Site icon Dharam Rahasya

नवदुर्गा रहस्य प्रश्न

नवदुर्गा रहस्य प्रश्न

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग बात करेंगे। माता दुर्गा के रहस्य के विषय में नवरात्रि चल रही है। पर ऐसे समय में मां दुर्गा के विषय में चर्चा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। आखिर देवी मां को दुर्गा क्यों कहा जाता है। इनका नवदुर्गा रहस्य क्या है और कब? इनकी आराधना और पूजा से बहुत बड़े महान संकट चले गए हैं। इसके विषय में आज की वीडियो के माध्यम से हम लोग जानेंगे। यह दृश्य जगत माता ब्रह्मांड शक्ति की ओर और प्रकाश के रूप में संसार में हर तरफ हर प्रकार से मौजूद हैं। कहते हैं देवी मां इस संपूर्ण सृष्टि का गर्भ स्थान है। जहां से नवजीवन, गतिशीलता, सुंदरता, धैर्य, शक्ति पोषण सब उत्पन्न होता है। इनका प्रत्यक्ष रूप हमें धरती माता के रूप में दिखाई पड़ता है। मां धरती स्वयंभू। उत्पन्न करती है। स्वयं हर पदार्थ को उत्पन्न करती है जिससे प्रत्येक जीव का पेट भरता है और उस ऊर्जा को फिर वापस प्राप्त कर लेती है और फिर से नई उत्पत्ति करती चली जाती है। इसीलिए मां के रूप में हम जानते हैं गाय को भी हम माता इसीलिए कहते हैं क्योंकि हम उस के माध्यम से दूध प्राप्त करते हैं। इसीलिए सबसे प्रत्यक्ष रूप में धरती माता हमें सामने दिखाई पड़ती हैं जो मां दुर्गा का ही एक अंश है। प्रकृति को हम मां के रूप में ही इसीलिए मानते हैं और जानते हैं। माता की महिमा इतनी विशालकाय है कि हर जीव जब पैदा होता है तो मां शब्द का ही उच्चारण करता है। आपने ध्यान से सुना होगा।
यह धर्म जाति संप्रदाय से बहुत बड़ी चीज है। किसी भी देवी या देवता को पूजने के लिए उसके पहले बताए गए गुरु। कुछ नियम किताबें सब कुछ पहले से उपलब्ध होना आवश्यक होता है। लेकिन मां एक मां ही ऐसी होती है जो सदैव विद्यमान है और संसार में कैसी भी परिस्थिति में विद्यमान रहने वाली है। इसीलिए प्रकृति को माता के रूप में माना गया है। हर बच्चा रोता है तो मां शब्द का उच्चारण अपने आप करता है। उसे कोई सिखाता नहीं। यहां तक कि आप गाय गाय के बछड़े को देखे या किसी जानवर के बच्चे को देखें। चाहे वह कोई भी हो, मां शब्द का ही उच्चारण करता है। कितना भी हिंसक जीव हो जैसे शेर बाघ चीता, लेकिन बच्चे को देखकर जो उसका स्वयं का है, उसके अंदर मातृत्व का भाव आ जाता है। यह सब भाव संसार में भरने वाली माता ही है। माता की महिमा इससे अनुमान लगाइए जैसे थपकी देकर मां हर बच्चे को सुला देती है। इसी तरह माता प्रकृति अपनी गोद में लेकर हर रात हर जीव को चाहे वह इस संसार में किसी भी रूप में पैदा हुआ है। चाहे वह जानवर है। पशु है, पक्षी है, सब को सुलाती है और अपनी नींद प्रदान करती हैं इसीलिए वह! माता महाकाली के रूप में माता निद्रा देवी के नाम से प्रसिद्ध जानी जाती है। मां की यह सारे स्वरूप संसार में प्रत्यक्ष है। इसके लिए कहीं ढूंढने जाने की आवश्यकता भी नहीं होती है। इसीलिए सर्वोच्च स्वरूप माता का ही है।
