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देवाल मंदिर की विषकन्या कथा भाग अंतिम

देवाल मंदिर की विषकन्या कथा भाग अंतिम

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की हमारी अभी तक की कहानी हमने जाना कि किस प्रकार से माधवी एक जो विषकन्या है । उसकी कहानी चल रही है और राजा ध्रुव कीर्ति उसका जो पिता है वह दोनों नगर में तो आ जाते हैं और भाल का वध भी जनता कर देती है । लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी की भाल ने अपनी तांत्रिक शक्तियां अपने नेवले में स्थापित कर दी थी । जो कि अगले दिन भयानक राक्षस का रूप लेकर के नगर पर हमला करने आने वाला होता है । माधवी का विवाह जिस व्यापारिक पुत्र से हुआ था । उसके साथ उसके शारीरिक संबंध बनने के कारण उसका शरीर नीला पड़ गया था और वह वहीं पर गिर कर बेहोश हो जाता है ।माधवी अपनी पूजा पाठ के माध्यम से नाग देवता को अपने पति का शरीर सोप देती है । और कहती है आपको इनकी रक्षा करनी होगी नाग देवता उसको अपने कुंडली में इस प्रकार से लपेट कर गायब हो जाते हैं । जैसे कि जीवो को माया लपेट लेती है । इसी प्रकार से वह वहां उसको लेकर के गायब हो जाते हैं । अब माधवी और राजा ध्रुव कीर्ति के सामने सबसे बड़ा सवाल था । अगले दिन का माधवी के गर्भ में यद्यपि उसकी संतान आ चुकी थी । और लेकिन अभी 9 महीने शेष थे । अगले दिन बहुत ही भयानक हमला होने वाला था इसकी सारी खबर राजा ध्रुव कीर्ति को उनके गुप्तचरो के द्वारा यह खबर मिल गई थी ।

क्योंकि जितनी देर भाल के सैनिक के रूप में वे लोग वहां स्थापित थे । वह सारी बातें भाल के मुंह से सुन चुके थे । भाल अगले दिन क्या करने वाला है राजा ध्रुव कीर्ति ने यह ढोल पिटवा दिया चारों तरफ से हमें यह नगर को छोड़कर के जाना होगा । हम सभी पास वाली पहाड़ी में जाकर के रहेंगे और अगले वर्ष ही इस नगर में आएंगे । राजा ध्रुव कीर्ति की बात को सुनकर के उस पूरे राज्य में एक हाहाकार सा मच गया । सब इस बात से भयभीत होने लगे कि हमें यह जगह छोड़नी होगी । राजा ध्रुव कीर्ति ने अपने सभी सैनिकों को कहा कि जितना भी अनाज इकट्ठा किया हुआ है वह सब पर्वतों की गुफाओं की तरफ ले चलो । और उन्हीं गुफाओं में हम लोग 1 वर्ष तक वास करेंगे । यह कहकर के सैनिकों ने किसानों की मदद से उस वर्ष की जितनी भी फसल हो गई थी । वह सारी बड़ी-बड़ी बेलगाड़ियों में इकट्ठा करके गुफाओं की तरफ ले जाने का प्रयास करने लगे । राज्य में जितना भी धन था जितना भी कोश था उसको भी गुफाओं में ले जाकर के रखवाया जाने लगा । इस प्रकार रात्रि तक पूरा नगर खाली हो चुका था अगले दिन जैसे ही भाल का विशालकाय वह नेवला राक्षस का रूप लेकर के नगर में प्रवेश करता है । तो एक भी मनुष्य वहां पर उसे दिखाई नहीं देता वह काफी देर तक हलचल मचा कर हर एक घर में घूमता है उड़ता है दौड़ता है और वहां से फिर चला जाता है ।

