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दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा

दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज एक ऐसे मंदिर और मठों की कहानियों में रहस्य को मैं बताना चाह रहा हूं जो अगर किसी को प्राप्त हो जाए तो शायद वह इस युग में प्राचीन युग को लाने वाला बहुत ही शक्तिशाली व्यक्ति हो जाएगा ऐसी कहानियां जो कहानियों वर्णन में है ही नहीं इनका कोई अस्तित्व भी नहीं है दंत कथाओं के रूप में केवल कुछ एक आद लोगों के पास ऐसी चीजें उपलब्ध है और उन्हें भी गोपनीय रखना पड़ता है ऐसी ही एक कहानी  आपके लिए प्राचीन मठ मंदिरों की कहानी मैं आपके लिए ऐसी ही कहानियां लेकर आता रहता हूं जिनका अस्तित्व लगभग आज खो चुका है और आज का विषय भी कुछ ऐसा ही है कि अगर यह किसी को मिल जाए तो सच में वह अपनी जिंदगी बदल सकता है तो क्या है आज का ऐसा रहस्य और कैसी है एक ऐसे कवच के बारे में मैं वर्णन करने जा रहा हूं बताने जा रहा हूं जो कहीं यह कवच छुप गया है और उससे जुड़ी कहानी क्या है यह आज के एपिसोड में हम जानेंगे यह भाग-1 है

मां दुर्गा के कवच की सिद्धि है इसमें भुवन यक्ष की कहानी है और किस स्थान पर घटित हुई क्योंकि पुराने जमाने में एक सत्य को अभी तक मैंने इस चीज को बहुत ही विचारने के बाद और बहुत ही सोचने के बाद समझ में आया कि कोई भी मंदिर हमारे यहां भव्य मंदिर है वह यूं ही नहीं बन गया है वह पूर्व जन्मों के कर्मों की एक प्रक्रिया मात्र है इसीलिए वह स्थान शुभ हो जाता है और किसी भी व्यक्ति के मन में विचार नहीं आता है और वह स्थान पर मंदिर बना देता है असल में उस स्थान पर कभी ना कभी कोई विशेष घटना घटी हुई होती है इसलिए वह उस जगह उसी चीज को लेकर संबंध जुड़ता है और यह स्थान जो मंदिर के रूप में बदल जाता है इसीलिए प्राचीन मठ और मंदिरों की कहानी में जो भी स्थान है वह सारे स्थान पुराने जमाने में यानी कि कई सौ वर्ष पूर्व कई हजार वर्ष पहले वह स्थान जरूर उस चीज से जुड़े हुए होंगे

इसलिए वह स्थान पर आज एक मंदिर स्थापित है यह एक वास्तविकता है और अगर कोई पता लगाए तो निश्चित रूप से उसे पता लग सकता है जान सकता है उन चीजों के बारे में तो आज मैं जिस मंदिर के बारे में आपको कहानी सुनाने जा रहा हूं अत्यंत ही गोपनीय जगह लेकिन मंदिर कहां की प्रसिद्ध है यह मंदिर है काशीर में काशी बनारस जिसे हम कहते हैं वहां पर माता दुर्गा का दुर्गा मंदिर है यह एक पुरातन मंदिर में है हालांकि निर्माण तो 18वीं शताब्दी में माना जाता है लेकिन इस स्थान से जुड़ी हुई किसी जमाने में कोई मठ मंदिर की कहानी जो कई हजार साल पहले घटित हुई होगी

वह मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं हालांकि इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है और यह स्थान अगर आप चाहेंगे तो यह मंदिर जो है आपका वाराणसी कैंट से लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और यह मंदिर लाल पत्थरों से बना हुआ है जिसके एक तरफ जो है माता दुर्गा कुंड नाम से एक कुंड है और इस कुंड को बाद में नगर पालिका के फुहारे में उसे बदल दिया गया और जो उसका असली स्वरूप था वह अब खो चुका है इसी प्रकार इसी मंदिर में मां दुर्गा का यंत्र रूप में विराजमान है और माता जी के मंदिर में अगर आप यहां घूमने जाते हैं तो भैरवनाथ जी माता लक्ष्मी महासरस्वती जो है यह तीनों स्वरूप और माता काली रूप से अलग जो है

मंदिर से है और यहां पर जो है मांगलिक कार्य करवाते हैं मुंडन विधि वगैरा भी किया करते हैं यहां लोग दर्शनों के लिए यहां आते रहते हैं मंदिर के जो है अंदर हवन कुंड भी है जहां रोज लगभग हवन होते हैं और कुछ लोग यहां पर तांत्रिक पूजा भी करते हैं तांत्रिक पूजा अपने संबंध में करवाते भी हैं सावन महीना जो होता है इस महीने में यहां पर काफी अच्छा मनमोहक मेला भी लगता है और इसी के नजदीक आनंद नाम का पार्कानंद एक पार्क जिसे कहते हैं कहते हैं यहीं पर जो है आर्य समाज का पहला प्रथम श्राक्षात जो है काशी के ‍ विद्वानों के साथ में हुआ था तो यह है एक साधारण सी बात इस मंदिर के बारे में और यह मंदिर भव्यता अपनी लेता है उस पुरानी कहानी से लेकिन उस कहानी के बारे में आज कोई नहीं जानता है

उसी कहानी को मैं आज आपके लिए लेकर आया हूं जो कहीं वर्णन में नहीं है सिर्फ और सिर्फ आपको मेरे चैनल पर ही मिलेगी तो जानते हैं कि आज इस जगह से जुड़ी हुई कहानी क्या है और यह प्राचीन मठ मंदिरों की कहानी में जिस प्रकार से एक भव्य स्थान है मां दुर्गा से संबंधित चलिए शुरू करते हैं यह स्थान के रूप में जो कहानी है यहां पर नंदकिशोर नाम के पंडित जी से शुरू होती है जो बहुत ही ज्यादा विद्वान थे तंत्र में उन्होंने बहुत ही ज्यादा महारत हासिल कर रखी थी और वह निश्चित रूप से मां दुर्गा के बहुत बड़े भक्त रहे होंगे उन्होंने काफी अधिकतर किया था मां दुर्गा से संबंधित और उनके कई प्रकार से वह पूजा किया करते थे विभिन्न प्रकार के वह प्रयोग किया करते थे उसी प्रयोग में एक बार जब वह योग आसन में बैठे हुए मां जगदंबा का ध्यान कर रहे थे तभी उन्हें मां के दर्शन हुए और मां ने उन्हें गुप्त दुर्गा कवच की सिद्धि के बारे में बताया यह वही दुर्गा कवच है जो दुर्गा सप्तशती में आपको मिल जाएगा लेकिन कमाल की बात यह है

कि इसकी जिस तरह से इन्होंने सिद्धि कि ऐसा संसार में शायद कोई और ना कर पाए उन्होंने मां से प्राप्त उस दुर्गा कवच को कंठस्थ कर लिया और एक गोपनीय प्रयोग में लग गए अब चलते हैं उस कहानी में जुड़ने वाली भयंकर और भीषण घटना के बारे में आपको लिए चलता हूं मैं ब्रह्मांड के उस लोक में जहां पर यक्षो का निवास है यक्ष लोग में एक महान यज्ञ चल रहा था वहां पर बहुत सारे यक्ष साधना और उपासना कर रहे थे यज्ञ कुंड में वह अपनी आहुतियां दे रहे थे इसी समय एक यक्ष की गलती से कुछ गलत चीजें हवन कुंड में पड़ जाती है उन हवन कुंड में गिरने वाली उन वस्तुओं की वजह से एक भयंकर भीषण शक्ति वहां पर प्रकट होती है

वह एक बड़ी सी त्रिशूल होती है और वह तीव्रता से आकाश की ओर गमन कर जाता है तभी वहां पर सबसे बड़े और खड़े हुए यक्ष ने कहा कि जिस व्यक्ति ने भी यह गलती की है उसको यह त्रिशूल दंड देगा और उसकी मृत्यु इसी त्रिशूल के कारण होगी हम लोग मां जगदंबा की उपासना कर रहे थे और किसी ने गलती से इसमें मरा हुआ चूहा डाल दिया यक्ष लोक में भी चूहे होते हैं आप लोग यह बात समझ लीजिए यहां से इस कहानी से स्पष्ट हो रहा है

और उसने शायद यह गलती जानबूझ के ना की हो हवन कुंड की सामग्री के साथ वह मरा हुआ चूहा उस कुंड में पड़ गया है अब उस यक्ष की मृत्यु निश्चित रूप से इसी हथियार से होगी यह हथियार कहां गया किसी को नहीं पता आकाश में वह छोड़ कर चला गया एक विशालकाय त्रिशूल था और वह त्रिशूल वहां से आकाश की ओर गमन करके किसी और लोक में चला गया है यह बात वहां पर खड़े हुए भुवन यक्ष को बहुत ही ज्यादा दुखी करने वाली थी क्योंकि उसने अब पता लगा कि यह गलती उसी से हुई है लेकिन जिद्दी किस्म के भूवन यक्ष ने यह सोचा की अगर मैं किसी प्रकार से इस शस्त्र को पकड़ लो इसे समाप्त कर दो तो निश्चित रूप से मेरी मृत्यु टल भी जाएगी क्योंकि अगर यह सत्य है कि इसी त्रिशूल से ही मेरे मेरी मृत्यु हो सकती है

तो निश्चित रूप से मैं अमर भी हो सकता हूं अगर इस त्रिशूल को नष्ट भी कर दू यही बात सोच कर के उसने अपने मित्रों के साथ में एक योजना बनाई सारे के सारे नौजवान यक्ष जिसमें उसके साथ सात की संख्या में यक्ष और थे यानी कि वह और उन्हें मिलाकर अाठ लोग कुल उसने सोचा कि क्यों ना हम यक्ष लोक से बाहर अंतरिक्ष में अन्य लोको की भी ओर गमन करें क्योंकि अपने लोक को देखते देखते हम उब चुके हैं इस प्रकार से उसने अपने मित्रों को इकट्ठा किया जिसमें दो यक्षिणीया और पांच अन्य यक्ष थे कुल मिलाकर यह आठ लोग थे

सभी ने एक विशालकाय रथ की व्यवस्था की उस रथ पर बैठ कर के वह रथ दिव्य गमन करने में बहुत ही तीव्र था और बहुत ही तीव्रता के साथ में ब्रह्मांड में वह कहीं पर भी गमन कर सकता था उसके अंदर एक अद्भुत शक्ति थी और इसी कारण से वह मन की इच्छा अनुसार बहुत ही तीव्रता के साथ में चलता था यही सोच कर के उन्होंने उस रथ को सिद्ध किया और उसका आवाहन किया तुरंत ही वह रथ प्रकट हो गया और उस रथ पर आठों लोग बैठ गए और गमन करते हुए ब्रह्मांड में विचरण लगे भिन्न-भिन्न लोको की तरफ बाहर से ही उन्हें देखने लगे

और तभी सब कहने लगे कि यह सारे लोक हमारे लोक जैसे ही हैं कोई ऐसा लोक नहीं है जिस लोक में मृत्यु और जो भी व्यक्ति करता हो उसका निर्माण कार्य टिकता ही ना हो आपस में सभी यह बातें कर रहे थे तभी साथ में खड़ी हुई तो यक्षिणीया कहने लगी ऐसा मैंने सुना है कि ऐसा लोग सिर्फ और सिर्फ एक पृथ्वी नाम का लोक है जिसे हम लोग मृत्यु लोक से जानते हैं बताया जाता है कि वह मरण लोग कहलाया जाता है यानी वहां जो भी पैदा होता है वह सब मर जाते हैं और अगर वहां पर कोई भी निर्माण किया जाए वह कुछ ही वर्षों तक टिकता है

