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नरबली न देने से 2 बच्चियाँ हुयी गायब सच्चा अनुभव

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक ऐसा अनुभव लेंगे जो मध्यकाल की वास्तविकता दर्शाता है और आज के युग में उसके साथ जो कंफ्यूजन है, उसको भी स्पष्ट रूप से बताता है तो यह अनुभव लेना आवश्यक इतनी थी ताकि उस काल में और इस काल में होने वाले अंतर के बारे में समझाया जा सके और दूसरे धर्मों में जो कुछ कुरीतियों के नाम पर हमारे यहां के धर्म को व्यक्त किया जाता है, उसको भी मैं स्पष्ट कर सकूं। तो चलिए लेते हैं नरबलि की एक विशेष घटना के बारे में चलिए पढ़ते हैं पत्र को और जानते कैसा अनुभव है और इससे हमको क्या सीख मिलती है साथ ही साथ? जो मूल प्रश्न है उसका क्या उत्तर है?

प्रणाम गुरु जी, मैं आपका शिष्य के. प्रवीण कुमार बोल रहा हूं। गुरुजी प्राण प्रतिष्ठा विधि देने के लिए आपका धन्यवाद! गुरु जी मेरे मम्मी! भी आपसे गुरु दीक्षा लेना चाहती हैं, लेकिन गुरु जी आपने कहा था कि पति-पत्नी दोनों को एक साथ दीक्षा लेना चाहिए, किंतु गुरु जी मेरे पिताजी को पूजा पाठ में विश्वास नहीं है। वह इन सब चीजों को नहीं मानते हैं तो गुरु जी क्या मेरी मां आपसे दीक्षा ले सकती हैं?

उत्तर – अवश्य ही आपकी माता जो है, वह दीक्षा ले सकती हैं और उसके बाद फिर आपके पिताजी अगर उनसे प्रभावित होंगे तो वह भी ले सकेंगे क्योंकि पहले किसी एक को आगे आना पड़ता है। तभी दूसरा व्यक्ति आ सकता है।

गुरु जी मैं आपको एक जरूरी घटना के बारे में बोलना चाहता हूं। गुरु जी यह बात तो मैं कुछ-कुछ जानता था लेकिन पूरी तरह से नहीं जानता था। इसलिए मैंने आपको यह बात नहीं बताई थी। लेकिन मेरी मम्मी ने मुझे आज यह पूरी बात बताई है। गुरु जी यह बात मेरी मम्मी जी को मेरे दादाजी ने बोली थी, जो कि अब नहीं रहे हैं। गुरु जी यह घटना मेरे दादा जी के दादाजी से रिलेटेड है। गुरु जी आप मुझे माफ कर दीजिएगा क्योंकि मैं आपको इस घटना के बारे में विस्तार से बताना चाहता हूं। इसलिए हो सकता है मेरा ईमेल थोड़ा लंबा हो जाए। गुरु जी यह हमारे इष्ट देवी के बारे में जिनका नाम गोरप्पा है। गुरु जी यह देवी तेलुगु नाम की है क्योंकि हम लोग तेलुगु ही हैं। गुरुजी बहुत साल पहले मेरे दादा जी के दादा जी अपने गांव को छोड़कर हमारे इष्ट नरसिंह देव और हमारे इष्ट देवी गोरप्पा दोनों के साथ यहां पर आ गए थे।

अर्थात जहां पर हम इस वक्त रहते हैं। परंतु मेरे दादा जी के छोटे भाई वही गांव में थे। तो गुरु जी उस समय हमारे खानदान में बच्चे नहीं हो रहे थे। इसलिए उन दिनों हमारे इष्ट देवी से मन्नत मांगी गई कि बच्चा होने पर हम आपको बलि देंगे। गुरुजी क्योंकि हमारी इष्ट देवी को बलि दी जाती थी। गुरुजी जब एक बच्ची ने जन्म लिया हमारे खानदान में और मन्नत के अनुसार हमने इष्ट देवी को बकरे और मुर्गे की बलि दी, लेकिन गुरुजी उसके बाद देवी ने सपने में आकर कहा कि मैं अब बकरे और मुर्गे की बलि से खून पी के तंग आ चुकी हूं। मुझे अब मनुष्य की बलि दो। इस प्रकार से उन्होंने कहा। गुरु जी आपको मेरे इस मेल पर विश्वास आएगा या नहीं, यह मैं नहीं जानता। किन्तु मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी इन बातों पर विश्वास करेंगे । गुरु जी मम्मी! ने यह बात मुझे जब सुनाई तो मुझे आश्चर्य हो गया, क्योंकि मैंने नरबलि के बारे में तो सुना था, लेकिन हमारे ही खानदान में ऐसा हुआ होगा। यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।