फिर अगले दिन आता है और वह यही करता रहता है क्योंकि उसके स्वामी ने उसे यही आदेश दिया था । इसी के कारण राजा ध्रुव कीर्ति अपने साथ माधवी को ले गए होते हैं  । क्योंकि उन्हें पता है कि माधवी का पुत्र ही केवल इस राक्षस का वध कर सकता है और कोई नहीं । और माधवी तो क्योंकि विषकन्या है इसलिए नो महीने बाद ही जब उसका पुत्र उत्पत्ति होगा । तभी कुछ संभव हो पाएगा ।इसलिए पूरे नगर के लोगों की सुरक्षा के लिए लिहाज से वहां पर सारे लोगों को गुफाओं की तरफ जाने का संकेत हुआ था । इस प्रकार से राजा ध्रुव कीर्ति गुफा के अंदर रहा करते थे । और उनकी प्रजा वहीं आसपास की छोटी-छोटी झोपड़ियां बनाकर के उनकी सहायता किया करती थी । इस प्रकार से 1 वर्ष तक के लिए उनके भोजन की व्यवस्था सभी जनता को देखनी थी । और जनता के लिए भी यह अवश्य था कि राजा ध्रुव कीर्ति समान भोजन का वितरण उनके लिए करते रहे । इस तरह से करते करते लगभग 1 वर्ष पूरी तरह से व्यतीत हो गया । 1 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद में अब समय आ रहा था जब माधवी को उसके पुत्र की उत्पत्ति का समय मिल चुका था । जल्दी ही माधवी के शरीर से एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ । और वह पुत्र बड़ा ही तेजस्वी और कीर्तिमान दिखने में था । राजा ध्रुव कीर्ति बहुत ही प्रसन्न हुए । क्योंकि पहली बार कोई ऐसी संतान उत्पन्न हुई थी जो उस नगर में अब शासन कर सकती थी । राजा ध्रुव कीर्ति ने माधवी से कहा कि अब आप इस पुत्र को एक विशेष रूप से संस्कारित करवाइए ।

इसकी शक्तियों को इखट्टा कीजिए । माधवी ने कहा इस बारे में मैं कुछ भी नहीं जानती हूं । और अब मेरे सामने अब कोई मार्ग नहीं है मार्ग केवल एक ही है कि मैं अपने जो नाग देवता है उनका आवाहन करूं । उस आवाहन के कारण से वही मुझे कोई मार्ग बताएंगे कि अब मेरे लिए कुछ संभव हो पाएगा । इस प्रकार माधवी रात्रि को तप करने बैठती है । और सुबह करीब 4:00 बजे के समय भोर का जब समय होता है उस वक्त नागराज देवता उन्हें दर्शन देते हैं । माधवी उनसे कहती है । हे प्रभु मैंने आपकी जिंदगी भर आराधना की है अब मुझे कोई वह मार्ग बताइए । जिससे उस राक्षस का वध हो सके । और इस प्रकार से माधवी को उनके वह नाग देवता एक विशेष प्रकार का गुप्त गोपनीय बात बताते हैं । साथ ही साथ वह कहते हैं कि मैंने तुम्हारे पति को अभी तक जीवित रखा है । वह बेहोश है लेकिन उसके विष को भी केवल तुम्हारा पुत्र ही दूर कर सकता है । इस प्रकार माधवी को वह गोपनीय विधि बताई जाती है । माधवी अपने पुत्र को एक विशेष प्रकार का रसायन खिला देती है । और उस रसायन के खाने के बाद में अचानक ही वो उस रसायन की उल्टी कर देता है । उस उल्टी से वहां पर छोटी-छोटी मिट्टी की बामिया सी बन जाती है । उस बामियों में से चमत्कारिक सर्प निकलते हैं । उस चमत्कारिक सर्पों के ऊपर मणिया लगी होती है । यह गोपनीय विधि नाग देवता तक ही बताई हुई थी । माधवी उन सभी सर्पों को अपने बाहो पर धारण करती है । कुछ सर्पों को अपने गले में पहन लेती है । और माधवी अब तैयार होती है कि उसे उस राक्षस का वध करना है । सुबह होते ही राजा ध्रुव कीर्ति कहते हैं के अब उस राक्षस का सामना करने का समय हो चुका है । हम सबको अब नगर की ओर बढ़ना चाहिए ।

