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बाबरा भूत और नवलखा मंदिर का मूलक तांत्रिक 5वाँ अंतिम भाग

बाबरा भूत और नवलखा मंदिर का मूलक तांत्रिक पांचवा अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसे कि हमारी अभी तक की कहानी में अपने जाना की बावरा भूत और नवलखा मंदिर में मौजूद तांत्रिक अपनी साधना को किस प्रकार से आगे बढ़ा रहा था  । उसकी साधना में उसने भूतनी नंदा और चंपा को प्रसन्न कर लिया । लेकिन अगली श्रेणी में उसका सामना झंझावात नाम के एक प्रेत से होता है जो उसी शिवलिंग को उठा कर के ले जाता है । जिस शिवलिंग की मूलक पूजा कर रहा होता है । इस समस्या के कारण मुलक को अब झंझावात प्रेत के पीछे भागना और दौड़ना पड़ता है । क्योंकि बिना उस शिवलिंग की पूजा किए हुए उसको फिर से सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती । इस बात की गंभीरता को समझ कर के मूलक तांत्रिक झंझावात प्रेत का पीछा करता है । जो कि एक विभिन्न प्रकार का हवा का चक्र बनाते हुए उस शिवलिंग को उड़ाए हुए ले जा रहा था । उसके पीछे मूलक तांत्रिक जोर से भागता है और पूरी कोशिश करता है किसी प्रकार से वह झंझावात प्रेत को रोक ले । लेकिन झंझावात प्रेत रुकने वाला नहीं था झंझावात उस शिवलिंग को उड़ाते हुए धीरे-धीरे करके एक पर्वत की चोटी पर पहुंच गया । पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर मूलक तांत्रिक ने उसे आवाज दी और कहा रुक जा भाई रुक जा । इसे ले जाकर के तुझे क्या मिलेगा मेरी की हुई सारी मेहनत नष्ट हो जाएगी मैं तुझे वचन देता हूं कि जो भी तेरी इच्छा होगी मैं उसे पूरा करूंगा । झंझावात प्रेत एक क्षण के लिए वहां पर रुक जाता है और उस घूमते हुए शिवलिंग के बीज से अपनी आकृति बनाता हुआ उससे कहता है कि मुलक क्या तू सच में इस बात की प्रतिज्ञा करता है कि मैं जो कुछ भी चाहूंगा या मांगूंगा वह तू मुझे देगा । मूलक ने कहा हां भाई जो भी मेरे सामर्थ में होगा मैं अवश्य ही प्रदान करूंगा यही मेरा वचन है ।

झंझावात प्रसन्न हो जाता है और कहता है तू अपनी सबसे प्यारी चीज मुझे दे दे । मूलक कहता है मुझे नहीं पता कि मेरी सबसे प्यारी चीज क्या है । झंझावात हंसते हुए कहता है वह तो तुझे पता चल ही जाएगा मैं तुझे एक दिन का अवसर देता हूं । अगर तूने 1 दिन के अंदर तय समय पर अपनी साधना पूर्ण नहीं की तो तेरी सिद्धि वैसे भी नष्ट हो जाएगी । इसलिए 1 दिन के और अपनी पूजा के नियमित समय तक तू मुझे अपनी सबसे प्रिय वस्तु शौप । और हां याद रखना वह वस्तु ऐसी होनी चाहिए जिसके कारण से वह हमेशा मेरे पास बनी भी रहे और तेरे पास से कुछ जाए भी नहीं । और इसके अलावा वह कभी नष्ट भी ना होने वाली हो । याद रखना मेरी इस शर्त को याद कर ले अगर तू चाहता है तेरी साधना पूर्ण हो तो यह कर । मूलक तांत्रिक ने कहा हां अवश्य मैं अपनी सबसे प्यारी चीज तुझे दूंगा । झंझावात प्रेत वहां से गायब हो जाता है और शिवलिंग उसी जगह आकाश में बना