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भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा सच्ची घटना भाग 6

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नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा में अभी तक आपने जाना कि कैसे साधक अपने पूर्व जन्म की यात्रा के द्वारा यह जान पाता है कि उसके जीवन में ऐसे संकट क्यों आ रहे हैं और विवाह संबंधी और समस्याएं क्यों हुई थी। अब हम लोग आगे जानते हैं कि साधक के जीवन में आगे क्या घटित हुआ था? साधक इस समस्या में बहुत ही अधिक ग्रसित था क्योंकि अब! उसे न सिर्फ एक शक्ति को रोकना था बल्कि अपने विवाह को भी सार्थक करना था। लेकिन इस जीवन में जिससे उन्हें पत्नी के रूप में प्राप्त किया था, उनके रहस्य को समझना आवश्यक था। उन्होंने अपनी पत्नी को यह सब बातें जो बताए तो उन्हें बहुत अधिक आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो आप? कोई साधना करके? इस शक्ति को हमेशा के लिए रोक क्यों नहीं देते? मैं बहुत अधिक परेशान हो चुकी हूं।

मेरे परिवार पर इतने सारे संकट आ गए।

आपके परिवार को कुछ भी नहीं हुआ और ना ही आप पर। साधक ने कहा, ऐसा इसलिए क्योंकि यह परिवार पूरा का पूरा गुरु मंत्र से दीक्षित है। पूरे परिवार में कोई समस्या नहीं है। क्योंकि सभी सुरक्षित हैं, लेकिन आपका परिवार सुरक्षित नहीं है। इसीलिए सब कुछ हुआ है।

साधिका ने कहा, बात इतनी भी नहीं है। मैंने आपसे एक बात छुपाई।

शादी के दिन दिए गए मंगलसूत्र अब मेरे पास नहीं है। वह गायब हो चुका है। मैंने बहुत ढूंढा पर वह नहीं मिला है। आखिर किसी सुहागन स्त्री का मंगलसूत्र कौन चुरा सकता है? पर सच में वह मंगलसूत्र चुरा लिया गया था। यह बहुत ही अधिक विडंबना वाली बात थी।

इधर साधक ने कहा, ठीक है! अब मैं हर एक बात का पता लगा लूंगा लेकिन मुझे पूरा समय चाहिए। ईश्वर की कृपा से साधक को। पूरा समय मिलने वाला था।

और इसलिए? उसके जीवन में एक नया ही परिवर्तन और नई संभावनाएं वह देख रहा था। उसने अपनी पत्नी से कहा, तुम परेशान मत हो।

मैं अवश्य ही इस बात का पता लगा लूंगा और कैसे इस शक्ति को रोका जाए, यह भी जान लेंगे।

मंगलसूत्र शायद उसी शक्ति ने गायब किया है। क्योंकि कहीं भी वह मंगलसूत्र नहीं मिला।

अब अगली बात यह थी कि अब साधक को यह सत्य जाना था कि आखिर! इनका और उनकी पत्नी का संबंध क्या है? क्या यह भी किसी पूर्व जन्म से जुड़ा हुआ है? उन्होंने एक बार फिर से इसके लिए? धर्मांतरण साधना करने की कोशिश की।

इसके लिए उन्हें पूरा एक डेढ़ महीने का समय लगना था।

और यह भी नहीं पता था कितना अधिक इस सत्य को जानने में? पटना या परेशानी आ सकती है। लेकिन? पता पड़ा शक्ति की कृपा से पूरा समय मिला और इस रहस्य को समझने का और एक नई यात्रा करने का। उसी दौरान!

प्रधानमंत्री मोदी जी ने लॉकडाउन लगा दिया। इसके कारण से सभी जगह बंद कर दी गई। कोई कहीं नहीं जा सकता था ना ही किसी और कार्य में संयुक्त हो सकता था। इसीलिए अब साधक के पास पूरा मौका था साधना करने का और एकांतवास करने का। पत्नी से पूछा तो पत्नी ने इसके लिए पूरी ही।

सहमति दे दी थी।

अब साधक अपनी साधना में बैठ गया। उसे पता करना था सारे रहस्यों के बारे में।

साधना के दौरान एक दिन। अचानक से ही ध्यान अवस्था में कुछ घंटों की कड़ी मेहनत के बाद! उनका! उसी वास्तविक शरीर में फिर से प्रवेश उन्हें दिखाई देता है।

