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दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना 5 वां अंतिम भाग

दातियाना शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है दातियाना शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना भाग 4 अभी तक आपने जाना, यह पांचवा और अंतिम भाग है तो अभी तक की कहानी में जैसा कि आप लोग ने जाना है कि किस प्रकार से जगतपाल एक साधना करते हैं और उस साधना में उन्हें कई बार असफलता हाथ लगती है जबकि वह इस साधना में सफल हो चुके होते हैं वजह थी जिस सिद्धि को उन्होंने प्राप्त किया था उससे उन्होंने धन प्राप्त हो रहा था तो वह उसका प्रयोग गलत जगह कर दे रहे थे आखरी बार भी ऐसा ही हुआ और इस तरह वह उनकी कुल सुंदरी भूतनी गायब हो गई इससे बचने के लिए उन्होंने एक विशेष तरह का प्रयोजन किया और कन्या भोज कराया कन्या भोज में एक स्त्री आकर के हट करने लगी ।

हट के बाद वह स्त्री वहां से गायब हो जाती है गुरु प्रदीप और जगतपाल इस बात से आश्चर्य में पड़ जाते हैं अब आगे जानते हैं क्या हुआ गुरु प्रदीप ने जगतपाल को कहा यह स्त्री कोई साधारण स्त्री नहीं थी क्योंकि कोई भी स्त्री अगर तुम से भोजन मांग रही थी तो फिर भाग के क्यों इधर-उधर चली जाएगी मुझे लगता है या तो वह कोई देवी थी या फिर स्वयं कुल सुंदरी ही थी जो अपना भाग लेने के लिए आई थी क्योंकि वह भी शिव लोक से है 108 शक्तियों के रूप में तुमने जो माता की आराधना की है और साधना की है उसे मां की शक्तियां प्रसन्न हुई होंगी इसी वजह से यहां पर देवी का प्रकट हुआ होगा हो सकता है वह कुल सुंदरी ही रही हो या फिर देवी भी हो सकती है ।

कुछ भी हो अब इस समस्या का हल मैं तो नहीं बता सकता लेकिन एक बार फिर से हमें तांत्रिक के पास ही जाना पड़ेगा वही बता सकते हैं और अब की बार कोई गलती नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह तीसरी गलती हो चुकी है क्योंकि वह अब नाराज हो गई तो जिंदगी भर भी तुम सिद्धि करोगे तो भी उसे प्राप्त नहीं कर पाओगे इतना मैं जानता हूं सिद्धिया बार-बार मौका नहीं देती है जगतपाल अब परेशानी में था जगतपाल ने सोचा कि अब जब गुरु प्रदीप के साथ तांत्रिक के पास जाना पड़ेगा और इस मार्ग को अवश्य ही जान लेना होगा जगतपाल और गुरु प्रदीप दोनों ही फिर से उस तांत्रिक की कुटिया की ओर चले गए पूरी रात फिर वह वहां खड़े रहे और अंततोगत्वा सुबह के समय फिर से तांत्रिक ने उन्हें अंदर प्रवेश दिया तांत्रिक का यही नियम था वह इसी प्रकार से लोगों की परीक्षा लिया करता था और तभी वह प्रवेश दिया करता था जब समझता था ।

कि वह सच में इसी बात की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी समस्या हल हो जाए क्योंकि अच्छे और सही तांत्रिकों के पास लोग फालतू में बैठा करते हैं सिर्फ उनके राज जानने के लिए और उनको परेशान करने के लिए जिसमें इस चीज की वास्तविकता या परेशानी होती है केवल वही लोग उनके पास जाए और उन्हीं का वह कल्याण करें यह उनकी इच्छा होती है यहां पर जगतपाल और गुरु प्रदीप की कई बार परीक्षा हो चुकी थी जिसमें वह हर बार सफल होते थे जगतपाल और गुरु प्रदीप अंदर कुटिया में प्रवेश करते हैं तांत्रिक उन्हें देख कर के ही दूर से ही मुस्कुराने लगता है और कहता है कि जगतपाल तुमसे बड़ा मूर्ख मैंने नहीं देखा इतने बार कामयाब होकर के भी नाकामयाब हो रहे हो थोड़ा तो दिमाग लगा लिया करो जगतपाल ने कहा कि मैं आपको सारी बात बताता हूं ।

