तेज़ हो गई और फिर मैं संडे का इंतजार करने लगी।क्योंकि ऐसा सब्जेक्ट पहली बार मैं सुन रही थी। आखिरकार संडे की दोपहर को गुरुजी के रूम में गई। गुरुजी दोपहर का भोजन करके बैठे ही कुछ किताबें पढ़ रहे थे। मुझे देखा और फिर बोले आ गई।

मैं मुस्कुराते हो बोली हाँ। फिर मैंने वही बात पूछी अब बताइए उसके बारे में डिटेल से। वह हंस पड़े और बोले, बहुत इच्छा है जानने की, ठीक है। मैं बताता हूं जैसे कि मैं पहले ही बता चुका था कि यह भी सच है और यह सब गंदी चीजों की तरफ की आकर्षित होता है। मांस मदिरा संभोग।

मैंने पूछा। क्या मैं उसे देख सकती हूं? फिर से हंस पड़े और क्यों देखना चाहती हो, वैसे भी वह साधारण लोगों की नजर में नहीं आता जो उसकी साधना करता है। सिर्फ उसी को वह दिखाई पड़ता है पर कमजोर इंसान उसको देखने की हिम्मत नहीं कर सकता।

क्योंकि वह बहुत ही अधिक भयानक दिखता है। कुछ दिनों के बाद मैं गुरु जी से फिर मिली और बोली चलिए मैं भी तो देखूं कि सच में विश्वास भूत प्रेत होते हैं या नहीं। मैं साधना के लिए तैयार हूं। बताइए। इसके लिए मुझे क्या करना पड़ेगा। वह ऐसे नहीं कर सकती हो तो उसके लिए कुछ नियम कायदे और कानून होते हैं। हालांकि मेरे अच्छे दोस्त बन चुके थे। गुरु जी इसलिए मेरी बातों को मजाक समझे थे। पर बार-बार कहने पर वह राजी हो ही गए और फिर इसका परिणाम भी बताया। उन्होंने बताया कि सिद्धि और मंत्र जाप पूरी होने के बाद वह तुम्हें संभोग करेगा, पर ध्यान रहे कि इस साधना के बाद तुम कभी दूसरे पुरुष से ना तो संबंध बना सकती हो ना ही शादी कर सकती हो? मैं बोली ठीक है क्योंकि मुझे इस पर विश्वास ही नहीं था। केवल प्रयोग करने की एक तीव्र इच्छा थी। ठीक है अगर तुम करना ही चाहती हो तो अकेले ही करना पड़ेगा।

नग्न अवस्था में किसी नदी या शमशान में आपको यह करना होगा।

मैं कुछ दूरी से तुम्हारी रक्षा के लिए। वहां पर तुम से दूरी बनाकर उपस्थित रहूंगा, पर ध्यान रहे डरना बिल्कुल नहीं है और मंत्र जाप नहीं छोड़ना वरना। हम दोनों की वह आखरी रात साबित होगी।

ठीक है वह बोले। फिर उसके अगले हफ्ते से मैं सब जानकारी जुटाने लग गई और साधना की विधि उनसे सीखने लगी। पूरी तरह से तैयार होने में मुझे 4 महीने का समय लग गया। उनका कहना था। यह विधि अमावस्या को करना सबसे अच्छा समय होता है और फल उसी रात को दिख भी जाता है। इसलिए मैं अगली अमावस्या का इंतजार करने लगी। जैसे कि तय हुआ था गुरुजी एक नदी के पास में ही एक श्मशान का।

पता उन्होंने लगा लिया था जहां वह साधना मुझे करनी थी। नदी के पास ही एक जंगल था जो उस जगह को और भी डरावना बनाता था। फिर अमावस्या की रात को सोच कर ही आम इंसान की तो नींद ही उड़ जाए। हम दोनों उस अमावस्या को शाम के 7:00 बजे निकल गए। उस जगह की तरफ जहां साधना करनी थी।

रोड खराब थी और फिर पैदल भी कुछ दूर जाना था। लगभग 2 से 3 घंटे लगे। हमें उस जगह तक पहुंचने के लिए रात के समय वह जगह और ज्यादा डरावनी लग रही थी। चारों तरफ चिता और साइड से एक छोटी सी नदी और जंगल से सियारों के रोने की आवाज ज्यादातर आ रही थी जो माहौल को और भी अधिक खतरनाक बना रही थी।

मुझे डर लग रहा था, पर मैं भी ठान ली थी कि अभी डरने का क्या फायदा जो काम करने आई हूं, वह तो करके ही रहूंगी।

टू बी कंटिन्यूड इन नेक्स्ट पार्ट सेकंड!

संदेश– यह पत्र के माध्यम से भेजेंगी तो हम लोग आगे की कहानी को जान पाएंगे। इनके जीवन में आगे क्या, ब्रह्म पिशाच के द्वारा घटित हुआ था?

इनका अनुभव अगर आप लोगों को यह पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

चाइल्ड स्पेशिलिस्ट लेडी डॉक्टर की ब्रम्ह पिशाच अनुभूति 2 अंतिम भाग

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