Site icon Dharam Rahasya

जब मरघट काली सिद्ध की

जब मरघट काली सिद्ध की

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जो अनुभव लेने जा रहे हैं, यह साधक के दादा जी द्वारा किया गया एक सिद्धि प्रयोग था जिसमें उन्होंने मरघट काली देवी को सिद्ध करने का प्रयास किया था। चलिए जानते हैं इस अनुभव के विषय में और पढ़ते हैं इनके पत्र को।

नमस्ते गुरुजी! आप? सदैव हम पर इसी प्रकार कृपा बरसाते रहें। मैं यह अनुभव जो भेज रहा हूं, यह मेरा नहीं किंतु मेरे दादाजी का सत्य अनुभव है जो उन्होंने सिद्धि करने का प्रयास किया था। गुरुजी उन्होंने एक साधक से इस मंत्र की दीक्षा ली थी और उनके कहने पर वह चल पड़े थे। एक श्मशान में इस सिद्धि को प्राप्त करने के लिए उनके पास। कुछ चीजों के अलावा कुछ भी नहीं था। उन्होंने श्मशान में ही एक स्थान पर कुटी बनाकर रहना शुरू कर दिया था और इस साधना के लिए जो जो आवश्यक सामग्री लगती है उस सभी का उन्होंने प्रबंध कर लिया था। वह इस प्रकार अपनी इस साधना को शुरू कर चुके थे। एक दिन जब वह साधना कर रहे थे तभी उनकी तरफ एक चिता से आग का गोला आता हुआ दिखाई दिया, लेकिन वह डरे नहीं और ना ही उन्होंने आसन छोड़ा। फिर एक अगला गोला उनकी और आया और उनके शरीर से टकराकर बुझ गया। लेकिन डरते हुए भी उन्होंने अपना स्थान नहीं छोड़ा था। रात का तीसरा पहर जब भयंकर अंधेरा होता है तो करीब ही कुछ दूरी पर एक झाड़ी दिखाई दी और वहां से अजीब तरह की गुर्राने की आवाज से आ रही थी। इसी प्रकार व साधना करते रहे। तीसरे दिन वह मंत्र जाप कर रहे थे। वह इतने भयभीत थे। लेकिन गुरु के कहे अनुसार साधना नहीं छोड़ना चाहते थे। जिन चुनौतियों का सामना करना चाहते थे, अब उन्हें इसमें मूर्खता नजर आती थी क्योंकि उन्होंने सोचा था कि साधना ऐसे ही संपन्न हो जाएगी। लेकिन चौथे दिन जब उन्हें एक भूत ने उठाकर 20-30 फीट दूर फेंक दिया। तब उन्हें महसूस हुआ कि जो वह कर रहे हैं वह कोई आसान नही तब उन्होंने! रक्षा घेरा प्रयोग, बंधन प्रयोग शुरू किया। जो कि उन्होंने अभी तक नहीं किया था।

वह इतने डरे थे कि वह सोचते थे। मैं कहां आकर फस गया। कहां भागू, कहां जाऊं किसे रात में पुकारूं और वहां से आबादी भी काफी दूर तकरीबन 4 या 5 किलोमीटर दूर थी। कोई उनकी आवाज सुन तक नहीं सकता था। मरघट में यह प्रयोग कोई आसान बात नहीं की। लेकिन गुरु के कहने और अपने अंदर एक विश्वास रखने के कारण वह इसके सारे चरण करते चले जा रहे थे अभी! छठे दिन रात का तीसरा पहर था तभी उन्हें एक हल्की खिलखिलाहट सुनाई दी जो उनके रोम-रोम में सनसनी भर दी। वह हंसी से ज्यादा भयानक आवाज थी। अगल-बगल वह इस प्रकार घूमती हुई नजर आ रही थी। जैसे कोई भयानक हवा हो, यह हंसी तो रुक ही नहीं रही थी और चारों तरफ पायल की छम छम करती आवाज उस वातावरण को और भी ज्यादा डरावना बना रही थी।