और हमारे यहां तो अनंत जीवन है इस तरह वहां जीवन नहीं होता वहां हर एक चीज की मृत्यु निश्चित है चाहे वह कोई कुछ भी करें हर एक चीज वहां पर समाप्त हो ही जाती है सबको कोतूहल हुआ सभी यक्ष आपस में कहने लगे ऐसी जगह भी है क्या जहां पर सभी मर जाते हैं और स्वता ही उनकी मृत्यु हो जाती है तो सब ने कहा हा हा तो भुवन यक्ष ने कहा चलो ठीक है तो फिर उसी लोग की ओर गमन किया जाए भुवन यक्ष जानता था कि मारने का कार्य मारने वाली जगह पर ही गया होगा यानी उसका अंदाजा था कि निश्चित रूप से वह त्रिशूल पृथ्वी लोक की ही और दया है और वही कहीं भी गिरा हुआ होगा इसलिए यह जरूरी हो जाता है

कि मैं उस लोक की ओर गमन करूं और पता लगा सकूं कि आखिर वह त्रिशूल गया कहां अगर वह त्रिशूल मुझे मिल जाएगा तो मैं उसे तोड़ दूंगा नष्ट कर दूंगा जिसकी वजह से फिर मेरी मृत्यु नहीं होगी उसका सोचना बिल्कुल सही था वास्तव में वह त्रिशूल गलती के कारण से पृथ्वी लोक में ही आ गया था अब भुवन यक्ष ने अपने उस विशालकाय रथ को आज्ञा दी कि हे रथ अब आप पृथ्वी लोक की ओर गमन कीजिए जो कि एक मृत्यु लोक है उस मृत्यु लोक में हमें जाना है तीव्रता से वह रथ ब्रह्मांड में भिन्न नक्षत्र तारों से होता हुआ तीव्रता से मन के वेग से पृथ्वी के बाहरी वातावरण में पहुंच जाता है ऊपर से यह लोग पृथ्वी को देखते हैं और कहते हैं

इस छोटे से ग्रह में आखिर कितने व्यक्ति समाए हुए होंगे रथ तीव्रता से दौड़ता हुआ सबसे मनमोहक दृश्यों को दिखाता हुआ हिमालय के ऊपर से गुजरता है तभी वह वहां देखते हैं कि वहां बहुत सारे ऋषि मुनि तपस्या कर रहे हैं उनको देख कर के यक्ष कहते हैं कि वास्तव में पृथ्वी लोक में भी भक्ति का वातावरण है यहां पर भी लोग तप और भक्ति किया करते हैं यह अच्छी बात है क्योंकि अगर इन्हें नहीं पता होगा की इस कार्य का कितना अधिक महत्व है तो शायद यह अपनी पृथ्वी को कभी छोड़ ही नहीं पाएंगे और उच्च लोगों की ओर गमन नहीं कर पाएंगे वैसे भी यह लोग हमसे काफी पिछड़े है इस तरह से उनकी आपसी बातें चल रही थी

लेकिन उनका ध्यान इस और था कि किस प्रकार वह त्रिशूल गया होगा तभी वहां हिमालय पर्वत पर वह अपने रथ को उतार देता है और कहता है चलो क्यों ना हम इन मनुष्यों से बात करें और इनके बारे में कुछ पता लगाए कुछ जाने ऐसा जिसके माध्यम से हम यहां की चीजों को जान सके सभी मनुष्य का रूप धारण कर लेते हैं और ऋषि मुनि संत का भेष बनाकर के एक आश्रम की ओर बढ़ने लगते हैं आश्रम में गुरुजी अपने शिष्यों को प्रवचन दे रहे थे तभी यह आठो वहां पहुंच कर उन्हें प्रणाम करते हैं और एक ओर बैठ कर के कुछ प्रश्न पूछने के लिए आज्ञा मांगते हैं गुरुदेव वहां के कहते हैं आप लोग कौन हैं और कहां से आए हैं

तो भुवन यक्ष कहता है कि हम बड़ी दूर से आए हैं हमारा निवास स्थान बड़ा दूर है लेकिन हमारा उद्देश्य धर्म-कर्म की बातों को जानने का है मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूं कि यहां क्या कोई व्यक्ति किसी सिद्धि शक्ति के बारे में भी बता सकता है गुरु कहता है कि हां अवश्य मेरे पास बहुत सारी सिद्धियां है अगर कोई ऐसी वस्तु आपकी खो गई है आप उसके बारे में जानना चाहते हैं तो मुझे उसका विवरण दीजिए भुवन यक्ष बड़ी ही चालाकी से कहता है एक त्रिशूल जो आकाश से गिरा आकर के पृथ्वी पर कहीं गिरा आप बताइए कि वह त्रिशूल कहां पर स्थित है गुरु जी ध्यान लगाते हैं और वह देखने की कोशिश करते हैं

कि किस प्रकार कहां पर वह त्रिशूल स्थित है तभी उन्हें पता लगता है कि वह काशी में किसी स्थान पर गिरा है वह कहते हैं आपके प्रश्न का उत्तर यह है कि वह काशी में किसी स्थान पर गिरा है जाइए उसे ढूंढ लीजिए वह कहता है कि ठीक है क्योंकि उसे अपने बहुत बड़े एक राज का पता चल चुका था मुस्कुराता हुआ भुवन यक्ष कहता है धन्यवाद और उस जगह चलने को अपने मित्रों से कहता है हमें ध्यान ज्ञान की बातें तो पता चल ही गई चलो उस स्थान की ओर गमन करते हैं जहां यह त्रिशूल होने की बात बता रहे हैं सभी मित्र उसकी तरफ देखते हैं और समझ जाते हैं कि यह केवल यहां अपने उस त्रिशूल के लिए ही आया है सभी मित्र उसे कहते हैं कि ठीक है हम तुम्हारी सहायता करेंगे और उस त्रिशूल को नष्ट कर देंगे आगे क्या हुआ यह हम जानेंगे अगले भाग में क्या वह त्रिशूल तक पहुंचे और त्रिशूल से संबंधित क्या नई कहानी जुड़ी

दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है जैसा कि हमारी कहानी चल रही है आपने पहले एपिसोड में जाना किस प्रकार से भुवन यक्ष अपने साथियों के साथ में पृथ्वी लोक आ जाता है पृथ्वी लोक में आकर के उसकी सबसे बड़ी समस्या यही है कि उसे वह त्रिशूल ढूंढना है वह त्रिशूल जो उसका वध कर सकता है और यक्ष राज के कहे अनुसार जो भविष्यवाणी उन्होंने की थी उसके अनुसार उसके लिए यहां पर बहुत बड़ा खतरा है जब तक कि वह त्रिशूल कोई व्यक्ति अगर प्रयोग करेगा तो उसके ऊपर तो निश्चित रूप से उसके प्राण जा सकते हैं इसी समस्या को लेकर के उसने पृथ्वी की ओर आगमन किया और यह बहाना उसने अपने साथियों के बनाया कि हम पृथ्वी पर भ्रमण करना चाहते हैं पृथ्वी भ्रमण में उसे अपने कार्य में सफलता मिली

और एक ऋषि के आश्रम में उपस्थित होकर के उसने जब इस राज के बारे में पता किया तो उन्होंने बताया कि काशी नगरी में तुम्हारा त्रिशूल हो सकता है उनकी बात को सुनकर के अब भुवन यक्ष अपने साथियों के साथ में अपने रथ पर बैठ कर के काशी नगरी की ओर प्रस्थान कर दिया दिव्य रथ की शक्ति के कारण बहुत ही जल्दी वह काशी नगरी पहुंच गया काशी नगरी में भ्रमण करने लगा यह वह समय है जब केवल और केवल विशालकाय जंगल हुआ करते थे छोटी-छोटी कुटिया होती थी जिन पर लोग निवास किया करते थे उन ऋषि-मुनियों के आश्रम हुआ करते थे

तो जिस स्थान पर आज माता का मंदिर बना हुआ है वह स्थान एक नंदकिशोर नामक पंडित जी का था और उन्होंने वहां पर मां भगवती की काफी आराधना की थी इसी प्रयोग में उन्होंने एक तंत्र प्रयोग करने की कोशिश की जिस प्रयोग का नाम था दुर्गा कवच जिसको वह कर रहे थे उन्हें यह करते हुए काफी दिन बीत गए थे यह वही दिन था जिस दिन भुवन यक्ष उस स्थान पर मंडराता आता हुआ उस स्थान की खोज करते हुए वहां पर आना चाहता था यह नंदकिशोर जी के दुर्गा कवच साधना का 1 वर्ष और 11 दिन था 11 दिन होते ही अचानक से वहां पर महा सिद्ध योगिनी जिन्हें शब्द शक्ति की देवी कहा जाता है

प्रकट हो गई यज्ञ कुंड से प्रकट होकर तुरंत ही उन्होंने नंदकिशोर को दर्शन दिए नंदकिशोर भाव हीन हो गया प्रसन्न होकर उन्होंने कहा माता आप कौन हैं और इस यज्ञ की कुंड से आप किस प्रकार प्रकट हुई हैं मैं मां भगवती की पूजा उपासना कर रहा था उनके कवच सिद्धि को करना चाह रहा था इस पर देवी ने कहा तुम्हारे मन की यह इच्छा पूर्ण होगी किंतु तुमने अत्यधिक हवन किया है मां को प्रसन्न कर लिया है इसलिए मैं साक्षात मां की आज्ञा से यहां पर प्रकट हुई हूं मैं तुम्हें कवच की सिद्धि का एक ऐसा मार्ग बता रही हूं जो अभयदया होगा यह ऐसा शास्त्रों होगा जिसका कोई ब्रह्मांड में भेद नहीं सकता होगा इस पर नंदकिशोर जी ने कहा

माता अगर आप पसंद है तो वह विधि वह मार्ग मुझे बताइए देवी प्रसन्न होकर के बोली के अवश्य ही मैं तुम्हें वह मार्ग बताती हूं सुनो तुमने यह जो मंत्र सिद्ध किया है मैं तुम्हें एक तांबे का टुकड़ा देती हूं उस पर यह संपूर्ण स्रोत लिख लो इसके बाद नीले कमल की लकड़ी से और तीन संबंधों के पानी से एक स्याही बनाओ जिससे तुम्हें इस तांबे की पट्टी पर वह यंत्र लिखना है उसके बाद यह कवच सदैव के लिए वह व्यक्ति धारण कर सकेगा और इस प्रकार से उन्होंने उन्हें कई तरह की बातें बताई नंदकिशोर उन गोपनीय रहस्य को सुनकर आश्चर्यचकित हो गए मां की ओर उन्होंने प्रार्थना करके कहा मैं कहा समुंदरों का पानी और इस तरह की चीजों की व्यवस्था कर पाऊंगा माता एक बार फिर से मुस्कुराते हुए बोली मैं जानती थी लेकिन तुमने इतनी साधना की हुई है

