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दस महाविद्या के सिद्ध विद्या स्वरुप-प्रथम मां सिद्ध काली साधना

दस महाविद्या के सिद्ध विद्या स्वरुप-प्रथम मां सिद्ध काली साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक नई ही साधनाओं के विषय में और गोपनीय ज्ञान को शुरू करने जा रहे हैं और यह है माता के 10 महाविद्या स्वरूप से निकली हुई गोपनीय सिद्ध विद्याओं के बारे में है माता के 10 महाविद्या स्वरूप सभी लोग उनके विषय में जानते हैं, लेकिन उनके सिद्ध विद्या स्वरूपों के विषय में लोगों को जानकारी का अभाव है। इसीलिए उनकी साधना और विधान को मैं आप लोगों के लिए उपलब्ध करवा रहा हूं। उनकी रहस्यमई कथाओं और ज्ञान के साथ। तो सबसे पहले जो भी माताओं के विषय में अच्छी प्रकार से नहीं जानता है, उनको बताना आवश्यक है। इसलिए सबसे पहले यह जान लीजिए कि आखिर दसमहाविद्या है। क्या और इनकी उत्पत्ति कथा किस प्रकार है?

हम सभी जानते हैं माता पराशक्ति ही शक्तियों के विभिन्न खंडों के रूप में विभाजित होकर अपनी अलग-अलग लीलाओं के रूप में प्रकट होती रही है। वहीं महालक्ष्मी महाकाली महासरस्वती के रूप में जगत की रचना, पालन और संहार करती है। और उनसे ही आगे बढ़ते हुए यह कथाएं विभिन्न देवी और देवताओं के साथ उनकी शक्तियों के रूप में विराजमान होकर पूजनीय रूप में दिखाई पड़ती है। लेकिन अगर माता के 10 महाविद्या स्वरूपों की बात की जाए तो इनका मूल संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से ही है। माता पार्वती जो कि पूर्व जन्म में देवी सती के रूप में अवतरित हुई थी। जिन की उत्पत्ति दक्ष ने माता पराशक्ति की कई वर्षों तक और आराधना करने के बाद अपने यहां पुत्री रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की थी तो मा पराशक्ति के अंश से देवी सती के रूप में जगदंबा का प्रादुर्भाव हुआ था। लेकिन प्रजापति दक्ष!

इस बात से सदैव ही अप्रसन्न रहते थे कि कोई भी उनके नियम से जो ना चले, उस पर वह क्रोधित हो जाते थे। भगवान शिव जो जटा, जूट धारी बाघंबर पहनने वाले और इस संसार से पूरी तरह विरक्त होकर वैराग्य धारण करने वाले। साधना करते हुए तपस्वी के रूप में दिखते थे। जिससे उन्हें असामाजिक समझने की गलती प्रजापति दक्ष ने कर दी। इस बात के लिए ही और भगवान शिव को समाज से बहिष्कृत करने के लिए प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ महोत्सव का आयोजन किया। उस यज्ञ में भगवान शिव के अतिरिक्त सभी को आमंत्रण दिया गया था। देवर्षि नारद ने जब यह बात सती को बताए कि संसार में ऐसी कोई स्त्री पुरुष देवी या देवता नहीं है जिसे आमंत्रित ना किया गया हो लेकिन तुम्हारे प्रिय पिता ने तुम्हें और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया है। इस बात से देवी सती क्रोधित हो गई और उन्होंने अटल निश्चय लिया कि मैं यज्ञ में अवश्य ही जाऊंगी और अपने पिता से पूछूंगी। तब भगवान शिव ने उन्हें मना किया क्योंकि वह भविष्य को जानते थे। वह यह बात जानते थे कि अगर सती तुम उनके यज्ञ में गई तो तुम्हारी देह का अंत हो जाएगा। इसीलिए उन्होंने देवी को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन देवी सती ने स्पष्ट रूप से कहा, मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊंगी और वहां पहुंचकर या तो अपने प्राण ईश्वर देवाधिदेव के लिए। यज्ञ में भाग को प्राप्त करूंगी अथवा यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी। ऐसा कहते हुए देवी सती के नेत्र लाल हो गए। उनके अधर फड़कने लगे। वह कृष्ण वर्ण के हो गए, क्रोध अग्नि से भयंकर उनका शरीर दिखने लगा। इस प्रकार भयंकर परूप को धारण किए हुए वह खड़ी हो गई।

