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दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है दतियाना के शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना भाग 1 में अभी तक आपने जाना की जगतपाल नाम के एक व्यक्ति एक शिवलिंग स्थापित करते हैं जिसकी देख रेख उनके गुरु प्रदीप करते हैं वहां पर कुछ अनुभव गुरु प्रदीप को होते हैं जिसकी वजह से वह एक साधना के बारे में जगतपाल को बताते हैं जो कि एक भूतनी की साधना थी जगतपाल उनकी आज्ञा लेकर के अपने घर बार छोड़ कर के आ जाते हैं।

और उस साधना को शुरू करने की सोचते हैं आइए जानते हैं आगे क्या होता है जगतपाल ने जब गुरु प्रदीप से इस बात की आज्ञा ले ली तो अब सबसे बड़ी समस्या यही थी कि आखिर साधना का विधान क्या है इस पर गुरु प्रदीप उन्हें समझाते हैं तुम्हें मैं मंत्र दे रहा हूं और इस मंत्र को तुम्हें विशेष प्रकार का अनुष्ठान करके करना है तो उन्होंने कहा ठीक है जहां पर नजदीक ही कहीं जाओ जहां पर नदी का कोई संगम हो उस स्थान पर तुम्हें जाना होगा उस जमाने में कालिंदी नदी या काली नदी के पास ही एक संगम स्थापित हुआ था कई और धाराएं वहां पर आकर के मिला करती थी तो उस जगह पर वही एक विशेष तरह का संगम स्थापित था वहां पर जाकर के एक विधि बताएं जिस विधि को जगतपाल को करना था अब जगतपाल ने सोच लिया कि ठीक है ।

अब मैं यह कार्य को संपन्न करूंगा गुरु के बताए हुए निर्देश अनुसार वहां जाकर के उस साधना को उन्हें करना था और जब तक वह साधना संपन्न नहीं हो जाती वापस नहीं आना था उसके बाद फिर से उन्हें वापस यहां आना था और विशेष तरह के कार्य को संपादित करना था तो उनके कहे अनुसार जो उन्होंने विधि बताई वह ठीक उसी तरह से संपादित किए वह संगम पर गए उन्होंने वहां पर एक कुटिया स्थापित की और साधना करने के लिए उन्होंने रक्त चंदन द्वारा भूमि पर एक मंडप बनाया उस मंडप पर उन्होंने एक प्रतिमा स्थापित की देवी की प्रतिमा बनाने की सोची कि हां यह देवी उनका स्वरूप है जिसकी मैं साधना कर रहा हूं फिर गंध पुष्प द्वारा अर्चना करने के बाद गूगल से धूपित करने पर उन्होंने वहां पर मंत्र जाप करना शुरू कर दिया ।

गुरु द्वारा दिए गए भूतनी के मंत्र को उन्होंने रोज जपना शुरू किया रात्रि के समय रोज 8000 के संख्या में उस मंत्र का वह जाप करते थे तीसरे दिन ही देवी अदृश्य रूप में उनके चारों ओर विचरण करने लगी लेकिन उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं हुई गुरु का कहना था कि अगर पुस्तकों में दिए गए नियमानुसार अगर वह देवी नहीं आती है तो भी आपको इस कार्य को संपादितकरते रहना है क्योंकि हर एक साधना का समय निर्धारित नहीं होता समय एक रास्ता है जो बताता है कि उस देवता तक आपकी बात कितने समय में पहुंच जाती है इसको सभी मानते हैं की देवता की सिद्धि सो जाती है परंतु यह सत्य नहीं है देवता की सिद्धि के लिए आपका उससे पूरी तरह से लगाव साथ ही साथ मंत्र द्वारा उससे पूरी तरह से जुड़ जाना जब तक कि आप पुरी तरह से आप और शक्ति एकाकार नहीं हो जाते हैं तब तक सिद्धि प्राप्त नहीं होती है ।