कि मैं तुम्हें सिद्धि देना चाहती हूं इसलिए यह लोग इस प्रकार उन्होंने उस अद्भुत स्याही और उस अद्भुत कमल का निर्माण कर दिया वह दोनों चीजें नंदकिशोर पंडित जी को दे दी गई नंदकिशोर पंडित बहुत ही प्रसन्न थे क्योंकि आज यह कवच सिद्धि हैं उन्हें एक अद्भुत शक्तिशाली शस्त्र के रूप में अस्त्र के रूप में प्राप्त हो रही थी यह शस्त्र अस्त्र ऐसा था जिसे कोई भेद नहीं सकता था और जो स्वयं रक्षा भी करता था और किसी पर भी चलाया जा सकता था किसी भी प्रकार से किसी भी व्यक्ति के ऊपर तंत्र का प्रयोग किया जा सकता था

यह बहुत ही ज्यादा दुर्लभ और बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली एक प्रकार की साधना थी जिसको उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली थी नंदकिशोर जी ने वह गोपनीय जगह चुनी जहां पर उन्होंने यह कार्य संपन्न करना था अब उनके सामने यह मार्ग था कि यह तंत्र को वह तुरंत के तुरंत सिद्ध करें इसके लिए उन्होंने एक गोपनीय जगह चुनी और उस जगह पर उन्होंने ताम्र पट्टी पर एक तांबे की प्लेट जो होती है उसके ऊपर उस यंत्र को लिखा अर्थात जो मां के मंत्र थे उनको यंत्र के रूप में इस प्रकार से लिखा जैसा कि माता ने उन्हें बताया था इस प्रकार से उन महायोगिनी की कृपा से उन्होंने वह कार्य सिद्ध किया और सबसे पहले प्रयोग स्वयं पर ही उन्होंने करने की चेष्टा की उन्होंने यह सोचा कि क्यों ना इस प्रयोग को मैं सिद्ध करू अपने स्वयं को करने के लिए उन्होंने इस चीज को देखने की कोशिश की अब उनके सामने एक ऐसा विकल्प था

कि उन्हें एक ऐसा कार्य करना था की जिस रूप से उस कार्य में उन्हें सिद्धि प्राप्त हो उन्होंने तुरंत ही वहां पर उस कवच को धारण किया कवच को धारण करते कवच ने उनके हृदय के अंदर प्रवेश कर लिया और पूरा शरीर उनका वज्र जैसा हो गया पूरा शरीर मनमोहक सुंदर हो गया साथ ही साथ बहने वाले रक्त की जगह में ऐसे गोपनीय शक्तियां बहने लगी जैसे रक्त की हर बूंद में कोई देवी शक्तियां चल रही हो उन्होंने उस कवच की सिद्धि करने के बाद में इसका परीक्षण करना चाहा उन्होंने तुरंत एक तलवार निकाली और अपनी एक बांह काटने की कोशिश की पर तलवार लगते ही तलवार टूट गई और बांह पर खरोच भी नहीं आई

यह देखकर नंदकिशोर पंडित बहुत ही ज्यादा मुस्कुराने लगे उन्होंने सोचा कि क्या सिर्फ अस्त्र-शस्त्र का ही प्रयोग इसके ऊपर नहीं हो सकता है या फिर इसके अलावा भी कई सारी शक्तियां इसके अंदर विराजमान है यह सोच कर के उन्होंने अग्नि में प्रवेश किया और यह देख कर के वह आश्चर्यचकित हो गए कि जैसे कि अग्नि नहीं एक साधारण सा वातावरण हो वहां पर अग्नि कुंड में प्रवेश करने के बाद काफी देर बैठे रहने के बाद भी उन्हें जरा सी भी गर्मी महसूस नहीं हुई वहां से वह निकले और उन्होंने फिर जल परीक्षा की वह समुंद्र के अंदर प्रवेश कर गए यह सिद्धि भी उन्हें प्राप्त हो गई थी क्योंकि वह जहां चाहते थे वहां वह प्रकट हो जाते थे इसी कारण वह तुरंत ही सागर के किनारे प्रकट हो गए और फिर उन्होंने सागर में प्रवेश लिया

वह सागर में भी इस प्रकार से चल पा रहे थे जैसे कि पानी नहीं है हवा है चारों तरफ पानी के अंदर उन्हें साफ-साफ बहुत दूर दिखाई दे रहा था और सांस लेने में भी कोई परेशानी नहीं हो रही थी अद्भुत कवच को धारण करके उनके दिल में प्रसन्नता के लिए एक ऐसी अद्भुत अवस्था आ चुकी थी कि वह स्वयं किसी को यह बताएं कि ना बताएं इसी उधेड़बुन में वह थे खुशी के मारे वह अंदर से पागल हुए जा रहे थे आखरी परीक्षा के लिए वह बाहर पहाड़ की चोटी पर चले गए और वहां से कूद गए और बड़े ही सहजता के साथ धरती पर वह आकर के गिरे जहां पर वह गिरे वहां पर खड्डा हो गया और फिर वह खड्डे से बाहर निकल ऐसे आए

जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो कवच पूरी तरह से सिद्ध था कवच को केवल सात बार पढ़कर के उस तांबे की प्लेट को अपनी छाती पर लगाना होता था और वह छाती के अंदर से शरीर के अंदर प्रवेश कर जाती थी और पूरा शरीर वज्र का बना देती थी अब संसार की कोई भी शक्ति नंदकिशोर का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती थी यह बात उन्होंने अपने परिवार के लोगों को बता दी क्योंकि उनसे रहा नहीं गया इसी दौरान वहां पर भुवन यक्ष का आगमन होता है

भुवन यक्ष अपने साथियों के साथ में उस आश्रम में पहुंचता है जहां पर नंदकिशोर पंडित जी अपनी आराधना कर रहे थे वह वहां पर पहुंचकर के प्रणाम करता है और नंदकिशोर पंडित जी से कहता है कि गुरुदेव मुझे आप से कुछ विद्याए सीखनी है नंदकिशोर जी कहते हैं ऐसी क्या चीज है जो तुम्हें सीखनी है वह कहता है मुझे अभेदय त्रिशूल विद्या सीखनी है नंदकिशोर जी कहते हैं यह नाम तो मैं पहली बार सुन रहा हूं यह क्या होता है उसने कहा मुझे किसी भी अस्त्र-शस्त्र से बचने की विद्या जाननी है नंदकिशोर जी ने कहा ठीक है मैं तुम्हें दे तो सकता हूं लेकिन बदले में तुम क्या दोगे इस पर मुस्कुराते हुए भुवन यक्ष कहता है संसार में जो भी आपकी इच्छा हो वह मांग लीजिएगा मैं सहस से आपको दे दूंगा और मुझे बहुत ज्यादा देर के लिए भी यह नहीं चाहिए केवल तीनपहर के लिए ही मुझे ऐसी शक्ति चाहिए नंदकिशोर खुश हो जाते हैं

और सोचते हैं कि अगर मैं इसे अपना कवच थोड़ी देर के लिए धारण करा दूं तो निश्चित रूप से इससे मैं जो भी मांग लूंगा वह यह दे सकेगा लेकिन पहले परीक्षा तो ली जाए कि यह दे क्या सकता है नंदकिशोर जी ने कहा इस प्रकार तो सभी लोग कहते हैं आप बताइए कि आप क्या सच में मुझे वह सारी चीजें मुझे दे सकते हैं जिनकी मैं कल्पना करता हूं तभी भुवन यक्ष ने वहां पर सुंदर नारियां प्रकट कर दी नंदकिशोर जी उन्हें देख कर के आश्चर्यचकित में पड़ गए इतनी खूबसूरत नारियां उन्होंने देखी ही नहीं है भुवन यक्ष कहता है गुरुदेव यह सब सारी स्त्रियां में आपको समर्पित करता हूं यह सब आपकी दासिया है जैसे चाहिए

इनका उपभोग भोग कीजिए चाहे तो इन्हें अपनी सेविका बनाकर रखिए या फिर पत्नी बनाकर रखिए या प्रेमिका या सहायिका बनाकर नंदकिशोर जी उसकी इस ताकत को देखकर आश्चर्यचकित में पड़ गए नंदकिशोर जी सोच ही रहे थे कि एक बार फिर से भुवन यक्ष ने सोचा शायद मुझे यह विद्या नहीं सिखाएंगे इसलिए उन्होंने तुरंत ही वहां पर सोने चांदी के आभूषण प्रकट कर दिए बहुत सारा सोना चांदी ला करके उनके चरणों में रख दिया और कहा जितना चाहिए आप उतना धन खर्च कीजिए मेरे इच्छा पर सारा सब कुछ प्रकट हो सकता है

केवल और केवल मुझे आपसे कुछ विद्या चाहिए भुवन यक्ष को वह सारी बातें पता चल चुकी थी जो नंद किशोर जी की दुर्गा कवच सिद्धि से उन्हें ज्ञान थी इसी कारण से भुवन यक्ष उनके पास आया था उसने गुरु को प्रणाम करके उनसे विद्या सीखनी चाहिए नंदकिशोर जी ने कहा ठीक है मैं तुम्हें विद्या सिखाता हूं और वह उसे दुर्गा कवच साधना करवाने लगे उन्होंने कहा इसमें 1 वर्ष 11 दिन लगेंगे इस प्रकार वह बैठकर साधना करने लगा और वह धीरे-धीरे करके उसको सब कुछ सिखाने लगे इस प्रकार से इधर नंदकिशोर जी ने कहा दुर्गा कवच के लिए ताम्र पट्टी का अपने परिवार के लोगों को दे दी

और कहा मेरी आने वाली पीढ़ी में भी यह पट्टी का मेरे पुत्र को देना स्वयं यह उससे सिद्ध रहेगी केवल उसमें मेरा ही रक्त है इस प्रकार से कई सारे दिन बीतते चले गए 1 वर्ष 11 दिन हो जाने के बाद में अचानक से नंदकिशोर जी ने एक दिन भुवन यक्ष से कहा मेरे पास एक ऐसी चीज आई है जो मैं तुम्हें दिखाना चाहता हूं भुवन यक्ष ने कहा गुरुदेव कैसी चीज नंदकिशोर जी एक गोपनीय गुफा में उसे ले गए जो जमीन के अंदर थी वहां पर पहुंचकर के अंदर एक मां की मूर्ति बनी हुई थी और उसके बगल में ही एक त्रिशूल गड़ा हुआ था

त्रिशूल को देख कर के ही भुवन यक्ष प्रभावित हो गया भुवन यक्ष उसके अंदर से बहती हुई ऊर्जा को समझ सकता था कि यह वही त्रिशूल है जिसे त्रिशूल की चाह में वे यहां तक आया था और जिसे त्रिशूल से बचने के लिए वह दुर्गा कवच की सिद्धि यहां पर कर रहा है भवन यक्ष सब कुछ समझ चुका था नंदकिशोर ने कहा कि यह त्रिशूल बहुत ही दुर्लभ है जाओ इसे पकड़ो और ग्रहण करो यह तुम्हारे साथ तुम्हारी रक्षा के लिए अवश्य ही कार्य करेगा क्योंकि तुम्हारे पास अद्भुत शक्तियां है इसलिए त्रिशूल को सिद्ध कर लेना इस पर भुवन यक्ष कहता है गुरुदेव अवश्य लेकिन मैं यह त्रिशूल तोड़ देना चाहता हूं

