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दुर्गा सप्तशती पाठ से माता चामुंडा के दुर्लभ दर्शन विधि अनुभव

दुर्गा सप्तशती पाठ से माता चामुंडा के दुर्लभ दर्शन विधि अनुभव

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग माता की बीजात्मक दुर्गा सप्तशती के पाठ के अनुभव को जानेंगे और गुरु से संबंधित उनके दर्शन संबंधित अनुभव को भी जानेंगे। यह मेरी पुस्तक श्री दुर्गा सप्तशती टीका भाग 1 का ही अनुभव है और भेजने वाले भी मेरे प्रिय शिष्य हैं तो चलिए पढ़ते हैं। इनके पत्र को और जानते हैं इस अनुभव के विषय में ।

प्रणाम, गुरुजी, चरण स्पर्श, जय माता पराशक्ति, बीजात्मक दुर्गा सप्तशती, पाठ, अनुभव और गुरु दर्शन अनुभव प्रणाम, गुरुजी, चरण स्पर्श मैं आपका शिष्य हूं। कृपया गुरुदेव मेरी सारी जानकारी को गुप्त रखें। गुरुदेव आज मैं आपको मेरे द्वारा किया गया बीजात्मक दुर्गा सप्तशती का अनुभव भेज रहा हूं जो कि मैंने आपके द्वारा ही प्रकाशित की हुई श्री दुर्गा सप्तशती टीका भाग 1 के पाठ से किया था। यह दुर्गा सप्तशती का पाठ का विचार मुझे पिछले साल चैत्र की नवरात्रि को आया था क्योंकि इस दौरान गुरुदेव आपने धर्म रहस्य मेंबर्स वीडियो में इसका पाठ करने का विधि विधान बताया था जो विधि इतनी सरल थी कि जिसमें कि 7 दिनों में सप्तशती का एक पाठ पूरा करना होता है। इससे मेरी भी इच्छा हो गई कि मैं भी गुरुदेव द्वारा प्रकाशित की गई। श्री बीजात्मक दुर्गा सप्तशती का पाठ करु। इस विषय में मैंने गुरुदेव आपसे मार्गदर्शन भी नहीं आता। ईमेल के द्वारा और बड़ी सरलता से आपने मुझे इस बारे में जानकारी भी प्रदान की थी। अब! चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई थी। मैं साधना की सब व्यवस्था करने लगा जिसमें मुझे सरलता से उपलब्ध हो गया और प्रथम दिन ही साधना से पूर्वक घर में सब मेरे पाठ करने की विरोध में हो जाते हैं।

पर मैं सब को समझाता हूं कि यह माता की साधना है। इसमें कोई डरने या नुकसान वाली बात नहीं है। फिर रात में मैं नहा धोकर साधना के लिए बैठ जाता हूं। इसमें सबसे सरल बात मुझे यह लगी कि गुरुदेव द्वारा बताई गई विधि में शुरुआत से पाठ शुरू करना है अंतिम तक करना है। इसमें सबसे पहले 6 अंगों का पाठ पूर्ण करता हूं और फिर विशेष पूजन करके पाठ शुरू करता है। प्रथम दिन ही पाठ के दौरान मुझे महसूस होने लगा कि मेरे रूम में मेरे पीछे कोई बड़ी सी परछाई काली रंग की साड़ी पहन के घूम रही। पर पाठ के द्वारा मुझे किसी भी प्रकार का कोई भय या डर नहीं लगा। अभी मैं तो अत्यंत खुश हो जाता हूं कि मेरे पाठ को सुनने के लिए कोई आया तो है फिर इस प्रकार पाठ करते हुए 4 दिन आ गया था। इसमें फिर से पाठ के दौरान मेरे पीछे एक काली साड़ी में कोई परछाई फिरने लगी और इस दिन के पाठ के दौरान जब सातवां अध्याय का पाठ शुरू किया तो पता नहीं बहुत ही तीव्र ऊर्जा महसूस होने लगी और हर पाठ के हर श्लोक का पाठ करते ही एक अलग ही खुशी और प्रसन्नता मिलने लगती थी। तभी अचानक से बात करते-करते मुझे मेरे मानस पटल पर दृश्य दिखने लगा।