जगतपाल ने और गुरु प्रदीप ने सारी बात बता दी तांत्रिक एक बार फिर से हंसने लगा और कहने लगा अरे वह कोई और नहीं कुल सुंदरी थी अलग रूप ले करके आई थी उसे भी मां की शक्ति का कुछ अंश चाहिए था भोज के द्वारा वह उस पुण्य को लेना चाहती थी जो साक्षात तुम उसे खिलाते वह वहां से हटने को इसलिए भी तैयार नहीं थी क्योंकि 108 कन्याओं के बाद में 109 वी स्त्री जो थी कोई और नहीं कुल सुंदरी ही थी कुल सुंदरी ने पूरी कोशिश की कि तुम उसे भोजन करा दो और इस पुण्य को वह साधारणता से पूरी तरह से स्वयं ग्रहण कर सके क्योंकि अभी जो भी तुम उसके धन के खर्च का मार्ग ढूंढते थे वह कहीं ना कहीं उसे अप्रत्यक्ष रूप में उसे होता था पर प्रत्यक्ष रूप में वह तुम्हारे हाथ से भोजन कर सकती थी पर तुमने उसे स्थान नहीं दिया ।

अब तो बड़ी मुसीबत हो चुकी है पता नहीं अब तुम्हारी सिद्धि बचे की भी या नहीं बचेगी जगतपाल तांत्रिक के सामने गिड़गिड़ा आने लगा और कहने लगा मैंने बहुत कोशिश की है मेरा मन कभी भी अपवित्र नहीं रहा मैंने हमेशा ही सच्चे दिल से उसके दिए गए उपहारों और धन को खर्च करने की कोशिश की लेकिन फिर भी देखो मेरा दुर्भाग्य कि मैं हमेशा ही असफल हो जाता हूं तांत्रिक ने कहा अभी भी एक मार्ग शेष है जाओ एक आखरी मार्ग बचा है अगर तुम इस बार भी ना कामयाब रहे तो फिर मैं कुछ भी नहीं कह सकता तांत्रिक ने कहा की जाओ जिस स्थान पर तुमने उसे देखा था जिस स्थान पर वह बैठने की जिद कर रही थी उस जगह पर उसके निश्चित रूप से चरण पड़े हैं जहां पर उसके चरण पड़े हैं वहां की मिट्टी को खोलो और उससे एक प्रतिमा का निर्माण कराओ वह प्रतिमा एक स्त्री की होनी चाहिए पूरे गांव के सभी जन लोग जितने भी है ।

उन सब को बुलाओ एक बार फिर से भोजन कराओ और उन्हीं के बीच में उस प्रतिमा को बैठा लो और उसको भी भोग करवाओ याद रखना उसे भोग करवाना आवश्यक है उसे तुम भोग करा दोगे तब कुल सुंदरी को वापस आना होगा क्योंकि जो गलती आज हो चुकी है वह दोबारा नहीं होगी जगतपाल प्रसन्न हो गया और वह तांत्रिक से विदा लेकर के उस स्थान की और वापस आ गया उसने एक बार फिर से अपने बचे हुए धन के आधार पर लोगों को आमंत्रण दिया और कहा कि सभी लोग कल भंडारे में आए भगवान भोलेनाथ के पूजा के उपलब्ध में यहां भंडारा किया जाएगा सबसे पहले गुरु प्रदीप ने भगवान शिव की आराधना की और उसके बाद भंडारे का आयोजन किया गया भंडारे में गांव के सभी लोग आए थे जगतपाल उस स्थान को रेखांकित किया जिस स्थान पर वह अपनी जगह मांग रही थी जगतपाल ने उस जगह की मिट्टी खोदी और एक विशेष प्रकार के कारीगर को बुलवाकर के एक सुंदर स्त्री की प्रतिमा बनवा करके वहां स्थापित करवाई ।

