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तिरिया राज की शक्तिशाली जादूगरनी भाग 1

तिरिया राज की शक्तिशाली जादूगरनी भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम एक ऐसे अनुभव को लेने जा रहे हैं जो तिरिया राज पर आधारित है। आखिर कौन सी ऐसी जगह है और इसका क्या रहस्य है। इस अनुभव पत्र के माध्यम से ही जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

नमस्कार गुरु जी, सबसे पहले मैं आपका धन्यवाद कहूंगा जो आपने मेरे पत्र को धर्म रहस्य चैनल पर प्रकाशित किया है और इस बात की मुझे खुशी है कि लोगों के अनुभव के साथ-साथ आप उनके सभी प्रकार के प्रश्नों के जवाब भी देते हैं। गुरु जी आप धर्म के क्षेत्र में कहानियों के माध्यम से बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। आपके जैसा व्यक्ति मिलना इस युग में बहुत ही कठिन है और निस्वार्थ भाव से आप साधना और सनातन धर्म के रहस्यों को उजागर करते रहते हैं। इसके लिए आपका विशेष रूप से धन्यवाद गुरु जी मेरे पिताजी के जो दादाजी थे, उनकी एक सत्य घटना पर आधारित अनुभव है। कुछ लोग हो सकता है। इसे एक मिथक माने या फिर ना भी विश्वास करें। लेकिन क्योंकि हम पीढ़ियों से यह कहानी सुनते आ रहे हैं। इसलिए मेरा मन हुआ कि मैं आपको इस रहस्य के बारे में बताऊ और आपसे बस इतनी प्रार्थना है कि कृपया मेरा नाम और बाकी चीजें गोपनीय रखें। क्योंकि हमारा उद्देश्य केवल सत्य का उजागर करना है। समाज में प्रदर्शन करना नहीं है। गुरु जी यह घटना तब की है जब अंग्रेजों का शासन था। उस वक्त मेरे पिता के दादाजी जो कि मेरे परदादा लगेंगे वह एक छोटे मोटे जमीदार थे।

व्यापार के सिलसिले में एक बार उनका कामरूप असम जाना तय हुआ था। वह किसी विशेष व्यापार के सिलसिले में वहां पर गए थे। तब क्यों की यात्राएं बड़ी लंबी होती थी इसलिए काफी दिनों बाद ही वापसी होती थी। पता नहीं क्यों दादी को घबराहट हो रही थी। इसलिए उन्होंने उनसे कहा था कि आप कोई रक्षा ताबीज बनवा लीजिएगा क्योंकि इस बार पता नहीं क्यों मुझे अंदर से घबराहट हो रही है। आज भी स्त्रियों को मन में पहले ही घबराहट हो जाती है। अगर सच में वह स्त्री पतिव्रता है तो उसे अनुभव हो ही जाता है कि उसके पति के ऊपर कोई संकट आ सकता है। और उस वक्त की स्त्रियां तो पराए पुरुषों को देखती तक नहीं थी। इसलिए उनके अंदर सतीत्व की शक्ति पूरी तरह विद्यमान थी।

मेरी दादी के कहने पर परदादा ने कहा, तुम व्यर्थ ही चिंता करती हो। माना कि मुझे बहुत दूर जाना है, लेकिन यह कोई परेशानी वाली बात नहीं है। सभी लोग जाते हैं और व्यापारी अगर दूर की यात्रा नहीं करेगा तो फिर कमाएगा और क्या खाएगा?

इसलिए मुझे जाने दो हां तुम्हारी बात को ध्यान में रखकर अवश्य ही मैं। माता के दरबार सबसे पहले जाऊंगा और उन्होंने घरवालों से रजामंदी लेकर यह यात्रा प्रारंभ की। वह असम में माता कामाख्या के शक्तिपीठ पर जाकर मत्था टेकने वाले थे। वह जब वहां पहुंचे तभी एक स्त्री जो कि काफी वृद्ध थी। उसके शरीर को देखकर ऐसा लगता था कि वह कोई तपस्विनी है लेकिन उसके सिर के बाल तक बरगद की लटकती हुई जड़ों के समान दिखाई दे रहे थे। उसे देखकर लगता था कि यह केवल तपस्या ही करती है। उसे देखकर मेरे परदादा ने उन्हें नमस्कार किया और उनके चरण छुए। सहज भाव से ही उनके मन में उस स्त्री के प्रति प्रेम और आदर था। माता कहकर उन्हें संबोधित किया। तब उन्होंने कहा कि मुझे भूख लग रही है। क्या मुझ तू भोजन करवा सकता है? तब उन्होंने कहा, मैं एक धनवान जमीदार हूं। इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। मेरे सेवक आपके लिए अभी भोजन ले कर आ जाएंगे और परदादा के साथ गए हुए बहुत सारे सेवक उनके लिए विभिन्न प्रकार की भोजन सामग्री लेकर आ गए।

और उन्होंने 1 मिनट भी नहीं लगाया उससे भोजन को खाने में और फिर वह कहने लगी कि मुझे अभी तृप्ति नहीं मिली है। क्या मुझे और भोजन तू करवा सकता है मेरे परदादा चतुर थे एक बात वह तुरंत समझ गए। यह कोई साधारण स्त्री नहीं है तो उन्होंने तुरंत ही उनके पैर पकड़े और कहा, माता मेरी सामर्थ्य क्या मैं आपको भोजन करवा पाऊं। आप बस उतना ही ग्रहण कीजिए ताकि मुझे भी संतुष्टि हो और आपके शरीर को भी तृप्ति प्राप्त हो। तब उन्होंने कहा, तेरे पास जो एक फल रखा है उस फल को मुझे दे और तब उन्होंने वह फल निकाल कर उन देवी को अर्पित किया। उन्होंने वह खाया और खाते ही उनके पेट में डकार आ गई ।

