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बेताल कैसे पैदा हुआ 4 अंतिम भाग

जैसा कि बेताल की कहानी में आप पढ़ चुके हैं , कि बेताल को बंदी बना लिया गया था कपालकुंडला नामक योगिनी के द्वारा और वह बेताल को कपाल में स्थित रखती थी।  बेताल का जो मुर्दा शरीर  था ,उस पर तांत्रिक प्रयोगों के माध्यम से अपने कार्य को संपन्न कर रही थी और अब वह उस राज्य की रानी बनने के लिए उत्सुक हो चुकी थी। इस संबन्ध में जब उसकी बात आमत्य के पुत्र से हुई तो दोनों में  यह समझौता हुआ, की वह राज्य की देवी कह लाएगी  और सब उसकी पूजा करेंगे ।  साथ ही साथ जो अमात्य का पुत्र है उसे राजा घोषित कर दिया जाएगा। अब आगे कहानी में क्या होता है ,जानते हैं क्योंकि दोनों के बीच में बातचीत हो चुकी थी अब इस बात के लिए नई तरह से एक नीति का निर्माण किया गया ।

कपालकुंडला ने कहा कि सबसे पहले लोगों को भयभीत करना जरूरी है , पूरे राज्य में आतंक मचाने की आवश्यकता है  । मैं  कृत्या प्रयोग करूंगी उस  कृत्या प्रयोग में मेरा बेताल राज्य में  विनाश मचा देगा, यह बात जब अमात्य के पुत्र को पता चली तो बड़ा खुश होकर वह आया उसने कहा इससे पहले आपसे एक विनती है आप राजा के जितने भी सगे संबंधी है उन सब का वध कर दीजिए ताकि राजा का एक भी सम्बन्धी  ना रह जाए और अंततोगत्वा राजा की पुत्री का भी वध कर दीजिएगा, उसकी बात को कपालकुंडला ने मान लिया ।

अब शुरुआत हो गई अमावस्या के दिन से कि किस प्रकार बेताल को अत्यधिक शक्तिशाली बनाया जाए और यह  कृत्या प्रयोग किया जाए और सब पर मृत्यु छोड़ दी जाए , तो वह  भीषण साधना करने लगी । अब मैं आपको बताता हूं कि वह किस प्रकार उसने साधना संपन्न की, कपालकुंडला ने श्मशान में एक निर्जन स्थान को चुना और उसने दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ,गुड़ की खीर, बतासा ,पान, सुपारी ,सिंदूर ,तांबे के एक दीपक  ,सरसो का तेल ,राई, कुमकुम, कपूर, पीली सरसों ,बिंब फल,  बंदर के बाल ,चर्बी , मदिरा ,बकरे का मांस ,चावल और तिल इत्यादि का इस्तेमाल किया और अपनी साधना शुरू की उसमें ओम रूद्र रूप कालीका तनय भरोम भरोम क्रीं क्रीं फट स्वाहा इस मंत्र के जाप से भयंकर बेताल साधना की शुरुआत कर दी थी । अब बेताल को अगिया बेताल के रूप में वह प्रकट कर रही थी, जिससे  कि   चारों तरफ सर्वनाश फैल जाए। कृत्या  प्रयोग में उसने श्मशान में रात्रि के समय चिता की भस्म का घेरा बनाकर सिंदूर से  घेरा बनाया, इस घेरे में बैठकर के उसने दक्षिण की ओर मुख करके साधना शुरू की फिर उसने बेताल के शरीर की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए मंत्रों का जप शुरू किया । धीरे-धीरे करके इससे प्रकृति में हलचल मचने लगी वहां का वातावरण अत्यंत भयानक हो गया ,चारों तरफ हवाएं चलने लगी चारों तरफ स्थिति बड़ी भयानक सी होने लगी ,हवाएं तूफान हल्की बारिश और अग्नि के प्रचंड ज्वाला बड़े-बड़े ज्वाला प्रकट होने लगे ,इससे घबराकर शमशान की प्रेत आत्माएं चारों तरफ मंडराने लगी, अग्नि के धमाके और तेज होते चले गए इससे धीरे-धीरे करके बेताल उस अग्निकुंड से यानी कि हवन कुंड से प्रकट होता है ।

