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तांत्रिक भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 9

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। तांत्रिक भैरवी मंजूषा का साधना सीखना। इसमें अभी तक आपने जाना कि कैसे मंजूषा और प्रेत का युद्ध होता है। आखिर प्रेत अपनी कहानी सुनाता है और वह बताता है कि आखिर वह क्यों राजकन्या के पीछे पड़ गया था। वह सर्व सिद्धि की प्राप्ति के लिए जंगल में राज्य कन्या की बलि देने ही वाला था। तभी उसके साथ बहुत ही बुरी घटना घट गई। आखिर वह घटना क्या थी? प्रेत कहता है। कि वह दिन दुर्भाग्यपूर्ण था क्योंकि अगर मैंने कन्या की बलि दे दी होती तो मैं सर्व सिद्धियों को प्राप्त कर लेता। पर जैसे ही मैं बलि देने वाला था, पता नहीं कहां से राजा के सैनिक वहां पर आ गए। उन सब ने? राजकुमारी को पहचान लिया था। बिना कोई देर किए सैनिकों ने मुझ पर हमला कर दिया और तुरंत ही मेरी हत्या कर दी।मैं मरते मरते यही सोच रहा था कि मुझे यह कार्य संपन्न कर लेना चाहिए था। और यह तो बात सर्व जगत प्रसिद्ध है कि मरते वक्त व्यक्ति की जो इच्छा होती है। वही! उसे प्राप्त हो जाता है। शक्तिशाली तांत्रिक होने के बावजूद मुझे प्रेत योनि मिली। मैं इस योनि में फंस गया। जैसे ही मैं प्रेत बना, मैंने चारों तरफ देखा। और मुझे लगा कि मैं इस योनि में आखिर क्या कर रहा हूं किंतु मेरे सामने कोई और विकल्प नहीं था।

मरता क्या न करता? तभी मुझे यह बात समझ में आई भले ही मैं प्रेत योनि में हूं, किंतु अगर मैंने उस राज्कन्या का अंत कर दिया तो मुझे सिद्धियां मिल जाएंगी। इसीलिए मैं जंगल से उठा और आ गया इस राज महल में। क्योंकि मेरे पास पहले से ही तांत्रिक शक्तियां थी इसीलिए! प्रेत होते हुए भी मुझसे कोई जीत नहीं सकता था। मैंने महल से सैनिकों को उठा कर फेंकना शुरू कर दिया। मेरा प्रकोप इतना बढ़ा कि मैंने कुछ ही समय में पूरा राज महल खाली करवा लिया और इस राजकन्या को अपने वश में कर लिया।अब मैं केवल शतभिषा नक्षत्र! का इंतजार कर रहा हूं। जो कि कल है। तब मैं इसकी बली दूंगा और मुझे सिद्धियां मिल जाएंगी। यह कहकर प्रेत हंसने लगा। मंजूषा उसे कहती है। तुम्हारी यह सारी कोशिशें नाकाम हो जाएंगे। तुम तो प्रेत योनि में चले गए हो। इन शक्तियों को प्राप्त कर अब क्या करोगे? चलो तुम अभी भी मुक्त हो सकते हो? इस कन्या को छोड़ दो राजमहल को छोड़कर चले जाओ।अपना समय ईश्वर की भक्ति करने में बिताओ। तुम्हें मुक्ति अवश्य मिलेगी।

