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नहाती हुई परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 1

नहाती हुई परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम दर्शकों की मांग पर एक बार फिर से मंदिरों और मठों की गोपनीय कहानियों को लेकर उपस्थित हुए हैं और आज का यह वीडियो विशेष इसलिए है क्योंकि एक ऐसा स्थान जहां से सीधे स्वर्ग को जाने का रास्ता एक त्रिआयामी द्वार बनता है और न सिर्फ बहुत वर्ष पहले कोई व्यक्ति साक्षात सीधे स्वर्ग इसी मार्ग से गया था और आज भी यह स्थान इतना ज्यादा रहस्यमई है कि अगर यहां पर कोई परियों को नहाते हुए देख लेता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसे अद्भुत और अनसुलझे रहस्य की कहानी। आज मैं आप लोगों के लिए लेकर के उपस्थित हुआ हूँ चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या है इस जगह का रहस्य जहां आज भी पर परियां यहां स्नान करने के लिए आती हैं और गलती से अगर कोई उन्हें देख ले तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

कथा का वास्तविक रूप में प्रारंभ होता है। वह चंद्र देवता और सूर्य देवता की आपसी बहस से शुरू होता है। यह कथा कई हजारों वर्ष पूर्व की है। कहते है जब संसार का निर्माण कार्य हो रहा था उस दौरान जब सभी देवी देवता अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे तब भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए चंद्र देवता और सूर्य देवता दोनों ही तत्पर हो गए। दोनों लोगों ने भीषण, तपस्या आदि महादेव की शुरू कर दी। महादेव बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले आशुतोष कहलाते हैं। इसलिए उनको प्रसन्न करके चंद्र देवता और सूर्य देवता वरदान प्राप्त करना चाहते थे। अपनी सामर्थ्य को बढ़ाना चाहते थे। कहते हैं तपस्या के दौरान अचानक से बहुत तेज ऊष्मा इन दोनों के ही शरीरों से निकलने लगी। जब यह ऊष्मा बहुत ज्यादा बढ़ गई तो थोड़ा सा शांति के लिए जल की उपलब्धता आवश्यक थी। तब दोनों ने प्रार्थना की कि हे प्रभु हमारा यह व्रत संकल्प और यह साधना ना टूटे। इसके लिए आप हमें जल प्रदान कीजिए तब देवी गंगा का अंश रूप वहां पर। इन दोनों के मुख में पड़ा इनके शरीर से निकल रहे तेज से मिलकर उसमें से कुछ बूंदे धरती पर आकर गिरी। दोनों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव वहां पर प्रकट हुए और उन्होंने।

प्रकट होकर दोनों को आशीर्वाद दिया और कहां आज से जगत में तुम दोनों प्रसिद्ध रहोगे यह धरती तुम्हारे आधार पर ही चलेगी, कि तभी दो कन्याओं के रोने का तेज स्वर इन दोनों को सुनाई दिया। दोनों की नजर नीचे पड़ी तो देखा 2 कन्याएं पृथ्वी पर बिलख बिलख कर रो रही थी। तब उन दोनों ने भगवान शिव से पूछा प्रभु! यह क्या चमत्कार है यह 2 कन्याएं कौन हैं तब भगवान शिव ने कहा, आपके तप से बनी और गंगा देवी के जल से निर्मित शक्तियों से बनी हुई यह दोनों प्रसिद्ध अप्सराओं के रूप में आपको पुत्री रूप में प्राप्त हुई दो कन्याये हैं। तब चंद्रदेव प्रसन्न होकर कहने लगे। आज आपकी कृपा से मुझे पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सूर्य देव ने प्रणाम किया और कहा, आपकी कृपा से मैं भी आज एक कन्या का पिता बना हूं। अब क्योंकि आपने बताया यह अप्सराये हैं। इसलिए क्या इनका यहां रुकना ठीक है, इन्हें तो स्वर्ग में होना चाहिए। तब भगवान शिव ने कहा, सुनो अब से यह तुम्हारे लोक में निवास करेंगी। समय आने पर इनके लिए जो भी विधाता ने कार्य सिद्धि रखी है, यह उसे अवश्य ही पूर्ण करेंगी और इस प्रकार वह दोनों कन्याये अपने पिताओं के साथ। उनके लोक की ओर चली गई। चंद्रलोक में उस अप्सरा का नाम चन्द्रा रखा गया और सूर्य लोक में उनकी इस अप्सरा पुत्री का नाम भागा रखा गया। इस प्रकार दोनों समय के अनुसार धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और फिर एक दिन जब वह 16 वर्ष की हो गई तब दोनों जब एक बार स्वर्ग लोक में उत्सव का आयोजन किया गया था। तब सभी देवी देवता वहां पर उपस्थित होकर त्रिदेवों की पूजा के लिए वहां पर आए हुए थे और उत्सव में भाग ले रहे थे तब चंद्रदेव अपनी पुत्री चंद्रा और सूर्य देव अपनी पुत्री भागा को लेकर वहां पर आए, पहली बार चंद्रा और भागा ने एक दूसरे को देखा और ईश्वर की कृपा से दोनों में बहुत ही जल्दी गहरी दोस्ती हो गई।