इसलिए छोटी साधनाओं में भी काफी समय लग जाता है साधक के धैर्य की परीक्षा होती है और साधक तभी सफल होता है जब वह टिका रहता है यह नहीं कि वह उस समय तक साधना करें और उसके बाद फिर जब उसे सिद्धि प्राप्त ना हो और वह अपना धैर्य छोड़कर और साधना छोड़कर निकल जाए इस प्रकार वह रात्रि के समय 8000 मंत्रों का जाप रोज करने लगे करते करते 3 माह बीत गए 3 माह बाद अचानक से उन्हें तेज घुंघरू की आवाज सुनाई दी वह इधर-उधर देखने लगे तो उन्हें एक स्त्री दौड़ते हुए चारों तरफ नजर आई वह अपने शब्दों से हा हा ही ही हूं हूं करते हुए नजर आ रही थी उसके मुख से अलग तरह के अजीब तरह के स्वर निकल रहे थे तभी उसके पैर काले हो जाते जैसे कि जले हुए पैर होते हैं कभी उसके पैर अत्यंत सुंदर स्त्री के सामान हो जाते और वह इधर-उधर दौड़ती रहती ।

उसके पैरों को देखकर वह आश्चर्य में पड़ जाते उन पैरों की सुंदरता का बखान नहीं कर पाते फिर अचानक से उसके पैर जले हुए से नजर आते यह देख कर दुर्गंध आती ऐसा लगता कि कहीं किसी मानव के पाव जलाकर फिर उन्हें पटल पर लाया गया हो इस प्रकार से वह इधर-उधर दौड़ने लगी बहुत सब कुछ करने के बावजूद भी साधना में वह उनके पास आती कान में कुछ बोल कर भाग जाती उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह किस प्रकार से सिद्ध होगी क्या उन्हें अभी मंत्र साधना करते रहना है या फिर वापस आ जाना गुरु की कही हुई बात उन्हें याद आई उन्होंने कहा था अगर प्रत्यक्ष दर्शन होने लगे लेकिन सिद्धि ना मिले तो मेरे पास लौट सकते हो लेकिन जब तक प्रत्यक्ष दर्शन ना होने लगे तब तक मेरे पास मत लौटना मंत्रों का जाप करते रहना ।

इस प्रकार से अब वह यह तो देख रहे थे कि जब वह रात्रि में साधना कर रहे हैं वह सामने आ जाती है और इधर उधर दौड़ती रहती है कभी कान में आकर कुछ कह जाती है कभी बालों को छेड़ जाती है कभी अचानक से उंगलियां फिरा आकर के शरीर पर चली जाती है और वह यह हमेशा देखते थे खुली आंखों से उन्हें सब दृश्य दिखाई देते थे इससे यह बात तो स्पष्ट थी कि सिद्धि उन्हें मिल चुकी है लेकिन वह सिद्धि को धारण नहीं कर पा रहे हैं आखिर कारण क्या है वह कुछ समझ नहीं पा रहे थे उस स्थान पर उन्हें सिद्धि तो प्राप्त हो चुकी थी लेकिन इस सिद्धि को वह धारण नहीं कर पा रहे थे साधना में कई पटल होते हैं कई परलोको से साधकों को गुजर ना पड़ता है कभी-कभी सिद्धियां सामने आती है लेकिन सिद्ध नहीं होती है ऐसी अवस्था में क्या किया जाए फिर उन्होंने बड़े ही प्रेम से उन्हें पुकारने की कोशिश की और साधना करने के बाद उसी स्थान पर लेट गए और कहने लगे अगर तुम सच में सिद्ध हो गई हो तो कृपया मेरे पास आओ ।

रात्रि के समय जब वह सो रहे थे अचानक से बाहों में किसी स्त्री ने उन्हें कस कर पकड़ लिया और मुख पर चुंबन करते हुए बोली कि मैं तुम्हारे पास आ चुकी हूं अचानक से उन्होंने हड़बड़ा कर देखा एक स्त्री उनके गले लगी हुई थी लेकिन यह कुछ ही क्षण हुआ अचानक से वह स्त्री फिर से गायब हो गई और हंसते हुए कहते हुए चली गई अभी मुझे नहीं पा पाए हो कोशिश करो शायद मैं मिल जाऊं इस प्रकार से जब उन्होंने यह शब्द सुने तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया एक बार फिर से वह ठगे से रह गए थे जगतपाल को समझ में नहीं आ रहा था कि इतने दिनों की साधना करने के बाद लगभग 4 महीने हो चुके हैं मेरे को सिद्धि क्यों नहीं प्राप्त हो रही फिर उन्होंने दशांश हवन भी करना शुरू कर दिया हालांकि इसका निर्देश गुरु ने नहीं दिया था पर उनके हृदय से ही इच्छा हुई कि क्यों ना मैं इनकी साधना का मैं दशांश हवन अवश्य करूं ।