और कहने लगी बस मैं तृप्त हो गई।

तब? मेरे परदादा ने उनसे कहा, आपने यह कोई चमत्कार दिखाया है। इतना ज्यादा खाना! खाने के बाद भी आपको डकार नहीं आई थी लेकिन सिर्फ एक फल मेरे हाथ से प्राप्त कर आप संतुष्ट कैसे हो गई?

तब उन्होंने कहा। तुमने स्वयं इसे अर्पित किया था और बाकी तुमने अपने नौकरों से मुझे दिया था। तुम्हारे नौकर नगर भर का भी भोजन अगर मुझे देते तो मैं संतुष्ट नहीं होती।

किसी भी कार्य में खुद का समर्पण आवश्यक होता है।

तब मेरे परदादा ने उनसे पूछा, आखिर आप कौन हैं? कृपया अपना परिचय दीजिए, तब उन्होंने कहा, मैं एक सिद्ध भैरवी हूं।

मेरे परदादा को समझ में नहीं आया। उन्होंने पूछा। कि आप सिद्ध भैरवी हैं, इसका क्या अर्थ है? तब उन्होंने कहा, मैंने कठोर तपस्या से पहले योगिनी पद हासिल किया। अब मैंने भैरवी पद हासिल कर लिया है और मैं बहुत अधिक सिद्धि वान हूँ  और क्योंकि तूने मुझे भोजन करवाया है इसलिए मैं तेरी सदैव रक्षा अवश्य करूंगी।

मैंने तेरा चेहरा देखकर एक रहस्य जान दिया है, लेकिन प्रारब्ध में हस्तक्षेप मैं नहीं कर सकती। किंतु कभी भी अगर तुझे मेरी आवश्यकता पड़ी। तो मैं तुझे एक मंत्र देती हूं इसे पढ़ लेना। तब मैं तेरी सहायता के लिए तुरंत वहां पर आ जाऊंगी।

तब उन्होंने उनके कान में एक मंत्र बोला और उन्होंने एक छोटा सा मंत्र याद कर लिया।

फिर वह कहने लगी, तेरी आगे की परीक्षा कठिन होने वाली है। सावधान रहना मेरे बच्चे! और फिर? वह वहां से चली गई।

तभी एक व्यक्ति वहां पर घूमता हुआ आया और उसने मेरे परदादा से कहा, इस क्षेत्र में बहुत सारे रहस्य दबे हुए हैं। नीलांचल पर्वत। अपने रहस्यों के लिए जाना जाता है। चाहो तो घूम कर बहुत सारे रहस्यों को जान सकते हो। तब मेरे परदादा को पता नहीं क्या हुआ। उन्होंने सोचा, मैं इस पूरे पर्वत में घूम कर देख लूंगा। आखिर यहां इन भैरवी माता जैसे कितने रहस्य छिपे हुए हैं? किंतु सभी लोगों का कहना था, आप ऐसा ना करें क्योंकि यहां पर बहुत ही मायावी स्त्रियां भी निवास करती है और वह पल भर में मनुष्य को अपने वश में कर लेती हैं। लेकिन मेरे परदादा कहने लगे। मैं एक शक्तिशाली पुरुष हूं। मेरे पास 60-70 तो सिर्फ नौकर हैं। ऐसे में मैं एक छोटी मोटी सेना लेकर ही तो चलता हूं। भला मेरा कौन और कुछ क्यों बिगाड़ लेगा और वह अपने नौकरों सहित उस पर्वत पर सभी जगह देखने के लिए घूमने लगे। कि तभी उन्हें सामने से पालकी पर बैठकर आती कई सारी सुंदर स्त्रियां दिखाई दी।

तब सब लोग उनको देखकर इधर-उधर हटने लगे पर मेरे परदादा नहीं हटे क्योंकि उन खूबसूरत स्त्रियों को देखकर वह उनसे बातचीत करना चाहते थे। पालकी सामने आकर रुक गई। पालकी से एक सुंदर कन्या अपना सिर बाहर निकाल कर बोली, मेरे मार्ग से हट जाओ। कौन हो तुम?

इसके बाद आश्चर्यजनक बात हुई।

मेरे परदादा और उनके सारे नौकर वहां से थोड़ी देर बाद गायब हो गए।

उनके साथ क्या हुआ मैं आपको अगले भाग में। अगले पत्र के माध्यम से बताऊंगा।

तब तक के लिए धर्म रहस्य चैनल के सभी दर्शकों को प्रणाम और गुरु जी को विशेष रूप से। मेरा नमस्कार!

संदेश-तो देखिये यहां पर इन्होंने अपने परदादा के साथ घटित हुई एक घटना के विषय में बताया है जो कि त्रिया राज्य से संबंधित है।

आगे जानेंगे हम लोग इस घटना में आगे क्या घटित हुआ था? तब तक के लिए करें इंतजार आप सभी का दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

तिरिया राज की शक्तिशाली जादूगरनी भाग 2

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