और भुवन यक्ष ने तुरंत की तलवार उस त्रिशूल के ऊपर चला दी लेकिन उस त्रिशूल को कुछ नहीं हुआ यह देख नंदकिशोर पंडित को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया और कहां मूर्ख मैं इस त्रिशूल की पूजा करता हूं और मैं यह त्रिशूल तुझे देना चाहता था और तू इसे ही तोड़ना चाहता है जा निकल जा यहां से और यहां नजर मत आना भुवन यक्ष कहता है नहीं मुझे यह त्रिशूल आप दो लेकिन मैं इसको नष्ट करूंगा आपके ही सामने कर दूंगा नंदकिशोर जी कहते हैं मूर्ख मैंने इसकी एक वर्ष तक तपस्या और पूजा की है यह त्रिशूल बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली है

अब मैं तुझे यह त्रिशूल नहीं दूंगा अगर तू इसे तोड़ना चाहता है तो आखिर तू इसे क्यों तोड़ना चाहता है भुवन यक्ष कहता है माफ करना गुरुदेव लेकिन अब मेरे पास समझाने के लिए कुछ शब्द नहीं है क्या आप बताएंगे कि इस त्रिशूल के विषय में और कौन कौन जानता है नंदकिशोर कहता है मेरे और तेरे सिवाय इस त्रिशूल के बारे में और कोई नहीं जानता मैं यहां किसी को भी नहीं लाता हूं तूने 1 वर्ष रहकर मेरे साथ तपस्या की है इसलिए मैं तुझे यहां पर लेकर आया हूं भुवन यक्ष ने कहा अवश्य मैं आपके चरण छूना चाहता हूं कृपया मुझे अपने चरण छूने दीजिए नंदकिशोर कहते हैं ठीक है लेकिन तू इतनी जल्दी कैसे बदल गया भुवन यक्ष उनकी तरफ बढ़ता है उनके चरण छूता है और अगले ही पल नंदकिशोर जी की गर्दन धरती पर गिरी हुई थी उनकी गर्दन काट दी गई थी काटने वाला था भुवन यक्ष। भुवन यक्ष ने ऐसा क्यों किया जानेंगे हम लोग अगले भाग में

दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है जैसा कि हमारी कहानी चल ही रही है अभी तक आपने जाना कि किस प्रकार से भुवन नाम के यक्ष का पृथ्वी पर आगमन होता है और यहां आकर वह नंदकिशोर जी से एक विद्या सीखते हैं जिस विद्या का मूल उद्देश्य त्रिशूल को नष्ट करना है जो त्रिशूल स्वयं भुवन को नष्ट कर सकता है भुवन के मन में एक लालच उत्पन्न हो जाता है

त्रिशूल को देखकर साथ ही साथ अत्यंत शक्तिशाली कवच को धारण कर लेने की इच्छा के कारण वह बहुत ही ज्यादा इन बातों से प्रभावित हो जाता है कि अगर वह नंदकिशोर का वध कर दे तो उनके पास से वह अद्भुत कवच धारण कर लेगा जिससे वह अजय हो जाएगा और तीनों लोको में उसे कोई नष्ट नहीं कर पाएगा स्वयं वह त्रिशूल भी नहीं इसीलिए वह नंदकिशोर के पैर छूते हुए उसके बाद भुवन यक्ष नंदकिशोर की गर्दन काट देता है और वध कर देता है नंदकिशोर की मृत्यु से पहले ही नंदकिशोर ने वह कवच अपने मूल स्थान से अपने परिवार वालों के पास भिजवा दिया था उन्होंने यह सिर्फ प्रदर्शन की भावना से किया था लेकिन यही कार्य उनके लिए उस यंत्र रूपी महा कवच की रक्षा का एक विशिष्ट स्रोत बन सका

अगर वह ऐसा नहीं करते तो निश्चित रूप से उनके साथ बहुत ही बुरा और भी हो जाता क्योंकि जिस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए भुवन यक्ष ने उनके साथ मिलकर आराधना की थी वह एक गलत दिशा की ओर मुड़ जाता है भुवन यक्षिणी नंदकिशोर को प्रणाम किया और उनके शरीर को जला दिया यह सारी बातें वहां छुपे हुए नंदकिशोर के एक शिष्य ने देख ली वह भागता हुआ तीव्रता के साथ में उस क्षेत्र की ओर गया जहां पर नंदकिशोर का परिवार रहता था नंदकिशोर का परिवार यह सारी बातें सुनकर स्तब्ध रह गया और सब ने सोचा कि यह बात की सूचना तुरंत ही पास के एक सरदार को देनी चाहिए जो राजा की सेना में एक विशिष्ट पद पर कार्य करते थे उनको यह खबर पहुंचा दी गई

इधर भुवन यक्ष ने पता किया कि वह कोशिश करके भी उस त्रिशूल को नष्ट नहीं कर सकता है इसलिए ऐसा करना होगा उसके लिए कि वह जिस गुफा में वह विशालकाय त्रिशूल रखा है उस गुफा को ही बंद कर दे ताकि वहां तक कोई पहुंच ना पाए उसके ऊपर तंत्र मंत्र का पहरा भी लगा दे उसने वही किया उसने वहां पर एक विशालकाय तांत्रिक शक्ति का वहां पर प्रयोग करके उसे स्थापित कर दिया और उस जगह पर वह बहुत ही शक्ति के साथ में एक विद्युत माला तरह की विशेष तरह की यक्षिणी का पहरा बिठा दिया अब भुवन ने सोचा कि उसका यंत्र ढूंढा जाए बहुत ढूंढने के बाद भी नंदकिशोर के निजी स्थान

यानी कि ग्रह पर उसे ढूंढने पर भी वह यंत्र नहीं दिखाई दिया अद्भुत प्रकार की शक्तियों से रचित वह तांबे का यंत्र जो कवच था उसको ना ढूंढ पाने पर भुवन यक्ष अपने साथी यक्षों की सहायता ली साथी यक्षों ने अपनी शक्तियों से पता लगा लिया कि नंदकिशोर ने उसे अपने परिवार को वह यंत्र रूपी महा कवच भिजवा दिया है जितनी जल्दी हो सके उसे ढूंढ करके वहां से लाना होगा भुवन दे सभी यक्षों को भेजा की तुम तीव्रता के साथ जाओ और किसी भी सूरत में उस यंत्र को लेकर के आइए सब के सब नंदकिशोर के परिवार की ओर पीछे पड़ गए

नंदकिशोर का परिवार जहां पर रहता था पउस जगह पर उस सरदार ने अपनी सेना को बैठा दिया और उस सेना का बहुत ही बड़ा क्षेत्र स्थापित हो गया वहां पर बहुत सारे सैनिकों का एक जाल सा बुन दिया गया यक्ष वहां पर आए और पूछने लगे कि नंदकिशोर का परिवार कहां पर है सभी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और कहा कि आप अंदर नहीं जा सकते यक्षों ने इस बात की परवाह नहीं की और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए उनके साथ युद्ध करना शुरू कर दिया यक्ष अजय थे उन्हें हराना संभव नहीं था साधारण से भर्ची भालो तलवारों के आगे शक्तिशाली यक्षों की शक्ति अत्यधिक थी

उन पर इन किसी भी प्रकारों के अस्त्रों शास्त्रों का प्रभाव नहीं पढ़ रहा था थोड़ी ही देर में देखते-देखते सरदार की सारी सेना मार दी गई वहां चारों तरफ लाशें ही लाशें बिछी हुई थी सरकार वहां से भागता हुआ राजा के पास पहुंच गया और इधर चुपचाप नंदकिशोर के परिवार को बता गया कि पीछे के दरवाजे से निकल जाओ नंदकिशोर के परिवार के सारे लोग वहां से भागने लगे नंदकिशोर की पत्नी ने उस कवच को अपने बेटे के गले में पहना दिया और उसे लेकर के भागने लगी यक्षों ने एक बार फिर से अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और देख लिया

कि कहा वह सारे लोग जा रहे हैं विशालकाय आईने में देखकर उन्हें सब पता लग गया कि वह किस दिशा की ओर भाग रहे हैं सभी वायु की गति से वहां पर पहुंच गए और उन सब को घेर लिया नंदकिशोर की पत्नी को कुछ समझ में नहीं आया और वह अपने बेटे को लेकर पास की ही नदी में कूद गई और वह नदी में बहती ही जा रही थी इधर यक्षों ने सभी को घेर रखा था और वह उनसे पूछने लगे कि हमें तुरंत ही वह यंत्र दे दो हम तुम सबको मृत्यु दंड नहीं देंगे तुम्हारे जीवन की रक्षा हो जाएगी सब के सब उनकी बात को मानने के लिए नहीं थे

उन लोगों का ध्यान बताए हुए थे यक्षों की संख्या बहुत ज्यादा थी क्योंकि वह विशालकाय थे एक यक्ष के एक पाव धरने की जगह में वह सारे लोग समा जाते उन विशालकाय यक्षों के कारण और लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं था उन सब ने अपने-अपने जो भी अस्त्र-शस्त्र थे उन सब का प्रयोग करना चाहा लेकिन ऐसा करते देख यक्षों ने उन पर हमला कर दिया

और एक ही पल में उनके पूरे परिवार का नाश हो गया सबको उनके कपड़ों को सभी प्रकार से उन्होंने टटोला लेकिन उनको कहीं भी वह यंत्र नहीं दिखाई दिया तभी एक यक्ष ने अपनी दर्पण विद्या का प्रयोग एक बार फिर से किया कि आखिर वह यंत्र कहां है तो उन्हें दिखाई दिया कि एक औरत जो पानी में बहती जा रही है उसके हाथ में बच्चा है और उसके ही गले में वह यंत्र पड़ा हुआ है

सभी तीव्रता से उस ओर जाने लगे तभी उस नदी के नजदीक ही मां दुर्गा का एक मंदिर था वहां पर पड़ी एक लकड़ी को पकड़कर मंदिर के नजदीक पहुंच गई यक्ष तीव्रता से उस और दौड़ने लगे धीरे-धीरे वह स्त्री मंदिर में प्रवेश कर गई मां के सामने जाकर वह अपना दुखड़ा रोने लगी और वहीं पर मां जगदंबा ने विशेष रूप से कृपा की उसकी प्रार्थना सुन ली अब यक्ष चारों तरफ घूम रहे थे लेकिन वह स्त्री और उसका बालक उनकी सोच से गायब हो चुके थे

किसी भी प्रकार की शक्तियों का प्रयोग करने पर वह उन दोनों को नहीं देख पा रहे थे यह बात यक्षों की समझ से परे थी कि आखिर यह कैसे संभव है कि इस प्रकार यह अद्भुत शक्ति का प्रयोग यह औरत कैसे कर ले रही है कि जो यक्षों दिव्य दृष्टि से भी बच जा रही है यह सब माता की कृपा का प्रभाव था अब इस प्रकार से यक्ष इधर-उधर घूमने के बाद फिर से भुवन के पास चले गए और कहने लगे कि उसके सारे परिवार का नाश कर दिया गया है

अब केवल एक छोटे बच्चे की हमें तलाश है अगर वह हमें मिल जाए तो हम उसे मारकर हम सारे के सारे उस यंत्र को प्राप्त कर लेंगे भुवन ने कहा कभी भी कहीं पर यह दोनों दिखाई दे अर्थात उसकी मां और उसका पुत्र तुरंत दोनों का वध करके वह यंत्र अवश्य ही मेरे पास लेकर आ जाए धीरे-धीरे करके वह बालक बड़ा होने लगा बालक का नाम उसकी मां ने भास्कर रखा था इधर एक गांव में एक बड़ा ही कुटिल व्यक्ति रहता था वह सभी लोगों को तंत्र-मंत्र के नाम से डराया करता था उसको आकाश से एक बार भुवन ने देखा और कहा था कि यह व्यक्ति बहुत ही निपुण है