भैरवी के चले जाने के बाद। वह साधक बैठा।

मां पराशक्ति के मंत्र का जाप कर रहा था। उसे जप करते हुए लगभग 21 वर्ष हो चुके थे। 21 वर्षों के दौरान विभिन्न प्रकार की सामर्थ्य और गुप्त शक्तियां उसके अंदर आ गई थी उनके गुंजायमान मंत्र को सुनने के लिए। कभी ना कभी यक्ष आ जाया करते थे।

जिनसे। उनका वार्तालाप भी होता था। एक दिन जाना अवस्था में अत्यंत ही तीव्र प्रकाश उन्होंने देखा। और वह साधक जब साधना कर रहा था तभी वहां। भयंकर प्रकाश हुआ। साधक ने अपनी आंखें खोली तो साक्षात एक देवी सामने खड़ी थी। वह अपने तेज से जगमग आ रही थी।

उनके एक हाथ में।

ब्रह्मांड रूपी धरती घूम रही थी। उन्हें देखकर साधक आश्चर्य में पड़ गया। क्योंकि ऐसा कोई देवी स्वरूप आज तक उन्होंने नहीं देखा था। सामने खड़ी हुई स्त्री कौन थी, वह यह बात नहीं जानते थे। उन्होंने देवी को प्रणाम किया। देवी ने भी। उन्हें मुस्कुराते हुए।

कहां? हे पुत्र तुम्हारी साधना अब इस लोक को पार कर रही है इसलिए मुझे आना ही पड़ा।

किंतु मैं किसी भक्त साधक की साधना नष्ट नहीं करना चाहती थी। इसलिए वैकल्पिक रूप में तुम्हारे सामने प्रकट हुई हूं।

मेरा नाम लोक माया है।

लोक माया को तुम शायद नहीं समझ पाओगे।

जिस भी लोग में व्यक्ति रहता है उस लोग में। सबसे उच्च देवी लोक माया कहलाती हैं। मैं लोक माया! इस लोक में रहती हूं इस लोक में। माया में प्रत्येक प्राणी को फंस आती रहती हूं।

मेरी शक्ति और सामर्थ्य अनंत होती है। जब हम कोई मेरी परिधि से बाहर निकलने की क्षमता रख लेता है केवल तभी मैं उसे साक्षात रूप में दर्शन देती हूं। तुमने इस मंत्र के माध्यम से मेरी परिधि पार करनी है? इसलिए मुझे आना पड़ा है।

अब मैं तुम्हारी परीक्षा लूंगी। और साथ ही साथ तुम्हें मुक्त भी कर दूंगी। तुम्हें अब अधिक साधना करने की आवश्यकता नहीं होगी। मैं गोपनीय ज्ञान और शक्तियां तुम्हें प्रदान करूंगी। लेकिन मेरी परीक्षा में असफल हो जाने पर तुम्हारा तप नष्ट हो जाएगा तो क्या तुम इस परीक्षा के लिए तैयार हो?

साधक ने कहा, मैंने आप का आवाहन नहीं किया था। फिर भी आप क्यों आ गई हैं? मेरा उद्देश्य सिर्फ मां पराशक्ति को प्राप्त करना है। इसके अतिरिक्त कोई और इच्छा मेरे में नहीं है। इस पर देवी बोली आपको? परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे आपको कई जन्म लगेंगे इनकी साधना करते हुए। मैं आपको एक छोटा सा माल बताती हूं, लेकिन उस मार्ग में आपको सावधान रहने की आवश्यकता होगी। तंत्र मार्ग है।

तंत्र मार्ग के माध्यम से आप माता को बहुत ही आसानी से अपने इसी जन्म में प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन अगर आपने? गलती की तो आपकी की गई पूजा नष्ट हो जाएंगी। अब आपको यह चुनाव करना है कि आप आगे बढ़ते हैं या नहीं बढ़ते?

इस पर साधक ने कहा, अगर मां को मैं इतनी आसानी से प्राप्त कर सकता हूं तो मैं कितनी भी कठिन परीक्षा देने को तैयार हूं?

बताइए मुझे क्या करना होगा?