गुरुजी उस सपने के बाद मेरे परदादा जी खोजना शुरू किया कि कौन ऐसा मनुष्य होगा जो अपनी बलि देने के लिए राजी हो जाए? सबके घर जाकर कि उन्होंने पूछा, लेकिन कोई भी इस बात से राजी नहीं था। ऐसे ही कुछ दिन और बीत गए। फिर इष्ट देवी ने सपने में दर्शन देकर कहा कि मुझे नरबलि चाहिए। मतलब चाहिए ही । लेकिन मेरे परदादा क्या करते कोई भी खुद की बलि देने के लिए राजी नहीं था? फिर गुरुजी देवी ने नरबलि ना पाने पर उस बच्ची को ही ले लिया। गुरु जी ऐसा दो बार हुआ था उस समय। फिर मेरे परदादा ने बहुत ही बड़े तंत्र विद्या में सिद्धहस्त तांत्रिक को वहां पर बुलाया। उन्होंने देवी को बांध दिया था। उन्हीं देवी को कहीं पर छोड़ दिया और उन्हीं देवी का संत स्वरूप एक मटके में बांध करके हमारे घर में रख दिया गया।

गुरु जी मेरे दादा जी का यह भी कहना था कि देवी ने उस तांत्रिक का गला पकड़ लिया था और उसे फेंक दिया था। लेकिन बहुत कोशिश लगभग 9 दिन के तांत्रिक प्रयोगों के बाद बड़ी मुश्किल से उस देवी को बांधा गया था। गुरुजी वह मटका आज भी है। लेकिन उस मटके को छूने से मना किया जाता है। उसी मटके का चित्र इन्होंने यहां पर भेजा भी है।

गुरु जी मेरे दादाजी ने यह भी कहा था कि वह देवी बहुत ही खतरनाक है और उन्हें रक्त अत्यधिक प्रिय है। गुरु जी मेरे दादा जी ऐसे कह गए थे कि कोई भी सुंदर स्त्री उन देवी के पास नहीं जानी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो वह उस महिला को भी लेकर चली जाएगी। भले ही देवी को तांत्रिक विधि द्वारा बांध दिया गया हो। लेकिन आज भी हमारे गांव में देवी को बलि दी जाती है। जब मेरा और मेरे छोटे भाई का मुंडन हुआ तो गांव में बकरे की बलि दी गई थी। गुरुजी आज मम्मी ने यह सारी बातें मुझे बताई हैं। उनको बताया कि मैं गुरु दीक्षा लेकर मां महाकाली की पूजा और कुछ तांत्रिक पूजा करने वाला था। लेकिन गुरु जी मैंने उन्हें यह नही बताया कि मैं किस मंत्र से साधना करने वाला हूं। या कौन सी विधि से करूंगा, यह मैंने उन्हें नहीं बताया है।

अब गुरु जी मेरे कुछ प्रश्न है। वह देवी कौन है और देवी ने क्यों नरबलि ना देने पर हमारे खानदान की दो बच्चियों को ले गई जबकि वह हमारी इष्ट देवी थी। गुरुजी क्या मुझे माता की पूजा करने के कारण कुछ बुरा झेलना होगा क्योंकि मेरी माता वैष्णो देवी की चुनरी पर उनके फोटो रख कर पूजा करने पर दादाजी ने मना किया था। गुरु जी यह भी हो सकता है कि देवी के द्वारा दो बच्चे उठा ले जाने से मेरे दादा जी का माता की भक्ति में विश्वास ना रहा। आपका सटीक जवाब दीजिए।