और चालाक है इसे अपना शिष्य बनाना चाहिए अपना भक्त बनाना चाहिए जब वह व्यक्ति रात को तांत्रिक पूजा कर रहा था तभी हवन कुंड से भुवन तुरंत प्रकट हुआ और हंसने लगा व्यक्ति वह सब देख करके खबर आ गया वह कुटिल व्यक्ति ने यह नहीं सोचा था कि उसकी सिद्धि उसके लिए सिद्ध हो जाएगी यक्ष बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली था और उसने तुरंत ही एक स्वर्णमाला वहां पर प्रकट कर दी हीरे मोती सोना चांदी सब कुछ अपने सामने प्रकट करके उस व्यक्ति को देकर बोला की सुनो अगर तुम मेरी उपासना करते हो तो मैं तुम्हें सब कुछ प्रदान करूंगा

व्यक्ति खुश हो गया और कहने लगा कि हे प्रभु मुझे तो यही सब की तलाश है लोगों को ठग कर में ज्यादा पैसे नहीं कमा पाता हूं तंत्र मंत्र कुछ आता नहीं है लेकिन कोशिश किया करता रहता हूं दो चार मंत्र मालूम है उन्हीं से मैं यह हवन कर रहा था आपका प्रकट हो जाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है तो बताइए आपका क्या आदेश है किस प्रकार से मैं आपको प्रश्न कर सकता हूं इस पर भुवन नाम के उस यक्ष ने कहा मैं तुम्हें अपना एक मंत्र देता हूं मेरे इस मंत्र की उपासना करो और मुझे सदैव जपो एक पहर अवश्य ही तुम प्रतिदिन मेरी उपासना करो मैं तुम्हें सब कुछ दूंगाऔर वह व्यक्ति कहने लगा अवश्य ही अगर आप मुझे सब कुछ प्रदान करेंगे तो एक पहर क्या मैं दस पहर साधना करूंगा

और मैं अकेला नहीं मैं पूरे के पूरे अपने गांव से आपकी पूजा उपासना करवा लूंगा भुवन यक्ष अत्यंत प्रसन्न हो गया भुवन यक्ष ने कहा ठीक है इस प्रकार से वह व्यक्ति साधना करने लगा और भुवन यक्ष को यज्ञ हवन के कुंड में आहुतियां देने लगा भुवन यक्ष ने कहा कि मुझे काले बकरे का मांस और मदिरा सहित हवन अर्पित किया करा करो भुवन यक्ष की यह बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा ठीक है गांव के सारे बकरे मैं ले आऊंगा अरे मैं तो हूं ही कुटिल इसीलिए मैं सब कुछ करने में सक्षम हूं

भुवन भी प्रसन्नता की उसे एक अच्छा भक्त मिला था भुवन की शक्ति बढ़ने लगी थी यज्ञ हवन के कारण उसकी शक्ति अपार होने लगी थी भुवन बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली होता जा रहा था इधर सिद्धि होने के कारण कुटिल व्यक्ति ने पूरे गांव से भुवन की पूजा और उपासना करवाना शुरू कर दी भुवन बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गया भुवन ने अपने साथियों को बुलाकर की कहा कि यह पृथ्वी लोक से अच्छी जगह कोई हो ही नहीं सकती है

यहां पर तो शक्तियां बढ़ती है देखो यह मेरी पूजा जबसे करने लगा है तब से मेरी शक्तियां बढ़ने लगी है अब देखो मेरे अंदर कितनी अधिक सिद्धियां और शक्तियां बढ़ गई है इसकी कृपा और साधना के कारण अब मैं भी बड़ा ही शक्तिशाली देवता तुल्य हो गया हूं भुवन यक्ष की बात को सुनकर के और सभी यक्ष भी कहने लगे हमारा भी यज्ञ भाग दिलवाओ और भुवन ने यक्ष ने ऐसा ही किया सबको यज्ञ भाग मिलने लगा कुछ दिनों बाद भुवन यक्ष ने कहा की इतने से मेरा क्या कल्याण होगा चलो मैं अपने भक्तों की मदद करता हूं

वह उस कुटिल व्यक्ति के पास प्रकट होकर के कहने लगा मैं सोचता हूं तूने मेरी बहुत उपासना और साधना की है क्यों ना मैं तुझे राजा ही बना दूं चल मैं तुझे एक तलवार देता हूं और तेरा शरीर धारण करता हूं मैं तुझे लेकर चलता हूं राजा के महल चल राजा कुमार और राजा बन जा उसकी यह बात सुनकर के वह कुटिल व्यक्ति बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुआ भुवन यक्ष से दिव्य तलवार प्राप्त की और राजमहल की ओर बढ़ चला राजमहल की ओर जाते हुए व्यक्ति बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली हो चुका था वह तीव्रता से राजा के महल की ओर बढ़ने लगा और जो भी सैनिक आता था उसे तलवार से काट देता

उसकी तलवार में इतनी शक्ति थी कि जब चाहे जितनी चाहे अपनी इच्छा अनुसार उससे और तलवारे भी पैदा कर सकता था जो सटीक वार करती थी उन तलवारों के कारण महाविनाश वाह मच गया धीरे-धीरे वहां एक पलटन उसने समाप्त कर दी राजा को सोते वक्त उसने उठाया और उसकी गर्दन काट दी और वहां राज महल के मुख्य दरबार में जा कर के खुद घोषणा की आज से मैं राजा हूं और यह पूरा राज्य मेरे देवता की पूजा करेगा उसने भुवन यक्ष की एक महान विशालकाय मूर्ति बनवाई और कहा आज से भुवन यक्ष की पूजा सभी लोग यहां करेंगे

और जो मेरा आदेश होगा उसी के अनुसार आप सभी लोगों को कार्य करना होगा भुवन यक्ष ने कहा राजा की पुत्री से विवाह कर ले और इस प्रकार से उस कुटिल व्यक्ति ने जबरदस्ती राजा की पुत्री से विवाह कर लिया राजा की पुत्री ने रात के समय उस होटल व्यक्ति को मारने की कोशिश की लेकिन भुवन यक्ष प्रकट हो गया और उसने उस कुटिल व्यक्ति की रक्षा की और कहा कि इसको समाप्त कर दें इस प्रकार राजा की पुत्री को उसने मार डाला इस प्रकार उस खानदान में अर्थात राजा के खानदान में कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं था

जिसको उस कुटिल व्यक्ति ने नही मार डाला हो अब भुवन यक्ष की पूजा प्रार्थना में भी कोई समस्या नहीं रह गई थी पूरा राज्य भुवन यक्ष की साधना करता था इधर धीरे-धीरे नंदकिशोर का बालक भास्कर बड़ा होने लगा भास्कर एक बार जंगल में जा रहा था तभी सामने से एक विशालकाय हाथी उसकी ओर दौड़ा वह ऐसी जगह फस गया था जहां से चारों दिशाएं बंद थी और वह जिधर जा रहा था तभी उसे हाथी ही उसे दिखाई दे रहे थे वह हाथी उसकी और तेजी से आया भास्कर चिल्लाने लगा भास्कर चिल्लाते हुए कहता है बचा लो मां बचा लो तभी वहां पर एक सुंदर सी नारी आती है और हाथी की सूंड को पकड़ लेती है और उससे कहती है कि गजराज रुक जाइए वह स्त्री कौन थी और वह भास्कर से कैसे मिली आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग

दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है अभी तक आपने जाना कि किस प्रकार दुर्गा कवच सिद्धि में जो कथा हमारी चल रही है उसमें एक भुवन नाम के यक्ष ने किस प्रकार से पृथ्वी लोक में अपना साम्राज्य स्थापित किया और यहां पर आकर के उसने राजा को अपना गुलाम बना लिया वह उसकी इच्छा अनुसार कार्य करने लगा सभी लोग यक्ष को देवता मानकर के उसकी पूजा करने लगे इसके कारण यक्ष की ताकत बहुत बढ़ गई और वह उनका एक छात्र राजा देवता तुल्य हो गया स्वयं राजा उसकी पूजा करता था

और वह पूरा स्थान पूरा क्षेत्र यानी कि पूरा नगर यह परंपरा स्थापित कर दी गई के सभी के सभी इस एक मात्र यक्ष की पूजा करेंगे यही उनका भगवान यानी कि देवता है पूजा के फल और यज्ञ हवन की सामग्री के कारण जो भी पूजा सामग्री अर्पित की जाती थी उसकी शक्तियां यक्ष को प्राप्त होती जा रही थी इस कारण से अब यक्ष देवता से भी अधिक बलवान होता जा रहा था इसी की वजह से यक्ष ने धरती पर ही रहने का फैसला कर लिया था

और इसी प्रकार अपनी शक्तियों को बढ़ाता जा रहा था गुफा भी संरक्षित की जहां उसके मारण का वह त्रिशूल वहां रखा हुआ था लेकिन अभी भी भुवन यक्ष के मन में एक शंका थी और वह शंका थी कि वह किस प्रकार से वह उस अभेद्य कवच को प्राप्त कर सके जो यंत्र के रूप में नंदकिशोर ने बनाया था उसी कोशिश में उसने अपने सभी यक्षों को आदेश दे रखा था कि कहीं भी उसके परिवार का वह बालक या उसकी मां मिल जाए तो अवश्य ही उन दोनों का वध करके वह कवच मेरे पास ले आना बहुत मेहनत करने पर भी यक्ष उनका पता लगा नहीं पा रहे थे धीरे-धीरे करके जो स्वयं अपने पिता की इकलौती संतान था वह बड़ा हो रहा था

जंगल में एक बार हाथियों से घिर गया उसी समय एक स्त्री ने उसे बचा लिया वह उस स्त्री के पास जाता है और उससे पूछता है कि आप कौन हैं वह सुंदर स्त्री मुस्कुराते हुए उसे एक पेड़ के पास लेकर जाती है और कहती है सुनो आज से मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूं और जब भी तुम्हारी इच्छा हो यहां आ जाना मैं तुम्हें बहुत कुछ सिखाना चाहती हूं इस पर भास्कर कहता है ठीक है मैं आपके पास अवश्य ही आता रहूंगा इस प्रकार वह अपने घर से शाम के वक्त निकलता और उस स्त्री के पास पहुंच जाता वह स्त्री बहुत ही अधिक शक्तिशाली तंत्र मंत्र की ज्ञाता और सिद्ध अवस्थी उसका रूप सौंदर्य भी अद्भुत था इसी प्रकार उस स्त्री को वह अपनी बड़ी बहन मानकर भास्कर उनसे विद्या सीखने लगा उसने उसे तंत्र विद्या शक्ति संपन्न बनाना और अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करना मंत्रों की सहायता से अस्त्रों को फेंकना जिसके अंदर अद्भुत ऊर्जा भर जाती थी

