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नवरात्री सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र श्री भृगुसंहिता

नवरात्री सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र श्री भृगुसंहिता

धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज हम नवरात्रि पर किए जाने वाले एक ज्योतिष के सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे जिसको अगर हम नवरात्रि के 9 दिन करते हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपके जीवन सभी प्रकार के अनिष्ट का निवारण ना हो जाए। आपकी जिंदगी में जो भी परेशानियां चल रही है उसको नष्ट करने के लिए स्त्रोत भृगु संहिता  में सर्वारिष्ट निवारण स्त्रोत के रूप में जाना जाता के आपके कुंडली जो दोष हैं। उनको नष्ट कर देता है इसीलिए इस स्त्रोत को अगर 9 दिन लगातार से करे  100% अरिष्ट का निवारण हो जाता है। इसे कैसे किया जाएगा। इसका विधान क्या है और यह स्त्रोत क्या है। आइए जानते हैं?

आपकी कुंडली में व्याप्त अलग-अलग प्रकार के दोष है जिसकी वजह से आपको जीवन में विभिन्न प्रकार की परेशानी आती रहती है। उनको दूर करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। लेकिन पुराणों में श्री भृगु संगीता सर्वारिष्ट निवारण स्त्रोत का सबसे ज्यादा उल्लेख हुआ है। मान्यता है कि इस के पाठ से व्यक्ति की कुंडली में मौजूद सभी दोषों से उसे मुक्ति मिल जाती है। इस पाठ को आप किसी भी देवी या देवता घर के बने मंदिर में बैठ कर पढ़ सकते हैं या फिर किसी भी शुभ स्थान में जाकर भी। हैं।  पहले स्नान इत्यादि से पूरी तरह अपने आप को शुद्ध करने के पश्चात वहां पर पूजन के लिए धूप, अगरबत्ती और फूल इत्यादि की व्यवस्था कर ले। उसके पश्चात आप इस स्त्रोत का अपने इष्टदेव या आप जिन्हें पूजते उनके आगे बैठकर पाठ करें। पाठ के दौरान स्वाहा और नमः का उच्चारण करते हुए घी मिश्रित गुग्गुल से आहुति देनी चाहिए।

जिससे आपको सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। आप स्त्रोत पढ़ते हुए भी हवन कर सकते हैं अथवा स्त्रोत को पढ़ लेने के बाद उसका हवन कर सकते हैं प्रतिदिन। सुबह के समय नियमित रूप से घर के मंदिर में साफ सफाई करके इसका पाठ करें। लाल रंग का का ऊनी आसन पर बैठकर ही पाठ करें करें। इसमें लगने वाली आवश्यक सामग्री इस प्रकार है लाल रंग का या भगवा रंग का कपड़ा।

दोनों में से कोई सवा मीटर का कपड़ा, नवग्रह का यंत्र। गणपति भगवान की तस्वीर या मूर्ति अथवा भगवान शिव के परिवार की मूर्ति जिसमें परिवार के सारे सदस्य हो। तांबे की गढवी पानी के लिए, धूप,दीप, मिष्ठान, सिंदूर इत्यादि ले एक थाली में नवग्रह यंत्र को बाजोट पर बिछाकर के लाल रंग का कपड़ा। फिर पूजन करें। धूप दीप, नैवेद्य इत्यादि के बाद सबसे पहले गणपति पूजन करें और इस पाठ को आरंभ करें। जो  इस प्रकार से है।

।। श्री भृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र।।

ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐगुरवे नमः,ॐ श्रीकृष्णाय नमः,ॐ बलभद्राय नमः,ॐ श्रीरामाय नमः,ॐ हनुमते नमः,ॐ शिवाय नमः,ॐ जगन्नाथाय नमः,ॐ बदरीनारायणाय नमः,ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।

ॐ सूर्याय नमः,ॐ चन्द्राय नमः,ॐ भौमाय नमः,ॐ बुधाय नमः,ॐ गुरवे नमः,ॐ भृगवे नमः,ॐ शनिश्चराय नमः,ॐ राहवे नमः,ॐ पुच्छानयकाय नमः,ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।

ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि।ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते! भद्रे! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच,राज-द्वारे जयं कुरू कुरू,व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं,रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय,पूर्णा आयुः कुरू कुरू,स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू,हुम् फट् स्वाहा।।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।

ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः।

ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्।श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।। शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू।

मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।। सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः।

हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं।
शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।।

य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना।
तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।।

अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्।
संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।।

सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः।
द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।

किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा।
लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।।

ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि।
शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।।

नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया।
भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।।

इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे।
पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।।

विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः।
सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

।। श्रीभृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र सम्पूर्ण।।

स्त्रोत के माध्यम से आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। खासतौर से शुभ समय में जैसे नवरात्रि। गुप्त नवरात्रि हैं। या फिर गुरु पुष्य, रवि पुष्य इत्यादि अन्य शुभ अवसर चारों प्रकार की जो दिव्य रात्रि हैं उन सभी समय पर आप इस मंत्र की आराधना के द्वारा विभिन्न प्रकार की शक्तियां और सभी प्रकार के दोष खासतौर से आपके कुंडली दोष जितने हैं, वह नष्ट हो जाते हैं और आप को सकारात्मक रूप से अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलता है तो अगर कोई व्यक्ति परेशान है और उसे नहीं पता चल पा रहा है। उसके जीवन में किसी ग्रह बाधा के कारण किसी परेशानी के कारण उसके जीवन के कार्य नहीं बन रहे हैं तो वह इस स्त्रोत का रोजाना नवरात्रि के समय खासतौर से 108 बार पाठ हवन सहित करता हुआ 9 दिन कर लेगा। तब जीवन में जो भी संकट है उसका क्षमन हो जाएगा आनंद की प्राप्ति अवश्य होगी। आज का वीडियो अगर आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

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