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तांत्रिक भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 8

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है मंजूषा की साधना यात्रा में, आपने अभी तक जाना कि किस प्रकार से एक राज्कन्या महल में कैद है और उस प्रेत आत्मा ने वहां हड़कंप मचा रखा है।जैसे कि हमने अभी तक जाना था कि महल में ऊपर चढ़कर उस कन्या ने सभी को धमकी दी कि वह वहां से नीचे कूद जाएगी। इस वजह से राजा घबराकर मंजूषा के पास आया। उससे कहने लगा देवी कोई ऐसा कार्य करें जिससे मेरी पुत्री की रक्षा हो सके। अगर यह नीचे कूद गई तो मै अपने आपको कभी भी माफ नहीं कर पाऊंगा। यह मेरी सबसे प्रिय पुत्री है।इसमें मेरी जान बसती है। आप कुछ भी कीजिए लेकिन मेरी इस कन्या को नीचे कूदने से बचा लीजिए।यह सुनकर मंजूषा ने कहा, ठीक है मैं अपनी तंत्र शक्तियों को कन्या पर भेजती हूं। मंजूषा ने?स्तंभन तंत्र का प्रयोग किया। और? एक गोपनीय मां दुर्गा के मंत्र का इस्तेमाल करते हुए स्तंभन शक्ति के माध्यम से कन्या को वहीं पर रोक दिया।लेकिन? प्रेत आत्मा! उस कन्या को नीचे गिराने पर लग गई। हालांकि कन्या अब स्थिर थी लेकिन वह प्रेतात्मा उसे वहां से नीचे गिरा कर। मार देना चाहती थी। इसी वजह से उसने उसे हवा में उठा लिया और नीचे फेंकने की तैयारी करने लगी।

यह देखकर मंजूषा को। एक बार फिर से अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग करना पड़ा। माता त्रिपुर भैरवी के गोपनीय मंत्र के माध्यम से उन्होंने प्रेत पर वार किया। प्रेत दूर जाकर गिरा। मंजूषा ने कन्या के ऊपर। विशेष तरह के तंत्र का प्रयोग किया जिससे वह कन्या वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी। इस प्रकार से समस्या कुछ समय के लिए टल चुकी थी। राजा! और अन्य सहयोगी व्यक्तियों ने मंजूषा से कहा, आप तुरंत महल के भीतर प्रवेश करें। उस प्रेत को पराजित करके कन्या को वापस ले आइए।यह सुनकर मंजूषा ने कहा, ठीक है अब मैं मुख्य द्वार से महल में प्रवेश करती हूं। जब तक कन्या बेहोश है उसे कुछ भी वह प्रेत नहीं कर पाएगा क्योंकि मेरी स्तंभन शक्ति के कारण अब प्रेत उसे उठाकर कहीं और नहीं ले जा सकता।किंतु जब तक यह शक्ति का प्रयोग उस कन्या पर रहेगा उसी दौरान मुझे महल में प्रवेश कर जाना है ताकि मैं प्रेत को उलझा सकूं।यह बातें कहकर मंजूषा मुख्य द्वार पर पहुंच गई।अब समस्या थी। लोहे के बने विशालकाय द्वार को खोलना।
इसके लिए मंजूषा ने अपने उसी पिशाच को याद किया और उससे कहा, अपनी शक्ति का प्रयोग करो। पिशाच ने अपने 1000 सैनिकों के साथ। उस दरवाजे पर तीव्रता के साथ हमला किया। और उसकी वजह से वह दरवाजा टूट कर बिखर गया।

अब द्वार खुल चुका था। मंजूषा उस राज महल में प्रवेश कर चुकी थी।यह देखकर प्रेत को बहुत अधिक क्रोध आया वह साक्षात रुप में मंजूषा के सामने आकर खड़ा हो गया और कहने लगा। तूने यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। मैं तुझे मृत्युदंड दूंगा। यह सुनकर मंजूषा हंसने लगी। उसने कहा, इतनी सामर्थ्य तुमने कहां से आ गई कि तुम मुझे मृत्युदंड दे सको? जब तक मां जगदंबा की आज्ञा नहीं होगी। तब तक मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। यह सुनकर प्रेत को बहुत अधिक क्रोध आया। और उसने युद्ध शुरू कर दिया। अपनी तंत्र शक्तियों का प्रयोग वह एक दूसरे पर करने लगे। मंजूषा के किए गए शक्ति प्रहारो का प्रेत अच्छी तरह सामना कर रहा था। जब प्रेत हमला करता तो मंजूषा अपनी रक्षा, अपने शक्तिशाली त्रिशूल के माध्यम से कर लेती। जब मंजूषा हमला करती तो प्रेत बचकर इधर उधर निकल जाता था। इस प्रकार दोनों की इस युद्ध श्रृंखला में कोई निर्णय नहीं हो रहा था। यह आश्चर्यजनक बात थी। क्योंकि? भैरवी सिद्धि प्राप्त की हुई मंजूषा अभी तक प्रेत को बांध नहीं पाई थी। ऐसा क्यों हो रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था?