उनके भयानक रूप और स्वरूप को देखकर भगवान शिव उन्हें रोकने के लिए कोशिश करने लगे। तब भगवान शिव इधर-उधर गति करने लगे। भगवान शिव को रोकने के लिए वह जिस भी दिशा में गए, वहां पर देवी ने अपनी शक्ति से एक विद्या प्रकट कर उस ओर भगवान शिव का गमन रोक दिया क्योंकि भगवान शिव उन्हें वहां जाने नहीं देते। वह यह बात जानते थे कि वहां अगर सती गई तो सती की देह वापस नहीं आएगी। इसी कारण से उन्हें रोकने के लिए वह हर एक दिशा में गमन करने लगे। लेकिन देवी ने दसों दिशाओं को बांध दिया और दसों दिशाओं में अपने दश स्वरूप प्रकट कर। भगवान शिव को हर प्रकार से रोक दिया। तब भगवान शिव यह समझ गए कि महामाया अपनी माया से अब अवश्य ही इस कर्म को करने वाली हैं। उनके जो 10 महाविद्या स्वरूप प्रकट हुए थे, वह थे माता काली, माता तारा, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां षोडशी माता त्रिपुर सुंदरी, मां बगलामुखी, माता धूमावती और मां मातंगी, माँ भैरवी ।

और माता! लक्ष्मी के स्वरूप में कमला । माता इन सभी रूपों में प्रकट हो गई और इन सभी रूपों में उन्होंने सभी दिशाओं में शिव को रोक लिया। यह सभी देवियां जो कि 10 महाविद्या कहलाते हैं। यह धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्रदान करती हैं।

इस प्रकार इन सभी देवियों का उस समय जो प्रकृति करण हुआ। इन्हीं को बाद में सिद्ध संतों ने अपने अपने अनुसार पूजा और इनसे विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और गुप्त विद्याओं की प्राप्ति हुई। इन्हें महाविद्या इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इनसे सभी प्रकार की विद्याओं की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार! तब देवी? के विभिन्न प्रकार के स्वरूपों को संसार में सदैव के लिए स्थापित हुआ माना गया।

इस प्रकार! अब भगवान शिव ने जब इन महाविद्याओं का परिचय पूछा था तब? कृष्ण वर्ण वाली भयानक नेत्रों वाली देवी जो सामने स्थित थी। वह भगवती काली कहलाई। श्याम वर्ण वाली उर्ध्व भाग में विराजित देवी साक्षात महाकाल स्वरूपिणी महाविद्या तारा कहलाई, दाहिनी ओर को नष्ट करने वाली मस्तक विहीन देवी छिन्नमस्ता कहलाई, बाई ओर भगवती भुवनेश्वरी माता कहलाई। पीछे स्थित शत्रु नाश करने वाली देवी बगलामुखी कहलाई, विधवा रूप को धारण करने वाली अग्नि कोण में विराजमान देवी माहेश्वरी धूमावती कहलाई, नैत्रित्य कोण में विराजित देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी कहलाई, वायव्य कोण में स्थित मतंग ऋषि की कन्या महाविद्या मातंगी कहलाई, इशान कोण में स्थित देवी महाविद्या सुंदरी और भयंकर रूप वाली भैरवी सामने से देवी कहती हैं। हे शंभू, अब आप विचलित मत होइए। मैं तंत्रों को उत्पन्न करने वाली महाविद्या भैरवी हूं। इस प्रकार माता के विभिन्न प्रकार के स्वरूप को समझते हुए। भगवान शिव समझ गए थे कि यह महा माया की माया है और यह 10 महाविद्या जिनमें मां काली तारा, भुवनेश्वरी और इसी प्रकार से छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुर, सुंदरी, बगलामुखी, धूमावती, माता, कमला इत्यादि सभी रहस्यमई है। अब बात करते हैं इन विद्याओं से सिद्ध विद्या प्राप्त करने की विषय में।(दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं। भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी)- ईशान दिशा की देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की भगवती धूमावती पूर्व दिशा की माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।)

माता के यह मूल स्वरूप दसमहाविद्या रूप में साधकों ने सिद्ध करने की कोशिश की। तब बहुत से सिद्ध संतों ने विभिन्न प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं और साधनाओं के द्वारा इनके सिद्ध विद्या स्वरुप को साक्षात प्रकट कर विभिन्न प्रकार की तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त की।

जिससे हमें इनके 10 सिद्ध विद्या स्वरूप देखने को मिलते हैं। इन माताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए आज मैं आपको सबसे पहली मां माता महाकाली के सिद्ध विद्या स्वरुप के बारे में बताता हूं।

इन शक्तियों को पांच ऐसे मंदिर थे जिसके माध्यम से इन्हें प्रकट किया गया था। सबसे पहले माता महाकाली के विभिन्न प्रकार के मंदिरों के विषय में जानते हैं।

काली का दरबार जिसकी वजह से विभिन्न संतो ने विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थी जिसमें सबसे पहले दक्षिणेश्वर काली मंदिर जो कि पश्चिम बंगाल में है। यहां पर रामकृष्ण परमहंस जी ने देवी मां कालिका के प्रसिद्ध मंदिर की विधिवत रूप से आराधना और पूजा की थी। यह स्थान सती के दाहिने पैर की 4 उंगलियां यहां गिरी थी। यहीं पर सिद्ध संतों ने माता काली के गुप्त सिद्ध काली स्वरूप को सिद्ध किया था।

