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बंगाली जादू सीखना पड़ा बहुत महंगा आपबीती सच्ची घटना 5 वां अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। बंगाली जादू सीखना पड़ा बहुत……अनुभव अभी तक आपने जाना, यह आखरी भाग है जिसमें इन्होंने अपने पिता के साथ घटित हुए। अंतिम सबसे खतरनाक अनुभव को यहां पर प्रेषित किया है काफी दिनों के बाद में। चलिए जानते हैं कि आखिर अंत में उनके पिता के साथ क्या घटित हुआ था? पढ़ते हैं इनके पत्र को।

पत्र- नमस्कार गुरु जी! फिर कुछ दिनों बाद गुरु जी मेरे पापा के अंदर कुछ बदलाव दिखा। उन्होंने घर में लड़ना शुरू कर दिया। मार पिटाई इत्यादि वह सब करने लगे थे। यह सारी बातें मुझ से बर्दाश्त नहीं हो पाती थी। मैंने उन्हें बहुत अधिक समझाने की कोशिश की थी, लेकिन वह थे कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उनकी इन हरकतों से तंग आकर मैं अपने घर से बाहर चला गया। मैं अपनी नौकरी के लिए गया था लेकिन इससे फिर भी घर में क्लेश कम नहीं हुआ।

मेरी बहन मुझे फोन पर बताया करती थी। पापा के बारे में, कि भाई पापा ने आज यह काम कर दिया। आज वह काम कर दिया। ऐसे ही 1 दिन करीब रात को 12:00 बजे। फोन आया तो फोन पर मेरी मां ने सीधे-सीधे मुझे कहा कि जब हम मर जाएंगे तब आएगा क्या तू? इसके बाद उन्होंने वह फोन काट दिया था। घर से ऐसी बातें सुनकर अब मैं बहुत अधिक परेशान हो गया।

और मैंने सोचा कि अब मुझे यहां से निकलना चाहिए। और उसी समय में वहां से निकल गया।

यात्रा करते हुए सुबह तक मैं घर पहुंच गया। जाते ही सीधे अपने पापा से मैंने बात की कि यह सब क्या चल रहा है इस घर में लेकिन उन्हें? जैसे कोई फर्क ही ना पड़ा हो, उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। गुरुजी फिर मैंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर फिर कभी ऐसा किया तो आपके लिए अच्छा नहीं होगा। इस बात पर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इस बार गुरु जी मैंने घर में रहना ही उचित समझा और इस प्रकार लगातार दिन बीतते चले गए। गुरुजी जब मैं घर में रहता तब तक सब ठीक रहता था, लेकिन मेरे घर बाहर जाते ही वह फिर से लड़ने लगते। गुरुजी इस समस्या का मुझे कोई हल नजर नहीं आ रहा था। फिर एक दिन मेरे

मन में एक विचार आ गया कि मुझे साईं बाबा का गुरुवार का उपवास कर लेना चाहिए। गुरु जी मैंने उपवास रखना शुरू कर दिया।

गुरु जी मुझे 3 ही गुरुवार हुए थे कि 1 दिन एक रात ऐसी घटना घटी जिसने मुझे वह कर्म करने पर मजबूर देख कर दिया था जिसे किसी भी पुत्र को कभी नहीं करना चाहिए। हुआ यूं कि मैं घर में लेटा हुआ। विचार ही कर रहा था कि इस समस्या से कैसे बचा जाए? तभी मेरी बहन भागती हुई आई और बोली भाई मम्मी! मैं भी बिना सोचे समझे ही यह जानने के लिए भाग लिया कि आखिर हुआ क्या है? मैंने! जाकर देखा तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। और इस वजह से मेरे अंदर ऐसा प्रभाव आया कि मैं आपे से बाहर हो गया था। क्योंकि जो सामने मेरे दृश्य था, वह बड़ा ही अजीब था। कोई भी पुत्र ऐसा दृश्य नहीं देखना चाहेगा। मेरे पापा ने मेरी मां की गर्दन दबोच रखी थी। मैंने कहा कि अब बात हद से बाहर हो गई है। मैंने पास में ही पड़ा एक डंडा उठाया और दमकी दी, इस बात पर वह चुप हो गए। कुछ देर बाद जब शांत हो गये तो मेरी मां ने कहा कि तू!

घर से चला जा, इसके पहले कि दोबारा कोई बात हो। मेरी मां ने कहा कि अगर तूने उन पर हाथ उठाया तो यह बहुत ही गलत हो जाएगा। मैं भी यह सुनकर फिर वापस जाने लगा। अचानक मेरे पापा यह कहते हुए मेरी तरफ दौड़े कि मेरी ताकत देखेगा क्या तू? ऐसा होते देख मेरी मां ने कहा कि तू यहां से भाग जा और सुबह ही आना।

मैं मां की बात सुनकर घर से बाहर भाग गया। लेकिन मेरे पापा भी मेरे पीछे पीछे भागे। मैं भागते हुए हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर एक नदी है। मैं उस में कूद गया और उसको पार कर गया।

और खेतों में पहुंच गया।

मेरे पापा ने वह नदी पार नहीं की और वह वापस आ गए। गुरु जी मैंने वह पूरी रात खेतों में ही गुजारी थी। जब मैं सुबह घर आया तो सब कुछ शांत था लेकिन ना तो मैंने अपने पापा से बात की, ना उन्होंने मुझसे की। लेकिन मैंने पूजा करते समय रोते हुए साईं बाबा को देखा।

बाबा या तो मेरे पापा को ठीक कर दो या उठा लो? खुद जिम्मेदारी लो और मैं सब कुछ संभाल लूंगा यह कहकर मैंने वह पूजा संपन्न की।

पूजा के बाद सोने के लिए सोच कर जैसे ही चला वैसे ही मेरे पापा की अजीब सी हरकत को देख कर के मैं वहां पर रुक गया। वह अपने आप ही बोल रहे थे कि जब पहले से ही पता था की बलि देनी पड़ेगी तो दी क्यों नहीं दी अब भुगतो? मैंने यह सुना तो समझ गया क्यों यह सब कुछ हो रहा है?