तो वह अपने लक्ष्य को जाकर अवश्य ही लग जाती थी धनुष बाण चलाना जिसमें वह बाण का प्रयोग करें तो उस पर देवता का आवाहन कर ले तो जो बाण वह चलाता था वह बाण निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को भेद देता था और वहां जाकर वह कुछ भी संपन्न कर सकता था जलबाण अग्निबाण वायुबाण सभी प्रकार के बाणों का प्रयोग उसने सीख लिया था इस प्रकार उसने धीरे-धीरे करके वह बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली होता चला जा रहा था उसकी मां मां दुर्गा की बहुत बड़ी भक्त थी

क्योंकि उन्हीं के कारण से अभी तक भास्कर जीवित था वह सारी बातें जान रही थी और उस नगर में ही रहती थी गोपनीय तरीके से वह मां भगवती की पूजा किया करती थी और कोशिश यही कर रही थी कि वह माता को प्रसन्न रख पाए ताकि उनके प्राणों की और उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा हो सके जो उनके पति के साथ हुआ वह दोबारा ना हो इसी उद्देश्य के कारण उन्होंने गांव में एक छोटी सी कुटीया बना ली थी उस कुटिया में ही वह अपने जीवन के सारे कार्यों को संपन्न कर दी थी और नगर में भी आ कर के अपने घर में कुछ छोटे-मोटे कार्यों को करके चली जाया करती थी

इस प्रकार अपने दोनों घरों की देखभाल वह बहुत ही सावधानी के साथ कर रही थी किसी को कुछ भी बताए हुए नगर में जो उसका घर था वहां पर एक बार चोरी हो जाती है चोर भागते हैं और उसी भगदड़ के दौरान उनसे कुछ सामान गिर जाता है जिसकी वजह से नगर के रक्षक उन्हें पकड़ लेते नगर रक्षक जब उन्हें पकड़ते हैं तो वह बताते हैं कि हमने उस घर में चोरी की है क्योंकि वहां पर स्त्री अधिक समय तक नहीं रहती है नगर रक्षक जब उस घर को खोलते हैं तो देखते हैं वहां मां दुर्गा की पूजा हो रही है वहां मां दुर्गा की पूजा की एक बड़ी सी मूर्ति सामने दीपक जलता हुआ और ग्रंथ बहुत सारे रखे हुए हैं जो हिंदू सनातन परंपरा को प्रदर्शित करते हैं इस कारण से यह खबर तुरंत ही महामंत्री के द्वारा राजा तक पहुंचा दी जाती है

राजा का स्पष्ट आदेश था कि नगर में भुवन यक्ष के अलावा किसी और की पूजा ना की जाए उसके अलावा जो भी ऐसी पूजा करता हुआ पाया गया उसे कठोर से कठोर दंड दिया जाएगा इस कारण से कोई भी नगर में भुवन यक्ष के अलावा किसी की मूर्ति की पूजा नहीं करता था यहां पर भुवन यक्ष के कारण भुवन यक्ष की शक्ति बढ़ भी रही थी भुवन यक्ष को किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं लगने वाला था कि उसके अलावा कोई और पूजा जाए यह बात भुवन यक्ष तक पहुंच गई भुवन यक्ष क्रोधित होकर राजा के सामने प्रकट हुआ और कहने लगा कि तुम्हारे नजर में कोई मुझे छोड़कर किसी और को पूजे यह मुझे कतई बर्दाश्त नहीं करूंगा और खासतौर पर देवी का पूजा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए क्योंकि भुवन यक्ष यह बात जानता था की नंदकिशोर माता का भक्त रहा है इस कारण से अगर माता की कोई करेगा

तो उसे निश्चित रूप से वह शक्ति मिल सकती है जिसके कारण से उसके वध का कारण बन सकता है स्पष्ट संकेत देने पर उस कुटिल व्यक्ति ने जो राजा बन चुका था उसने कहा अवश्य ही मैं उस व्यक्ति को ढूंढ कर निकाल लूंगा और आपके सामने पेश कर दूंगा यह खबर भास्कर की मां को भी पहुंच गई अब उन्होंने तुरंत ही नगर छोड़ने का फैसला कर लिया गुपचुप तरीके से वह नगर के बाहर निकल गई और वह अपने गांव वाले घर में पहुंच गई

तभी यक्षों ने उस गांव पर हमला कर दिया घर घर से व्यक्तियों को बाहर निकाल कर के पीटा जाने लगा मारा जाने लगा और जिसके पास कोई और मूर्ति दिखाई पड़ती उसका गला काट दिया जाता यक्षों की पूरी सेना उस गांव पर टूट पड़ी थी धीरे-धीरे करके गांव के प्रत्येक व्यक्ति को मारा जाने लगा यह देखते हुए गांव में ही छुपी भास्कर की मां मदद के लिए मां जगदंबा की मूर्ति के आगे बैठ गई और उन्हें पुकारने लगी तभी वहां पर वह स्त्री जिससे भास्कर तंत्र विद्या सीख रहा था उसके साथ में आता हुआ नजर आया गांव का ऐसा हाल देखकर और उसके घर का नंबर आने वाला है ऐसा सोचकर वह युद्ध के लिए तैयार हो गया तुरंत ही वह तांत्रिका स्त्री ने मंत्र जालो का प्रयोग किया मंत्र जाल की वजह से थोड़ी देर के लिए सारे के सारे यक्ष स्तब्ध रह गए और स्थिर हो गए वह कुछ नहीं बोल पाए और ना ही कुछ सोच पाए

उसी दौरान भास्कर ने कहा कि आपने यह प्रयोग किया है यह एक तो विशेष प्रकार की विद्या है अब हम क्या करें क्या मैं मां के साथ यहां से भाग जाऊं तो उन्होंने कहा कि सुनो आज मैं तुम्हें अपने बारे में बताती हूं मेरा नाम चंडी योगिनी है मैं तुम्हारेे पिता की रक्षा के लिए नियुक्त की गई थी लेकिन उससे पहले ही उनका वध हो चुका था उनकी सिद्धि की वजह से मेरे प्रकट होने में समय था और जब तक मैं प्रकट होती तब तक उनका वध कर दिया गया था तुम अपने वंश में बचे हो इसलिए अब तुम्हारी रक्षा सुरक्षा अब मेरी जिम्मेदारी है

लेकिन कुछ नियम बंधनों के कारण में तुम्हारी सीधी मदद नहीं कर सकती हूं तुम्हें जो कुछ करना है वह स्वयं करना होगा क्योंकि यह मृत्यु लोक हैं कर्म लोक हैं इसलिए अपने कर्मों के बंधन अपने भाग्य का सामना व्यक्ति को खुद ही करना पड़ता है लेकिन प्रारब्ध में कभी संकट आता है तो देवता मदद भी कर सकते हैं मैं चंडी योगिनी तुम्हें अपनी समस्त विद्याय देती हूं लेकिन सावधान रहना क्योंकि तुम्हारा भाग्य भी तुम्हारा साथ कभी भी छोड़ सकता है और प्रारब्ध में हस्तक्षेप करने का आदेश मुझे भी नहीं है इसलिए सावधान होकर के इनका सामना करो अब तुम्हारा यही कर्म है कि तुम इन सब का वध कर दो

और इस राजा पर भी जा करके उसे अपने वशीकरण मे ले लो अगर ना माने तो उसका भी वध कर दो क्योंकि सारी जड़ उस राजा से ही है जो इस नगर में बैठा हुआ है चंडी योगिनी के यह कहने पर पहली बार भास्कर ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि आप का साथ मुझे बहन के रूप में मिला और आपसे तंत्र विद्या सीखने को मिली इसका मेरे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है आप मेरी बहन के रूप में मेरे साथ जुड़ी रही इसके लिए

मैं आपका तह दिल से शुक्रिया करता हूं चंडी योगिनी ने कहा आज से मैं गायब होती हूं क्योंकि नियम अनुसार प्रत्यक्ष हो जाने पर हमारे नियम कानून जितने भी ऐसी परिस्थितियां होती है उन सब में हमको साथ छोड़कर जाना होता है लेकिन मैंने इतने समय तक तुम्हें इस बात के लिए तैयार कर दिया है अब तुम तंत्र मंत्र में विशेष रूप से सिद्ध हो चुके हो और मेरी कोई आवश्यकता नहीं है इसलिए मैं अब तुमसे विदा लेती हूं और अंतर्ध्यान होती हूं यह कहते हुए चंडी योगिनी वहां से गायब हो गई भास्कर को अब उसका लक्ष्य मिल चुका था

भास्कर युद्ध में अब लगने लगा यक्ष के पास जाकर उसने उस पर अग्निबाण का प्रयोग किया यक्ष अग्निबाण से बच गया हर प्रकार की शक्तियों से यक्ष बच जा रहे थे तभी उसने एक यक्ष के ऊपर शक्ति बाण मारा जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा जिसे देखकर बाकी यक्ष वहां से भाग गए नीचे गिरा हुआ यक्ष एक बार फिर से उठा और अपनी बड़ी सी तलवार को लेकर के उसकी और दौड़ा भास्कर ने एक बार फिर से बाण चलाया लेकिन अब की बार वह सावधान था उसने अपने और चारों तरफ कवच बना लिया था

भास्कर के किसी भी बाण और शक्ति का उस पर काम नहीं कर रहा था तभी उसकी मां दौड़ती हुई आई और भास्कर के गले में उसकी छाती को फाड़ कर उसके ऊपर तीव्रता से उस यंत्र को रख दिया यंत्र तुरंत ही शरीर के अंदर प्रवेश कर गया भास्कर को झटका लगा और पूरा शरीर ऐसा हो गया जैसा कि वह वज्र का बना हो तब तक उस शक्तिशाली यक्ष ने उसके ऊपर अपनी तलवार चलाती थी लेकिन जब उसने देखा कि तलवार के दो टुकड़े हो गए हैं

क्योंकि वह किसी ऐसे शक्तिशाली चीज से टकराया था जैसे कि उससे भी यानी कि उसके तलवार से भी अधिक शक्तिशाली वज्र समान वह चीज थी और वह शरीर था भास्कर का भास्कर भी यह देखकर अत्यंत ही आश्चर्यजनक मैं पड़ गया अब भास्कर में तुरंत ही यक्ष की गर्दन को पकड़ लिया और उसकी गर्दन को उखाड़ दिया इतना अधिक बल उसको अपने अंदर महसूस हुआ भास्कर में गुस्से से अपने पैर को पटका और वहां भूचाल आ गया

उस भूचाल से उस पूरे गांव और यहां तक कि वह नगर भी हिल गया तब भास्कर को अपने अंदर उस यंत्र की शक्ति का आभास हुआ कि आखिर उसने कितनी अधिक शक्ति चीज धारण कर रखी है तब उसकी मां ने उसको सारी बात बताई अपने मां से अपने पिता के बारे में सुनकर के भास्कर रोने लगा भास्कर ने पहली बार सुना कि उसके पिता थे और वह इसी कारण से मारे गए थे उसकी मां उसे बताया तुम्हें वह त्रिशूल ढूंढना होगा बिना उस त्रिशूल के तुम कुछ नहीं कर सकते हो उस महायक्ष की मृत्यु केवल और केवल उस त्रिशूल से हो सकती है

जो तुम्हारे पिता ने कहीं छुपाया हुआ है वह तुम्हें पता लगाना होगा जाओ नगर में जाओ और चुप चुप कर एक-एक यक्ष का वध तब तक करते रहो जब तक की मूल यक्ष भुवन यक्ष के पास तुम नहीं पहुंच जाते इसके बाद मां की बात सुनकर के भास्कर ने अपनी मां से विदा ली उनके चरणों को प्रणाम किया और नगर में प्रवेश कर गया नगर में पहुंचने पर वह एक ही खिड़की से झांक ते हुए सुंदर कन्या को देखकर उससे बहुत अधिक प्रभावित हुआ और वहीं से वह ऊपर चढ़कर उसके महल में प्रवेश कर गया वह सुंदर लड़की उसे जो एकटक निहार रही थी