इस ब्रम्हांड में कहने को तो दुनिया भर के देवी और देवता पीर पैगंबर बहुत सारे ईश्वर हमने अपनी अपनी सोच से बना लिये है। लेकिन एक मा है जो शाश्वत है, सदैव सदैव रहने वाली है और उन्हें किसी परिभाषा उन्हें किसी ज्ञान और किसी बोध की आवश्यकता नहीं। बस सदैव विद्यमान रहती हैं। इस प्रकृति के रूप में सब को भोजन करवाती है। सबका पेट भरती है सबको जल देती है जीवन की हर मूलभूत आवश्यकता हमें प्रकृति से ही प्राप्त होती है। यही माता की आराधना हम दुर्गा स्वरूप में करते हैं और उनकी पूजा प्रार्थना करते हैं। इसीलिए नववर्ष का पहला दिन दुर्गा पूजन से माना जाता है। यानी चैत्र नवरात्रि नव वर्ष का प्रारंभ हिंदू सनातन धर्म में माना जाता है। माता नवदुर्गा के नौ बहुत सारे रहस्य हैं। यह माना जाता है। पहले रहस्य के हिसाब से कि नवरात्रि वर्ष में 4 बार आती है। चैत्र आषाढ़, अश्विन और पौष , चैत्र माह की जो नवरात्रि है, इसे बड़ी नवरात्रि यह बसंती नवरात्रि भी कहते हैं और आसाढ और पौष मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रिया कहते हैं। इस प्रकार कुल 36 रातें आती हैं यानी 6 प्लस 3 यानी= नवरात्रिआ संसार को हर प्रकार से। अपने अधीन रखती हैं और व्यवस्थित बनाकर जाती हैं। इन्हें 9 के अंत में क्यों रखा गया है? योगियों के हिसाब से हमारे शरीर में भी 9 छिद्र होते हैं। कैसे दो आंखें, दो कान, नाक के दो छिद्र, दो गुप्तांग एक मुंह तो जोड़ लीजिए। 9। इन द्वारो को पवित्र और शुद्ध करेंगे तो कहते हैं, मन निर्मल हो जाता है और इससे छठी इंद्री जागृत होती है। नींद में सभी इंद्रियां लुप्त हो जाती है। केवल छठी इंद्री जागृत रहती और मन जागृत रहता है। इसीलिए नींद में स्वप्न के माध्यम से हम दैवीय शक्तियों का दर्शन भी करते हैं।
तीसरा रहस्य होता है। हमें 9 दिनों में मांस स्त्री अपराध और हर स्त्री का सम्मान करने की प्रतिज्ञा उपवास के साथ करनी चाहिए। चौथा रहस्य होता है। नवरात्रि में हम 9 अहोरात्र के नाम से जानते हैं। यानी इन रातों में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। कहते दिन की अपेक्षा के रात्रि में आवाज दी जाए तो बहुत दूर तक जाती है। इसीलिए रात में ही साधना करना सबसे ज्यादा शुभ होता है और नवरात्रि बोली जाती है। इसीलिए नव दिन नहीं बोले जाते ..पांचवा रहस्य नौ देवियों के रूप में हम उनकी उपासना करते हैं। शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री और दुर्गा सप्तशती में इनके अन्य रूप भी हैं जो कि 10 शक्तियों के रूप में जाने जाते हैं। ब्राह्मण माहेश्वरी कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नार्सिन्घी, ऐन्द्री ,शिवदूती, भीमा देवी, भार्मरी देवी, शाकंभरी, देवी, आदिशक्ति, रक्तदंतिका इत्यादि, छठा रहस्य है। इसमें कम 9 भोग और औषधियों का सेवन करते हैं। कहते हैं शैलपुत्री को कुट्टू और हरड भेंट करना चाहिए और साधक को खाना चाहिए। ब्रह्मचारिणी माता को दूध दही देना और खाना चाहिए और ब्राह्मी का भी इस्तेमाल ब्रह्मचारिणी में किया जाता है। चंद्रघंटा माता में और चंदू सूर ,कुष्मांडा पेठा जिसे कहा जाता है, उसको कुष्मांडा माता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चंद्रघंटा माता में श्यामक चावल और अलसी का इस्तेमाल किया जाता है। माता कात्यायनी में हरी तरकारी और मोरिया का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें आगे बढ़ते हुए माता कालरात्रि में हम काली मिर्च तुलसी और नागदोन इत्यादि का इस्तेमाल करते हैं। महागौरी माता में हम साबूदाना और तुलसी का इस्तेमाल करते हैं। माता सिद्धिदात्री में आंवला और शतावरी का इस्तेमाल किया जाता है।