उत्तर – अब मैं आपको इसका वास्तविक अर्थ बताता हूं। हमारे मध्य काल में। जब माता की पूजा की जाती थी। जब उनकी तामसिक स्वरूप की पूजा की जाती थी तो अधिकतर उनको बलि देते थे । यह बलिया चढ़ाने की परंपरा मध्यकाल में बहुत ज्यादा थी। इसी कारण से माता का तामसिक स्वरूप सिद्ध हो जाता था। और क्योंकि? कोई भी इच्छा तामसिक रूप से मांगी जाए तो तुरंत ही सिद्ध हो जाती है।

किंतु इस रहस्य को लोग नहीं जानते कि तामसिक स्वरूप में जो शक्तियां आपको वरदान देती हैं या जिनकी सिद्धि होती है, वह माता नहीं होती। मां का अंश रूप उनकी जोगणिया होती हैं। यह भयंकर योगनिया। बहुत ही अधिक शक्तिशाली होती हैं और क्योंकि हम जिन देवी की पूजा करते होते हैं, उनकी इस उनकी सेविका शक्तियां होती हैं तो सारे कार्यों को यही संपादित करती हैं। इसी कारण से हम उन रहस्यों को नहीं जान पाते कि हमें माता सिद्ध हैं या उनकी कोई सेविका शक्ति? क्योंकि सेविका शक्तियां आकर साक्षात दर्शन दे देती थी तो हमको लगता था कि यह शक्तियां। मां के रूप में हैं और माता ही है। जिस प्रकार राक्षसों का वध करने के लिए माता काली पूर्ण तामसिक रूप धारण करके सब का वध करती हैं उस दौरान! बरसों से पड़ी हुई तामसिक शक्तियां जागृत हो जाती हैं और वह भी देवी के साथ में। तामसिक रूप धारण करके सब का वध करती हैं ।जिससे उनकी रक्त पिपासा बढ़ती जाती है।

इसी कारण से मध्यकाल में लोगों को एक बात लगती थी कि क्या देवी किसी की बलि लेती है? अगर वह देवी है तो फिर बलि क्यों लेती है? बलि की आवश्यकता तो उसको पड़ेगी जिसको अपना अस्तित्व बढ़ाना होगा वरना जो सबको उत्पन्न करने वाली है, मां स्वरूप है। वह किसी की बलि ने क्यों लेगी? इन्हीं विशेष अंतरो को दूसरे धर्मों द्वारा गलत ढंग से प्रचारित भी किया जाता है। अधिकतर योगनिया उनकी विशेष प्रकार की भूतनी पिशाचीनी यह सत्य सिद्ध हो जाती हैं। उन्हीं मां की आराधना करने पर क्योंकि हम जब तामसिक रुप से साधना कर रहे होते हैं तो जो भी तांत्रिक शक्ति सबसे निकट की होती है और उनकी सेविका शक्ति होती है। वहीं आकर सिद्ध हो जाती है।

ऐसा ही उनके साथ में घटित हुआ। क्योंकि अगर वह सच में देवी होती तो किसी तांत्रिक के बंधन में कैसे आ जाती ? यह संभव ही नहीं था और नरबलि लेना यह स्वभाव देवियों का नहीं है। यह सिर्फ उनकी सहायता शक्तियां हैं जो युद्ध में उनके साथ भी रहती है, विचरण करती हैं। उनका स्वभाव है। माता तो शांत हैं और सब का कल्याण करने वाली हैं। लेकिन वह ऐसी हैं कि जैसे भी उन्हें पुकारा जाए, वैसे ही रूप में आ जाती हैं। इसी कारण उनकी शक्तियों का जो दूसरी तामसिक शक्तियां है, उनका भी अस्तित्व जुड़ा रहता है और उनकी भी पूजा हो जाती है। इसलिए उनकी शक्ति बढ़ती है। ऐसी अवस्था में नरबलि देने पर या किसी तरह की बलि देने पर जो सहायिका शक्तियां हैं, वह संतुष्ट हो जाती हैं और वह माता को प्रणाम करते हुए कहती हैं कि मैं आपकी सेवा में सदैव इसी प्रकार लगी रहूंगी। माता भी उन्हें संतुष्ट रखती हैं क्योंकि उन्होंने उनको भी मुक्त करना है जो तामसिक शक्ति बनी हुई उनके सहायिका के रूप में वहां पर विद्यमान है।