रहता है । झंझावात यह कहकर गया था इस शिवलिंग को तू तभी उतार लेगा और तभी तो इसे अपने हाथों में पकड़ पाएगा जब तू इस कार्य को संपन्न करेगा यहां पर वापस आ कर के तुझे उचित पहर में यह कार्य कर लेना है । मूलक तांत्रिक वह सब वहां पर खड़ा हुआ देखता है और उसी के साथ झंझावात प्रेत वहां से गायब हो जाता है । मूलक पहाड़ी से नीचे उतर कर आता है और सोचने लगता है की ऐसी कौन सी वस्तु है ऐसी कौन सी चीज है जो मैं इसे दे सकता हूं । और जो वह मेरी सबसे अधिक प्यारी भी हो जिसके कारण से मुझे शिवलिंग मिल सके और मेरी साधना संपूर्ण हो सके । बहुत देर विचार करने के बाद में उसे कोई ख्याल मन में नहीं आता है वह सोचता है कि ऐसी कौन सी वस्तु हो सकती है जिसको मैं दू । और इससे वह प्राप्त भी करें जो नष्ट होने वाली भी ना हो और मेरे पास से जाने के बाद कुछ महसूस भी ना हो जैसे कोई चीज हमेशा के लिए चली गई । वह बहुत देर सोचता रहता है लेकिन उसे कोई मार्ग नहीं दिखता है ।

एक बार फिर से वह अपने उस बाबा के पास आता है बाबा से पूछता है बाबा कहता है मैंने कहा था ना कि मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता । लेकिन क्योंकि तूने मुझे अपना गुरु माना हुआ है इसलिए मैं तेरी मदद के लिए एक मार्ग सुझाता जाता हूं । तू ऐसा कर उन भूतनीयों को एक बार फिर से याद कर जिसने तेरी परीक्षाएं ली थी । क्योंकि वह तुझे आशीर्वाद देकर गई थी इसलिए अवश्य तेरी सहायता करेगी । उसकी बात को सुनकर मूलक तांत्रिक सोचता है कि हां इनकी बात में दम है मुझे अवश्य ही उन भूतनीयों को फिर से पुकारना चाहिए । और फिर वह गोपनीय तरीके से भूतनीयों को पुकारने के लिए गुप्त स्थान पर जाकर के उन्हें याद करने लगता है । जो गोपनीय मंत्र उन भूतनीयों से प्राप्त हुए थे । उनकी मदद से वह नंदा और चंपा को एक बार फिर से बुलाता है नंदा चंपा शीघ्र ही वहां प्रकट हो जाती है । और प्रकट होकर के कहती है मूलक बता हम लोगों को तूने क्यों याद किया है । ऐसी क्या समस्या तुझे आन पड़ी है जिसकी वजह से तूने हमें दोबारा से याद किया है । इस पर मूलक तांत्रिक कहता है माताओं मैं यह जानना चाहता हूं कि यह झंझावात प्रेत की बाधा से में किस प्रकार से बचू । जो शिवलिंग आकाश में है उसको वापस कैसे लाऊं उसकी पूजा कैसे करूं यह सब कैसे संभव होगा । इस पर भूतनीया कहती है उसने जो शर्त रखी है उसे मान लो क्योंकि झंझावात को रोका नहीं जा सकता । झंझावात की इच्छा के बगैर तुम वह शिवलिंग प्राप्ति भी नहीं कर सकते हो । वह एक बहुत शक्तिशाली प्रेत है और अपनी इच्छा से कार्य करता है अगर उसने कोई शर्त रखी है तो वह तुम्हें मान लेनी चाहिए । हमें बताओ उसने क्या कहा है तब मूलक तांत्रिक उन्हें सारी बात बताता है । इस पर नंदा चंपा एक दूसरे को देखती है और कहती हैं नंदा रे चंपा सुन तो यह नीरा मूर्ख अभी तक कुछ बात समझ ही नहीं पाया । इसे हमने कितना समझाया लेकिन यह अभी तक भी नहीं समझ पाया । चंपा कहती है हा रे नंदा यह है तो निरा मूर्ख ही है ।