वह अपने स्वरूप को भूलकर चिल्लाता हुआ कहता है किसकी आहुति लेनी है ,मुझे तुरंत आज्ञा दो इस पर मायाविनी कपालकुंडला ने कहा ऐसा करो जाओ गांव के जितने भी प्रमुख  जगह है वहां जाकर के ऐसा हंगामा मचाओ कि नगर तक बात पहुंचे और जो भी मिले उसको प्रताड़ित करो, उसे नष्ट कर दो, अपनी तबाही का एक मंजर प्रकट करो। फिर ठीक  ऐसा ही हुआ बेताल तुरंत ही आकाश में उड़ गया साथ ही साथ तूफान और आग के धमाके साथ लेता हुआ गया ।गांव में उसने हमला कर दिया सब जगह त्राहि-त्राहि मच गयी ,गांव में आग लग गई उस अग्नि से चारों तरफ सभी जगह जलने लगी ,भयंकर तांडव से रात्रि में सभी लोग हाहाकार करते हुए नगर की ओर भागने लगे जब यह समाचार राजकुमारी तक पहुंचा तो 12 साल की इस कन्या ने कहा कि आप समुचित प्रबंध करें, सेनापति से कहा आप अपने सैनिकों को हर तरफ जनता की रक्षा के लिए  लिए भेज दे , हर प्रकार से इन लाचार मनुष्य की मदद करें ।अगले ही रात फिर से कपालकुंडला ने  नगर में  हमला करवा दिया अगिया बेताल से ,नगर के प्राणी इधर-उधर भागने लगे ,हर तरफ हंगामा मच गया कहीं तूफान आता तो कहीं आग और वह आग के गोले लोगों पर लगते तो वहीं  उनकी मौत हो जाती और लोग कहीं जाकर गिरते, कहीं कोई सामान बिखर जाता तो कहीं कहीं कुछ होता,  भयंकर तांडव बेताल ने मचा दिया था।

 तीसरी रात्रि के समय में जब बेताल आया तो कपालकुंडला ने कहा अब से तुम मेरी जीभ पर विराजमान होंगे जैसे बेताल की साधना में होता ही है।  बेताल  अपनी स्थिति तीन जगह पर  बनाता ही है उसमें सबसे खतरनाक होती है जीभ पर , उसने जीभ पर उस वेताल को बैठा दिया और कहा महा अग्नि को प्रज्वलित कर, इसके साथ ही अब बेताल अगिया बेताल बन गया, फिर से  उसे भेजा गया सारे रिश्तेदारों को मारने के लिए। बेताल ने जा कर के सब के शरीरों में आग लगा दी सब धुआं धुआं हो गया, हर रिश्तेदारों का शरीर जल गया ऐसी तबाही जो कभी देखने में नहीं आई थी, इतनी भयंकर तबाही इस कृत्या कपालिनी से हुई थी। चारों तरफ हाहाकार मच गया था, लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। विनाश के इतनी भयंकर लीला चारों तरफ मची हुई थी , बेताल ने किसी को भी नहीं छोड़ा था जो भी उसके सामने आता वह समाप्त हो जाता था । राजकुमारी को अत्यंत भय हो गया राजकुमारी भाग कर के माँ  दुर्गा के मंदिर में छुप गई और इस प्रकार उस रात में राजकुमारी के सारे रिश्तेदार मारे गए।

 अगले दिन की रात्रि के समय कपालकुंडला ने बेताल को आज्ञा दी जा जाकर  राजकुमारी का वध  कर दें, ताकि राज्य पर एकछत्र  मेरा राज्य स्थापित हो जाए। अगिया बेताल प्रचंड वेग से उड़ता हुआ उसकी तरफ बढ़ा, मां दुर्गा के मंदिर में जैसे ही उसने प्रवेश किया, कन्या अत्यंत घबराकर के वहां रखी हुई कुश अभिमंत्रित घास और पानी का लोटा उसकी ओर फेंका और एक अद्भुत चमत्कार घटित हुआ । वो कन्या मां भगवती के मंत्रों का जाप  किया करती थी वह मंत्र का जाप करते हुए अचानक से उसने गलती से कुस वाली घास और वह जल, अगिया बेताल पर फेंक दिया था, बेताल पर वह घास और जल पढ़ते ही बेताल शांत हो गया, बेताल के शांत होते ही बेताल मुस्कुराते हुए उससे बोला, तुमने मुझे मुक्त किया  यह अत्यंत ही गोपनीय राज है, कि केवल मां के किसी भी मंत्र के द्वारा कुश का जल मेरे पर छिड़कने मात्र से मैं किसी भी साधक का कुछ बिगाड़ नहीं सकता हूं, क्योंकि मैं माता कालिका का अंश हूं इसलिए मैंने उनकी ही आराधना की है।

