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तांत्रिक की शमशान भैरवी साधना भाग 5 अंतिम भाग

तांत्रिक की शमशान भैरवी साधना भाग 5 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। तांत्रिक की शमशान भैरवी साधना यह पांचवा और अंतिम भाग है तो चलिए पढ़ते हैं इस पत्र को और आगे की घटना के विषय में जानते हैं। तो गुरु जी जैसा कि मैंने आपको बताया था कि अब! उस शमशान भैरवी शक्ति ने उस व्यक्ति से कहा कि मुझे तुम्हारी पत्नी भोग के रूप में चाहिए और अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो मैं तुम दोनों को ही नष्ट कर दूंगी और इसमें कोई माफी भी नहीं मिलेगी। इस बात को समझ कर उस व्यक्ति ने थोड़ी देर विचार किया और सोचने लगा। तब उसने कहा, अगर आप मेरी पत्नी को समाप्त कर देंगे तो मेरी साधना भी तो भंग हो जाएगी। इसलिए इसका दूसरा मार्ग बताइए। वैसे मेरी समझ से अगर आप को भोग करना ही है। भोग प्राप्त करना है तो आप! इसके शरीर में जाकर भी तो वही सारी चीजें कर सकती हैं। तब शमशान भैरवी ने कहा, तुम यह क्या कह रहे हो? तब अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए उस व्यक्ति ने कहा, अगर आप इनके शरीर के अंदर वास करेंगे तो जो भी भोजन आप खाएंगे जो भी क्रियाएं आप करेंगे वह सारी की सारी। अच्छी प्रकार से कर पाएंगी और इसमें मेरी पत्नी की मृत्यु भी नहीं होगी। तब वह शमशान भैरवी कहने लगी, लेकिन क्या तेरी पत्नी मेरी ऊर्जा शक्ति को संभाल पाएगी। अगर वह ऐसा नहीं कर पाई तो तेरे लिए। तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी, लेकिन इससे तेरी पत्नी के प्राण अवश्य बच जाएंगे।

यह तूने सत्य कहा है, ठीक है तो फिर मुझे वचन दे और अपनी पत्नी के शरीर में स्थान दे। तब उस व्यक्ति ने कहा, हे देवी आप को भोग चाहिए और समस्त प्रकार की सहायता मेरी आप करती रहिए। मेरी जीवनसंगिनी के शरीर में आपका सदैव वास हो। इस प्रकार कहते हुए उसने अपनी मंत्र जाप को संपूर्ण किया और तब तांत्रिक! जिस सामने ही उस श्मशान में निवास करने वाली शमशान भैरवी शक्ति उनकी पत्नी के शरीर में प्रवेश कर ऐसा जबरदस्त झटका लगा कि वह स्त्री तुरंत बेहोश हो गई। उसे थोड़ी देर बाद होश आया और कहने लगी। मुझे भूख लग रही है बहुत समय हो गया। कुछ भी नहीं खाया है। आप मेरे लिए कुछ भोजन लाइए तब वह व्यक्ति अपनी पत्नी को लेकर घर आ गया। वहां उसने स्वयं मिष्ठान भंडार और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का निर्माण करवाया और उससे कहा, यह सब तुम्हारा ही भोजन है खाओ! तब वह स्त्री बड़े चाव से बहुत तीव्रता के साथ सारा भोजन चट कर गई। इस प्रकार भोजन करने के बाद भी वह कहने लगी। मुझे अभी भी बहुत भूख लगी है। तुम्हारे पास और क्या-क्या है व्यक्ति उसे कहता है सुनो देवी को नियंत्रित करो क्योंकि श्मशान भैरवी इस वक्त तुम्हारे शरीर के अंदर वास कर रही हैं। इसलिए यह सारी भूख उन्हीं की है। इसलिए तैयार रहो अपने मन को नियंत्रित करना सीखो तब उसकी पत्नी ने अपने शरीर की इच्छा को दबा दिया । इस प्रकार वह अपनी भूख को नियंत्रित कर पाई। लेकिन शक्ति की सामर्थ्य और ऊर्जा सदैव! व्यक्ति धारण नहीं कर पाता है। केवल ध्यान मंत्र, जाप इत्यादि के माध्यम से ही वह उस शक्ति को अपने नियंत्रण में ले सकता है। यह बात सबसे बड़ी कमी सिद्ध होती है अगर साधक! तांत्रिक साधना को करता है।