प्रेत यह सुनकर हंसने लगा और कहने लगा, मुक्ति किसे चाहिए? मैं बहुत अधिक शक्तिशाली हूं। और अधिक शक्तियां प्राप्त करने की इच्छा से ही तो मैंने इस राज महल में प्रवेश किया था। मेरे पास इतनी तांत्रिक सिद्धियां हैं कि तेरी शक्तिशाली! तांत्रिक शक्तियां भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पा रही हैं। मैं इतना अधिक शक्तिशाली हूं कि चाहूं तो अभी इस राज महल को एक क्षण में नष्ट कर सकता हूं। मेरे पास! लाखों की संख्या में प्रेत और पिशाच मौजूद हैं। अब बता इतनी अधिक शक्तियां? मेरे पास होने पर भी मैं संतुष्ट नहीं हूं। क्योंकि मुझे देवताओं के बराबर शक्तिशाली बनना है। और यह मेरी अंतिम इच्छा भी थी। कि मैं इस राज कन्या का वध करके पाताल की सारी शक्तियां प्राप्त करु।इसमें तुम मुझे अगर रोकोगे तो मैं तुम्हें भी समाप्त कर दूंगा। तुम देख तो चुकी हो, अभी तक तुमने जितनी भी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किया है, मैंने उन सब की काट कर दी है। क्योंकि मुझे इन! सभी तांत्रिक विद्या में सिद्धि प्राप्त है।मंजूषा ने कहा, मैं समझ गई। मैं जो भी मंत्र प्रयोग करने वाली होती हूं, उससे पहले ही तू उसकी काट जानता है। इसलिए मैं तुझे समझा रही थी लेकिन एक बात याद रख। मां भगवती की शक्ति से बड़ी इस संसार में कोई और शक्ति नहीं है।

मुझे मजबूर मत कर कि मैं उनका नाम लूं और तेरा नाश कर दूं। क्योंकि तू ने कई वर्षों तक तपस्या और साधना की थी। इसी कारण मुझे तुझ पर दया आ रही है। मैं तुझे एक मौका देना चाहती हूं। मान जा अभी भी समय नहीं नष्ट हुआ है। तू इस कन्या को छोड़ दे अपने पापों को नष्ट कर प्रायश्चित के द्वारा। और? जीवन में अच्छे काम कर।प्रेत एक बार फिर से हंसने लगा। वह कहने लगा, तू तो बड़े अच्छे प्रवचन देती है। किंतु मैं अपना कार्य अवश्य ही करूंगा और किसी भी सूरत में मैं इस कन्या का वध शतभिषा नक्षत्र आते ही कर दूंगा। इस संसार में कोई शक्ति मुझे नहीं रोक सकती है। कोई देवी देवता में इतनी शक्ति नहीं है जो मुझे मेरे इस कार्य को करने से रोक सके।मंजूषा समझ चुकी थी, यह बाज नहीं आने वाला है। आखिरकार उन्होंने देवी मां के मूल मंत्र का उच्चारण करना शुरू कर दिया। प्रेत की सारी तांत्रिक विद्या।छोटी पड़ने लगी। वह सब तंत्रों का प्रयोग करने लगा लेकिन उस मंत्र के आगे सभी तंत्र निष्फल होने लगे। यह! देखकर वह घोर आश्चर्य में पड़ गया। वह समझ गया कि अब उसका कोई तांत्रिक प्रयोग काम में नहीं आने वाला है। और यह इतनी सिद्ध?भैरवी है कि इसकी साधना को बीच में मैं नहीं रोक पाऊंगा क्योंकि यही एकमात्र मार्ग था। अगर मैं इसकी साधना बीच में रोक दूं तो शायद मैं अपनी रक्षा कर सकता था। अब एक मात्र ही विकल्प मौजूद था और वह विकल्प था वहां से भाग जाना।

प्रेत ने तुरंत ही कन्या का हाथ पकड़ा और वहां से गायब हो गया।मंजूषा ने जैसे ही आंखें खोली। सामने कोई मौजूद नहीं था। ना वहां पर प्रेत था ना ही वह कन्या।पूरा राज महल प्रेत के आतंक से मुक्त हो चुका था।थोड़ी देर बाद राजा उसके सैनिक और अन्य प्रजा जन वहां आ गए। राजा ने धन्यवाद कहते हुए मंजूषा से कहा, आपने मेरे राजमहल को प्रेत बाधा से मुक्त तो कर दिया है किंतु अब मेरी पुत्री की रक्षा कीजिए। मंजूषा ने कहा, ठीक है। ऐसा कीजिए एक बड़ा आईना मेरे पास लेकर आइए। राजा ने वहां एक बड़ा ही विशालकाय आईना लाकर खड़ा कर दिया। मंजूषा ने अभिमंत्रित जल का प्रयोग उस आईने पर किया और सामने का दृश्य उन्हें दिखाई दिया। उन्होंने देखा कि एक घोर जंगल में हजारों प्रेतों के बीच एक कन्या बैठी हुई है और उसके सामने ही। तांत्रिक की प्रेतात्मा उसकी बलि देने की तैयारी कर रही है। केवल दोपहर बाद शतभिषा नक्षत्र लग जाएगा। इसके लगते ही वह तांत्रिक इस कन्या की बलि दे देगा। इसलिए तुरंत ही वहां जाना होगा।भैरवी अपने मंत्रों का प्रयोग कर! राजा और उसके सैनिकों के साथ वहां पहुंच गई।

