Site icon Dharam Rahasya

नहाती हुयी परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 2

नहाती हुयी परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। नहाती हुई परियां देखना बहुत खतरनाक यह दूसरा भाग है पिछले भाग में हम लोगों ने जाना था कि कैसे चन्द्रा एक ऋषि पर मोहित हो जाती हैं और वह भागा के साथ मिलकर एक मायाजाल की रचना करती हैं अब ऋषि!क्रोधित होकर उस राक्षस से कहते हैं। यहां से तुरंत चले जाओ क्योंकि तुम्हें नहीं पता। मै भगवान शिव का बचपन से ही भक्त रहा हूं और मेरे अंदर इतनी ऊर्जा है कि मैं किसी भी राक्षस का वध कर सकता हूं। अगर तुम्हें अपने प्राणों की चिंता है। तो यहां दोबारा मत आना।

यह सुनकर जोर-जोर से भागा हंसने लगती है और कहती है कि इतनी सामर्थ्य पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य की नहीं। जो मुझे यहां से हटा सके। तुम चाहो तो प्रयास करके देख सकते हो। मुझे बहुत सारी शक्तियां प्राप्त हैं। इसलिए कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।

यह सुनकर ऋषि थोड़ा सा आचरज में आए, लेकिन उन्होंने तुरंत ही अपने मंत्र का प्रयोग।इस पर कर दिया राक्षस पर जल गिरते ही उसे कुछ भी नहीं हुआ। यह देखकर ऋषि और भी ज्यादा आश्चर्यचकित हो गये क्योंकि जिस अभिमंत्रित जल का प्रयोग उन्होंने किया था, उसका प्रभाव बुरी शक्तियों पर अवश्य ही पड़ता है। यह तो विचित्र बात है।

उन्होंने एक बार फिर से एक मंत्र का प्रयोग किया, लेकिन वह भी बेअसर हो गया। तब आखरी बात उनके दिमाग में आई कि अवश्य ही यह शक्ति कुछ भिन्न है। इसलिए भगवान शिव के किसी अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना होगा। उन्होंने एक विशेष पशुपति मंत्र से अभिमंत्रित अपना एक अस्त्र उनके ऊपर फेंक दिया। लेकिन आश्चर्य की बात अस्त्र वहां जाकर गायब हो गया। यह देखकर ऋषि तुरंत अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहने लगे। यह तो केवल देवता ही रोक सकते हैं। कौन हो तुम और यहां पर क्यों आए हो तब भागा ने जो कि भेड़िए के रूप में एक विशालकाय असुर के रूप में दिखाई दे रही थी। कहने लगी मैं। कहा ना?

तुम्हें अगर अपने और इसके प्राणों की रक्षा करनी है तो इस कन्या के साथ विवाह कर लो क्योंकि मैं शादीशुदा जोड़ों को नहीं मारता। बाकी मैं सब से अपना बदला ले लेता हूं और इस कन्या को उठाकर।

मैं लेकर चला जाऊंगा इसलिए कोई भी मुझे रोक नहीं पाएगा।

तब ध्यान पूर्वक ऋषि ने देखकर कहा केवल सूर्य भगवान का तेज और कवच मेरे इन अस्त्र शस्त्रों से रक्षा कर सकता है। जरूर तुमने भगवान सूर्य की कभी! आराधना की होगी इसीलिए तुम मेरी शक्तियों से बच जा रहे हो तब?

राक्षस ने कहा, अंधेरा होने को आया है। मैं कल दोबारा आऊंगा और तुमसे इस कन्या को छीन कर ले जाऊंगा।

मैं जा रहा हूं और यह कहकर वह वहां से गायब हो जाती है। कन्या भागते हुए ऋषि के पास आकर उनके गले लग जाती है और कहती है ऋषि वर आपने मेरे प्राण बचा लिए। तब ऋषि कहते हैं देवी आप नवयुवती कन्या है, पर आपका इस प्रकार से मेरे शरीर को छूना बिल्कुल भी सही नहीं है। मैं तो केवल किसी कन्या को मां अथवा बहन के रूप में ही देख सकता हूं। आप इस प्रकार मेरे शरीर से लगती है तो मेरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है। इसलिए मुझे क्षमा कीजिये।

तब वह कहने लगी थी। क्या आप पुरुषत्व धारण नहीं करते हैं क्या कन्या  पुरुष के जीवन में एक स्त्री या उसकी पत्नी या प्रेमिका बन कर आती है? और यहां पर मुझे तो आपसे प्रेम हो गया है क्योंकि आपके जैसा तेज सामर्थ्यवान पुरुष मिलना असंभव है। मैं तो आपसे विवाह करना चाहती हूं। आपने ना सिर्फ मेरे प्राण बचाए हैं बल्कि मेरे लिए अपनी तपस्या त्याग दी है। यह सुनकर ऋषि की आंखों में आंसू आ गए।

