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बेताल कैसे पैदा हुआ कहानी भाग 3

जैसा कि बेताल की कहानी चल रही है । इस कहानी में अब आगे क्या होता है, उसको बताने की कोशिश करेंगे अब तक तक हमें कहानी में पता है की कपालकुंडला अब बेताल के पास आने के लिए निकल चुकी है, उसने और आमत्या के बेटे ने मिलकर के एक ऐसे षडयंत्र का निर्माण कर दिया था जिसकी आहुति में राजा और बेताल दोनों का ही नाश होना तय था।

 ऐसी स्थिति पैदा कर लेने के बाद अब बेताल के पास रात में वह धीरे धीरे चलती हुई जाती है । रात्रि के समय  बेताल अपनी साधना में माता काली के मंत्रों का उच्चारण कर रहा होता है , धीरे-धीरे चलते हुए उसकी यज्ञ की आहुति के सामने आकर खड़ी हो जाती है ।   हवन कुंड की ज्वाला में पहली बार बेताल उसे देखता है और देखता ही रह जाता है ,अनुपम सुंदरी के रूप में जो वह स्त्री  बनाना चाहता है वह उसके सामने खड़ी थी।  उसने बड़े प्रेम से पूछा मेरी तो साधना सफल भी नहीं हुई जैसी स्त्री कि मैं रचना करना चाह रहा था, तुम तो उससे भी ज्यादा सुंदर हो क्या तुम मेरे यज्ञ कुंड से उत्पन्न हुई हो या फिर कोई स्त्री हो जो यहां पर आ गई है चांदनी रात में इतनी खूबसूरत स्त्री को मैंने पहली बार देखा है ।

हंसते हुए और मुस्कुराते हुए कपालकुंडला ने कहा नहीं मैं योगिनी हूं, मेरा नाम कपालकुंडला है और मैं यहां से गुजर रही थी । ऐसे भी मैं ऐसे किसी तपस्वी की तलाश में हूं जो मेरा वरण कर सके अर्थात मेरे से विवाह करके मेरी संतान को उत्पन्न कर सके, बहुत समय से मैं ढूंढ रही थी लगता है आपको देखकर मेरी यह तमन्ना पूरी हो जाएगी आपको देखते ही मुझे यह विश्वास हो गया है कि आप जैसा सिद्ध और बलवान पुरुष ही मेरे लिए उपयुक्त है।   मुस्कुराते हुए बेताल ने कहा मेरा कोई ऐसा प्रयोजन नहीं है कि मैं तुमसे विवाह करूं, मैं तो मात्र उस  राजा को सबक सिखाना चाहता हूं ,उसे बताना चाहता हूं जैसी स्त्री उसने मुझे भेजी थी मैं उससे हजार गुना सुंदर स्त्री उसके पास भेज सकता हूं ।  तो क्या तुम मेरा साथ दोगी ? कपालकुंडला ने जहरीली मुस्कान भरते हुए कहा हां अवश्य ही अगर आपका कोई प्रयोजन हो तो मैं उसे अवश्य पूरा  कर सकती हूं, और मैं आपके लिए निश्चित रूप से आप की विजय का प्रतीक बनूंगी ,तो बताइए क्या कार्य करना है?  बेताल ने कहा तुम राजा के पास जाओ और उसे अपने प्रेम जाल में फंसा लो और कहो कि मुझे अगर प्राप्त करना है तो  बेताल से क्षमा मांगे अर्थात मुझसे आकर क्षमा मांगे ,कपालकुंडला ने कहा ठीक है बात तो तुमने बहुत अच्छी और सही बताई है मैं तुरंत ही जाती हूं उसे अपने प्रेम सौन्दर्य में फंसा लेती हूं।