जब वह हवन करने लगे तभी अचानक से उनके हवन में मांस के टुकड़े डाल दिए यह देख कर के वह भयभीत हो गए मास की दुर्गंध आते देख हवन को छोड़ कर के वह वहां से भागे फिर उन्हें समझ में आया कि यह सब माया होगी और मुझे इस तरह की चीजें नहीं करनी चाहिए जिसके बारे में लिखा नहीं है या फिर गुरुद्वारा निर्देशित नहीं किया गया है अब मुझे क्या करना चाहिए कुछ बातों को ना समझते हुए और उन्होंने यह स्पष्ट निर्णय ले लिया कि अब मुझे वापस गुरु के पास ही जाना चाहिए क्योंकि वही रास्ता निकाल सकते हैं कि आखिर यह सिद्धि मुझे प्राप्त क्यों नहीं हो रही है उन्होंने अपनी कुटिया को आग लगा दी ताकि वह स्थान किसी और के साधना के लिए उपयुक्त ना हो सके पुराने समय में यह कार्य भी करना आवश्यक होता था ।

कारण कि आपकी जो ऊर्जा है वह ऊर्जा कोई दूसरा व्यक्ति आकर के उसे ग्रहण ना करने लगे अथवा कोई ऐसा व्यक्ति वहां पर ना आ जाए जिसमें आपकी ऊर्जा को छीनने का प्रयास करें ऐसी विभिन्न प्रकार की तांत्रिक विधियां होती है इनमें जलन मंत्र द्वारा अपने उस स्थान को भस्म कर देना होता है क्योंकि यह पूरी तरह से तांत्रिक सिद्धि है कोई देवी देवता की या फिर किसी बड़े देवी देवता की साधना नहीं थी यहां पर उन्हें भूतनी सिद्ध करनी थी इसलिए उन्होंने कुछ मंत्रों के द्वारा अनुष्ठान करके अपनी कुटिया को जला दिया वह पूरी तरह से जल गया अब वह उस स्थान से वापस आ गए और 4 महीने बाद अपने गुरु से आकर के मिले प्रदीप उन्हें देख कर मुस्कुराते हुए कहने लगे एक विशेष प्रकार की बात मुझे देखने में आई है ।

जब वह हमेशा देखते कि पेड़ पर कोई चल रहा है अब वह कार्य नहीं होता यहां कोई नहीं है ऐसा क्या किया है तुमने तब अपने गुरु को सारी बात जगतपाल ने बताई और कहा गुरुवर आपने जो मुझे मंत्र दिया यानी कि यह सारी विधियां दी शायद कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमी अवश्य रह गई है क्योंकि मेरे पास एक सुंदर स्त्री आती तो थी और वह स्पष्ट रूप से मुझे खुले में दृश्य दिखाई देते थे लेकिन सिद्धि मुझे नहीं हूं एक बार वह कह कर के भी गई कि मुझे पा सको तो पालो लेकिन मैं उसे प्राप्त नहीं कर पा रहा हूं इसीलिए मैं अपनी साधना छोड़कर आपके पास आ गया हूं और आप ही कोई मार्ग सुझाइये इस पर गुरु ने कहा हां अवश्य ही कुछ ना कुछ तो रह गया है आओ उसे संपन्न करते हैं फिर गुरु ने एक विशेष तरह का मंत्र दिया कहा ।

इस मंत्र का तुम्हें जाप करना है और इस मंत्र के जाप को तुम्हें इसी शिवलिंग के साथ करना है इसके बाद तुम जामुन के रस से इसका अभिषेक करना और इस जामुन का रस उस शक्ति को प्रदान करते हुए कहना कि यह जामुन का रस मै आपको दे रहा हूं इस प्रकार से जब तुम करोगे तब कुछ सिद्ध अवश्य ही होगा वह रात शिवरात्रि की थी जब यह कार्य संपन्न करने के लिए विशेष अवसर बनाया गया ताकि सिद्धि अवश्य ही प्राप्त हो गुरु प्रदीप भी काफी समझदार थे उन्होंने अति शुभ दिन का चयन किया था अब जैसे ही यह साधना संपन्न की और जामुन के रस अर्ध रात्रि के समय जब उस सुंदरी नाम की भूतनी को दिया गया तब वह कुल सुंदरी नाम की भूतनी साक्षात रुप में शिवलिंग के सामने प्रकट हो गई अत्यंत रूपवान चेहरा ऊपर से नीचे से लेकर चेहरा गहनों से लदी हुई अति सुंदर वेशभूषा धारण किए हुए सामने प्रणाम करती हुई मुद्रा में उनके सामने आ गई।