तब उसकी पत्नी रात्रि के 12:00 बजे अचानक से उठ जाती है। देखती है उसका पति गहरी निद्रा में सो रहा है। उसे फिर से बहुत तेज भूख लगती है। किचन में जाकर देखती है। वहां कुछ भी खाने के लिए नहीं होता है तो वह बर्तनों को फेंक देती है। उसकी आवाज को सुनकर उसका पति भी जाग जाता है। तभी उसकी पत्नी बड़ी तेजी से दौड़ने लगती है। पति इससे पहले कि उसे पकड़े उसके शरीर में अद्भुत सामर्थ्य के कारण उसके भागने की गति बहुत ज्यादा तेज थी और वह उसी श्मशान भूमि में बहुत जल्दी पहुंच जाती है। इधर उसका पति बहुत धीरे-धीरे उसके पीछे जा पाता है क्योंकि उसके भागने की गति और इस शमशान भैरवी के भागने की गति में बहुत बड़ा अंतर था। उसका पति कुछ देर बाद जब श्मशान भूमि में पहुंचता है तो जो नजारा दिखता है उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं उसकी पत्नी। विशालकाय रूप धारण कर लेती है। श्मशान में जल रही चिताओं को अपने मुख में डाल कर खा जाती है और मिट्टी बनकर वह स्थान पर लगातार मिट्टी की वर्षा होती रहती है। वह किसी भी शव को खा जाती। उसके अंदर की आत्मा को ग्रहण कर लेती। शरीर भस्म हो जाता। राख मिट्टी में मिल जाता। यह देखकर वह अचरज में आ गया। उसकी पत्नी यह क्या कर रही है। वह जाकर उसके सामने खड़ा हो जाता है। उसका रूप विशालकाय था। उसके।

बहुत ही छोटे शरीर के साथ उसका पति खड़ा था तब वह कहती है। आ गए मेरे स्वामी मैं अपनी भूख से तो तृप्त हो चुकी हूं। लेकिन मुझे पति सुख भी प्राप्त करना है। आप इस चिता पर बैठ जाइए, मैं आपके साथ रतिक्रिया करना चाहती हूं। यह सुनकर उसका पति एकदम से घबरा जाता है।

लेकिन वह कुछ कर पाता। इससे पहले उसकी पत्नी उसे अपने हाथ से उठाकर चिता के ऊपर रख देती है और स्वयं अपने शरीर को उस शरीर के बराबर करके उस पर बैठकर रतिक्रिया करने लगती है।

यह एक विशिष्ट प्रकार की एक तांत्रिक साधना जैसा ही समारोह नजर आ रहा था जिसमें भोग करते हुए और। विभिन्न प्रकार के वहां स्थित शवों का भक्षण वह एक साथ कर रही थी। एक तरफ रतिक्रिया के माध्यम से वह आनंदित हो रही थी और वही अपने मुख के माध्यम से वह शवों का भक्षण कर रही थी। सबको भोजन बना रही थी। यह क्रिया अद्भुत नजर आ रही थी लेकिन उसका पति! कुछ भी समझ नहीं पा रहा था। की थोड़ी देर बाद ही उसे अपने शरीर के अंदर बहुत तेज गर्मी महसूस होने लगी। उसके शरीर के सभी चक्र जैसे जागृत हो रहे हो। कुंडलनी शक्ति  उसके शरीर में तीव्रता से ऊपर से नीचे नीचे से ऊपर की ओर गति करने लगी और उसके सहस्त्रार पर बड़ा जोर का प्रभाव पड़ने लगा। तब उसके दिव्य अलौकिक चक्षु खुल गए। वहां! दूसरी दुनिया को स्पष्ट देख सकता था जब उसने आंखें खोली तो उसी स्थान पर बड़ी संख्या में। बहुत सारी जीव आत्मा है। इधर उधर दौड़ रही थी। वहां पर भूत-प्रेत पिशाच विभिन्न प्रकार की इतर योनि या सभी विद्यमान थी। इधर देवी का स्वरूप बड़ा ऊर्जा से भरा हुआ था। सभी आत्माएं उसे नमस्कार कर रही थी।