 राजा रात्रि का भोजन करने के बाद आकाश में चांद को निहार ही रहा था, तभी चांद के बगल से ही वह एक सुंदर स्त्री उड़ते हुए उसके पास आई  और उसके आंगन में उतर गई यह देखकर राजा मंत्र मुग्ध हो गया क्योंकि वह कपालकुंडला थी l कपालकुंडला के अद्भुत सौंदर्य को देखकर राजा का मन काबू से बाहर हो गया और वह दौड़ा-दौड़ा कपालकुंडला के पास आया और उसे कहा सुंदरी तुम कौन हो ,तुम्हें देखते ही मेरे मन में ऐसी अनुभूति होने लगी जैसे कि तुम ही मेरी जीवनसंगिनी बनोगी । कपालकुंडला हंसते हुए कहने लगी नहीं ऐसा होना संभव ही नहीं है । तुम मेरी तरह से सिद्धिवान नहीं हो शायद तुम मेरी तरह  सिद्धिवान होते तो मैं तुम्हें निश्चित रूप से प्राप्त कर लेती और वैसे भी तुम तो बड़े-बड़े तांत्रिकों के पास जाया करते रहते हो।  राजा ने कहा हाँ मैं तांत्रिकों के पास जाया करता हूं, मैं विद्या भी सीख लूंगा लेकिन मुझसे विवाह कर लो l फिर इस पर कपालकुंडला ने उससे कहा ठीक है, लेकिन तुम्हें बेताल से क्षमा मांगनी पड़ेगी राजा क्रोध में आ गया उसने कहा मैं क्षमा क्यों मांगू ऐसा मेंने क्या किया है जो मैं उससे क्षमा मांग लूँ।

 तो उसने कहा फिर तुम मुझे भूल जाओ , यह कहती हुई वह आकाश में उड़ गई क्योंकि कपालकुंडला ने माया रूप बना रखा था, राजा इसलिए उसे पहचान नहीं पाया  की वह कपालकुंडला है । राजा को क्रोध आया राजा ने कहा कि जाओ सैनिकों और बेताल को बंदी बना लो क्योंकि मैं उससे इस स्त्री को प्राप्त करना चाहता हूं।  राजा के सैनिक बेताल की तरफ दौड़ पड़े ।सैनिकों को आते देखकर बेताल को बड़ा क्रोध हुआ वह मंत्र अभिमंत्रित करने लगा लेकिन उसे समय लगने वाला था , वह इस बात को जानता था कि मुझे समय लग सकता है इसलिए तब तक सैनिक उस पर हमला कर देंगे और मेरी मौत हो जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, वहां पर एक भयंकर दांतो वाली राक्षसी पैदा हुई और उसने सैनिकों को डरा कर भगा दिया और फिर उस भयंकर राक्षसी के गायब होते ही फिर से वहां कपाल कुंडला प्रकट हो गई ।

कपालकुंडला ने कहा तुम्हारा राजा तो बड़ा ही घमंडी है । उसने तो तुम्हें ही मारने के लिए सैनिक भेज दिए इस पर बेतूल अत्यधिक क्रोधित हुआ क्रोधित होने की वजह से उसने सोचा कि क्यों न  मैं राजा का नाश ही कर दूँ, कपालकुंडला तो यही चाहती थी।  तो जैसे ही उसने मंत्र अभिमंत्रित करने शुरू किए तो कपालकुंडला ने उसे रोक दिया और उसने कहा ऐसा क्यों कर रहे हैं । आपको मैं एक ऐसी विधि बताऊंगी कि आप राजा को नष्ट भी कर दोगे और आपकी सिद्धियों में  वृद्धि भी हो जाएगी क्योंकि मैं यह साधना नहीं कर सकती हूं और मैं इसमें सफल नहीं हो पाई थी मुझे मालूम है आप इसमें अवश्य ही सफल हो पाएंगे।

 बेताल ने पूछा  ऐसी कौन सी साधना है। कपालकुंडला ने कहा यह एक सूक्ष्म शरीर की साधना है। इसमें आपको अपने शरीर से बाहर आना होगा और उसके बाद अपने स्वरूप में जाकर के कोई भी कार्य आप संपन्न कर सकते हैंऔर केवल  मात्र 1 रात की यह साधना है आप इसे अवश्य करें।  उसकी बातों में आकर के बेताल ने उसकी बात मान ली और वह साधना करने बैठ गया । साधना करते ही उसने अभिमंत्रित जल शरीर पर छिड़का तो उसकी आत्मा उसके शरीर से बाहर हो गई ।बेताल ने स्वयं के शरीर को तपस्या करते हुए देखा , अपने शरीर से बाहर आकर के कपालकुंडला से कहने लगा वास्तव में तुम तो महान चमत्कारिक हो, तुमने और मेरी शक्तियों ने मिलकर के मुझे सूक्ष्म शरीर प्रदान कर दिया है । अब यह मेरा मुर्दा शरीर साधना करता रहेगा और मैं अपने कोई भी कार्य संपन्न कर के  आ जाऊंगा लेकिन तभी कपालकुंडला ने एक महान खोपड़ी वहां पर प्रकट की उस को अभिमंत्रित जैसे किया वह सूक्ष्म शरीर बेताल का उस खोपड़ी में आकर प्रवेश कर गया । बेताल वहीं कैद हो गया।  बेताल खोपड़ी के अंदर से चिल्लाते हुए बोला क्या कर रही हो तुमने यह क्या कर दिया है। तो वह हंसते हुए बोली कि अब मैं राजा का वध करूंगी इल्जाम तुम पर आएगा ,कुकर्म तुम पर लगेगा और इस विधि को मैं हमेशा करती रहूंगी मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मैंने आज तुम्हें भी पराजित कर दिया है और शीघ्र ही राजा को भी मार डालूंगी और धीरे-धीरे करके उस आमत्य के लड़के को भी मार डालूंगी और स्वयं यह सारा राज्य अपने अधीन कर लुंगी।