तभी उसने अपने सबसे शक्तिशाली! माता त्रिपुर भैरवी के मंत्रों का इस्तेमाल कर। प्रेत! की जुबां पर वार किया। इसकी वजह से प्रेत उसके सामने आकर कहने लगा। यह तूने कौन से तंत्र का प्रयोग किया है? मैं अपनी सारी कहानी तुझे बताना चाहता हूं। मेरी जुबान अपने आप बोलना चाहती है।ऐसा तंत्र तो मैंने पहले कभी नहीं देखा। ठीक है मैं तुझे अपनी कहानी बताता हूं। जिसे तू जानने के लिए। बहुत बेचैन है। सुन मैं एक प्रसिद्ध तांत्रिक था। मैंने पूरे 12 वर्ष गोपनीय तंत्रों की सिद्धियां प्राप्त की थी। मेरी शक्तियां दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही थी। लोग मेरे पास आकर अपनी अपनी समस्याएं बताया करते थे और मैं अपनी शक्तियों के माध्यम से उन सब का हल कर देता था।मैं धीरे-धीरे बहुत ही अधिक प्रसिद्ध हो गया था।लेकिन एक दिन जब मैं एक यक्षिणी को सिद्ध कर रहा था। तब उस दौरान उसे यक्षिणी ने प्रकट होकर कहा, मेरी सिद्धि से तुझे कुछ खास लाभ नहीं मिलने वाला।तेरे पास उड़ने की शक्ति!वायु गमन करने की शक्ति।जल पर चल सकने की शक्ति! अग्नि पर दौड़ सकने की शक्ति! होनी चाहिए। यह सारी शक्तियां तुझे केवल! राजकन्या की बलि देकर ही मिलेंगी।

यह सुनकर मैंने उससे पूछा यह कौन सी? साधना है जिसके विषय में तुम बात कर रही हो। तब उसने कहा पाताल लोक की एक दैवीय शक्ति! जिसको अगर तुम! राजकन्या की बलि दोगे जो कि शतभिषा नक्षत्र में पैदा हुई हो। तो अवश्य ही तुम्हें ऐसी सिद्धियां प्राप्त हो जाएंगी।जब मैंने उस यक्षिणी की इस बात पर गौर किया तो मुझे लगा कि ऐसी सिद्धि प्राप्त करना। मेरे लिए आवश्यक है। क्योंकि मेरे पास सभी तरह की तंत्र शक्तियां मौजूद है। लेकिन देवताओं जैसी शक्तियां मेरे पास होने पर मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक हो जाऊंगा। इसीलिए मुझे यह कार्य अवश्य ही करना चाहिए।मैंने एक राजा की कन्या उठवा ली। अपनी तंत्र शक्ति के माध्यम से उस पाताल की देवी को कन्या की बलि! सौंप दी।उस कन्या का सिर काट कर मैंने उस देवी को चढ़ा दिया था। लेकिन वह देवी प्रसन्न नहीं हुई। तब मैंने उस यक्षिणी को बुलाकर पूछा। ऐसा क्या हुआ कि देवी प्रसन्न नहीं हुई है? तब उस यक्षिणी ने बताया यह कन्या शतभिषा नक्षत्र में पैदा नहीं हुई है। तुम्हें ऐसी कन्या ढूंढनी है जो इस नक्षत्र में पैदा हुई हो। तब मेरा ध्यान इस राजा की राज कन्या की ओर गया। मैंने अपनी तंत्र शक्तियों के माध्यम से जान लिया कि इस राजा की कन्या!शतभिषा। नक्षत्र में पैदा हुई है।

इस नक्षत्र में पैदा हुई कन्या की बलि देने पर मुझे ऐसी सिद्धियां प्राप्त अवश्य हो जाएंगी। इसीलिए मैंने तुरंत ही अपनी प्रेत सेना को भेजकर इस कन्या को राज महल से उठवा लिया था। इस प्रकार! मैंने इस कन्या कि जब बलि देनी चाहिए तभी बहुत बड़ी गड़बड़ी हो गई। मेरा किया गया सारा खेल बिगड़ गया था।मंजूषा ने पूछा ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे साथ जिसकी वजह से तुम्हारी सिद्धि अधूरी रह गई।तब उस प्रेतात्मा ने कहा कि मैं जैसे ही राजकन्या की बलि देने वाला था तभी। आश्चर्यजनक ढंग से एक घटना घट गई।और इसी का बदला लेने के लिए मैंने इस जगह आना और इस राज महल में ऐसा भारी तांडव मचाना शुरू किया है।वह घटना क्या थी, हम लोग जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें शेयर करें। सब्सक्राइब करें, आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।
तांत्रिक भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 9
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