इसमें माता चामुंडा का ध्यान आने लगा। माता पूर्ण काली। स्वरूपा हाथ में तलवार और पाश लिए हुए नर मुंडो की माला धारण किए हुए उनका शरीर बिना मांस का पूरे शरीर में हड्डियों का ही उनका कद बहुत ही बड़ा था। उनकी आंखें लाल थी। उनके मुंह से बड़ी सी जीभ निकल रखी थी और अत्यंत क्रोध में थी। इस तरीके से माता चामुंडा का रूप ध्यान हुआ। मुझे मानस पटल पर और माता की में कुछ क्षणों में ही शुंभ और निशुंभ की सेना जिसमें चंड और मुंड प्रधान थे। उस पूरी सेना को माता अपने हाथों से खाने लगी और पूरे चारों और उन्होंने विध्वंस कर दिया। विध्वंस वहां होने लगा। माता चामुंडा सेना में आए हुए हाथी घोड़े को भी अपने हाथों से उठाकर खाने लगी। और माता की एक ही प्रहार में चंड और मुंड का शीश उन्होंने काट दिया। इतना देखते ही मेरा अचानक से अपने पाठ पर ध्यान आ जाता है और मैं बचा हुआ पाठ करने लगता हूं। इसी दिन मैंने माता के समक्ष रखे हुए अनार जिसका मैं पाठ करने के बाद बलि चढ़ाता था। वह अपने आप ही फट गया था और उसमें से रस निकल रहा था।

यह देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता और खुशी होती है। इसी प्रकार 7 दिनों तक पाठ करता था। पर पाठ के पश्चात माता परा शक्ति मंत्र योग दर्शन को पढता था क्योंकि गुरु जी ने इसके लिए विशेष रूप से कहा था कि हर दिन पाठ के बाद इसको पढ़ना है तो अंतिम दिन जब मैं मां परा शक्ति मंत्र योग दर्शन का पाठ कर रहा था। तब मेरी आंखों से अपने आप ही आंसू आने लगते हैं। मन बड़ा भावविभोर हो जाता है क्योंकि इसने मुझे बहुत ही रहस्यमई और गुप्त ज्ञान दिया गया है जो कि पढ़ते ही हमें अपनी वास्तविकता का पता चलता है कि हम कितने जन्मों से इस जीवन मृत्यु के बंधन में फंसे हुए हैं। हमारा मूल लक्ष्य हम सब भूल चुके हैं जो कि मोक्ष की प्राप्ति है इसी प्रकार मैंने गुरुदेव द्वारा प्रकाशित दुर्गा सप्तशती का यह पाठ संपन्न। किया और माता चामुंडा। मानसिक पटल दर्शन कर पाया। यह कैसे हुआ मुझे कुछ भी पता नहीं चला। पर जब माता के दर्शन हुए पाठ के दौरान उसके बाद जब तक पाठ पूर्ण नहीं हुआ तब तक मेरे पूरे शरीर में कंपन रहने लगा था। एक और विशेष बात जब से पाठ शुरू किया था तब से पाठ करते वक्त पायल की आवाज आना तो नॉर्मल सी बात हो गई थी और इस पाठ के संपन्न होते ही जीवन में बहुत ही मुश्किल आई थी।

पर माता की कृपा से वह सब कुछ दूर हो गया। इस पाठ के बाद कुछ महीनों बाद मुझे माता ललिता, त्रिपुर सुंदरी और माता मातंगी के स्वप्न में साक्षात दर्शन हुए थे, जिसमें कि उनकी विशेष साधना का आदेश हुआ था तो इस अनुभव के माध्यम से मैं सबको यही कहना चाहता हूं कि। सबको अपने जीवन में माता भगवती के प्रति समर्पित होकर सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए और गुरुदेव द्वारा प्रकाशित की गई श्री दुर्गा सप्तशती टीका को अवश्य ही पढ़ना चाहिए क्योंकि उसमें जो पराशक्ति मंत्र का दर्शन है, वह बहुत ही अद्भुत है। उसमें कई गुप्त रहस्य बताए गए हैं। गुरुदेव अब मैं इसी साल के महाशिवरात्रि के भगवान शिव जी के विशेष मंत्र के अनुष्ठान के घटित हुए अनुभव को बताना चाहता हूं यह। अनुष्ठान शिवजी के 1 मंत्र का था और विशेष कामना के लिए किया गया था। गुरुदेव जैसे ही मैं अनुष्ठान करने की सोचता हूं। वैसे ही रात में मुझे सपना आता है जिसमें कि मैं एक श्मशान जैसी जमीन में होता हूं। वहां एक कुटिया होती है जिसमें कि मैं किसी अघोरी के साथ हवन कर रहा होता हूं। तभी अघोरी से कोई गलती हो जाती है और वह एकदम से पागलों जैसा बर्ताव करने लगता है और वह हवन की जलती हुई लकड़ी को लेकर जमीन में मारने लगता है। तब मैं उसको शांत करने की कोशिश करता हूं तो वह लकड़ी से मुझे मारने लगता है।