और दूर उसने जो नजारा देखा वह एक ऐसे द्वीप पर मौजूद स्वयं को देखता है। जो कि समंदर के चारों तरफ बीच में था द्वीप में उसे। आकाश में भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती। दिव्य रूप में दिखाई पड़ रहे थे। वहीं से दैवीय ऊर्जा शक्ति शमशान भैरवी को प्राप्त हो रही थी जो कि उसी की पत्नी थी। रतिक्रिया के माध्यम से उसकी कुंडली ऊर्जा जागृत हो रही थी।

यह सब नजारा अदभुत था। चारों तरफ का वातावरण बिल्कुल अलग था। यह दुनिया मानवीय दुनिया से बिल्कुल अलग थी।

यहां पर सभी प्रकार की आत्माएं ऊर्जा को ही खा रही थी।

भगवान शिव और माता पार्वती से निकलती हुई ऊर्जा ही उनका भोजन था जिसको खाकर वह सभी तृप्त हो रही थी। उन्हें किसी पदार्थ की कोई आवश्यकता नहीं थी। इधर रतिक्रिया समागम करती उसकी पत्नी आनंदित हो रही थी। उसके सभी चक्र जागृत होते थे। उनमें तीव्र स्पंदन होता था। और उससे एक ऊर्जा बार-बार चारों तरफ वहां की अतृप्त आत्माओं को अपनी में खींच कर अपनी शरीर में अंदर ग्रहण कर लेती थी। यह सब कुछ अद्भुत था। की तब वह कहने लगी। मैं तृप्त हुई। और इस प्रकार! उसने रति क्रिया बंद कर दी जैसे ही रतिक्रिया बंद हो गई वहां पर। सब कुछ शांत हो गया शमशान का सन्नाटा देखने में बिल्कुल शांत माहौल और

कुछ नहीं देखा। उसकी पत्नी अब अपने वास्तविक रूप में लौट आ चुकी थी। तब भी शमशान भैरवी उस स्त्री के शरीर से बाहर निकल कर आ गई। और कहने लगी। मेरी यात्रा तो समाप्त होती है। तुम लोग अपनी यात्रा जारी रखना। मैं अब शिवलोक की ओर गमन कर रही हूं और मेरी जगह दूसरी शमशान भैरवी इस स्थान पर जागृत हो जाएगी। मेरी शक्तियां तुम दोनों के साथ सदैव विद्यमान रहेंगी। तुम दोनों जन मानस का कल्याण करते रहना। मैं अब जा रही हूं। इस प्रकार शमशान भैरवी उनके सामने ही आकाश की ओर गमन करने लगी। वह उड़ती हुई तेजी से भगवान शिव के लोक की ओर जा रही थी। इधर यह सारा नजारा यह व्यक्ति और उसकी पत्नी देख रहे थे। दोनों को जीवन की वास्तविकता समझ में आ गई थी और मुक्ति ही सर्वोपरि है। यह बात समझ में आ रही थी। भोग भी एक माध्यम ही है मुक्ति को प्राप्त करने का। वासना। केवल वास करने के लिए नहीं बनी है। वासना मुक्ति का माध्यम भी बन सकती है। इस वाम वर्ग की शक्ति साधना से उन्हें यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी। अब से वह दोनों उस श्मशान भूमि में ही अपनी कुटी बनाकर रहने लगे। दोनों बहुत देर तक साधना करते रहते थे और इससे! कुछ दिनों बाद जब लोग वहां आकर लाशों को जलाते थे तो उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते। लोगों की समस्याओं का हल वह करने लगे। लोग उन्हें सिद्ध समझते थे।