प्रेतों ने राजा के सैनिकों को हरा दिया लेकिन?मंजूषा के मंत्रों के आगे प्रेतों की एक नहीं चली। मंजूषा ने सभी प्रेतों को बांध दिया।अब मंजूषा उस तांत्रिक प्रेत के सामने पहुंच गई। और उससे कहने लगी। अवश्य ही तुम इस कन्या की बलि दे सकते हो, लेकिन मैं कुछ तुम्हें दिखाना चाहती हूं। एक बार देख लो उसके बाद तुम्हारी जो इच्छा है वह तुम कर लेना। तांत्रिक प्रेत ने कहा, ठीक है दिखाओ मंजूषा ने स्वर्ग को दिखा दिया। स्वर्ग को देखते ही तांत्रिक प्रेत कहने लगा क्या यह सब भी होता है। यहां पर तो ना भोजन की कमी है। ना स्त्रियों की कमी है ना सिद्धियों की कमी है। अपनी इच्छा से व्यक्ति जो कुछ करना चाहता है, वह इच्छा मात्र से प्राप्त कर सकता है। ऐसा है स्वर्ग! यहां पर सारी सिद्धियां मौजूद है। उड़ने की, पानी पर चलने की, हवा में ठहर जाने की, अग्नि पैदा करने की, अंतरिक्ष में घूमने की।अप्सराओं के साथ विवाह करने की।उनके साथ संभोग करने की। भोजन पदार्थों में 56 प्रकार के भोजन है और आप के महल में आपके पास लाखों की संख्या में नौकर चाकर है इतना उत्तम! और सुख स्वर्ग में है। स्वर्ग छोड़कर मैं इन तांत्रिक सिद्धियों के पीछे क्यों भाग रहा हूं, मुझे स्वर्ग ही जाना चाहिए और उसने कहा, क्या मुझे स्वर्ग तक जाने का कोई मार्ग नहीं मिलेगा तब?

तांत्रिक भैरवी मंजूषा ने कहा, तुम्हें मां के आगे अपनी बलि देकर। उनके मंत्रों का जाप करते हुए मुक्ति प्राप्त करनी होगी। अगर तुम ऐसा करते हो तो निश्चित ही सीधे स्वर्ग चले जाओगे। तांत्रिक प्रेत पहले ही इन चीजों में निपुण था। उसने स्वयं के अस्तित्व को जला दिया और जलते हुए शरीर से उसने माता के मंत्रों का उच्चारण जारी रखा। इस प्रकार उसका वह प्रेत शरीर नष्ट हो गया और उसकी आत्मा साक्षात सीधे स्वर्ग में चली गई। इस प्रकार तांत्रिक प्रेत से राजकुमारी मुक्त हो गई और वह अपने महल वापस लौट आए। अब सभी का शुक्रिया अदा करने के बाद मंजूषा अपने आश्रम में वापस लौट आई थी। तभी वहां पर एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसके शरीर का रक्त सूख चुका था। केवल हड्डी का ढांचा वह दिखाई पड़ता था। तब मंजूषा ने पूछा, यह कौन है वह व्यक्ति बोला, मैंने पिशाचिनी साधना की थी पर मेरे शरीर का रक्त सूख गया है। मैं जल्दी ही मरने वाला हूं। मेरी रक्षा कीजिए। अब मंजूषा के सामने एक नई चुनौती आ चुकी थी। आगे जानेंगे कि अगली कथा में क्या घटित हुआ तो अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।तांत्रिक

भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 10

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