उसके पैर अत्यंत ही सुंदर थे वही घुंघरू जो पहने थे जिन्हें गुरु प्रदीप में देखा था और जिनका वर्णन उन्होंने जगतपाल को बताया था उसी तरह की वह अत्यंत सुंदर स्त्री सामने से पैरों को छनकाते हुए उनके सामने आ गई और आकर के होठों पर उसने चुंबन किया और कहने लगी मैं आपकी पूजा से पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी हूं आपने मुझे प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत की है और कुछ दिनों की साधना काफी लंबी हो गई किंतु फिर भी मैं आपको प्राप्त हो चुकी हूं बताइए मेरे लिए क्या आदेश है इस पर तुरंत ही जगतपाल ने कहा कि आप मेरी भैरवी बन जाइए ।

मैं आपको प्रेम पूर्वक अपने जीवन में शामिल करना चाहता हूं कुल सुंदरी बहुत ही प्रसन्न हुई उसने तुरंत ही तो वरमाला है अपने हाथ में धारण कर ली एक बार माला अपने पति के गले में डाल दी और दूसरी उसे पकड़ा दी और कहा इसे मेरे गले में डाल दो फिर इस प्रकार से दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहना दी इसके बाद कुल सुंदरी ने कहा मैं आपके पास कोई ना कोई निशानी देना चाहती हूं इस निशानी में मेरी शक्तियां रहेगी और जब भी आपको मेरी आवश्यकता होगी मैं तुरंत ही आपके सामने आ जाया करूंगी उसने तुरंत ही एक सोने की सुंदर सी अंगूठी उनकी अनामिका उंगली में पहना दी और कहा कि मेरे मंत्र को सात बार उच्चारण करके जब भी आप इस अंगूठी को चूमेंगे मैं आपके सामने प्रकट हो जाऊंगी ।

पर किंतु मैं शरीर धारी नहीं हूं इसलिए जिस समय आप मुझे बुलाएंगे और जब तक आप मुझे अपने पास रखना चाहेंगे तब तक मैं आपके पास रहा करूंगी और उसके बाद सुबह के समय मैं अवश्य ही गायब हो जाया करूंगी तो इस प्रकार से जब कहा गया तो इस बात को समझते हुए फिर जगतपाल ने उन्हें अपने जीवन में शामिल किया पहली रात को ही कुल सुंदरी अत्यंत ही रूपवान बनकर उनके सामने आ गई और पत्नी के समस्त शारीरिक और मानसिक सुखों को उस रात्रि को जगतपाल को प्रदान किया सुबह के समय उन्होंने अपने सारे सोने चांदी के आभूषण उतार दिए और वहां से गायब हो गई अब काफी मात्रा में जगतपाल के पास धन था ।

जगतपाल ने सोचा कि मैं इस धन का क्या करूं और उन्होंने सारी बात एक ○बार फिर से गुरु प्रदीप को बता दी गुरु प्रदीप ने कहा कि क्यों ना इस धन को ले जाकर के नगर में बेच आया जाए इससे बहुत सारी चीजें हमको मिल जाएगी दोनों लोग नगर की तरफ चल दिए और उस सोने के सारे आभूषण को एक सुनार को दिया और वहां से फिर काफी सारी चीजें और धन विभिन्न प्रकार की मुद्राओं के रूप में लेकर उसका विभिन्न प्रकार का वितरण करते हुए अलग-अलग तरह की सारी चीजें उन्होंने ले ली बड़ी मात्रा में उनके पास चीजें हो चुकी थी भोजन सामग्री वस्त्र आभूषण और विभिन्न प्रकार के नौकर चाकर वह सब केवल एक ही रात्रि की सामग्री से उनके पास आ गया था अगली रात्रि को जब उन्होंने अंगूठी को चुमा तब वहां पर कुल सुंदरी नजर नहीं आई आखिर ऐसा क्यों हुआ जानेंगे हम अगले भाग में अगर आपको यह कहानी और जानकारी पसंद आ रही है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना भाग 3

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