इसी प्रकार! 1 दिन वहां पर एक। अघोरी व्यक्ति आया। उसने कहा मुझे भोजन दो। इन दोनों ने तुरंत अपनी शक्ति से उसके लिए भोजन प्रकट कर दिया। तब वह कहने लगा मुझे।

खुद के शरीर का ही कोई भाग दो वही मैं भोजन करता हूं। क्योंकि मैं मानव शरीर को ही भोजन के रूप में ग्रहण करता हूं। यह सुनकर दोनों अचरज में आ गए। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। आंखों ही आंखों में वार्तालाप किया। और एक दूसरे को समझाते हुए कहने लगे ठीक हैं। इस प्रकार दोनों ने अपने एक एक हाथ को काट कर उस अघोरी के सामने रख दिया। और कहा लो!

हमारे शरीर का यह भाग खा लो।

यह देखकर अघोरी मुस्कुराने लगा। उसने उनके दोनों हाथों को खा लिया। तब वह कहने लगा। इतने से मेरा पेट नहीं भरता है इसलिए अपने शरीर का और भाग दो तब दोनों ने अपने पैर भी काट कर उसे दे दिए। फिर भी वह मुस्कुरा कर कहने लगा। इतना खाने के बाद भी मेरा पेट नहीं भर रहा है तब दोनों ने अपने सिर को काट दिया। और फिर उस अघोरी ने उन दोनों को समूचा ही खा लिया तब? अचानक से वहां का वातावरण बदल गया। सामने भगवान शिव के दर्शन उन्हें साक्षात रूप में हुए और तब उस अघोरी रूपी भगवान शिव ने कहा, तुम दोनों अपनी परीक्षा में सफल हो चुके हो। तुम ने नश्वर शरीर को नष्ट कर दिया है। इसलिए तुम अब कहीं भी वास नहीं करोगे? तुम जीवन मृत्यु के बंधन को शून्य समझकर तोड़ चुके हो इसलिए अब तुम मेरे साथ मेरी ही लोक में वास करोगे।

और मुझ में ही मिल जाओगे। इस प्रकार भगवान शिव ने उन दोनों पति और पत्नी की आत्माओं को अपने शरीर में स्थान दिया। और दोनों को मोक्ष मिल गया। उनके द्वारा की गई यह कहानी और साधना उस समय के लोगों ने जानी और इस प्रकार कई गुरुओं के माध्यम से गुरु जी मेरे गुरु परंपरा में मुझे आज यह कथा प्राप्त हुई जिसे मैं आपको अपने ईमेल के माध्यम से आज भेज रहा हूं। आपका सहृदय बहुत धन्यवाद, क्योंकि आपने आध्यात्मिक ज्ञान को सभी लोगों तक पहुंचाया है। मैं भी अपनी इस कथा के माध्यम से उस ज्ञान को सभी लोगों तक पहुंचा रहा हूं।

आशा करता हूं आप मेरी जानकारी को गोपनीय रखते हुए। इस कथा के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करेंगे।

सभी दर्शकों को धन्यवाद और गुरु जी को प्रणाम

सन्देश- तो देखिए यहां पर इन्होंने। शमशान भैरवी साधना से मुक्ति की यात्रा तक की वास्तविक घटना को कहानी के रूप में हम सभी को भेजा है जो कि एक साधना के अनुभव के साथ मुक्ति के अंतिम रहस्य को भी दर्शाता है। अगर आपको यह कहानी और घटना पसंद आई है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

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