कभी उन्हें चंपा के फूल जैसी कोई सुगंध आई। तभी उन्हें लगा जैसे उनके पास किसी ने एक विशालकाय झूला रख दिया हो जो इधर से उधर डोल रहा था। उस पर बैठी कोई शक्ति थी जो इस प्रकार झूला झूलती थी कि जब वह दूर जाती तो सुगंध आती, नजदीक आती तो तेज सड़ी बदबू जैसा उन्हें प्रतीत होता।

अब धीरे-धीरे समय बढ़ता चला गया। दिन बीते गए रोज अनुभव भयानक होते चले गए तभी एक रात उन्हें दूर से स्त्री दिखाई दी। मैंने यह सुन रखा था कि भूतनी आने में बहुत अधिक प्रबल होती है और सौंदर्य में मादक बनकर अप्सराओं को भी हरा देती है। चौथा दिन रात की घनी चादर जब बिछी हुई थी तब वहां पर एक अत्यंत ही वीभत्स स्त्री आती हुई नजर आई।

और तब मैं अपने मंत्र जाप को करता रहा तभी वह मेरे बिल्कुल मुंह के सामने आ गई। उसके मुंह से ली गई सांस की हवा मेरे चेहरे पर पूरी तरह पड़ रही थी। ऐसा लगता है जैसे कि कोई जानवर मुंह के सामने तेजी से अपनी सांसे लेता और छोड़ रहा हो।

इस तरह पहली बार मेरे सामने एक महाशक्ति आकर खड़ी हो गई थी। वह मरघट की काली देवी का साक्षात्कार शायद होने वाला था। आज मेरा तन मन पूरी तरह हिल सा गया था।

ऐसा लगा जैसे कोई भयानक चीज़ बिल्कुल नजदीक आ चुकी है। तभी मैंने देखा। एक! शरीर जो कि चिता पर जल रहा था।

वह एकदम से जलता हुआ उठा।

और मेरे पास आ गया। इस प्रकार देख कर मुझे पसीने छूटने लगे। वह जलता हुआ शरीर बहुत ज्यादा भयानक था।

वह मेरी तरफ चलता ही चला आ रहा था कि मैंने मंत्र जाप लगातार जारी रखा, लेकिन ऐसी अवस्था में सब चीजें भूल जाता है आदमी! तभी मैंने देखा जो सुरक्षा घेरा मैंने बनाया था। वह उसके अंदर आ चुका था। मेरा तो अस्तित्व ही हिल गया और मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम जो सुरक्षा घेरा बनाते हैं, उसके अंदर कोई शक्ति आ सकती है।

तभी उसने कहा, मुझे तेरा खून चाहिए और उसने अपने दांत मेरी गर्दन पर गड़ा दिए। मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैं घबराहट के मारे अपनी आंखें बंद कर चुका था। मैं मंत्रों का जाप बहुत तेजी से करने लगा।

लेकिन?

तभी वहां पर एक जो स्त्री प्रकट हुई। उसने सारा माहौल अपने नियंत्रण में ले लिया था। वह स्त्री कोई साधारण स्त्री नहीं थी। वह सच में मरघट काली थी।

पूरा शरीर कंकाल का बना हुआ जिस पर काले रंग की चमड़ी लगा दी गई हो तभी वह आकर कहने लगी। मैं तो कब से भूखी हूं। यह तेरे पास जो मुर्दा है क्या मैं इसे खा लूं? मैंने कहा देवी इस से मुझे बचाओ। आप इसका भोजन करो और तब मरघट काली ने उस मुर्दे को पकड़ लिया और मेरे सामने ही उसे ऐसे खाने लगी जैसे।

मांस को देखकर कोई जानवर उसे चीर फाड़ कर खाता है।

वह जो देखा वह जो सुना वह जो समझा वह ऐसा था कि बता नहीं सकता।

यह सारी चीजें जो सामने घटित हो रही थी, वह सीमा से परे थी।

तब? मेरे सामने हैं उसका भक्षण उस देवी ने कर लिया और उसे वह ऐसे चाट कर खा गई जैसे कि हम आजकल समोसा खाते हैं।

तब वह कहने लगी मेरी भूख तो मिटी नहीं। क्या मैं तुझे भी खा सकती हूं अब तो मेरा अस्तित्व ही हिल गया था?