ऐसा कह कर के उसने एक यज्ञ कुंड वहां पर बना लिया और उसमें तपस्या या पूजा करने लगी ।मंत्रों को अभिमंत्रित करने लगी और इसके बाद एक कृत्या शक्ति का निर्माण किया। कृत्या  शक्ति का निर्माण होते ही बेताल यज्ञ कुंड से उसका जो सूक्ष्म शरीर यज्ञ कुंड से प्रकट हुआ जोकि बंधा हुआ था मंत्रों से अभिमंत्रित था , उसे सिर्फ अब आज्ञा का पालन करना था वह अपनी सुध बुध खो चुका था और उसने कहा हे देवी इस कृत्या शक्ति से मेरे लिए क्या आज्ञा है मैं कौन सा कार्य संपन्न करके आऊ।

 तो कपालकुंडला ने कहा तुम जाओ राजा का वध करके आओ । फिर उसने तीव्रता से अपने मंत्रों से अभिमंत्रित करके उस पर फूंका, बेताल का सूक्ष्म शरीर उड़ता हुआ भीषण तूफान बिजली की कड़क के साथ और हवाएं तेज चलाता हुआ अति तीव्र गति से राजा के राज्य की तरफ गया । राजा अभी अपने आंगन में टहल ही रहा था  , कि उसने जाकर राजा को हवा में उछाल दिया चारों तरफ भीषण उत्पात मचा दिया, सैनिकों के साथ उस राजा का वध कर दिया और बेताल वहां से वापस आ गया । फिर से यज्ञ कुंड में समा गया औरवह उसी खोपड़ी में कैद हो गया तब उसे अपनी सुध आई कि वह तो कैद है और उसने यह क्या कार्य कर डाला राजा का वध कर डाला है।