और इस प्रकार एक बार फिर से राजा अपने पुराने महल और उन जगहों के लिए निकल पड़ता है । जो उसका कभी साम्राज्य थी । इस प्रकार व नगर में पहुंचकर के सभी व्यवस्था के रूप में सभी लोग वहां स्थापित हो जाते हैं । 1 वर्ष पुरानी सारी बातों को प्रजा जन याद करके बहुत ही खुश होने लगते हैं । लेकिन अब वह राक्षस को इस बात का इशारा मिल चुका होता है कि नगर में नगर जन जितने भी व्यक्ति थे वह सब वापस आ चुके हैं । इसलिए वह शक्ति है अब अगले दिन आकर के नगर में आकर के तबाही मचाने वाली थी । और अगले दिन हुआ भी इसी प्रकार से अगले दिन वह नगर में आ गया और भीषण रूप से गर्जना करने लगा । नगर द्वार पहुंचते ही नगर  द्वार को पूरी तरह से तोड़ दिया । लेकिन ठीक अपने सामने माधवी को खड़ा हुआ पाया । माधवी ने अपने गुप्त मंत्रों के द्वारा उन सर्पों को आकाश में फेंका । आकाश में फेंकने के कारण वह सभी सर्प दिव्य नील ज्योति से जलने लगे । अर्थात नीले रंग की चमकीली किरणों के रूप में वहां वह स्थापित हो गए । उस किरणों की असर से वह राक्षस अंदाजा हो गया उसे कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया । केवल ही केवल उसे हर जगह नीली चमक ही दिखाई पड़ रही थी । माधवी ने फिर अपने उस गोपनीय अंततोगत्वा उस आखरी सर्प को निकाला और उसको उस राक्षस के मुंह में प्रवेश करवा दिया । राक्षस के मुंह में प्रवेश करते ही वह सर्प बहुत तेजी से उसकी गले की नाल से होते हुए उसके पेट के अंदर प्रवेश कर गया । और पेट को फाड़ कर के बाहर की ओर आगे आ गया । इस प्रकार से वह कटीला सर्प जो हीरे की तरह से बना हुआ था । उस हीरे के स्वरूप शरीर वाले सर्प ने उसके शरीर को इस प्रकार से काट दिया ।

जिस प्रकार हीरा लोहे को भी काट देता है इस प्रकार से उसका शरीर कट करके वहां पर धराशाई हो गया । और सभी नगर जन वहां पर बाहर निकल आए और खुशी से नाचने कूदने लगे । उनके सामने ही वह महान विशालकाय राक्षस मारा गया था । और इसी के साथ भाल का सारा प्रपंच और वह जादुई शक्तियां नष्ट हो चुकी थी । इस प्रकार से अब माधवी प्रेम से भी हल हो कर एक बार फिर से अपने नाग देवता को अपने राजमहल में जाकर के पुकारने लगती है । नाग देवता एक बार फिर से वहां पर प्रकट होते हैं । नाग देवता लाडो देवता वहां पर जब उसके सामने आते हैं । तो वह अपने साथ तो वह अपने साथ उस व्यापारिक के पुत्र शरीर को भी लेकर आते हैं । और उसे किनारे पर रख कर के माधवी से कहते हैं । माधवी मैं तेरी बताई हुई गोपनीय विधि से अब तुम अपने पुत्र के माध्यम से अपने इस पति को जीवित कर सकती हो । साथ ही साथ तुम्हारे पुत्र की शक्तियों के कारण तुम्हारा पति भी विश पुरुष का रूप धारण कर लेगा । इस प्रकार से बताने पर नाग देवता के द्वारा माधवी अब उनके पास जाती है । और प्रेम पूर्वक उनके माथे पर चुंबन करती है । अपने पुत्र को उनके बिल्कुल वक्ष स्थल पर बैठा देती है और उनके हाथों की छोटी छोटी सी उंगलियों से जिनमें छोटे छोटे से नाखून आते हैं उनसे उनके शरीर पर बहुत ही लंबी चौड़ी खरोचे लगाती है ।