अरे अपनी सबसे प्यारी वस्तु क्या है खुद सोच तू । यहां क्यों आया है यही तो तेरी सबसे प्यारी चीज है । इस पर मुलक तांत्रिक कहता है हां माताओं लेकिन मुझे समझ में यह नहीं आ रहा अगर मैं जिसके कारण यानी उस राजमहल के कारण यहां पर आया हूं । अपनी उस ऋषि की पुत्री के कारण यहां पर आया हूं अगर मैंने दोनों में से कोई भी चीज उसे दे दी तो यह चीजें नष्ट होने वाली है । यह तो चीजें समाप्त हो जाएंगी कभी ना कभी ऐसी अवस्था में यह दोनों वह चीज हो नहीं सकती जो मैं उन्हें दू । फिर नंदा चंपा एक दूसरे को कहती है तू सच में नीरा मूर्ख है तू बात को समझता नहीं है । दुनिया में सबसे बड़ी चीज क्या है यह दुनिया बनी है । तो मुलक कहता है माताओ बताओ । कहती है अरे मूर्ख अगर तेरे मन में इच्छा नहीं पैदा होती की तू उस ऋषि पुत्री से शादी करें । और तेरे मन में फिर से इच्छा ना पैदा होती कि उसके लिए तुझे साधना करनी है । और तेरे मन में फिर से इच्छा पैदा ना होती कि तुझे इस प्रकार यहां आकर के शिव साधना करनी है तो यह क्या सब होता । तो मूलक ने कहा हां माता यह तो सत्य है कि अगर मैं इच्छा ही नहीं करता इन सब बातों के लिए प्रेरणा ही नहीं पाता और करता नहीं । तो निश्चित रूप से यह कोई भी कार्य संपन्न नहीं होने वाला था तो फिर सबसे बड़ी चीज कौन सी है  नंदा और चंपा ने मुस्कुराते हुए कहा । मूलक ने कहा मैं समझ गया वह इच्छा ही है जिसे मुझे छोड़ना है लेकिन मैं कौन सी इच्छा छोड़ कौन सी इच्छा झंझावात प्रेत को दू । अब नंदा चंपा एक बार फिर से हंसने लगती है और कहती है तू अभी भी निरा मूर्ख ही है थोड़ा सा अपने दिमाग का प्रयोग कर और हम लोगों को जाने दे । इस प्रकार नंदा और चंपा वहां से गायब हो जाती है । वह लगभग सब कुछ बता गई थी समझने वाले समझ जाते हैं । ऐसा सोच कर के मूलक तांत्रिक ने कहा अवश्य ही मुझे अपनी इच्छा का त्याग करना है अब मेरी इच्छा यह है कि मैं यह साधना इसलिए कर रहा था ताकि बाबरा भूत मुझसे सिद्ध हो जाए ।

बाबरा भूत मुझसे सिद्ध होता तो मुझे राज महल मिलता वह राज महल में ऋषि को देता ऋषि उस राजमहल को प्राप्त करके प्रसन्न हो जाता और वह अपनी पुत्री मुझे दे देता । यानी की सबसे बड़ी इच्छा यहां पर बाबरा भूत की सिद्धि है तो मुझे ऐसा लगता है कि मुझे बाबरा भूत की सिद्धि की इच्छा ही झंझावात प्रेत को दे देनी चाहिए । कम से कम भगवान शिव जी का शिवलिंग तो मुझे प्राप्त होगा । और रही बात ऋषि पुत्री को प्राप्त करने की तो अवश्य ही मेरा मन पवित्र हो चुका है इतने दिनों में । इन दोनों भूतनीयों देवी ने बहुत कुछ बताया है यह जिंदगी का बहुत बड़ा रहस्य समझा कर के गई थी । और आज भी यह बहुत बड़ा रहस्य समझा रही है इच्छाओं का खेल यह सब कुछ उन्होंने मुझे बता दिया है । इसलिए मुझे लगता है कि मुझे बाबरा भूत की सिद्धि नहीं चाहिए मैं भगवान शिव की सिद्धि करूं । भगवान शिव को ही प्राप्त करूं क्योंकि उनमें पता नहीं ऐसे कितने