Site icon Dharam Rahasya

नीम के तांत्रिक और औषधीय प्रयोग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आयुर्वेद में हम अभी तक विभिन्न प्रकार की औषधियों के तांत्रिक और औषधीय प्रयोगों के बारे में बात कर चुके हैं। उसी संख्या में आज हम लोग बात करेंगे नीम के वृक्ष के बारे में। नीम बहुत ही अधिक शुभ और विभिन्न प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला पेड़ माना जाता है। इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे निंबू निंबू अरिष्ट कीटक सर्वतोभद्र सुभद्र। अगर सामान्य परिचय की बात की जाए तो नीम इस धरती पर सबसे अधिक उपयोगी लाभदायक और महत्वपूर्ण वृक्षों की श्रृंखला में माना जाता है। मानव शरीर में होने वाले प्रत्येक रोग का उपचार नीम के द्वारा ही किया जा सकता है। नीम की उपयोगिता के कारण ही कवियों ने विभिन्न प्रकार के श्लोकों और कहावतें को कहा है। जैसे कि-

सुना है अपने गांव में रहा ना अब वह नीम जिसके आगे मंद थे सारे वैद्य हकीम।

कहने का तात्पर्य यह है कि पूरी धरती पर कहीं भी नीम से अधिक श्रेष्ठ वनस्पति कोई पाई ही नहीं जाती है।

अगर उत्पत्ति और प्राप्ति स्थान की बात की जाए तो यह हमारे पूरे देश में पाया जाता है। इसकी उपयोगिता के कारण इसको बड़े बड़े घरों, उद्यानों मंदिरों सड़कों के किनारे लगाया जाता है। स्वरूप की अगर बात की जाए। तो इसका पेड़ लगभग 8 फुट से लेकर के 15 से 20 फुट की ऊंचाई तक जाते हैं और उसके बाद और भी विशालकाय आकार लेते चले जाते हैं। बसंत ऋतु में यानी कि मार्च के महीने के आसपास का जो समय है, इस समय नई पत्तियां इसमें आती हैं जो प्रारंभ में हल्के लाल रंग की होती हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनका रंग हरा हो जाता है। फिर इस पर सफेद पीले रंग के छोटे-छोटे फूल आते हैं। इन फूलों से ही फलों का निर्माण होता है जिसे निबोरी भी कहा जाता है। यह निबोरी प्रारंभ में हरे रंग की होती है और फिर वर्षा प्रारंभ होने पर धीरे-धीरे पककर पीले रंग की बन जाती है।

गुणधर्म की अगर बात की जाए तो नीम शीतल, अत्यंत पवित्र, विष विनाशक और सभी प्रकार के रोगों को दूर करने वाला माना जाता है। यह वायुमंडल को शुद्ध करता है। नीम की पत्तियां और निबोरी कड़वी होती है, लेकिन फिर भी है अत्यंत ही उपयोगी मानी जाती है। मानव शरीर में होने वाले सभी रोगों का उपचार नीम से हो सकता है। नीम का प्रयोग नेत्र रोगों, दांत के रोगों, रक्त विकार, कृमि, रोग,विभिन्न प्रकार के बुखार, प्रमेह, गुप्त रोग आदि में इसका इस्तेमाल किया जाता है। प्रत्येक मनुष्य को इसके अधिक से अधिक पेड़ लगाने से। अवश्य ही लाभ होता है क्योंकि मानव जाति के लिए लाभप्रद पेड़ माना जाता है। नींम के विभिन्न प्रकार होते हैं। लेकिन कहीं-कहीं? नीम मीठे, नीम मीठी इत्यादि का भी उपयोग या उल्लेख मिलता है। इसका प्रयोग केवल कुछ विशेष प्रकार के भोजन बनाने में ही किया जाता है। वैसे नीम शब्द का प्रयोग सीधे-साधे कड़वे नीम से ही मानना चाहिए।

अब अगर इसके हम तांत्रिक प्रयोगों की बात की जाए। तो विभिन्न प्रकार के तांत्रिक और औषधीय प्रयोग हैं। तांत्रिक प्रयोगों में अगर किसी स्त्री को प्रसव नहीं हो रहा है उसके लिए। जब किसी महिला को प्रसव पीड़ा हो रही हो लेकिन उसे प्रसव नहीं हो पा रहा हो तो उसकी कमर में नीम की जड़ बांधने से पीड़ा समाप्त होती है और फिर कुछ ही देर में सुख पूर्वक प्रसव हो जाता है। अगर किसी जहरीले जीव ने काट लिया है जैसे कि बिच्छू! यदि किसी व्यक्ति को बिच्छू ने अगर काट लिया हो और उसका विष नहीं उतर पा रहा हो तो कोई अन्य व्यक्ति नीम की 10 से 15 पत्तियां अपने मुख में डालकर चबा ले और फिर अपने मुख से पीड़ित व्यक्ति जिसे बिच्छू ने काटा है, उसके कान में फूंक मार दे तो बिच्छू का विष उतरता है।

सांप के विष को उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विष से पीड़ित हो और उसका उपचार भी कराया जा रहा हो लेकिन उसे कोई लाभ नहीं हो रहा हो। ऐसी दशा में नीम की ढेर सारी पत्तियां लाकर बिछा देनी चाहिए और उसके ऊपर पीड़ित व्यक्ति को लिटा देना चाहिए। इससे पहले व्यक्ति के सारे कपड़े या वस्त्र उतार देना चाहिए। केवल गुप्त अंगो को ही ढके रहने देना चाहिए। फिर उस व्यक्ति के ऊपर भी नीम की पत्तियां जी बिछिया देनी चाहिए। केवल सांस लेने के लिए नाक मुका खुला रखना चाहिए। इस प्रकार से पीड़ित व्यक्ति को आवश्यकतानुसार समय तक उससे। यदि इस प्रयोग से पहले ही पीड़ित व्यक्ति के आंतरिक अंग पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो गए हैं। तब इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