 मैं वचन भी देता हूं कि ना तो मैं, ना तो कोई भी बेताल अभिमंत्रित कुश वाले पानी मां से  जगदंबा मां दुर्गा के मंत्रों का प्रयोग करके अगर मेरी तरफ फेंका जाए, तो मुझे वहां से गायब होना होगा जाना ही होगा, तुमने मेरा काम आसान कर दिया है। अब मैं जाता हूं वह करने जो मुझे पहले ही कर देना चाहिए था। अत्यंत तेज वेग से उड़ता हुआ बेताल अपने साथ पिशाचों की एक पूरी सेना और बहुत ही सारे भूत प्रेतों को लेकर कपालकुंडला पर आक्रमण कर दिया । कपालकुंडला ने अपने मंत्रों से बहुत सारे भूत प्रेत  बुला लिए और दोनों तरफ से अत्यंत भयंकर युद्ध होने लगा, बेताल ने तुरंत कूदकर उसकी जीभ पर आया और जीभ को काट दिया ताकि वह कोई भी अभिमंत्रित मंत्र का प्रयोग ना कर सके, इसके बाद फिर बेताल ने उसके शरीर को चारों तरफ से अग्नि के हवाले कर दिया।

परिणाम स्वरूप  कपालकुंडला जलने लगी कपालकुंडला की जलते जलते ही मौत हो गई, क्योंकि कपालकुंडला की मौत होने के साथ ही उसकी तांत्रिक क्रिया आधी अधूरी ही रह गई, इसलिए बेताल कुछ ना कर पाया और बेताल अपने शरीर में वापस ना जा पाया एक मजबूरी उसके सामने फिर से घटित हो गई और वह यह थी कि वह आज भी उस शरीर से बाहर है l उसकी आत्मा शरीर से आज भी बाहर थी तो मुर्दे के रूप में वह उसी पेड़ पर लटका रह गया उस पेड़ पर लटकते हुए इसी प्रकार बरसों बीतते चले गए इधर राजकुमारी बड़ी हो गई और सब कुछ सही हो गया उस राज्य में कहते हैं उसके कई सौ साल बाद एक तांत्रिक हुआ जिसे इस बात की पता लगी अगर बेताल सिद्धि की जाए तो निश्चित रूप से बहुत महान शक्तियां प्राप्त हो सकती है।

फिर  उसे पता चला एक बेताल पेड़ पर लटका हुआ है तब उसने उसको साधने की पूरी कोशिश की लेकिन अपने  प्रयोगों से  उस बेताल को साध नहीं पाया लाख कोशिश करता रह गया लेकिन सफल नही हो पाया । अब उसके सामने एक ही विकल्प था राजा विक्रमादित्य की सहायता, वह राजा विक्रमादित्य के पास चला गया और उनसे प्रार्थना की रात्रि के समय जब विक्रमादित्य उस कपाली  के पास आया अब उस कापालिक ने कहा- मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए मुझे यज्ञ में आहुति देने के लिए एक बेताल की आत्मा चाहिए, जो एक मुर्दे के रूप में किसी पेड़ पर लटक रहा है ।

आप वहां जाइए और उसे लेकर के आ जाइए इसके बाद विक्रमादित्य उस पेड़ के पास गए उन्होंने अपने बाहुबल से अपने तपोबल से अपने कंधों पर  उस बेताल को बैठा लिया ।  इस दौरान बेताल ने उनसे प्रश्न पूछने शुरू कर दिए ,कहानियां सुनाना शुरू कर दी और हम विक्रम बेताल की कहानियों के नाम से भी जानते हैं यह स्थान आज भी उज्जैनी में एक नदी जहां पर विक्रांत भैरव का मंदिर है उसके नजदीक वह जगह स्थित है ।

इसके संबंध में कथा बताई जाती है की  बेताल इसी जगह  पेड़ पर  लटका था और इसी जगह से बाद में यह कहानी प्रचलित हुई विक्रम बेताल वाली, तो यह थी कहानी विक्रम बेताल से भी पहले की जिसमें आपने जाना कैसे बेतुल वेताल बना और बाद में बेताल की पूरी प्रजाति बन गई , उसके बाद पूरे संसार में बड़ी शक्ति के रूप में बेताल को माना जाने लगा।  तो यह थी वह कहानी बेताल की कि किस प्रकार बेताल की उत्पत्ति हुई l बेताल बड़े-बड़े तांत्रिकों द्वारा सिद्ध  किया जाता है कहीं अगिया बेताल के रूप में तो कहीं शमशान बेताल के रूप में तो फिर किसी अन्य रूप में इसको सिद्ध किया जाता है ।

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