अब दोनों जरूर एक दूसरे को मिलने के लिए स्वर्ग में आती रहती थी। एक दूसरे के लोक भी जाया करती थी दोनों की दोस्ती समय अनुसार लगातार बढ़ रही थी। फिर एक बार जब यह स्वर्ग की अप्सरा ओं के साथ नृत्य और गायन का कार्यक्रम कर रही थी और खुश होकर इधर-उधर दौड़ रही थी कि तभी एक महान ऋषि स्वर्ग में आते हैं। उनका तेज इतना ज्यादा था कि उन्हें देखकर स्वर्ग की सारी अप्सराएं उन पर मोहित होने लगी। तब चन्द्रा और भागा ने भी उन्हें देखा और कहा, यह इतना तेजस्वी स्वर्ग में निवास करने वाला आखिर यह कौन है तब अन्य देवताओं से पता चला कि यह तो कोई मानव लोक से है लेकिन अपनी तपस्या तप के बल और सामर्थ्य के कारण इतना अधिक तेजस्वी है कि देवता भी इसे नमन कर रहे हैं। अब अप्सराये इन्हें स्वामी बनाना चाहती हैं क्योंकि जिसका जैसा स्वामी और पति उसके अंदर वही ऊर्जा शक्ति और सामर्थ्य विद्यमान हो जाती है। इसीलिए अप्सराये भी उस ऋषि को प्राप्त करने के लिए लालायित थी। तब चंद्रा ने उस सूर्यपुत्री भागा से पूछा, सुनो क्या पृथ्वी पर वास्तव में इतनी ज्यादा तेजस्वी पुरुष रहते हैं तब भागा ने कहा हो सकता है। तुम्हारी बात सत्य हो क्या किया जाए। दोनों 16 वर्षीय कन्याओं ने एक-दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखा। इनके मन में एक भावना थी कि जाकर देखते हैं कि पृथ्वी लोक में कैसे मनुष्य रहते हैं और इस नश्वर लोक में भी इतने ज्यादा तेजस्वी पुरुषों का रहना आखिर क्या है। कहते हैं उस दिन अपने पिताओ से आज्ञा और पृथ्वी भ्रमण की योजना बनाकर दोनों आकाश मार्ग से अपनी सखी अप्सराओं के साथ पृथ्वी पर नीचे उतर आई।