वह उन खरोचे के कारण अब माधवी के पुत्र का जहर उसके पिता के शरीर में जाने लगता है । और यहीं पर वह चमत्कार होता है । क्योंकि माधवी के शरीर का जो जहर था जो उसके शरीर में अभी तक व्याप्त था उसके शहर की काट उसके पुत्र के जहर के रूप में उसे मिलने लगती है । और शरीर में एक बार फिर से प्राण आने लगते हैं । धीरे-धीरे करके वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है और अपनी आंखें खोलता है तो अपनी छाती पर बैठे हुए एक छोटे से बालक जो बिल्कुल अभी नवजात है उसे देख कर के बहुत ही ज्यादा खुश होता है । और सारी बात समझ करके वह व्यापारिक पुत्र माधवी को बड़े प्रेम से देखता है और उसकी आंखों में आंसू होते हैं । माधवी की भी आंखों में आंसू आते हैं और वह अपने पति के पास आकर की कहती है आपके जैसा पति पाकर मैं धन्य हो गई । आपने अपने शरीर की भी चिंता नहीं की और मुझे प्राप्त करने के लिए अपने शरीर का भी बलिदान दे दिया । ऐसे पति को प्राप्त करना बड़े ही सौभाग्य की बात है । और मैं सदैव आपको वचन देती हूं कि संसार में । मैं आपकी पत्नी के रूप में विख्यात होंगी और कभी भी किसी भी पुरुष के बारे में मन में भी विचार नहीं लाऊंगी । क्योंकि ऐसा प्रेम ऐसा दिव्यतम प्रेम संसार में कहीं भी उपलब्ध नहीं है । माधवी की बात सुनकर के व्यापारिक पुत्र बहुत ही खुश होता है ।

राजा ध्रुव कीर्ति वहीं पर उपस्थित है राजा ध्रुव कीर्ति कहते हैं आज से तुम दोनों इस राज्य को संभालो और मेरे इस नाती को ही यहां का राजा बनाना चाहता हूं यही आगे चलकर मेरे वंश का उद्धार करेगा । और यद्यपि मेरे पास पुत्र नहीं है लेकिन मुझे पुत्र के रूप में यह मेरा नाती और मेरा दामाद प्राप्त हुआ है मैं इस बात से पूरी तरह संतुष्ट हूं । राजा ध्रुव कीर्ति कहते हैं मेरी ही गलती थी जो तुम्हारी मां आज मेरे पास नहीं है । मैं इस बात की प्रस्तुत के लिए शीघ्र ही हिमालय पर्वत की कंधराओ में जाकर के तपस्या करूंगा  । इस प्रकार राजा ध्रुव कीर्ति माधवी से कहते हुए वहां से निकल जाते हैं । और पर्वतों में जाकर के सन्यास ग्रहण करके तपस्या करने लगते हैं । माधवी और उनके साथ में उनका पति और वह पुत्र तीनों राजा के रूप में शासन करते हैं । और प्रजा अत्यंत ही सुखी हो जाती है । इस प्रकार से एक दिन माधवी और उसका पति अचानक से गायब हो जाते हैं । इसका कारण कोई नहीं जान पाता है उनका पुत्र अब इतना बड़ा हो चुका होता है कि वह राज काज संभाल सकें ।

लेकिन अचानक से उसके शरीर में कुछ ऐसा घटित होता है जिसकी वजह से उसके अंदर का सारा विष समाप्त हो चुका होता है । यह बात उसे समझ में नहीं आती है और अचानक से उसे एक सपना आता है की मां माधवी और उसके व्यापारिक का पुत्र उसका पिता उसे दर्शन देते हैं । और वह गोपनीय रहस्य बताते हैं वह गोपनीय रहस्य आज भी रहस्य ही है कि क्या और उन्हें क्यों दर्शन हुए । और उसका जहर शरीर से गायब हो गया ऐसा क्या घटित हुआ था । लेकिन कुछ कहानियां अधूरी ही रह जाती है जिनकी सारी गुत्थीया कभी नहीं सुलझ सकती है । इस प्रकार से देवाल मंदिर की विषकन्या कथा का समापन होता है । और यह कहानी एक किवदंती के रूप में आज हमारे पास उपलब्ध है । उत्तराखंड के चमोली जिले में एक देवाल नाम का मंदिर है । जहां पर आज भी लोग पुजारी भी नाक कान पर पट्टी बांधकर के ही लाडू देवता मंदिर में जाकर के दर्शन उनका करते हैं । यह मंदिर बहुत ही कम खुलता है कहते हैं यहां पर मणि रखी हुई है । और मणि की रोशनी से आंखें भी जो है चुंघिया सकती है या आंखें खराब हो सकती है व्यक्ति अंधा भी हो सकता है । इसलिए यह मंदिर अपनी विशेष प्रकार की कहानी और कथा के रूप में आज भी प्रसिद्ध है । और आप चाहे तो इस बारे में पता भी लगा सकते हैं । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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