Site icon Dharam Rahasya

तांत्रिक भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 16

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है।मंजूषा की यात्रा में अब कन्या के साथ जब वह उस खजाने की दुल्हन के सामने जाती है तो दुल्हन अपनी एक शर्त रखती है। शर्त इतनी कठिन थी जिसमें कन्या की बलि आवश्यक हो गई थी। अब इस बात को सुनकर मंजूषा युक्ति लगाती है। वह उस प्रेतनी से कहती है कि तुम यहां कुछ दिन इंतजार करो। मैं कुछ ही दिन बाद तुम्हारे खजाने वाले स्थल पर पहुंच जाऊंगी और यह कन्या अपनी बलि स्वेच्छा से देगी। यह सुनकर खजाने की दुल्हन खुश हो जाती है और कहती है अगर तुमने मेरी यह अंतिम इच्छा पूर्ण कर दी तो मैं वचन देती हूं कि हमेशा के लिए इस खजाने पर से अपना प्रभाव समाप्त कर लूंगी और मुक्ति को प्राप्त करूंगी। तब मंजूषा! कन्या को इशारा करके वहां से चलने के लिए कहती है। मंजूषा यह बात जानती थी कि इस आत्मा को मुक्त करने के लिए इसकी इच्छा पूरी करनी आवश्यक है, लेकिन यह आसान नहीं था। थोड़ी दूर जाने के बाद कन्या मंजूषा से पूछती है। आपने तो मेरी बलि देने की तैयारी कर दी है। भला कैसे मेरी बली से मैं अपनी चाचा से अपना साम्राज्य प्राप्त कर सकूंगी? आपने एक बार भी नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा? मंजूषा मुस्कुराते हुए कहती है इसके लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। मैंने एक युक्ति लगाई है। तुम्हें बस वही करना है, लेकिन सावधान मैं जो परीक्षा तुम्हारी लेना चाहती हूं, उसमें तुम्हें खरा उतरना पड़ेगा। और यह परीक्षा तुम्हारे भय की होगी।

तुम्हें कितना डर लगता है और तुम कितना डर सहन कर सकती हो, यही तुम्हारी परीक्षा होगी। कन्या ने कहा, मुझे डर नहीं लगता क्योंकि मैं तो खुद इतने दिनों से डर का सामना करती चली आ रही हूं। इसी कारण से मैं इस चीज के लिए तैयार हूं। तब मंजूषा ने कहा, ठीक है चलो मेरे साथ महा श्मशान में। और मंजूषा उस कन्या को लेकर एक महा श्मशान में पहुंच जाती है। वहां पर एक कुटी मंजूषा की आज्ञा से उसकी शक्तियां बना देती हैं। अब मंजूषा उस कन्या को कहती है, तैयार हो जाओ। मैं तुम्हें दीक्षा देना चाहती हूं। कन्या पूछती है कैसी दीक्षा? वह कहती है आपको इस महा श्मशान में एक साधना करनी होगी जिसे प्रेतनी दुल्हन साधना कहते हैं। और इस साधना के बाद तुम्हारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी किंतु सावधान यह कोई साधारण साधना नहीं है। इस साधना में तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती है। हालांकि मैं तुम्हारी गुरु बनकर इसमें तुम्हारी रक्षा सदैव करती रहूंगी। इसलिए तुम्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है किंतु मनुष्य को कर्म स्वयं ही करना पड़ता है इसलिए इस।

बात से तुम बच नहीं सकती हो, तैयार हो जाओ। तुम्हें प्रेतनी दुल्हन साधना करनी है।

कन्या भयभीत हो जाती है किंतु उसके सामने इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं था। इसलिए वह तैयार हो जाती है। वह कहती है देवी आप मुझे इस साधना की विद्या प्रदान करें। तब मंजूषा उसे प्रेतनी सिद्धि की दुर्लभ बातें बताती है और प्रेतनी दुल्हन को कैसे सिद्ध करना है। इसकी पूरी विधि और विधान उसके लिए तैयार करवाती है।

नई दुल्हन जो असमय मृत्यु को प्राप्त हो उसकी हड्डी लाना एक कठिन कार्य था। इसलिए मंजूषा ने अपनी तंत्र शक्ति का इस्तेमाल किया और एक नववधू जिस की असमय मृत्यु हुई थी, उसकी हड्डी उसकी शक्तियां लेकर आ गई। अब कन्या को साधना करनी थी। कन्या श्मशान में। मंजूषा से कुछ दूरी पर बैठकर वह साधना शुरू कर दी। अब! कुछ ही दिनों के बाद अचानक से वहां पर प्रेत आत्माएं कन्या को डराने की कोशिश करने लगी। कोई उससे रक्त मांगता तो कोई उसके ऊपर हावी होने की कोशिश करता लेकिन मंजूषा के होते हुए कन्या के ऊपर कोई भी उन शक्तियों का प्रभाव नहीं हो पा रहा था क्योंकि मंजूषा गुरु बनकर उसकी सदैव रक्षा कर रही थी। इस प्रकार कुछ दिनों की साधना के बाद अचानक से वहां पर एक भयानक प्रेतनी प्रकट हो गई। उसने कहा, तूने मुझे क्यों बुलाया है? मैं? तेरा रक्त पी जाऊंगी। तब कन्या ने मंजूषा के कहे अनुसार उसे कहा ठीक है, तू मेरा रक्त ले ले लेकिन मेरी भी एक शर्त है। तू मेरे रक्त से ही शरीर धारण करेगी।