तभी मैं उस कुटिया में से निकल कर बाहर आ जाता हूं। बाहर आते ही मैं अपने मामा के लड़के को देखता हूं जो कि मेरे साथ ही होता है। वह जमीन पर हमारे सोने की व्यवस्था करता है। पर मैं उसे कहता हूं कि जमीन पर नहीं सो सकते। नीचे बहुत ही कीड़े और सांप और बिच्छू है। तब वह एक जगह पर सोने की व्यवस्था करता है। मैं टहल रहा होता हूं तभी झाड़ियों में से एक बड़ी ही खूंखार बिल्ली इसकी लाल आंखें थी। बड़े-बड़े दांत और नाखून थे वह बड़े गुस्से से मेरे ऊपरहमला करने आती है तब जैसे ही मेरे नजदीक आती है। मुझ से डर कर फिर भाग जाती है और मेरे मामा का लड़का मेरी ही पीछे खड़ा होकर यह सब देख रहा होता है और मेरा स्वप्न भी टूट जाता है। तभी मैं बड़ी सोच में पड़ जाता हूं कि अनुष्ठान करना भी चाहिए या नहीं, क्योंकि इसकी सोच मात्र से ही ऐसा स्वप्न आ गया है और फिर गुरुदेव आपको ईमेल आईडी पर बताता हूं। ऐसा स्वप्न आया है तब आप कहते हैं कि जब जब इस प्रकार की शक्तियों को जगाया जाएगा तो परीक्षाएं तो अवश्य ही होंगी। फिर भी नही डरना शुरू करो और अनुष्ठान पूरा करने के बारे में सोचो। शिवरात्रि से अनुष्ठान शुरू भी मेरा हो जाता है। प्रथम दिन ही जाप करते करते माता को समर्पित किए हुए पुष्प का अपने आप का गिर जाना जिसमें एक विशेष बात यह हुई थी

कि जब भी मैं अपना जाप पूरा करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करता था तब मुझे रूम में एक बड़ा सा काला आदमी चलते दिखाई देता था। वह एक कोने में जाकर मेरे को बड़ी बड़ी आंखें करके घूरने लगता था। उसकी लाल आंखें बड़ी भयानक लगती थी पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं लगा, पर मैं अभिषेक करने पर ही ध्यान देने लगा। अभिषेक पूर्ण करके भगवान शिव को जाप समर्पित करके उठ जाता था हालांकि। काले आदमी के होने वाले अनुभव स्थान तीनों दिन पर। मुझे कुछ डर का अनुभव ही नहीं हुआ। इसके बजाय मुझे बड़ी प्रसन्नता और शांति की अनुभूति होती थी। अनुष्ठान पूरा करने के बाद जिस विशेष कामना के लिए किया गया था, वह भी अवश्य पूर्ण हुई होगी। गुरुदेव इस प्रकार की साधना चलती रहती थी पर गुरुदेव मुझे पिछले साल अक्टूबर या नवंबर में एक बहुत ही विशेष सपना आता है जिसमें कि मैं आपको देखता हूं।