मैंने सोचा नहीं था कि देवी मेरा ही भक्षण करने के लिए तैयार हो जाएगी।

तब उसने एक बार और पूछा और कहा, मैं दुबारा नहीं पूछूंगी। तू जल्दी बता मैं तुझे खाऊं की नहीं खाऊं? और अगर मैं तुझे नहीं खाऊं तो तुझे मैं सिर्फ?

1 मिनट का समय देती हूं।

और इस मरघट की सीमा के बाहर निकल जा! अगर इतने समय में तू बाहर नहीं निकला तो फिर मैं तुझ से नहीं पूछूंगी बल्कि तुझे खाऊंगी।

मैं सत्य कहता हूं इतना अधिक मुझे भय लगा कि मैं वहां से इतनी तीव्र गति से भागा कि मैं श्मशान भूमि से बाहर 1 मिनट के पहले ही निकल गया।

तभी मैंने जो देखा वह और भी ज्यादा आश्चर्य में करने वाला था। उस मरघट की सीमा पर एक बहुत सुंदर स्त्री। अपने पूर्ण! गहनों के साथ लगी हुई दिखाई दी जो मुझे अपनी और बुला रही थी। लेकिन मैं समझ चुका था। यह तांत्रिक साधना है। मेरे बस की बात नहीं है। इसलिए मैंने उस देवी को दूर से ही प्रणाम किया और भागकर अपने घर आ गया और जिंदगी में कभी तामसिक और श्मशान में साधना ना करने का निर्णय लिया था।

इसे मै अपनी डायरी में पत्र के रूप में लिख रहा हूं ताकि आगे आने वाली पीढ़ी भी मेरे इस अनुभव को सदैव याद रखें।

तो गुरु जी इस प्रकार से उन्होंने उस डायरी में वह पत्र लिखा था और उसी अनुभव को आज मैंने आपको भेजा है। गुरु जी आप इसे अपने चैनल पर अवश्य प्रकाशित कीजिए ताकि लोगों को समझ में आए कि तामसिक और श्मशान में की जाने वाली की साधनाये कितनी खतरनाक होती हैं? एक बार फिर से आपको मैं प्रणाम करता हूं। गुरु जी मैंने गुरु दीक्षा ले ली है और आपको इस गुरु पर्व पर कुछ दक्षिणा भी भेंट की थी। क्या आपको मिल गई है? नमस्कार गुरु जी!

संदेश-तो देखे यहां पर इनके दादा जी के जीवन में जो तामसिक साधना उन्होंने की उसमे भयानक अनुभव घटित हुए थे जिनको हमने देखा। ऐसे ही अनुभव हर साधना में घटित होते हैं।

रही बात आपके द्वारा भेजी गई दक्षिणा के विषय में। तो आप ही नहीं बल्कि सभी मेरे शिष्यों ने मुझे गुरु दक्षिणा भेंट की है और प्रत्येक व्यक्ति को तो मैं नहीं, व्यक्तिगत रूप से ईमेल का जवाब दे पाया हूं क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में ईमेल आई थी और बहुत ज्यादा शिष्यों ने अपने अपने स्तर से दक्षिण भेंट की है। उन सभी का विशेष रूप से धन्यवाद, माता पराशक्ति सभी के जीवन में कल्याण करती रहें और सभी को सुख समृद्धि देती रहें। आप सभी का दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version