तब उस प्रेतनी ने कहा ठीक है। मैं इस साधना के लिए तेरी इस इच्छा को पूरी करती हूं और वह तैयार हो गई तब उस कन्या ने अपने हाथ से। कई बूंद रक्त जमीन पर गिराया। जमीन पर गिरने से पहले ही उस रक्त को वह दुल्हन चाट गई। और उसने उस रक्त को अपने मुंह में ले लिया। उसके बाद उसी रक्त से उसने एक नव युवती दुल्हन का रूप धारण किया। और उसके सामने प्रकट होकर कहने लगी। तेरी इच्छा के अनुसार मैंने रक्त पीकर और संतुष्ट होकर यह रूप धारण किया है। तेरे रक्त से ही यह शरीर बना है। इसलिए अब मैं तैयार हूं। बता तेरी क्या इच्छा है? तू मुझसे कौन सा कार्य करवाना चाहती है?

तब कन्या ने कहा, पहले मुझे वचन दो। तब उस? प्रेतनी ने कहा, ठीक है तू जब तक मुझे रक्त देती रहेगी अपने शरीर से, तब तक मैं तेरा कार्य करती रहूंगी। इस प्रकार!

उस कन्या ने उसे अपना रक्त प्रदान करना शुरू कर दिया। तब? उस प्रेतनी ने पूछा तेरी इच्छा बता तू सिर्फ मुझे संतुष्ट करने के लिए अपना रक्त देती जा रही है। तब? मंजूषा ने। जो कहा था वही बात कन्या ने उस प्रेतनी दुल्हन से कहीं। उसने कहा सुनो तुम्हें एक खजाने पर जाकर बैठ जाना है। और तुम्हारे साथ कुछ भी हो तुम्हें? कुछ नहीं करना है, यह मेरी आज्ञा है। जब मैं तुम्हें वहां लेकर जाऊं, तुम इस कार्य को अवश्य करोगी। और?

बदले में मैं तुम्हें मुक्त कर दूंगी।

उस प्रेतनी दुल्हन ने कहा, ठीक है, मैं तुमसे कोई प्रश्न नहीं करूंगी और वहां जब तक तुम्हारी आज्ञा नहीं होगी, तब तक बैठी रहूंगी।

इस प्रकार अब कन्या, प्रेतनी दुल्हन और मंजूषा। उस खजाने की दुल्हन वाले स्थान पर पहुंच गए। खजाने पर पहुंचकर अब! कन्या के इशारे पर। वह प्रेतनी दुल्हन! खजाने पर जाकर बैठ गई।

तभी वहां! खजाने की दुल्हन आ गई। उसने अपने खजाने पर बैठी हुई एक स्त्री को देख कर उस पर तलवार से वार कर दिया और उसका सिर काट दिया। जैसे ही उसका सिर कटा। उस प्रेतनी!

दुल्हन को मुक्ति मिल गई। और इसी के साथ? अचानक से। खजाने की दुल्हन का शरीर बदलने लगा। वह स्वयं मुक्त हो रही थी।

वह मंजूषा से पूछती है। यह क्या हुआ? तब मंजूषा कहती है, तुम्हारी अंतिम इच्छा थी। की? उस राजा के वंशज में किसी का रक्त!

बलि के रूप में तुझे प्राप्त हो।

और इस प्रेतनी का रक्त इसी कन्या के रक्त से बना हुआ है इसीलिए तूने स्वयं? उसके वंशज का रक्त ही बलि के रूप में प्राप्त किया है जो कि तेरी अंतिम इच्छा थी। इसीलिए अब तू मुक्त होती है। इस प्रकार खुश होकर।

खजाने की दुल्हन मुक्ति को प्राप्त करती है। और शांत हो जाती है। जाते जाते वह मंजूषा से कहती है कि जिस राज्य में तुम जा रही हो उस राज्य के तांत्रिक से सावधान रहना।

और इतना कहकर खजाने की दुल्हन मुक्ति को प्राप्त कर लेती है।

अब उस महल में पहुंचकर मंजूषा और कन्या! भीतर! प्रवेश करते हैं तभी चारों ओर से सैनिक मंजूषा और उस कन्या को घेर लेते हैं। पास ही खड़े उसके चाचा और तांत्रिक सैनिकों को आदेश देते हैं। इन पर अस्त्र शस्त्रों की वर्षा कर इन्हें मार डालो। आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में। अगर आपको वीडियो पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version