आप एक बड़े से आसन पर बैठे हुए थे। आपके ही चारों तरफ से बड़े और आसन थे जिसके ऊपर आपके गुरु जी भगत जी भी बैठे थे और हम सब शिष्य नीचे जमीन पर बैठे हुए थे। गुरुदेव तभी आपके गुरु जी भगत जी कहते हैं कि आप ऊर्जा वाले लोग खड़े हो जाइए। इसमें कौन सी ऊर्जा की बात की थी, वह मैं भूल गया, पर उन्होंने ऐसा ही कहा था तब मैं और एक गुरु भाई खड़े हो जाते हैं। फिर मैं आपके सामने आता हूं। आप को चरण स्पर्श करता हूं। आप मुस्कुराते हैं। इसके बाद मैं आपके गुरु जी भगत जी के पास जाता हूं और उनको भी चरण स्पर्श करता हूं। तभी वह मुझे कहते हैं कि तुमको एक साधना करनी है। ऐसा ही वाकया वह तीन से चार बार बोलते हैं। फिर अंतिम में वे कहते हैं। इससे भी पहले तुम्हें कवच की साधना करनी है और फिर में उनकी आज्ञा मानते हुए हां कहकर चरण स्पर्श करता हूं। पर फिर गुरुदेव आप के समीप चरणों में आकर बैठ जाता हूं। इतने में ही मेरा स्वप्न टूट जाता है। उस दिन मुझे आपके साथ आपके गुरुदेव जी के दिव्य दुर्लभ दर्शन होते हैं।

मैं अपने आपको बड़ा भाग्यशाली मानता हूं कि मैंने अपने गुरुदेव के दर्शन किए और साथ में उनके भी पर गुरुदेव इसमें मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि कुछ समय पहले माता ललिता ने भी गुरुदेव के जैसे ही वाक्य कहे थे कि मुझे एक साधना करनी है, पर पता नहीं चल सका कि कौन सी साधना करनी है। गुरुदेव ऐसे ही मैंने आपके सह परिवार सहित भी कई बार दर्शन कर चुका हूं, जिसमें मैंने सक्षम, शांभवी, गुरु माता और आपके माता पिता जी सब के दर्शन किए हैं और भी बहुत भविष्य के सांकेतिक रूप से दर्शन होते रहते हैं। गुरु जी मेरे कुछ प्रश्न है कृपया मार्गदर्शन करें। गुरुजी इस अनुभव में जब मैं सप्तशती का पाठ कर रहा था तब माता चामुंडा के दर्शन होना प्रचंड रूप में पाठ के दौरान काली साड़ी में किसी शक्ति का आभास।

अनार का फट जाने का मतलब क्या हो सकता है। इसके बाद गुरुदेव महाशिवरात्रि वाले विशेष अनुष्ठान में स्वप्न में आए थे। इसके बारे में अवश्य बताइए। इस विषय में स्थान जिस कार्य के लिए किया गया वह सफल हुआ या नहीं। आप सांकेतिक रूप में अवश्य बताइए गुरुदेव आपके एवं गुरु जी भगत जी के दर्शन होना। आपके गुरु जी भगत जी के द्वारा साधना के लिए कहना इसका क्या मतलब हो सकता है। इससे पहले भी गुरुदेव माता ने मुझे एक साधना करने को कहा था। पर इस बार गुरुदेव ने भी साधना करने को कहा। यह कौन सी साधना हो सकती है? कृपया मार्गदर्शन करें। चरण स्पर्श गुरुदेव जय माता पराशक्ति।

सन्देश– देखिए, आपके प्रश्नों से मैं शुरू करता हूं। आपने पूछा है कि काली साड़ी में कौन सी शक्ति थी तो? काली साड़ी में माता जो काली है, उन्हीं की योगिनी शक्तियां आती रहती है और जब भी हम माता से संबंधित कोई अवस्था में पूजा करते हैं तो उसे देखने के लिए कभी कभी तो शक्तियां साधक की परीक्षा लेने के लिए उस पर नजर रखने के लिए इस प्रकार के स्वरूप योगनियाँ शक्तियां आती रहती है।

और माता चामुंडा के रूप में उन्होंने ही आपको उस दृश्य के दर्शन करवाएं जो कि सप्तशती में लिखा हुआ है। सातवां अध्याय भी माता को ही समर्पित है। इसी स्वरूप को समर्पित है। इसलिए? जैसे ही वह पाठ हो गया। अपने आप उन्होंने बलि को स्वीकार कर लिया क्योंकि आप उस चीज के लिए नए थे। तंत्र विद्या की गहराइयों को नहीं जानते। लेकिन जब देवी का कोई स्वरुप प्रसन्न होता है तो बलि स्वयं ले लेता है और अनार की बलि सात्विक बली है। माता के लिए जो दी जाती है उन्हें बहुत प्रिय है।
इस प्रकार महाशिवरात्रि वाले अनुष्ठान में भैरव जी के आपको दर्शन हुए जो कि काले स्वरूप में आपको नजर आ रहे थे और रही बात अनुष्ठान सफल होने की तो निश्चित रूप से वह सांकेतिक रूप से।