सातवां माता का रहस्य है देवियों देवी नवदुर्गा दसमहाविद्या चौसठ योगिनी का पूरा एक समूह आता है। आदिशक्ति माता अंबिका सर्वोच्च रूप में इन अलग-अलग रूप में नामित पूजी जाती हैं। सती पार्वती ओ मां काली माता यह सारी स्वरूपों में माता का हम आवाहन और पूजन करते हैं। दुर्गामांसुर का वध करने के कारण इन्हें माता दुर्गा के नाम से जाना जाता है। आठवां महत्वपूर्ण है से है। नवदुर्गा में 10 महाविद्याओं की भी पूजा की जाती है और यह 10 महाविद्या होती हैं माता काली. माता तारा. माता छिन्नमस्तिका. माता षोडशी, माता भुवनेश्वरी, माता त्रिपुर भैरवी, माता धूमावती, माता बगलामुखी, माता मातंगी की और दशमी माता कमला।

हमारे देवियों की पहचान प्रत्येक देवी उनके वाहन के हिसाब से भुजा के अस्त्र शस्त्रों के माध्यम से पहचान सकते हैं। जैसे अष्टभुजा देवी माता दुर्गा कात्यायनी सिंह पर सवार है तो माता पार्वती चंद्रघंटा कुष्मांडा शेर पर विराजमान है। शैलपुत्री महागौरी वृषभ पर सवार है। कालरात्रि माता गधे पर सवारी करते हैं और सिद्धदात्री माता कमल पर विराजमान मानी जाती है। कहते हैं भगवान श्री राम जी ने भी माता दुर्गा की आराधना की थी और नवरात्रि का जो पर्व है वह भगवान राम की वजह से ही शुरू हुआ था। यह माना जाता है कि पौराणिक ग्रंथों के हिसाब से की नवरात्रि का जो पर्व है, सबसे पहले भगवान श्रीराम ने शुरू किया था। कहते हैं उन्होंने रावण को युद्ध में जीतने के लिए चंडी माता की उन्होंने उपासना शुरू की थी। माता को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने 108 दुर्लभ नीलकमल रखे थे। वही रावण ने भी अमृत प्राप्ति के लिए माता चंडी की पाठ की शुरुआत कर दी थी। अब इधर रामचंद्र जी और और रावण दोनों लोग एक ही समय में माता की उपासना और पूजा करने लगे। रावण यह बात जानता था कि श्री राम की पूजा सफल अगर हो गई तो उसका वध हो जाएगा। इसलिए वह भगवान राम की पूजा सफल नहीं होने देना चाहता था। उसने एक नीलकमल पुष्प को गायब कर दिया था। भगवान श्रीराम को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने देवी मां को प्रसन्न करने के लिए एक नीलकमल के स्थान पर अपने कमलनयन क्योंकि उन्हें सब कमलनयन कहते थे। अपना नैन ही भेंट में चढ़ाने की बात की और उन्होंने अपनी तीर से अपनी आंख निकालने की कोशिश की। इस भक्ति से मां दुर्गा प्रसन्न हो गई और उन्हें उनको विजयत्व का वरदान दिया। और कहा कि आज से रामनवमी के रूप में भी जाना जाएगा।