इस पृथ्वी पर आकर उन्होंने एक बहुत ही सुंदर स्थान जो कि एक पहाड़ी क्षेत्र था वहां पर आई अपने पैरों को पटकने के कारण और अठखेलियां खेलने के कारण वहां पर अत्यधिक तीव्र विस्फोट हुआ और इन दोनों की आपसी खेल से उस जगह एक विशेष ताल का निर्माण हो गया। एक सूर्यताल और एक चंद्रताल इस प्रकार इन दोनों तालों के निर्माण से और इसके अंदर फिर वह मनुष्य की जैसी आकृति बनाकर पानी में खेलने लगी। दोनों बहुत ही ज्यादा प्रसन्न थी। उनकी इस तरह की हरकत से वहां पर ऋषि मुनि लोग आकर्षित होने लगे। उन दोनों को तालाब में इस प्रकार इधर-उधर कूदते देखकर उनकी सुंदरता की चर्चा चारों तरफ होने लगी। तभी एक ऋषि वहां पर आते हैं और जल के किनारे बैठ कर भगवान शिव की घोर तपस्या करना शुरू कर देते हैं। उन्हें वह स्थान प्रिय लगा, क्योंकि उस स्थान से देव लोक की महक आ रही थी। भगवान! शिव को प्रसन्न करने के लिए उस नव युवक ऋषि ने भीषण तपस्या प्रारंभ की कुछ ही देर बाद उसकी तीव्र मंत्रों की बनी और ऊर्जा से सारा ब्रह्मांड हिलने लगा। यह देखकर चंद्रा की नजर उस ऋषि पर पड़ी और वह उन पर मुग्ध हो गई। उन्होंने उस ताल से बाहर निकल कर उसके पास जाकर उसे देखना शुरू कर दिया। शरीर से निकलता तेज अद्भुत रूप से सुंदर लग रहा था और फिर चन्द्रा ने अठखेलियां करते हुए थोड़ा सा जल अपने हाथ में लिया और उस ऋषि पर फेंक कर मारा पानी की कुछ बूंदे लगने से भी उस ऋषि का ध्यान भंग नहीं हुआ। फिर चंद्रा ने दोबारा कोशिश की और एक बार फिर से हाथ में जल लेकर उसकी ओर फेंका।

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लेकिन इस बार भी ऋषि टस से मस ना हुआ यह देख चन्द्रा सोचने लगी। यह कैसा निर्मोही पुरुष है। इसे किसी कन्या के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या करूं कि तभी उसने भागा के साथ मिलकर एक योजना बनाई। भागा को कहा। तुम एक राक्षस का रूप ले लो और मैं बचाओ बचाओ, चिल्लाउगी देखती हूं। इससे इस ऋषि की यह साधना कैसे नहीं बंद होती और फिर दोनों ने अपना मायाजाल रच दिया। भागा बनी एक विशालकाय राक्षस और चन्द्रा पानी के अंदर उतरकर चिल्लाने लगी राक्षस कहा, मैं तुझे खींच कर ले जाऊंगा और तब चन्द्रा पानी के अंदर से चिल्लाने लगी। बचाओ बचाओ इस तरह की टिप्पणी को सुनकर अचानक उस ऋषि की घोर तपस्या खुल जाती है। सामने देखता है कि एक अति सुंदर ही कन्या जोकि। जैसे स्वर्ग लोक की अप्सरा हो एक पानी में परेशान होकर चिल्ला रही है और उसकी तरफ एक राक्षस बढ़ रहा है। तब ऋषि ने उस राक्षस को कहा। इस कन्या को छोड़ दो अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें भस्म कर दूंगा। भागा थोड़ा भयभीत हो गई लेकिन क्योंकि मायाजाल इन दोनों ने ही रचा था। इसलिए वार्तालाप तो आवश्यक था, वह कहने लगी। सुन ऋषि तुझे अप्सराओं से क्या मतलब यह महा सुंदरी को मैं प्राप्त करना चाहता हूं। अगर तू इससे विवाह करें? तभी मैं तुझे जीवित छोडूंगा अन्यथा तुझे और इसे दोनों को ही मेरे क्रोध का भाजन बनना पड़ेगा। उस ऋषि ने कहा, तुम ऐसा समझते हो कि तुम्हारे अंदर बहुत सामर्थ्य है, किंतु ऐसा नहीं है। मेरे मंत्रों के आगे तुम्हारी कोई भी शक्ति काम नहीं आएगी।

और भगवान सदा शिव की कृपा के कारण तुम्हें बहुत बुरा दंड मैं स्वयं दे दूंगा। अब आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह जानकारी और कहानी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

नहाती हुई परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 2

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