करोड़ बाबरा भूत समाए होंगे इतनी कितनी सारी सिद्धि समाई है कितना बड़ा रहस्य है वह आखिर त्रिलोकी स्वामी है । वो मुझे उनको ही प्राप्त करना चाहिए । बाबरा भूत की सिद्धि का मैं क्या करूं और रही बात उस कन्या को प्राप्त करने की तो उसके और मेरे बीच बहुत ही लंबा आयु होने का जो है बीच का संदर्भ है वह मुझसे काफी छोटी है । लगभग 30 वर्ष में अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए प्रेम और विवाह करना चाह रहा था लेकिन यह सही नहीं है । इतने दिनों में मैं साधना करते हुए मैं वह रहस्य जान चुका हूं कि जीवन में वास्तविकता क्या है । इसलिए मुझे चाहिए कि यह सब कुछ छोड़ छाड़ के अब अपने जीवन की बचे हुए समय में भक्ति मार्ग में गुजारू और उस महान परम परमेश्वर भगवान शिव की शरण लू ।  वह मुझे निश्चित रूप से मुक्त करेंगे और इस प्रकार की इच्छाओं से जो शरीर से बड़ी होती है उनसे मुक्ति मुझे मिलेगी । यह सोचकर के मूलक तांत्रिक अब इस बात के लिए तैयार हो चुका था कि उसे झंझावात प्रेत को क्या देना है ।

धीरे-धीरे करके शाम का समय नजदीक आ रहा था मूलक अपनी साधना से पहले उस स्थान पर पहुंच ना चाहता था । ताकि वह उस दिन की साधना गोपनीय तरीके से संपन्न कर सकें इसलिए वह जल्दी-जल्दी उस पर्वत से शिखर तक पहुंचा । पर्वत शिखर पर पहुंचकर उसने उस झंझावात प्रेत को पुकारा शीघ्र ही झंझावात प्रेत वहां पर प्रकट हो गया । झंझावात मुस्कुरा रहा था झंझावात ने कहा क्यों रे ले आया अपने सबसे प्यारी वस्तु मुझे दे तुरंत दे अगर तू नहीं देगा तो तेरा शिवलिंग मैं तुझे वापस नहीं करूंगा । और अगर तुझे तेरा शिवलिंग तुझे वापस नहीं हुआ तू कभी सिद्धि प्राप्त नहीं कर पाएगा । उस पर मूलक तांत्रिक ने कहा झंझावात प्रेत मैं अपनी इच्छा से अपनी आत्मा से अपने मन से अब तक की समस्त बाबरा भूत सिद्धि साधना तुझे देता हूं । यह कहकर के झंझावात प्रेत उसकी ओर देखा कहा अरे तू तो बड़ा निरा मूर्ख है तो अपनी सारी शक्तियां और सामर्थ मुझे देना चाहता है । मूलक ने कहा हा मुझे केवल शिव तक ही पहुंचना है मुझे सिर्फ उनका यह अंश शिवलिंग मुझे दे दो । ताकि मैं इसकी पूजा-अर्चना करके उस परमसत्ता शिव को प्राप्त कर सकूं । कृपया मुझे यह दे दो । मेरा मन अब दुनिया की बातों उजड़ चुका है  ऐसा कह कर के झंझावात प्रेत प्रसन्न हुआ झंझावात प्रेत ने कहा ठीक है तो तू यह स्वीकार करता है ले संकल्प । फिर मूलक तांत्रिक ने वहां पर संकल्प लिया और अपनी अभी तक की गई सारी साधना बाबरा भूत सिद्धि झंझावात प्रेत को सौंप दी । जैसे ही उसने संकल्प लिया वहां पर भीषण काले बादल नजर आने लगे बिजलिया चमकने लगी और वहां पर एक विशालकाय आकृति प्रकट हुई । जो थी बाबरा भूत बाबरा प्रकट हो चुका था । बाबरा भूत स्वयं झंझावात प्रेत बना हुआ अभी तक सारी प्रक्रिया को करने वाला था ।