इसीलिए रामनवमी नौवें दिन मनाई जाती है। इधर रावण की पूजा में हनुमान जी विघ्न डालने के लिए पहुंच गए थे और उन्होंने एक कोशिश की। उन्होंने कहा कि अगर मै मंत्रों का श्लोक गलत अर्थ पढवा दू तो अवश्य ही रावण का विनाश हो जाएगा। उन्होंने सब की बुद्धि खराब कर दी और कहते हैं जब दुर्गा श्लोक पढ़ा जा रहा था तो एक ही शब्द के गलत उच्चारण मात्र से रावण का विनाश हो गया था जब वह मंत्र! रावण और उसके सभी पंडित पढ़ रहे थे तो उनके मुख से निकल रहा होता है। दुख हरणी और उन्होंने दुख हरणी की जगह दुख कारिणी शब्द का उच्चारण करवा लिया। कारिणी शब्द का अर्थ होता है। करने देने वाला यानी कि करने वाली दुख को कराने वाली हारिणी मतलब होता है। दुख का नाश करने वाली तो दुख हरणी की जगह दुख कारिणी शब्द का उच्चारण करने लगे। इस श्लोक से माता दुर्गा नाराज हो गई और उन्होंने रावण को पराजय का श्राप दे दिया। तभी युद्ध में रावण की हार हुई थी और रावण का विनाश हुआ था। इसी दिन से रामनवमी की शुरुआत हुई और भगवान श्री राम ने माता चंडी की उपासना इस दिन से की थी। इसीलिए उन्होंने कहा कि 9 दिन इसी प्रकार मेरे जैसे अगर कोई व्रत रख कर 9 दिन पूजन करेगा तो जिस प्रकार मुझे सब कुछ माता की कृपा से प्राप्त हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति को इस पृथ्वी लोक में प्राप्त होता ही रहेगा। इसीलिए माता के नवरात्रि का पर्व भगवान श्री राम की कृपा से संसार के लिए उपलब्ध हुआ था।
माता की कृपा! के संबंध में एक उदाहरण और आता है जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को महाभारत के युद्ध से पहले मां दुर्गा की उपासना की सलाह दी और भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं। दुर्गा स्त्रोत का रचना की थी और उस स्त्रोत को अर्जुन को दिया था और कहा था इस स्त्रोत का तुम पाठ करो। वह कहते हैं –

श्री कृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम् 

श्रीकृष्ण उवाच
त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त ानुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी॥
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी॥
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्। यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्िछता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

इस प्रकार उन्होंने श्री दुर्गा स्त्रोत की रचना की और स्वयं इस मंत्र को सिद्ध किया और उन्होंने अर्जुन को प्रदान किया। इसी स्त्रोत के पाठ से माता के दर्शन अर्जुन को हुए और अर्जुन को वरदान देकर माता ने कहा कि तुम अवश्य ही इस संग्राम में अपनी समस्त शत्रुओं का विनाश कर उन्हें जीत लोगे और इसी के कारण अर्जुन ने महाभारत के युद्ध को जीता था। तो आप समझ सकते हैं कि मां दुर्गा की आराधना से कितने मुश्किल कार्य संपन्न हो जाते हैं। इतना ही नहीं एक उदाहरण मै और आपको बताता हूं कि जब सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह स्वयं माता दुर्गा की आराधना की थी, क्योंकि वह यह बात जानते थे कि मुगलों के विरुद्ध उनकी शक्ति और सामर्थ्य कम है तो उन्होंने स्वयं माता की आराधना करके माता से वरदान प्राप्त किया था और अजय शक्ति सिखों को बना दिया था। इससे आप समझ सकते हैं कि उन्होंने बल और तलवार माँ से प्राप्त किया था इसे प्राप्त कर कहा था –

चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावा, गिदरां नु मैं शेर बनावा।
सवा लाख से एक लड़ावा, ता मैं गोविंद नाम कहावां।।

इस से स्पष्ट है की उन्होंने माता के नैना देवी रूप माता की आराधना की और अद्भुत शक्ति प्राप्त की जिससे सिक्ख सदैव के लिए विजई हो गए और मुगलों का उन्होंने पुरजोर विरोध करते हुए अपनी स्वयं की सत्ता स्थापित की और अजय शक्ति के रूप में सिख साम्राज्य की स्थापना उन्होंने की थी तो चाहे गुरु हो और चाहे कोई देवी या देवता हो। सबको मां के आगे झुकना ही पड़ता है। उनकी आराधना से हमें मनोवांछित लाभ के साथ अमृत और पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा माता दुर्गा का एक संक्षिप्त रहस्य अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

https://youtu.be/WWrgjRo-9M4
Exit mobile version