 वह फिर से चिल्लाता हुआ कपालकुंडला से बोला यह तूने क्या कर दिया मेरे शरीर को मृत बना दिया है और तू यह मेरे से कौन से गलत कार्य करवा रही है ।  यह  चीजें मुझसे  क्यों करवा रही है मेरी जिंदगी क्यों खराब कर दी तूने कपालकुंडला ने कहा अभी तुमने देखा ही क्या है अब देखो और उसने उसके साधना के शरीर को उठा कर के पेड़ पर लटका दिया और उसे उल्टा करके बांध दिया । नीचे से यज्ञ हवन की जो धुनी थी जिसका धूआ शरीर का लगने लगा और बेताल की शक्तियां चरम पर पहुंचने लगी उसके सूक्ष्म शरीर में अद्भुत शक्तियां पैदा होने लगी, लेकिन वह विकृति के रूप में ही था क्योंकि वह अब तामसिक रूप में था और धीरे-धीरे करके उन मंत्रों से वशीभूत होता चला गया। बेताल यह सोचने लगा अब तो मैं इसका हमेशा के लिए गुलाम हो चुका हूं ।यह जब भी कृत्या  शक्ति का आवाहन करेगी मुझे प्रकट होना होगा और यह जो भी कार्य मुझे सौंपेगी मुझे  करना ही होगा । अब  स्थिति बहुत ही खराब  हो चुकी है मेरी, इस प्रकार वह लगभग 1 महीने तक वह साधना करती रही । इस दौरान बेताल का शरीर पेड़ पर उल्टा लटका हुआ पड़ा रहा, उसके शरीर पर यज्ञ का धुआं लगातार लगता रहा और बेताल की शक्तियां बढ़ती रही वह उन मंत्रों से उसका गुलाम होता चला गया।  इसी बीच राजा के वध हो जाने के कारण राज्य के अन्य मंत्रियों ने राजा की सबसे छोटी कन्या जो एकमात्र बच्ची थी और उसके अलावा कोई भी उसके परिवार में जीवित नहीं था क्योंकि बेताल ने उस रात सब को मार डाला था । तो राजा के मंत्रियों ने उस कन्या को राज्य सिंहासन पर बैठाने की बात कही और उसका संरक्षण किया गया।  एक कन्या जो मात्र 12 वर्ष की थी बहुत ही बड़ी माता की भक्त थी और वह कुश अभिमंत्रित जल का सदैव माता पर चढ़ावा चढ़ाया करती थी । यह उस कन्या की पूजा करने की विधि थी मंत्र से अभिमंत्रित कर घास और जल को माता के चरणों में चढ़ाया करती थी, जिससे उसमें आध्यात्मिक और अलौकिक शक्तियों का प्रवेश होने लगा था। यह अद्भुत शक्ति धीरे-धीरे उसके शरीर में समा गई थी।  इस बात का उस कन्या को ज्ञान नहीं था मंत्रों से माता का जाप करती थी और मां के मंदिर में ही अपना समय बिताया करती थी । उन्हें यह  राज्य सौंप दिया गया उसके प्रबंध कार्य का सारा दायित्व आमात्य के  लड़के के ऊपर आ गया जो कि वास्तव में अगला राजा बनना चाहता था । अब वह 1 दिन रात्रि के समय कपालकुंडला के सामने आया उससे कहने लगा कि तुमने सारी बाधा  तो नष्ट कर दी है राजा मारा गया है कृपया मेरा एक और कार्य संपन्न कर दो, राजा की एकमात्र अंश उसकी एक पुत्री है अगर उसकी पुत्री का भी वध हो जाए तो इसके बाद मेरे लिए कुछ भी कठिन नहीं होगा और मैं राजा बन जाऊंगा । मैं आपको अत्यधिक बड़ा पद दूंगा अपने राज्य का मुख्य तांत्रिक भी घोषित कर दूंगा  आपको पुरोहित बना दूंगा । निश्चित रूप से आपकी पूजा सत्कार करूंगा। कपालकुंडला मुस्कुराते हुए उससे बोली ठीक है तो तुम यही चाहते हो कि कन्या का भी मै वध कर दूं तो ठीक है आने वाली अमावस को मैं फिर से कृत्या प्रयोग करूंगी और एक बार फिर से बेताल का प्रयोग करके उससे इस कार्य को संपन्न कर वाऊंगी । इसके बाद जब कन्या की मृत्यु हो जाएगी तो तुम राजा बन जाना और मुझे महिषी का पद प्रदान करना, मैं ही यहां की  सबसे बड़ी रानी कह लाऊंगी तांत्रिकों की देवी के रूप में विख्यात होंवूगी। उसकी बात को सुनकर  उसने कहा ठीक है, मैं तुम्हारी बात मानने को तैयार हूं और मैं तुम्हारे ही नियंत्रण में रहूंगा क्योंकि अमत्य का लड़का यह बात जानता था कि कहीं जो मैंने खेल खेला है वह कहीं मेरे साथ ना हो जाए, इसलिए अच्छा यही होगा इसे सारी शक्तियां और अधिकार प्रदान किये जाए और मैं भी राजा बना रहूं । उसने कहा हे देवी मैं तुम्हें देवी मानता हूं और हमेशा के लिए आपकी आज्ञा का पालन करूंगा और जो भी आप आज्ञा देंगी मैं उसका पालन करूंगा। बस मुझे राजा बना दीजिए उसकी बात सुनकर कपालकुंडला खुश हो गई और उसने सोचा भला में अगर राजा बन भी जाती तो मुझे क्या प्राप्त होता मुझसे लोग जलन ही करते जब यह मुझे सारी शक्तियां सौंपने को तैयार है तो मैं इसका क्यों वध करूं । उसने कहा  ठीक है ऐसे मन में विचार करके उसने कहा – तुम्हारा काम हो जाएगा, आने वाले अमावस्या के दिन मैं उस कन्या की बली ले लूंगी और मैं अब से कपाल कृत्या का प्रयोग करूंगी।

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