यानी कि झंझावात प्रेत और कोई नहीं बाबरा भूत ही था ।  बाबरा भूत प्रसन्न होकर कहने लगा तूने तो मुझे प्रसन्न कर दिया मैं तुझसे बहुत ही प्रसन्न हूं । तूने ना सिर्फ मेरी हर प्रकार की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है बल्कि तूने तो मुझसे भी आगे जाकर भगवान शिव की साधना भगवान की कृपा मांग ली । जिसके लिए मैं तड़पता रहता हूं मैं तुझे स्वेच्छा से एक राज महल देता हूं । शिव भक्ति भी मैं तुझे प्रदान करता हूं जिस प्रकार में शिव भक्त हूं और सदैव अपने परमपिता की पूजा किया करता हूं ऐसा तू भी करेगा । यह कहकर के झंझावात प्रेत बना हुआ बाबरा भूत अपने सिद्धि से वहां पर एक विशालकाय इमारत खड़ी कर देता है  उस इमारत को सामने प्रकट कर देता है । उस इमारत में बैठ कर के शीघ्र ही मूलक तांत्रिक अचानक से गायब हो जाता है और उस स्थान पर प्रकट होता है । जहां पर ऋषि और उसकी पुत्री थी । ऋषि भी ठीक हो चुका था ऋषि ने कहा मुझे सारी बातें पता चल चुकी है । बाबरा ने मुझे स्वास्थ्य बना दिया है मैं पूर्णता स्वस्थ हूं और स्वेच्छा से अपनी पुत्री तुम्हें प्रदान करता हूं । मूलक कहता है यद्यपि मेरी कोई इच्छा नहीं रही फिर भी क्योंकि मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं । क्योंकि मैंने आपके बारे में गलत सोचा आपके बारे में गलत करने की कोशिश की । इसलिए मुझे क्षमा कर दीजिए हे गुरुदेव मैं आपके चरणो में पढ़ा हूं मुझे क्षमा कर दीजिए । और इस प्रकार होते हुए मुलक तांत्रिक अपने गुरु के चरणों में गिर जाता है । गुरु उसे क्षमा कर देता है शीघ्र ही दोनों का विवाह संपन्न होता है ।

और विवाह करते के दौरान ही मूलक अपने वास्तविक कम उम्र के रूप और स्वरूप को धारण कर लेता है । अर्थात उसकी उम्र 30 वर्ष पीछे हो जाती है । दोनों बहुत ही ज्यादा खुश होते हैं वशीकरण भी हट चुका था सारी चीजें सही हो चुकी थी । मूलक कहता है मैं प्रतिज्ञा लेता हूं कि मैं इच्छाओं और वासनाओं से दूर रहूंगा और सदैव भगवान शिव की भक्ति करता रहूंगा । भक्ति से बड़ा कुछ भी नहीं है सब तांत्रिक क्रिया भक्ति के मार्ग में ही जाकर के विलीन करने वाली होती है । इसलिए भक्ति से उत्तम कोई तंत्र नहीं है यही सोच कर के मैं भगवान शिव अपना सर्वस्व अर्पण करता हूं । और आज से मैं अपने सब परिवार अर्थात ऋषि और साथ में उनकी पुत्री और स्वयं भगवान शिव की साधना आराधना करने का वचन लेता हूं । इस प्रकार बावरा ने वहां खड़े होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और बावरा वहां से गायब हो गया । तो यह थी कहानी अंतिम भाग जिसमें आपने जाना कि किस प्रकार मूलक तांत्रिक को वास्तविकता का ज्ञान हुआ । जिंदगी सच्चाई पता था कि और उसने सब कुछ प्राप्त भी कर लिया । तो अगर आप अपनी इच्छाओं को नहीं त्यागेंगे तो जीवन में सफल नहीं हो सकते । इसलिए इच्छाओं को ही त्याग करके ही जीवन में हर कार्य को करना चाहिए । केवल लक्ष्य केंद्रित होना चाहिए ताकि आप सफलता प्राप्त कर सके । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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