आंशिक रूप से सफल रहा है और समय के साथ में होता भी रहेगा। क्योंकि हर एक चीज की पूर्ण सफलता समय पर निर्धारित होती है। बाकी कृपा तो मिलने लगती है। रही बात मेरे और गुरु जी भगत जी के दर्शन होने के बहुत सौभाग्य की बात है और इससे आपको विशेष कृपा मिल रही है। गुरु मंडल के द्वारा गुरु शक्ति के द्वारा इसीलिए आप शायद मेरे प्रिय भी हैं। क्योंकि निश्छल मन गुरु के प्रति जो भी व्यक्ति पूरा समर्पण रखता है उस बात को गुरु बहुत जल्दी समझ जाता है और जो भी पूरे समर्पण के भाव के साथ अपने गुरु के प्रति समर्पित रहता है उसे विशेष कृपा मिलती है और वह गुरु चाहे उसे सब कुछ दे या ना दे लेकिन जो पीछे गुरु मंडल काम कर रहा है जो प्रणाली भगवान शिव ने बनाई है तो जितने भी उस परंपरा में अभी तक गुरु हुए हैं। सब की कृपा उसके ऊपर होती है।

इसीलिए आपसे कई ज्यादा लोग तपस्या किए होंगे। कई ज्यादा लोगों ने मंत्र जाप किए हुए हैं, लेकिन आप से मेरा जुड़ा सबसे ज्यादा क्यों है? इसका कारण भी यही है यह समर्पण जब भी हम गुरु के प्रति निष्ठा भाव से बिना किसी स्वार्थ के कि मुझे क्या प्राप्त होगा और कितना समय लग जाएगा। इसकी चिंता ना करते हुए कोई भी शिष्य अपने गुरु के प्रति समर्पित रहता है तो उसे अपने आप ही उसे सब कुछ प्राप्त होता जाता है। उसकी जिम्मेदारियां बढ़ती चली जाती है। प्रगति भी माता पराशक्ति प्रकृति के ही रूप में आपको जिम्मेदारी ज्यादा तभी देती है जब वह देखती है कि यह व्यक्ति से योग्य है कि नहीं। आज हम लोग एक ट्रस्ट के रूप में काम करना शुरू कर चुके हैं। सोचिए साधना से हम अलग जाते हुए ट्रस्ट और सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य क्यों करने लगे हैं क्योंकि माता की यही इच्छा है कलयुग होने की वजह से। सिद्धियों की प्राप्ति सभी को नहीं हो सकती लेकिन? इस प्रकृति का इस समाज का इस राष्ट्र का कल्याण तो हमारे हाथों में है। इससे जो महान पुण्य प्राप्त होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शायद इसी वजह से उन्होंने हमें भौतिक जीवन की ओर मोड़ा है।

ठीक वैसे ही जैसे कि अगर आप इतिहास उठाकर देखें तो वहां भी जब बहुत ज्यादा संत तपस्या करते हैं। और तब उन्हें आत्म साक्षात्कार ज्ञान होता है तो वह साधना छोड़कर फिर धर्म प्रचार का कार्य करते हैं।महावीर स्वामी जैनधर्म का प्रचार करते हैं  बुद्ध जब पूरा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं साधना के द्वारा उसके बाद में धर्म प्रचार का कार्य वह करते हैं।

विभिन्न प्रकार के जितने भी बड़े साधु और संत हुए। सिद्धि और ज्ञान को पूर्ण प्राप्त करने के बाद मूल रहस्य को समझने के बाद अंततोगत्वा समाज की तरफ मुड़ जाते हैं। उन्हें ज्ञान प्रदान करते हैं और अपनी परंपरा और ज्ञान को आगे बढ़ाते हैं। समाज की सेवा में लगाते हैं। लगभग सभी संत यही कार्य करते हैं। तो आप सभी लोग शायद ट्रस्ट के माध्यम से मेरे माध्यम से जुड़कर यही सब करने के लिए आगे बढ़े हैं। यही आपकी नियति है शायद इसीलिए माता ने हम को चुना होगा और इस दिशा की ओर मोड़ा होगा।

आशा करता हूं कि आपको इनका अनुभव पसंद आया होगा। अगर यह वीडियो आपको अच्छा लगा है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें। आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां शक्ति।

 

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