ऋषि ने कहा, वास्तव में कितनी बड़ी गलती मुझसे हो गई है। मैं भगवान शिव को छोड़कर इस मायाजाल में कहां फंस गया। मैं तो एक क्षण के लिए भी अपनी शिव का नाम स्मरण करना नहीं छोड़ सकता। फिर मैं इस प्रकार की माया में कैसे आ गया? देवी मुझे क्षमा कीजिए। आपने मुझे याद दिला दिया। मैं अब तपस्या करने बैठ जाऊंगा। तब चंद्रा एक बार फिर से बोली, यह क्या है मेरी बात का आप पर कोई प्रभाव? पड़ ही नहीं रहा है। मैं कह रही हूं कि मैं आप से प्रेम करती हूं। आप इस आनंद को छोड़कर आंखें बंद करके क्या प्राप्त कर लेंगे। मैं आपको सब कुछ दे सकती हूं और यह कहकर वह साक्षात अपने अप्सरा रूप में आ जाती हैं और कहती हैं। मैं चंद्र देव की पुत्री मेरा नाम चंद्रा है और मेरे पास इतनी शक्तियां हैं कि आपको संसार के सारे वैभव और सुख दे सकती हूँ।

सिर्फ एक बार कोई इच्छा मांग कर तो देखिए और इसके बावजूद मैं आप से प्रेम करने लगी हूं तो फिर मेरे सामने प्रेम को स्वीकार कीजिए मैं आपसे! सच्चे हृदय से प्रेम करती हूं और आप से विवाह करने की इच्छा मेरे अंदर आ चुकी है। हम दोनों ने आप की परीक्षा ली थी। देखिए मेरी मित्र को तभी वहां पर भागा भी प्रकट हो जाती है और तब ऋषि को सारी बात समझ में आ जाती है तो वह कहते हैं। भले ही आपका प्रेम सच्चा हो और सारी माया आपने अपने प्रेम को पाने के लिए की हो किंतु मेरा तो प्रेम वास्तविक तत्व अर्थात अपने पिता महाशिव को प्राप्त करना है। उनके अतिरिक्त मेरे जीवन का अन्य कोई भी लक्ष्य नहीं है। तब चन्द्रा ने पूछा ऐसा क्या रहस्य है आपकी तपस्या में तो वह कहने लगे। यह जीवन केवल दूसरों की सेवा करने के लिए मिला हुआ है तो अगर कोई जीव जीवित रहते हुए कुछ करना चाहता है तो केवल सेवा करें। अन्यथा तो उसे केवल अपनी आंखें बंद करके अपने मूल तत्व शिव की ओर बढ़ना चाहिए क्योंकि केवल माया में सेवा करना सर्वोत्तम कर्म है। बाकी तो माया छोड़कर केवल अपने मूल तत्व की ओर ही लौटना चाहिए। तब चन्द्रा ने पूछा, आखिर यह मूल तत्व क्या है और आप मुझे यह बताइए कि ऐसा क्या है कि आप जीवन के सारे सुखों को छोड़कर उन्हें त्याग कर इस प्रकार निर्मोही बने हुए हैं और? इन सब का क्या मतलब है

तब उस ऋषि ने कहा सुनो, मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं। ‘स्कन्द पुराण’ के ब्रह्मोत्तर खण्ड में कथा आती हैः काशी नरेश की कन्या कलावती के साथ मथुरा के दाशार्ह नामक राजा का विवाह हुआ। विवाह के बाद राजा ने अपनी पत्नी को अपने पलंग पर बुलाया परंतु पत्नी ने इन्कार कर दिया। तब राजा ने बल-प्रयोग की धमकी दी।

पत्नी ने कहाः “स्त्री के साथ संसार-व्यवहार करना हो तो बल-प्रयोग नहीं, स्नेह-प्रयोग करना चाहिए। नाथ ! मैं आपकी पत्नी हूँ, फिर भी आप मेरे साथ बल-प्रयोग करके संसार-व्यवहार न करें।”

आखिर वह राजा था। पत्नी की बात सुनी-अनसुनी करके नजदीक गया। ज्यों ही उसने पत्नी का स्पर्श किया त्यों ही उसके शरीर में विद्युत जैसा करंट लगा। उसका स्पर्श करते ही राजा का अंग-अंग जलने लगा। वह दूर हटा और बोलाः “क्या बात है? तुम इतनी सुन्दर और कोमल हो फिर भी तुम्हारे शरीर के स्पर्श से मुझे जलन होने लगी?”

