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दंतेश्वरी मंदिर के प्रेत भाग 2

दंतेश्वरी मंदिर के प्रेत भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। दंतेश्वरी मंदिर के प्रेत यह दूसरा भाग है। अभी तक आपने जाना कि एक तांत्रिक अपने शिष्य को एक प्रेत को पकड़ने भेजता है। तब प्रेत उसे कहता है कि तू मुझे किसी कुंवारी कन्या को लाकर समर्पित कर। अब उस शिष्य ने सोचा आखिर ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से यह प्रेत एक कन्या को लाने को कह रहा है? और वह कन्या भी कुंवारी होनी चाहिए।

तब?

उसने उस प्रेत से पूछा, अरे भाई! तू कोई और शर्त रख। तुझे एक कुंवारी कन्या क्यों चाहिए? तब वह प्रेत कहने लगा। मैं बिना किसी कुंवारी स्त्री के सुख प्राप्त नहीं कर सकता हूं। इसलिए मुझे अगर कुवारी स्त्री तू लाता है तो मैं तुझसे सिद्ध होकर तेरे सारे मनोरथ पूर्ण करूंगा। तब उस शिष्य ने एक बार फिर से उस पिशाच से पूछा है? हे शक्तिशाली प्रेत

तुम्हें आखिर कन्या ही क्यों चाहिए? और किसी कार्य की इच्छा तुम्हारे अंदर क्यों नहीं है? तब उस प्रेत ने कहा कि मैं तुझे अपनी कहानी सुनाता हूं।

इसी के कारण मैं इस इच्छा से बंधा हुआ हूं। तब शिष्य ने कहा, अवश्य ही मुझे तू अपनी सारी कहानी सुना।

उस प्रेत ने बताना शुरू किया। पास के ही गांव में मै बहुत ही धनी व्यक्ति था। और मेरे धन के कारण मेरे अंदर काम पिपासा। काफी ज्यादा जागृत रहने लगी मैं सिर्फ अपनी पत्नी के।

शरीर से संतुष्ट नहीं था। मुझे और भी स्त्रियां चाहिए थी और इसीलिए मैं गांव के ही पास एक वैश्यालय में जाया करता था। उस वेश्यालय की सभी स्त्रियों को मैंने अपने धन के कारण अपना गुलाम बना कर रखा हुआ था। मुझे हर दिन एक नई स्त्री चाहिए थी। और इसीलिए मुझे! लगभग दो-चार दिन में वहां जाना पसंद था। मेरी पत्नी को भी यह बात धीरे-धीरे पता चल गई थी। लेकिन मेरे भय के कारण वह मेरा विरोध नहीं कर पाती थी। पूरे गांव को यह बात पता थी किंतु मेरी शक्ति के आगे। किसी की भी सामर्थ्य नहीं थी कि मुझे कुछ कह सके। और वैश्यालय में सबसे ज्यादा आवा भगत मेरी ही की जाती थी इसी कारण से सभी के सभी वहां मेरे आगे पीछे घुमा करते थे। एक बार मैं।

एक नई स्त्री के पास पहुंचा। उस स्त्री के पास ही खड़ी एक कन्या को देखकर मुझे बेचैनी होने लगी। क्योंकि वह केवल 13-14 वर्ष की थी। लेकिन गजब की सुंदरता उसमें मौजूद थी। तब मैंने उस स्त्री से पूछा कि यह कन्या कौन है? तब उस स्त्री ने मुझे बताया कि यह उसकी पुत्री है।गर्भधारण हो जाने की वजह से मुझे अपना गांव छोड़ना पड़ा था। और यहां आकर अपना जीवन यापन करने के लिए मैंने वेश्यावृत्ति अपना ली थी।

आज मैं अपने सभी ग्राहकों को संतुष्ट करती हूं। लेकिन मुझे इस लड़की के लिए बहुत ही बुरा अनुभव होता है क्योंकि मेरा भविष्य तो जैसे तैसे कट रहा है लेकिन इसका क्या होगा? मैं सोचती हूं किसी अच्छे भले घर में इस लड़की को ब्याह दूँ लेकिन मेरे बारे में जानकर भला इसे कौन लेगा? तब? मेरे मन में एक बात आई मैंने उससे कहा, तू इसे मेरे घर में। सेवा के लिए रख दे मेरी पत्नी वैसे भी बहुत अधिक परेशान रहती है।

उसकी सेवा के लिए कोई स्त्री नहीं है। अगर यह उसकी सेवा करेगी तो धीरे-धीरे! इसके पास भी धन आएगा और क्योंकि यह मेरे घर में रहेगी इसलिए! बाद में जब यह जवान हो जाएगी तो स्वयं मैं इसका विवाह करवा दूंगा। यह सुनकर उस वैश्या ने कहा, ठीक है! अगर आप इसे ले जाते हैं तो यह आपकी जिम्मेदारी होगी। लेकिन मैं आपको एक बात स्पष्ट रूप से बता देना चाहती हूं, कुछ भी हो जाए लेकिन जो मेरे साथ हो रहा है वह इसके साथ कभी ना हो। वरना इस संसार में मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा।