इसके अलावा आप इसके चमत्कारी कई और प्रयोग कर सकते हैं जैसे कि तंत्र शास्त्र में अगर घर में नीम के पेड़ की लकड़ी से निर्मित श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना की जाए तो सभी प्रकार की बाधाएं स्वता ही नष्ट होने लगती हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है। गणेश उत्सव के दौरान यदि नीम की लकड़ी से बनी गणेश की स्थापना घर में की जाए तो बहुत शुभ माना जाता है। यदि किसी विशेष कार्य के लिए कहीं जा रहे हो तो पहले नीम की लकड़ी के बने श्री गणेश की मूर्ति का पूजन कर ले। इससे कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी। गणेशोत्सव के दौरान किसी रात्रि में लाल चंदन। और लाल फूल से श्रीगणेश का पूजन करें। ओम गं गणपतए नमः का 1000 जाप करके उस प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दें तो रुके हुए आपके कार्य संपन्न होने लगते हैं। यदि घर में किसी के ऊपर ऊपर साया हो तो इस चमत्कारिक प्रतिमा का प्रभाव करने से वह प्रभाव नष्ट हो जाता है। इस प्रतिमा के घर में रहते हुए किसी प्रकार के टोने-टोटके का असर आपके घर पर नहीं होता है और धन की कमी भी नहीं होने पाती है।

औषधीय प्रयोगों की अगर बात की जाए। तो पायरिया दांत में कीड़ा लगने वाले व्यक्ति को सुबह-शाम नीम की दातुन करनी चाहिए। पेट में अगर कीड़े हो जाए या पुरानी कब्ज हो तो प्रतिदिन नीम की 10 से 12 ताजी पत्तियां चबानी चाहिए। यह प्रयोग लंबे समय तक करना चाहिए। इससे समस्याएं पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती हैं। कुछ वैद्यों का कथन भी माना है कि नीम की निंबोलीयों को पीसकर रोगी व्यक्ति की नाभि के नीचे लेप करें। यह प्रयोग कई दिनों तक करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। चर्म रोग और शरीर में किसी भी प्रकार का चर्म रोग हो रहा हो। भले ही वह कितना भी पुराना हो। रोगी, व्यक्ति को प्रतिदिन नीम की 15 से 20 ताजी पत्तियां चबा कर खानी चाहिए। इसके अतिरिक्त नीम के पेड़ की पत्तियां आवश्यकतानुसार ले आना चाहिए और उनको पानी में डालकर उबाल लेना चाहिए। फिर पानी को आग से उतार कर ठंडा होने देना चाहिए। तब तक इस पानी से अपने रोग ग्रस्त अंग को धोना चाहिए। इस प्रक्रिया से चर्म रोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि रोग जितना पुराना होगा यह प्रयोग उतने ही अधिक समय तक करना होगा। रोगी को मीठा एवं नमक का प्रयोग कम कर देना चाहिए।

उपदंश के रोग से मुक्ति के लिए। जब किसी पुरुष या महिला के गुप्तांग के आसपास के क्षेत्र में फुंसियां दाने घाव इत्यादि हो जाए तो पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन नीम की 15 से 20 ताजी पत्तियां चबानी चाहिए और उपरोक्त बताए गई विधि से नीम की पत्तियों का पानी तैयार करके। उसे! अपने गुप्त अंगो को धोना चाहिए। यह प्रयोग कई दिनों तक करना चाहिए। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह प्रयोग सूजाक रोग में नहीं करना है। उपदंश के रोग में गुप्तांग के ऊपर फुंसी घाव होते हैं, जबकि सुजाक के रोग में गुप्तांगों के अंदर घाव हो जाते हैं। दोनों में यही एक बड़ा अंतर है। बिच्छू का विष दूर करने के लिए आप नीम के पत्ते और कड़वा तेल इन दोनों को मिलाकर खूब अच्छी तरह से उबालने फिर आग से उतारकर इसकी भाप से बिच्छू द्वारा काटे गए स्थान को सेकने से बिच्छू का भी विष उतर जाता है। सांप के विष को उतारने के लिए भी व्यक्ति को। इसका प्रयोग करना चाहिए। जिस व्यक्ति को सांप ने जहां कांटा हो, तुरंत ही काटे गए स्थान पर किसी तेजधार वाले अस्त्र जैसे कि ब्लड चाकू से जोड़ के चिन्ह के रूप में निशान लगाकर विषैला खून बहा देना चाहिए।

इसके बाद उस काटे गए स्थान के ऊपर और नीचे रस्सी आदि से खूब कड़ा कपड़ा बांध दें ताकि विषैला रक्त heart तक ना पहुंच पाए। फिर पीड़ित व्यक्ति को नीम की ताजी पत्तियां चबाने के लिए दें। जब तक शरीर में विष रहेगा वह पत्तियां खाने में मीठी लगेंगे और जैसे ही विष समाप्त हो जाएगा, तब यह पत्तियां कड़वी लगने लगेंगे। अतः जब तक पत्तियां मीठी लगती रहे उस व्यक्ति को खिलाते रहे। जब पत्तियां कड़वी लगने लगे तो समझ लीजिए। विष का प्रभाव समाप्त हो रहा है। इस प्रकार से आप विभिन्न प्रकार के तांत्रिक और गोपनीय प्रयोगों को औषधीय प्रयोगों के साथ में नीम के पौधे के रूप में कर सकते हैं। अगर यह वीडियो और पोस्ट आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version