माता किसी को भी ऐसा नहीं है कि छोड़ती हों। सभी शक्तियों को वह अपना वरदान देती हैं। चाहे वह तामसिक ही क्यों ना हो? क्योंकि वह उनकी सेवा में है। उनकी शरण में है। ऐसी बहुत सारी जोगनिया है जो क्रुद्ध रूप में और रक्त पिपासु, विभिन्न प्रकार की तामसिक शक्तियां भी हैं। वह सब के सब इसीलिए आसानी से सिद्ध हो जाती हैं और उन्हें वही चीज की चाह भी होती है। यहां पर भी वही घटित हुआ। और उन देवी की माध्यम से यह देवी! किसी योगिनी महाशक्ति जो अत्यंत ही रक्त पिपासु थी, उसकी सिद्धि हो गई। सिद्धि होने पर, क्योंकि सभी प्रकार की मनोवांछित कामनाएं वह सिद्ध कर देती है, लेकिन अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिए और अपने अधीन बहुत सारी आत्माओं को लाने के लिए वह बलि चाहती हैं।

इसीलिए उन्होंने बलि की मांग की और ना देने पर उन्होंने उस बच्चों को उठा भी लिया। तो यह समझने का फेर है इसलिए सदैव कहता हूं। मैं कि राजसिक दीक्षा लेना अगर आप मांस मदिरा या इन चीजों का प्रयोग करते हैं और अगर पूरी तरह मुक्त होना चाहते हैं तो सात्विक पूजा ही करनी चाहिए। इसीलिए उस तांत्रिक ने संत स्वरूप को मटकी में बांध दिया था ताकि वह आपके घर के लिए सदैव संतोष रूप में रहे या शुद्ध सात्विक स्वरूप में वहां पर विद्यमान रहे और तामसिक स्वरूप घर के बाहर रहे। इसी वजह से आपकी मम्मी के मन में। एक भय का माहौल भी आया क्योंकि वह देख रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि, कहीं उसके साथ भी यही सब घटित हो जाए क्योंकि वह गुरु दीक्षा लेने वाला है। उनका यह डर था इसी कारण उन्होंने अपनी सारी कथा तुमको सुनाई।

लेकिन घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर आप राजसिक तरीके की दीक्षा लेते हैं और फिर माता की सात्विक प्रकार से आराधना करते हैं तो वहीं माता शुद्ध और शांत स्वरूप में आपको प्राप्त होती हैं। तामसिक रूप में ही साधना करने पर सिद्धियां जल्दी मिलती है क्योंकि पिशाचिनी यहां भूतनी और अन्य प्रकार की। योगिनी शक्तियां सिद्ध हो जाती हैं। उनके सिद्ध होने से मुक्ति नहीं प्राप्त होती केवल इच्छाओं की प्राप्ति होती है। तो रास्ता आपको चुना है कि आपको करना क्या है?

मां के बहुत सारे रूप स्वरूप है। उसके बारे में आप मुझसे और भी बातें जान सकते हैं। जैसे आप होंगे वैसा ही रूप माता प्रकट करती हैं क्योंकि शिव के साथ महाकाली। भगवान विष्णु के साथ वैष्णवी माता लक्ष्मी, ब्रह्मा जी के साथ उनकी शक्ति ब्रह्माणी या माता सरस्वती हैं। इंद्र के साथ वह इंद्राणी है। जैसा देवता का स्वरूप जैसी उसकी शक्ति वैसा ही वह स्वरूप धारण कर लेती हैं। जैसे भक्तों की इच्छा जैसी उसकी सोच वैसा ही उनका स्वभाव बन जाता है। यह वास्तविकता है। इसी कारण से लोगों के मन में एक भ्रम की स्थिति सदैव बनी रहे और दूसरे धर्म वालों ने इस चीज का दुष्प्रचार भी किया ताकि लोगों मे भ्रांति और अविश्वास पैदा हों । यह तो आज का वीडियो अगर आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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