उसके कुछ दिनों बाद ही उन्हें हमने बलि देने के लिए मना लिया। उसके बाद कुछ समय तक तो ठीक ठाक चला लेकिन एक दिन मैं सुबह खाना खाने के लिए बैठा हुआ था। कि मेरे पापा मेरी मां को बोले कि मैं 15 दिन के लिए दिल्ली जा रहा हूं।

और यह कह कर के वहां से चले भी गए। मैं भी स्कूल के लिए निकल गया था। सब कुछ ठीक था। उस दिन मेरा आखरी यानी नवा गुरुवार का उपवास भी था। मैं जैसे ही स्कूल से घर पहुंचा, मैंने अपनी बहन से पानी लाने के लिए कहा। तभी मेरे पास मेरे एक मित्र ने फोन किया।

भाई मैं यहां स्टेशन पर खड़ा हूं तू जल्दी आ जा! बहुत ही बुरा हो गया है। मैंने पूछा, आखिर क्या हुआ है उसने कहा, यहां तेरे पापा का ट्रेन से एक्सीडेंट हो गया है। मैंने उससे कहा कि भाई तेरा दिमाग तो ठीक है ना, वह तो दिल्ली गए हैं। उसने कहा कि याद इन बातों की मजाक नहीं होती है। गुरु जी अब इस बात को सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गए थे। मैंने किसी को कुछ नहीं बताया घर से तुरंत ही निकल लिया और अपने दादाजी को लेकर उस स्टेशन पर पहुंचा। पर वहां पर जो मैं देखा शायद कोई पुत्र देखना नहीं चाहेगा। वहां मैंने देखा कि वह पटरी पर उल्टे थे। बिल्कुल बीच में से उनके दो टुकड़े हो गए थे।

यह देखने के तुरंत बाद मैं तो अपनी सुध बुध ही खो बैठा था। मुझे नहीं पता मुझे वहां से कौन लाया?

मेरी सच्ची कहानी जो अब समाप्त होती है गुरु जी। गुरुजी कहीं ना कहीं इस हादसे का दोषी मैं खुद को ही मानता हूं।

अगर मैंने बाबा से वह बात ना कहीं होती तो शायद मेरे पापा आज हमारे बीच होते।

प्रणाम गुरुजी! गुरु जी धन्यवाद कि आपने मेरी मन की भावना को समझा और इसे अपने चैनल पर प्रसारित भी किया है। गुरु जी आप जो काम कर रहे हैं वह सराहनीय है। जिससे लोगों को अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति होती है।

संदेश – यहां पर इनके जीवन में किस प्रकार से? इनके पिता को स्वर्गवास की प्राप्ति हो गई। वह भी एक साधारण की नकारात्मक शक्ति की साधना के कारण। ऐसा जीवन में तभी घटित होता है जब। शक्तियां पूरी तरह से व्यक्ति को अधीन कर लेती हैं और अधीन करते-करते अपने ही लोक में खींचने के लिए उसकी बलि तक स्वयं ले लेती हैं। अगर इनके पिता कभी भी किसी उच्च गुरु की शरण में चले गए होते या फिर इन्होंने किसी इष्ट मंत्र का जाप जीवन भर किया होता तो ऐसी शक्ति कभी इनका बुरा नहीं कर सकती थी। वह इनकी गुलाम बन जाती ना कि जैसे उसने इन्हें अपना गुलाम बना लिया था।

रही बात! वीरेंद्र की अपने आप को गुनहगार मानते हैं वैसा कुछ भी नहीं है।

व्यक्ति अपने कर्मों के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होता है। दूसरा कोई नहीं होता आपने अपने हिसाब से कोशिशें की।

लेकिन? जिसने स्वयं। अपने आप को नकारात्मक शक्ति को सौंप रखा हो, उसमें भला आप क्या कर लेते? केवल गुरु मंत्र की अगर, आपने शरण ले रखी होती तो? शायद वह बच जाते क्योंकि उन मंत्रों का उच्चारण कर वो सुनते और उस घर में रुके रहते तो निश्चित रूप से उस शक्ति को वहां से भागना पड़ता।

लेकिन सब के साथ यह संभव नहीं हो पाता है।

जिसका भाग्य या प्रारब्ध मजबूत होता है उसे ऐसी शक्तियां प्राप्त होती हैं और उनका सानिध्य लेने का एक मौका मिलता है। आपके पास अभी मौका है आपके परिवार के पास भी मौका है। लेकिन शायद पिता ने आपके मौका खो दिया है। अब सिर्फ इतना ही हो सकता है कि आप उनके लिए प्रार्थना करें ताकि वह किसी निम्न लोक से उच्च लोक की ओर गमन कर पाये।

यह था इनके जीवन का सत्य अनुभव जो काफी दिनों बाद इन्होंने भेजा। अगर आपको यह अनुभव पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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