इधर-उधर ढूंढ रही थी कि आखिर वह गया कहां वह सड़कों पर अपनी नजर दौड़ा रही थी लेकिन भास्कर तो उसके पीछे ही खड़ा था भास्कर उससे पूछा आप किसे देख रही है वह लड़की हक बका गई अत्यंत ही सुंदर उस कन्या ने आंखें झुका कर कहा यूं ही मैं तो बस नगर में आने वाले नए-नए लोगों को देखती हूं आज आपको देख लिया उसकी बात में सहमति थी दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डालकर बातें कर रहे थे दोनों में प्रेम होना सुनिश्चित हो चुका था ऐसे ही समय में उसने भास्कर का हाथ पकड़ा और कहा कि मुझे लगता है

कि तुम वही हो तो भास्कर ने पूछा वही कौन तो वह गई अंदर कमरे की ओर ले कर गई अंदर कमरे में वहां पर भास्कर के पिता और उस लड़की के पिता की संयुक्त फोटो थी जो किसी चित्रकार ने बनाई थी उसको देख करके अब भास्कर कहने लगा क्या यह मेरे पिता है वह लड़की भी कहने लगी हां यह आपके ही पिता है आखिर उसके पिता की फोटो उस लड़की के पिता के फोटो के साथ में किसी चित्रकार ने क्यों बनाई थी और वह वहां पर क्यों स्थिति जानेंगे हम अगले भाग में

दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष कथा भाग 5

एक बार फिर से स्वागत है दुर्गा कवच सिद्धि और भुवन यक्ष साधना में अभी तक आपने भाग 4 तक के पड़ा है और आप अभी तक जान चुके हैं कि किस प्रकार से भुवन यक्ष पृथ्वी पर आते हैं और अपनी शक्ति का परिचय देते हुए अपनी मृत्यु को टालने के लिए एक पंडित जी होते हैं नंदकिशोर जी उनकी हत्या कर देते हैं उसके बाद उनके परिवार के भी पीछे पड़ जाते हैं

और उनका भी वध करने की वह कोशिश करते हैं उनके बाद उनका पुत्र उनकी कहानी को आगे संभालता है किस प्रकार से जब भास्कर जब बड़ा होने लगता है तो उसे तंत्र सिखाने के लिए देवी मिलती है और वह उन्हें तंत्र सिखाती है इसके बाद भास्कर को सारा ज्ञान हो जाता है और भास्कर इस बात के लिए तैयार हो जाता है किस प्रकार से वह उन यक्षों का वध करेगा उनमें से वह एक यक्ष का वध वह कर भी देता है और महल की ओर प्रस्थान भी करता है जहां पर उसे अन्य यक्षों को मारना है उनसे बदला लेना है वहां उसकी मुलाकात एक सुंदर कन्या से होती है और वह कन्या उसे चित्र दिखाती है चित्र में उसके पिता भी नजर आते हैं

आप जानते हैं आगे क्या हुआ इस प्रकार से जब उस कन्या ने भास्कर को उनके पिता के चित्र के साथ सरदार के चित्र को दिखाया तो भास्कर ने पूछा यह कौन है वह कन्या मुस्कुराते हुए कहती है कि यह मेरे पिता है जो आपके पिता के साथ खड़े हैं यह मेरे पिता सरदार है और इस समय राजा की सेवा में नियुक्त है यह तब भी नियुक्त थे जब आपका जन्म हुआ था आपकी रक्षा यह नहीं कर पाए इस कारण इनको बहुत बड़ा दुख है और यह कहानी मुझे उन्होंने बताई हुई है इसी कारण से मैं आपको पहचान गए आपके हृदय में कवच स्थित है मैं यह जानती हूं और इसी कवच के कारण आपके अंदर एक तेज है जो सामान्य मनुष्य से आपको अलग करता है

इसी कारण से आपको पहचानना आसान है लेकिन आप अपने लक्ष्य में इतनी आसानी से सफल नहीं होंगे भास्कर कहता है मुझे सफल हुए बिना और कोई चैन नहीं आने वाला है किसी भी प्रकार से मैं उन यक्षों का वध करके अपने पिता की मृत्यु का बदला लूंगा इस पर कन्या कहती है लेकिन समस्या यह नहीं है समस्या यह है कि अगर आपको यह नहीं पता होगा कि वह गोपनीय त्रिशूल कहां पर स्थित है तब तक आप उसका बात नहीं कर पाएंगे यह बात आपकी मां को आपके पिता ने बताई थी और उन्होंने सरदार जी को और जिसके कारण मुझे भी मालूम है इसलिए सबसे पहले आपको त्रिशूल ढूंढना होगा इस पर भास्कर ने कहा किस प्रकार से कोई यक्ष अपनी ही चीज को बताएगा यह तो संभव ही नहीं है इसके लिए कोई ना कोई मार्ग बनाना पड़ेगा तब उस सुंदर सी कन्या ने जो सरदार की पुत्री है

एक मार्ग सुझाया भास्कर को भास्कर ने कहा अवश्य ही वह इस मार्ग पर चलूंगा अगले ही दिन वहां पर एक हाथी का विशालकाय का हमला हो जाता है नगर के लोग त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे होते हैं इसी दौरान वहां पर राजा की सेना भी ओ साथी को कोशिश करते हैं और वह विशालकाय हाथी महल पर हमला करने चला आ रहा था राजा के सिपाही भी उसे नहीं रोक पाते हैं राजा सोचता है कि अब मुझे भुवन को यक्ष को पुकारना होगा और उनकी पूजा करनी होगी

तभी यह हाथी रुकेगा वरना यह सभी लोगों को मार डालेगा दोड़ता हुआ वह हाथी राजमहल में घुस जाता है और राज कक्ष की ओर बढ़ने लगता है कोई भी हाथी का सामना नहीं कर पाता है क्योंकि हाथी भी बहुत ही ज्यादा बलवान था शरीर पर भी उसके कई जगह लोहा बंधा हुआ था जैसे कि राजाओं के हाथी हुआ करते हैं उसको रोकने का सामर्थ किसी में नहीं थी और तभी वहां पर भास्कर आ जाता है और उसके पैर को पकड़ लेता है आप ही आगे नहीं बढ़ पाता यह देखकर सारी राज्यसभा आश्चर्यचकित रह जाती है अगले ही पल भास्कर जोरदार प्रहार उस हाथी की पीठ पर करता है

उछल कर के और हाथी धराशाई होकर के एक और लुढ़क करके गिर जाता है इतनी अधिक शक्ति देख कर के राजा ताली बजाने लगता है और कहता है यह बलवान व्यक्ति कौन है भास्कर कहता है मैं एक साधारण सा व्यक्ति हूं बस मेरे पास कुछ छोटी मोटी दिया है मैं चाहता था कि मैं आपकी सेवा में रहू राजा कहता है तुरंत ही इसे सेनानायक का पद दिया जाए मैं तुमसे बहुत प्रभावित हूं राजा बड़ा ही खुश था वह कुटिल व्यक्ति जान गया था

कि उसे एक बार फिर से एक शक्तिशाली मनुष्य की सेवा प्राप्त हो रही है इधर भुवन भी पूरी तरह से संतुष्ट हुआ अपने राज्य महल में यक्ष रूप में बैठा हुआ था उस तक बात पहुंचती है तो वह भी खुश हो जाता है कहता है अवश्य ही इस तरह के व्यक्तियों की तुम्हें अपनी सेना में होना चाहिए सामने उस व्यक्ति को देख कर के भुवन कहता है कि यही व्यक्ति है क्या भास्कर तुरंत ही चरण पकड़ लेता है भुवन के पैरों को छूते हुए कहता है आज मेरी तपस्या सफल रही स्वयं भुवन देवता यक्ष महाराज ओ मैंने साक्षात अपने सामने देखा है

भुवन यक्ष उसकी बात सुनकर बहुत प्रसन्न और खुश होता है और कहता है कि एक सच्चा भक्त उसे मिला है भुवन कहता है इतने से काम नहीं चलेगा तुम्हें मेरे दिए गए मंत्र का जाप करना होगा और हवन भी करना होगा तभी मैं पसंद होता हूं और तभी मैं सब कुछ देता हूं जो तुम धन-संपत्ति सभी प्रकार के सुख मैं देने में सक्षम हूं भास्कर चरणों में गिरा और कहता है प्रभु मेरा तो स्वप्न ही है आपकी सेवा करना मैं राजा की सेवा करते हुए आप की भक्ति करना चाहता हूं इस पर भुवन बहुत ही प्रसन्न होता है और कहता है कि यह पहला व्यक्ति है जो स्वेच्छा से मुझे अपना स्वामी मान रहा है मैं इससे बहुत प्रसन्न हूं राजा भी तुरंत उसे सेनानायक का पद दे देता है

भास्कर इधर-उधर घूमता हुआ महल के एक और जहां निवास है वहां की ओर जा रहा था तभी उसे खिड़की पर खड़ी हुई एक बहुत ही सुंदर कन्या दिखाई देती है उसे देख कर के वह कहता है कि इतनी अद्भुत सुंदरी जो मेरी मित्र कन्या सरदार की बेटी से मिला था उससे भी कई गुना ज्यादा सुंदर है एक बार फिर से उस लड़की को देखने की चाह में वह उस निवास में घुस जाता है वह कन्या उसे देखकर स्तब्ध रह जाती है उसकी वीरता के किस्से उसने सुने थे जिससे वह पहले से ही उसे प्रभावित थी वह सुंदर सी कन्या कहती है

मैं राजा की पुत्री हूं इस पर भास्कर कहता है आपसे मुझे प्रेम हो गया है पहली ही नजर में आपको देख कर के आपसे प्रेम हो गया है वह कहती है ठीक है मैं तुमसे गंधर्व विवाह करने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरी भी कुछ शर्ते हैं तुम आज के बाद किसी भी व्यक्ति को हमारे बारे में नहीं बताओगे भुवन यक्ष को भी आपकी बातें पता नहीं चलनी चाहिए राजा को भी आपकी बातें पता नहीं चलनी चाहिए भास्कर कहता है यह बिल्कुल सही है मैं आपकी हर बात मानने को तैयार हूं उसने कहा ठीक है दोनों जाकर के मंदिर में विवाह कर लेते हैं और विवाह के बाद वह अपनी सुहागरात मनाने के लिए महल का चयन करते हैं वहां जाकर के कन्या जैसे ही भास्कर का चुंबन लेती है तुरंत ही उसकी पीठ में छुरा भोंक देती है घायल भास्कर उसे धक्का देता है और वहां से भागता है उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया उधर वह कन्या तुरंत आदेश देती है

कि उसे मार डालो उसके पीछे सैनिक पड़ जाते हैं भास्कर किसी प्रकार नदी में कूदकर अपनी जान बचाता है पानी में तैरता हुआ शरीर से बहते हुए खून से वह उसी मंदिर में पहुंचता है जिस में एक बार बचपन में जब वह नवजात था उसकी मां ने मंदिर में उसकी रक्षा की थी वह उसी मंदिर में जाकर के पहुंच जाता है और सैनिक वहीं रुक जाते हैं आखिर सैनिक क्यों रुक गए उसे समझ में नहीं आता है तभी वहां पर चंडी योगिनी प्रकट हो जाती है और उसे ठीक करती है उसकी पीठ पर अपना हाथ रख कर के घाव को भर देती है और उन्हें कहती है जिस राजा की कन्या से तुमने विवाह किया वह एक ही यक्षिणी थी