एक दिन में ही वह पूरी तरह से सूख करके तैयार हो गई अगले दिन जब भंडारा हुआ तब उस प्रतिमा को भी स्थान दिया गया सभी लोग भोजन करने आए भोजन अब कुल सुंदरी के आगे रखा गया और उसे अपने हाथों से जगतपाल ने खिलाया हालाकी मिट्टी की मूरत क्या खाती धीरे-धीरे करके सब लोग उठने लगे और खा पीकर के जाने लगे शाम हो चुकी थी शाम के समय अचानक से मूर्ति हिलने लगी जगतपाल उसके पास दौड़ करके पहुंचा मूर्ति टूट गई और उसके अंदर से एक सुंदर नारी प्रकट हुई वह कोई और नहीं कुल सुंदरी ही थी कुल्लू सुंदरी ने भोजन कर लिया और कहने लगी क्या कुछ छूट रहा है उसने जगतपाल से कहा जगतपाल ने कहा नहीं आपको मैंने संतुष्ट किया है आप और भोजन लीजिए कुल सुंदरी ने दोबारा पूछा क्या कुछ छूट रहा है जगतपाल उसकी बातों को नहीं समझ पा रहा था उसने लगभग भोजन में लाए गए सभी पदार्थों को कुल सुंदरी को खिलाया।

कुल सुंदरी प्यार से उनके हाथों से खाती रही और आखिर जब कवर रह गया तब कुल सुंदरी एक बार फिर से उनसे पूछा क्या कुछ छूट रहा है इस पर जगतपाल ने कहा कुछ नहीं छूटा है और मैंने आपको प्रसन्न कर लिया है हे ना कुल सुंदरी ने कहा अवश्य ही आपने मुझे प्रसन्न किया है परंतु कुछ कमी रह गई है जगतपाल ने कहा क्या कुल सुंदरी ने कहा आज के बाद से मैं हमेशा आपके सामने से चली जाऊंगी किंतु आपने मुझे प्रसन्न किया है इसलिए मैं आपको वरदान दे करके जाती हूं कि आपके पास कभी धन की कमी नहीं होगी स्वता ही मंदिर में इतना चढ़ावा आया करेगा कि आपको धन प्राप्त होता रहेगा आप और गुरु प्रदीप दोनों को ही धन की कभी कमी नहीं होने वाली इस प्रकार कुल सुंदरी ने जगतपाल के माथे को चूमा और वहां से गायब हो गई ।

जगतपाल हक्का-बक्का रह गया आखिर कुल सुंदरी फिर से क्यों चली गई थी ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से फिर से चली गई है जगतपाल को कुछ भी समझ में नहीं आया वह और गुरु प्रदीप फिर एक बार फिर से एक दूसरे से बात करने लगे गुरु प्रदीप को भी समझ में नहीं आया कि आखिर क्या हुआ जगतपाल और गुरु प्रदीप एक बार फिर से तांत्रिक के पास पहुंचे और उन्होंने सारी बात उस तांत्रिक को समझाई इस पर तांत्रिक ने हंसते हुए कहा मैंने कहा था ना कि तुम गलती मत करना तुमसे बहुत गलतियां होती है मुझे यह बताओ कि कुल सुंदरी कौन थी तो उन्होंने कहा की कुल सुंदरी एक भूतनी शक्ति थी जो भगवान शिव के शिवलोक से आती है भूतनी होते हुए भी वह देवी थी और उसने मुझसे विवाह भी किया था जगतपाल ने इस प्रकार से कहा तो तांत्रिक ने कहा देखा मैंने कहा था ना तुमने मूर्खता कर दी तुमने ।

क्या किया जगतपाल ने कहा मैंने उन्हें भोजन कराया हर प्रकार से संतुष्ट किया भोजन में सारे पदार्थ उन्हें खिलाएं और इसी कारण से उन्होंने मुझे वरदान दिया कि तुम्हारे पास धन की कभी कमी नहीं रहेगी और आज देखिए मेरे भंडार गृह मे जहां सोना होता है उस जगह सोना अपने आप उत्पन्न होता हो गया है मुझे लगता है कि इसी प्रकार हर दिन मेरे पास सोना आता रहेगा लेकिन कुल सुंदरी कहां चली गई मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं उसने सारी बात कही लेकिन मैं समझ नहीं पाया इस पर तांत्रिक ने हंसते हुए कहा तुमने सब कुछ किया लेकिन तुमने पत्नी धर्म नहीं निभाया जगतपाल आश्चर्य में था जगतपाल ने कहा आखिर पत्नी धर्म क्या होता है कुल सुंदरी तुमसे बार-बार पूछ रही थी ना के कुछ छूट रहा है क्या तुम उसके इशारे को नहीं समझे ।