पत्नीः “नाथ ! मैंने बाल्यकाल में दुर्वासा ऋषि से शिवमंत्र लिया था। वह जपने से मेरी सात्त्विक ऊर्जा का विकास हुआ है। जैसे, अँधेरी रात और दोपहर एक साथ नहीं रहते वैसे ही आपने शराब पीने वाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ जो संसार-भोग भोगे हैं, उससे आपके पाप के कण आपके शरीर में, मन में, बुद्धि में अधिक है और मैंने जो जप किया है उसके कारण मेरे शरीर में ओज, तेज, आध्यात्मिक कण अधिक हैं। इसलिए मैं आपके नजदीक नहीं आती थी बल्कि आपसे थोड़ी दूर रहकर आपसे प्रार्थना करती थी। आप बुद्धिमान हैं बलवान हैं, यशस्वी हैं धर्म की बात भी आपने सुन रखी है। फिर भी आपने शराब पीनेवाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ भोग भोगे हैं।”

चंद्रा अप्सरा साधना खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करे 

राजाः “तुम्हें इस बात का पता कैसे चल गया?”

रानीः “नाथ ! हृदय शुद्ध होता है तो यह ख्याल आ जाता है।”

राजा प्रभावित हुआ और रानी से बोलाः “तुम मुझे भी भगवान शिव का वह मंत्र दे दो।”

रानीः “आप मेरे पति हैं। मैं आपकी गुरु नहीं बन सकती। हम दोनों गर्गाचार्य महाराज के पास चलते हैं।”

दोनों गर्गाचार्यजी के पास गये और उनसे प्रार्थना की। उन्होंने स्नानादि से पवित्र हो, यमुना तट पर अपने शिवस्वरूप के ध्यान में बैठकर राजा-रानी को निगाह से पावन किया। फिर शिवमंत्र देकर अपनी शांभवी दीक्षा से राजा पर शक्तिपात किया।

कथा कहती है कि देखते-ही-देखते कोटि-कोटि कौए राजा के शरीर से निकल-निकलकर पलायन कर गये। काले कौए अर्थात् तुच्छ परमाणु।

इससे तुम समझ सकती हो किस शरीर के अंदर कौन सी ऊर्जाए व्यक्ति धारण करता है तो क्या बन जाता है। तुम्हारे अंदर भी इसी प्रकार की करोड़ों बुरी शक्तियां वास करने लगती हैं। जब तुम वासनाओ की ओर दौड़ते हो। इसलिए इनसे दूर हटो इस संसार की सेवा करो या फिर ईश्वर का ध्यान करो। यह बात अच्छी तरह चंद्रा को समझ में आ गई। चंद्रा ने कहा, आपकी बात सही है। स्वर्ग में सभी सुख भोगते हैं और आखिर वापस मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ता है। उनके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। मैं ऐसा कार्य करूंगी कि मेरे कोई भी पुण्य कभी नष्ट न हो और मै सेवा करती रहूं। मैं सबको सुख देना चाहती हूं। सबका भला और कल्याण करना चाहती, इसलिए अब से मैं

तपस्या करूंगी और यहां तपस्या करने के बाद जो भगवान शिव चाहेंगे, वैसा ही होगा।

कहते हैं उसके बाद चंद्रा ने चंद्र ताल में और उसे देखकर भागा ने सूर्य ताल में।

तपस्या करना शुरू कर दिया। इन की तपस्या की वजह से वहां ताल और ज्यादा गहरा हो और उसके अंदर देवीय ऊर्जा प्रकट होने लगी।

चंद्रदेव जब चंद्रा से मिलने आए तब चंद्रा ने उन्हें बताया कि उसका जीवन तो तपस्या और जन-जन की सेवा के लिए बन चुका है। इनकी तपस्या और सेवा भाव को देखकर ऋषि-मुनियों ने उस ताल के निकट जाकर तपस्या करना शुरू कर दिया और वहां गोपनीय मठ बन गया। तपस्या के कारण उस ताल से स्वर्ग लोक जाने का एक मार्ग ताल के बीच में अदृश्य रूप से बन गया। जिससे होकर बाद में एक व्यक्ति ने साक्षात स्वर्ग में प्रवेश किया था और भगवान शिव एक बार जब वहां से गुजर रहे थे तो चंद्रा की वर्षों की तपस्या देखकर साक्षात उसके सामने प्रकट हो जाते हैं। आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह जानकारी और कहानी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

नहाती हुयी परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 3

Exit mobile version