इस प्रकार कालीघाट यह क्षेत्र सिद्ध विद्या का प्रथम स्थान बना। दूसरा मंदिर मां गढ़कालिका उज्जैन मध्य प्रदेश में है। यह उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता का प्राचीन मंदिर है, जिसे गढ़कालिका के नाम से जाना जाता है। उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व है। पुराण में उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। तांत्रिकों की इस भूमि को विभिन्न प्रकार से जाना जाता है। महाभारत काल से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक यहां तांत्रिक साधनाएं कर। विभिन्न प्रकार से सिद्ध विद्या शक्ति को जगाया गया। ग्वालियर के महाराज ने यहां पुनर्निर्माण करवाया था और कालिदास जी ने यहीं पर साधना करके माता काली के सिद्ध स्वरुप को जागृत किया था।

मंदिर संख्या 3 महाकाली शक्ति पीठ पावागढ़, गुजरात। गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर मां कालिका का शक्तिपीठ जाग्रत स्थान माना जाता है। मां काली को महाकाली कहा जाता है। कालिका माता के प्रसिद्ध मंदिरों में यह है मां पार्वती के दाहिने पैर की उंगलियां पावागढ़ के पर्वत पर गिरी है। ऐसा माना जाता है। यह मंदिर गुजरात के चंपारण में स्थित है जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर माना जाता है। इस मंदिर के सिद्ध संतों ने श्री सिद्ध काली स्वरुप को जागृत किया था।

इसी प्रकार अगला मंदिर!कालिका मंदिर कांडा मार्केट कांडा जिला बागेश्वर उत्तराखंड में है। इस कालिका मंदिर की स्थापना 10 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य जी ने की थी। कैलाश यात्रा पर यहां जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने लोगों की रक्षा के लिए मां काली के विग्रह की स्थापना पेड़ की 1 जड़ से की थी। यह स्थान 1947 ईस्वी में जाकर एक मंदिर बनाया गया। लोक मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र में काल का आतंक था। वह हर साल एक नरबलि लेता था। वह अदृश्य काल जिसका भी नाम लेता उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती थी। लोग इस बात से परेशान थे। परेशान लोगों ने शंकराचार्य जी से अपनी आपबीती सुनाई जगतगुरु ने स्थानीय लोहारों के हाथों। लोहे के नौ कढ़ाये बनवाए। लोक मान्यताओं के अनुसार अदृश्य काल को 7  राहों में नीचे दबा दिया गया। इसके ऊपर एक विशाल शिला रखी गई और यहां एक पेड़ की जड़ पर मां काली की स्थापना की गई और काल को समाप्त किया गया यहां। स्वयं जगतगुरु शंकराचार्य ने सिद्ध काली विद्या को प्रकटीकरण करवाया था।

इसी प्रकार पांचवा सिद्धपीठ स्थान है। भीमा काली मंदिर शिमला हिमाचल, शिमला से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर सराहन में व्यास नदी के तट पर भीमा काली मंदिर है। यहीं माता सती के कान गिरे थे। यहां पर देवी ने भीम  स्वरूप धारण कर असुरों का वध किया था। इसलिए यहां पर मां काली भीमा यानी विशालकाय स्वरुप में जानी जाती है। यहां देवी काली की पूजा होती है और कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने यहीं बाणासुर का वध भी किया था। इस प्रकार यह पांच सिद्ध स्थान। माता! काली के जहां से माता के 10 महाविद्या में पहले स्वरूप माता महाकाली के सिद्ध काली स्वरूप का सिद्धिकरण होता है। इन्हीं गुप्त स्थानों पर प्राचीन समय में तांत्रिक लोगों ने माता को सिद्ध विद्या स्वरूप में प्रकट किया और इन 5 जगहों के माध्यम से ही मां के सिद्ध विद्या काली स्वरूप की उपासना का हम वर्णन देखने को पाते हैं। इनकी साधना के विषय में पूरी जानकारी मैंने अपने इंस्टामोजो में उपलब्ध करवा दी है और आप इन्हें वहां से भविष्य में अवश्य ही प्राप्त कर पाएंगे। इसके अलावा इनकी साधना और इनके जैसे अन्य स्वरूपों की साधना भी आपको इंस्टामोजो से मिल जाएगी तो यह था माता के पहले 10 महाविद्या स्वरूप में महाकाली को सिद्ध कर सिद्ध विद्या रूप में उनके अंश सिद्ध काली को प्राप्त करना और उसकी कथाओं और जिन स्थानों से उनका प्रादुर्भाव हुआ, उसके विषय में एक जानकारी अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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