जगतपाल ने कहा मैं सच में नहीं समझ पाया कि वह क्या कहना चाह रही थी मैंने तो उसे भोजन कराया बाकी सब चीजें भी दी और अच्छी तरह आदर भी किया फिर तांत्रिक में पूछा क्या तुमने किया जगतपाल ने कहा नहीं तांत्रिक ने कहा क्या पत्नी केवल अपना पेट भरती है क्या वे अपने पति के साथ बैठकर नहीं खाती है तुमने सभी को आमंत्रित किया था यहां तक की गुरु प्रदीप ने भी भोजन ग्रहण किया पर तुमने भोजन नहीं किया तुम सिर्फ भोजन खिलाते रहे कुल सुंदरी चाहती थी कि तुम भी उसके साथ बगल में बैठ करके भोजन कर लो क्योंकि तुम उस समय उसका पूजन कर रहे थे पत्नी के साथ पति का पूजन होता है।

पत्नी के साथ पति भोजन अवश्य करें पर यहां पर वह संबंध तुमने नहीं दिखाएं वह बार-बार यह कहती रही के कुछ छूट तो नहीं रहा है कुछ छूट तो नहीं रहा है लेकिन तुम उसके इशारे को समझ नहीं पाए क्योंकि वह तुम्हारी पत्नी के रूप में सिद्ध हुई थी इसलिए तुम्हें उसके साथ बैठकर भोजन करना था सिर्फ उसे खिलाना ही नहीं था क्योंकि तुमने उसे अपनी आराधिका बना दिया लेकिन पत्नी नहीं बना पाए इसी कारण से आखरी बार तुम्हें उसे छोड़कर जाना पड़ा लेकिन तुमने उसे अपनी आराधिका बनाया था और उसकी आराधना तुमने की थी ।

इस वजह से वह तुम्हें वरदान देकर के गई है और वह सत्य भी है इसलिए तुम हमेशा पैसे वाले बने रहोगे धन की कभी कमी नहीं रहेगी स्वता ही स्वर्ण तुम्हारे पास आता रहेगा लेकिन कुल सुंदरी अब तुम्हें प्राप्त नहीं हो पाएगी उसके संकेतों को तुम्हें समझना चाहिए था तुम्हें उस बात को समझ जाना चाहिए था कि आखिर वह किस ओर इशारा कर रही है जगतपाल ने अपना सिर पकड़ लिया गुरु प्रदीप आश्चर्य में पड़ गए जगतपाल और गुरु प्रदीप एक दूसरे की ओर देखते हैं और कहते हैं आखिर यह गलती मेरे से हो कैसे गई जगतपाल ने सोचा मैंने सब को भोजन कराया और स्वयं भोजन करना भूल गया ।

वह भी भोजन मुझे कुल सुंदरी के साथ ही करना चाहिए था क्योंकि पत्नी होने का कर्तव्य तो वह तभी निभाती जब मैं उसे पत्नी समझता क्योंकि उसका तो नया जन्म हो रहा था हर बार हर समय क्योंकि बार-बार वह मुझसे भंग हो जा रही थी उसकी साधना और अंततोगत्वा जब मैंने उसे प्रकट कर लिया और उसकी आराधना भी की और उसी दौरान मुझे स्वयं की भी आराधना करनी थी जो कि केवल उसके साथ बैठकर भोजन कर लेने मात्र से हो जाती तो मैं उसे पत्नी के रूप में अवश्य प्राप्त कर लेता अब कुल सुंदरी जा चुकी थी इस प्रकार से जगतपाल कुल सुंदरी तो नहीं मिली लेकिन उसे धन की कभी कमी भी नहीं हुई तो यह थी कहानी दतियाना शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना अगर आपको यह कहानी पसंद आई है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

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