मैंने उसे समझाया और वह मान गई। हालांकि इस कुमारी और बहुत ही अधिक सुंदर कन्या को देखकर मेरा मन पहले ही बिगड़ चुका था। मैंने सोचा था, इसे अपनी रखेल बनाकर रखूंगा। और इस प्रकार मैंने उस वैश्या से उस दिन समागम किया और उसके बाद उसकी कन्या को लेकर घर चला आया। यहां पर मैंने अपनी पत्नी को कहा, तुम्हारी सेवा में कोई अच्छी नौकरानी नहीं है। इसलिए मैं तुम्हारे लिए इस लड़की को लेकर के आया हूं। मेरी पत्नी भी इस बात से खुश हो गई कि चलो कम से कम इन्हें मेरा ख्याल तो है। लेकिन मेरे मन की वासना को कोई नहीं समझ पा रहा था।

दिन प्रतिदिन वह कन्या और अधिक खूबसूरत होती जा रही थी। मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं चाह रहा था कब मैं इसके साथ? समागम करु और एक दिन जब पत्नी काफी बीमार थी तो वहां पर यह परिचारिका के रूप में उपस्थित होकर उसकी सेवा कर रही थी। अपने कमरे में बहाना बनाकर इसे बुलाया और कहा, मेरे शरीर में बहुत थकावट रहती है। इसलिए तुम अब मेरी तेल मालिश कर दो और मैंने इसे। अपने पास बुलाया। और अपने शरीर की तेल मालिश करवाने लगा। धीरे-धीरे मैंने मौका देख कर के अपने अंदरूनी अंगों की मालिश करने को कहा, लेकिन यह समझ गई इसने साफ मना कर दिया। मैंने इसे पकड़ना चाहा, लेकिन यह भाग गई। और वहां से भाग कर सीधे अपनी मां के पास पहुंच गई।

मेरे अंदर की वासना बहुत बढ़ चुकी थी। और मुझे अब यह कन्या किसी भी कीमत पर चाहिए थी। मैं उस रात सीधा उस स्थान की ओर चल दिया। मैंने देखा यह अपनी मां के बगल में छुपी हुई थी। मैंने इसकी मां को कहा, मैंने इससे कहा था तू मेरी तेल मालिश कर पर यह काम बीच में छोड़कर भाग गई। अब बताओ इसका!

सारी जिम्मेदारी जो मैं लेना चाहता था लेकिन वह ले नहीं सकता।

इस लायक ही नहीं है। लेकिन? उस वैश्या को उसकी कन्या ने सारी बातें बता दी थी इसलिए वह क्रोधित होकर मुझसे ही कहने लगी। कि तू बहुत ही गिरी किस्म का इंसान है। मैंने तुझसे कहा था कि यह मेरी बेटी इन सब कार्यों में कभी नहीं पड़ेगी। पर तूने वही सब कुछ मेरी इस कुंवारी कन्या के साथ करने की कोशिश की है। निकल जा यहां से और दोबारा यहां मत आना। मुझ में कामवासना बहुत बढ़ चुकी थी। मुझे बहुत अधिक गुस्सा आया। मैंने पास ही पड़े हुए एक डंडे से उसकी मां को मारा और वह दूर जाकर गिरी। और मैं उसी समय उस कन्या के साथ।

संभोग करने के लिए तत्पर हो गया। मैंने उसके सारे कपड़े फाड़ दिए और जैसे ही मैं उसकी इज्जत आबरू लूटने वाला था तभी मेरे सिर पर किसी ने बहुत जोर से मारा। मैंने देखा कि उसकी मां ने मेरे सिर पर। एक तलवार मार दी थी। मेरा सर फट गया था। थोड़ी देर बाद ही मैं वहीं पर अचेत होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब से? मेरी अंतिम इच्छा के कारण मुझे प्रेत योनि मिली और तब से मैं तड़प रहा हूं। मुझे कुमारी कन्या चाहिए तभी मैं संतुष्ट हो सकूंगा। तब से मैं इस प्रेत जंगल में भटक रहा हूं किसी कुंवारी कन्या की तलाश में इसलिए अब तू मेरे लिए एक कुंवारी कन्या की व्यवस्था कर। तभी मैं संतुष्ट हो जाऊंगा और तुझे अवश्य ही मेरी सिद्धि प्राप्त होगी। शिष्य सोच में पड़ गया कि अब वह क्या करें? क्योंकि उसका गुरु इसके लिए कभी भी तैयार नहीं होगा और किसी कुमारी कन्या को लाना भी अच्छी बात नहीं है। लेकिन इस प्रेत में बहुत अधिक शक्तियां है। क्योंकि? एक अतृप्त आत्मा है। इसी कारण से इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है। शिष्य ने कुछ सोचा और वहां से चल दिया। अब शिष्य क्या करेगा जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

दंतेश्वरी मंदिर के प्रेत भाग 3

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