और उस यक्षिणी ने तुम्हें मारने की कोशिश इसलिए की क्योंकि विवाह के दौरान जब उसने तुम्हारा चुंबन लिया उस वक्त सारे रहस्य को उसने जान लिया और वहीं से उसने यह भी पता कर लिया कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है वह सुरक्षा के लिए भुवन के लिए नियुक्त हुई थी और यह बात कोई नहीं जानता भुवन को तुम पर पहले ही शक हो गया था कारण की इतना बलवान व्यक्ति नहीं होता है कि वह किसी हाथी को एक मुट्ठी से बेहोश कर सके इसीलिए वह सारी बातें जानकर के तुम्हें मरवाने के लिए ही यह षड्यंत्र रचा था और तुम्हारा कवच इसलिए कार्य नहीं किया क्योंकि तुमने कवच पहने पहने संभोग करने की अपनी स्वीकृति प्रदान की थी किसी भी प्रकार की शुभ चीजों को धारण करके कोई गलत कार्य नहीं किया जा सकता है

उसे तुम्हें शरीर से उतारना होता अगर तुम कवच को उतारते तो भी तुम मारे जाते और अगर तुमने नहीं उतारा है तो भी इसकी शक्तियां क्षीण हो गई इसी कारण से ऐसा हुआ इसीलिए उसने जब तुम्हें चाकू से प्रहार किया तो वह चाकू तुम्हें घायल कर गया देवीय चीजें हमेशा तभी तक सुरक्षा करती है जब तक तुम अपना ब्रह्मचारी नहीं तोड़ते हो इस पर दुखी होकर भास्कर ने कहा मुझसे गलती हो गई है दीदी मैं आपकी अब सानिध्य में ही आगे की योजना बनाना चाहता हूं मुझे मार्ग बताइए इस पर तुरंत ही चंडी योगिनी ने कहा मैं तुम्हें दर्पण विद्या देती हूं

इस दर्पण विद्या में तुम देखो अपने कवच को रखो साथ ही साथ अपनी पत्नी का ध्यान करो तुम्हें सब कुछ नजर आएगा और वह जब उसमें देखता है तो उसे गुफा का दृश्य दिखाई देता है जहां अंदर त्रिशूल गड़ा हुआ है यह देखकर वह आश्चर्यचकित हो जाता है और सोचता है कि दीदी किस प्रकार से यह रहस्य आपको पता चला और किस प्रकार के मैं यह जान पा रहा हूं वह कहती है कि तुमने उस सुंदर यक्षिणी से विवाह किया विवाह के बाद जब तुम दोनों जुड़ गए जुड़ने की वजह से जब उसने तुमसे चुंबन लिया और उसने तुम्हारी सारी बातें जान ली

इसी कारण से तुम्हारे अंदर भी उसके सारे राज आ गए हैं और वह यक्षिणी वहां पर विधमान है उस त्रिशूल की रक्षा सुरक्षा कर रही है जा करके उसका वध करो हालांकि वह तुम्हारी पत्नी है लेकिन ऐसी पत्नी का कोई लाभ नहीं जो तुम्हें ही मार डालना चाहती हो आज्ञा पाकर वह तुरंत ही भास्कर उस और बढ़ गया भास्कर ने कवच को तुरंत ही धारण किया और बताए हुए गोपनीय मंत्र के प्रयोग के माध्यम से एक बार फिर से अपने कवच को जागृत कर लिया भास्कर ने द्वार पर खड़ी हुई अपनी उस पत्नी को देख कर के प्रियतमा बाणं का प्रयोग किया प्रियतमा बाणं मे अपने रक्त से अग्रभाग को शक्ति माध्यम से चलाया जाता है उस बाणं के लगते ही तुरंत ही मृत्यु को वह यक्षिणी प्राप्त हो गई

अब अगले घूंसक बाणं का प्रयोग करके उस द्वार को तोड़ दिया जमीन के अंदर जिसके अंदर से गुफा का मार्ग जाता था अंदर जाकर भास्कर ने त्रिशूल को देखा मां दुर्गा की उपासना में सिद्ध कवच और उनके मंत्रों का जाप किया और त्रिशूल लेकर के राजा के महल की ओर चल पड़ा वहां पर जाकर के उसने त्रिशूल को अपनी अदृश्य शक्ति से गायब कर दिया और भुवन यक्ष का तपस्या और भजन करने लगा हवन कंप्लीट करते ही तुरंत ही वहां पर भुवन यक्ष का प्रकृटीकरण होता है भुवन प्रकट हो जाता है और कहता है क्या इच्छा है वर मांगो मैं तुम्हें वर अवश्य दूंगा

तो इस पर भास्कर कहता है कि मैं अपने पास एक गोपनीय शक्ति रखे हुए हूं मैं जिस पर भी उसका प्रयोग करूं वह उस शक्ति से बचने का प्रयास ना हो इस पर भुवन कहता है अवश्य मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम जिस 20 शक्ति का प्रयोग तुम जिस पर करोगे वह उससे बचने की कोशिश नहीं करेगा इस पर खुश होकर के भास्कर कहता है अब मैं आप का वध करना चाहता हूं यह सुनकर के भुवन कहता है ओह तो तूने अपनी वास्तविकता जान ली है

जिस प्रकार मैंने तेरे पिता का वध किया था अब तेरा भी वध कर दूंगा अपने अस्त्र शस्त्रों को भुवन निकाल लेता है और अपनी सबसे प्रचंड शक्ति यक्ष मंत्र का प्रयोग करता है भुवन उस शक्ति का प्रयोग करके भास्कर को घायल कर देता है लेकिन तुरंत ही भास्कर का घाव भर जाता है कारण कि उसने कवच धारण कर रखा था भास्कर कहता है कि मैं ठीक कैसे हो गया और आखिर मुझे इसकी शक्ति ने घायल कैसे कर दिया इस पर चंडी योगिनी उनके कान में प्रकट होकर के कहती है इसलिए क्योंकि तुम अभी भी तुम्हारे अंदर कुछ अंश तुम्हारी पत्नी का विद्वान है जिसके साथ तुम ने विवाह किया था इसी कारण से तुम्हें घायल होना पड़ा

अन्यथा इसकी शक्ति का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अब मां दुर्गा का आवाहन करके उनके मंत्रों का जाप करते हुए त्रिशूल को प्रकट करके इस के ऊपर चला दो भास्कर मां भगवती जगदंबा मां दुर्गा का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करता है अपनी शक्ति उस त्रिशूल पर धारण करें जागृत करें और त्रिशूल वहां पर तुरंत ही प्रकट हो जाता है भुवन भागने की कोशिश करता है लेकिन तभी भास्कर उसे कहता है आपने मुझे वरदान दिया था आप यहां से भाग नहीं सकते भुवन कहता है वरदान की सारी कहानी मुझे मूर्ख बनाने के लिए थी

मैं तेरी बात नहीं सुनता और वह वहां से भागने लगता है अपने ही वरदान को झूठा सिद्ध करने के लिए वह वहां से दौड़ने लगता है लेकिन भास्कर कहता है अब संसार की कोई शक्ति तुम्हें नहीं बचा सकती है मैं अपने पिता का बदला लेने वाला हूं और वह त्रिशूल उठाता है मां जगदंबा के मंत्रों को पढ़ते हुए और त्रिशूल से कहता है कि हे त्रिशूल अपने लक्ष्य को भेदित करो चाहे त्रिलोकी में वह कहीं भी वह शक्ति वह यक्ष भागे आप उसको नष्ट करके ही वापस आए यह कहते हुए वह त्रिशूल का प्रयोग कर देता है अद्भुत विद्या का प्रयोग करके तुरंत ही भुवन यक्ष लोक पहुंच जाता है

लेकिन त्रिशूल वहां भी प्रकट हो जाता है और उस त्रिशूल के तेज के आगे उसे कुछ भी दिखना बंद हो जाता है त्रिशूल उसकी छाती को चीरता हुआ उसको नष्ट कर देता है इस प्रकार से भुवन एक्स का अंत होता है वहां पर बचे हुए सारे यक्ष अब भास्कर पर हमला कर देते हैं भास्कर अपने दिव्य बाणों का प्रयोग करके उन सब यक्षों का नाश कर देता है किसी भी यक्ष की कोई भी शक्ति उसके शरीर को छू भी नहीं पाती है कारण उसने मां जगदंबा के उस दुर्लभतम कवच को धारण कर रखा है इसी कारण से उसे कुछ नहीं होता है तभी वहां पर माता चंडी योगिनी प्रसन्न होकर प्रकट हो जाती हैं और कहती है तुम्हारा कार्य सिद्ध हुआ है इसी के साथ में मैं तुम्हें एक छोटी सी मुलाकात करवाती हूं तभी वहां पर नंदकिशोर जी की आत्मा प्रकट हो जाती है

अपने पिता को देखकर के भास्कर बहुत ज्यादा खुश होता है और कहता है कि पिता आप कुशल है उसका पिता कहता है हां मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी मां की भक्ति करने की वजह से यद्यपि मेरा वध कर दिया गया था लेकिन फिर भी मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं जीवन मरण तो लगा रहता है लेकिन मां की भक्ति करने के कारण में स्वर्ग मैं अच्छे से निवास कर रहा हूं सिर्फ एक ही इच्छा मेरी रह गई थी कि मेरी मुक्ति तभी होगी जब मैं स्वयं इस के हाथों मारा गया और उसकी मृत्यु देख सकूं आज तुमने वह कार्य संपन्न किया है

मां की कृपा से और देवी चंडी योगिनी की कृपा से तुमने इस कार्य को संपन्न कर दिया है मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं लेकिन मैं तुम्हारे अंदर किसी तरह का कोई घमंड पैदा ना हो जैसा मेरे अंदर पैदा हो गया जिसके कारण मुझे मेरी मृत्यु हो गई इसलिए इस कवच को धरती में ऐसी जगह छुपा दो जहां से इसे कोई ना निकाल पाए खुश होकर के भास्कर कवच को धरती में एक ऐसी जगह पर प्रतिस्थापित कर देते हैं जहां से कोई भी उस दुर्लभतम कवच को नहीं निकाल सकता है आखिर उन्होंने उस कवच को किस जगह गाढ़ा है यह नहीं आज तक पता चला लेकिन इधर भास्कर के आगे राजा झुक कर उसे अपना सारा राज्यपाठ सौंप देता है

और जंगल में तपस्या करने चला जाता है क्योंकि उसे आभास हो जाता है कि जीवन में संन्यास लेने का समय उसका आ चुका है और उसने बहुत गलतियां की है जीवन में उसने एक यक्ष को अभी तक पूजा था अब वह मां जगदंबा की भक्ति करने के लिए नगर से बाहर निकल जाता है और स्वयं अपना राजपाठ भास्कर को सौंप देता है इस प्रकार इस कहानी का अंत होता है अब वह कवच दुर्लभतम कवच कहां पर था और किस स्थान पर छुपाया गया आज तक किसी को नहीं पता है आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद

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