माता लोक माया। ने कहा। सुनो पुत्र! तुम्हें गोपनीय कुंडलिनी शक्ति जागृत करनी है। और इसके माध्यम से तुम कुछ ही समय में माता पराशक्ति तक पहुंच कर मुक्त हो जाओगे और मेरी परिधि से बाहर निकल जाओगे।

इस पर साधक ने कहा, माता अगर ऐसा है तो अवश्य ही आप मुझे कुंडली विद्या का ज्ञान दीजिए। इस पर साधक की बात सुनकर देवी ने कहा, ठीक है! सबसे पहले अपनी नाड़ियों को शुद्ध करो। और इसके साथ ही साधना करो, लेकिन मैंने तुमसे पहले ही कह दिया है। कहीं पर गड़बड़ी मत कर देना कुछ भी लेकर साथ में मत जाना।

साधक ने कहा, माता इसका क्या अर्थ है? माता ने कहा।

जब यात्रा होती है तो कुछ भी साथ लेकर नहीं जाया जाता है। विभिन्न प्रकार के मार्ग आते हैं। मार्गों में बहुत ही चीजें देखने को मिलती हैं, लेकिन कुछ भी लेकर आगे बढ़ा नहीं जाता है। केवल साक्षी भाव से दर्शन किया जाता है।

साधक ने कहा, माता मैं कुछ भी लेकर नहीं जाऊंगा।

माता ने कहा, अगर तुम लेकर गए तो रुक जाओगे? और अपनी साधना भक्ति भी खो दोगे।

इसलिए मैं तुम्हें पहले ही सावधान कर देती हूं।

साधक ने कहा, लेकिन माता मैं तो तंत्र के बारे में कुछ भी नहीं जानता। एक साधारण सा तंत्र विद्या का जानकार हूं। आप माता लोक माया है। आपकी शक्ति और सामर्थ्य अनंत है। इस ब्रह्मांड में आपकी ही माया चल रही है तो माता मुझे ज्ञान दीजिए और बताइए कि सबसे पहले नाड़ी रहस्य क्या है। इसके बारे में मुझे बताइए।

तब माता ने कहा, ठीक है तो कुंडली से पहले तुम्हें नारी रहस्य को समझना होगा। देवी की बात सुनकर साधक प्रसन्न हुआ। और कहा माता मैं आपको प्रणाम करता हूं। गुरु रूप में स्वीकार करता हूं और आपसे प्रार्थना करता हूं कि हे मां भगवती आप मुझे नाड़ी रहस्य समझाइए।

माता कहने लगी।

मनुष्य के शरीर में 3:50 करोड़ नाड़ियां स्थित है। यह ऊर्जा नाडिया ऊर्जा धाराएं कहलाती है।

नाडिया यद्यपि बहुत अधिक है, किंतु उनमें 10 नारियां प्रमुख मानी जाती हैं। यह भी कहते हैं मुख्यतः तीन नाड़ियों में व्यवस्थित मानी जाती हैं। इन गाड़ियों में मेरुदंड सबसे प्रधान है। मेरुदंड है। चंद्रमा सूर्य और अग्नि के गुणों से युक्त। तीन मुख्य नाडिया। संयुक्त है।

पहली पीड़ा है। पीड़ा नाम की नाड़ी। शुल्क 1 यानी श्वेत रंग वाली चंद्रमा के गुणों से युक्त शक्ति अमृत स्वरूपा मानी जाती है। दूसरी जो नारी है उसका नाम पिंगला है जो पुरुष के स्वरूप वाली एवं सूर्य का विग्रह रूप है। इस पिंगला नाड़ी का जो वर्ण है वह अनार के फूल के समान लाल माना जाता है तीसरी नारी के नाम से। प्रसिद्ध है जो इनके और मेरुदंड के मध्य में स्थित है। इसी नाड़ी को स्वच्छ बना के नाम से भी जाना जाता है। यह अग्नि स्वरूप वाली अग्नि के गुणों को धारण करने वाली और। सर्व तीनों मई कहलाती है। सुषुम्ना नाड़ी तेज से परिपूर्ण याली मानी जाती हैं। इस सूचना के अंदर चित्र नाम की एक ना करोड़ों चंद्रमा के समान प्रकाश मई मानी गई है। यही सर्व देवमई कहलाती है। इसका ध्यान जोगी गण ह्रदय में यानी कि अपने हृदय में स्थित होकर के करते हैं। इस चित्र के अंदर! मृणाल तंतु के समान ब्रह्म नाड़ी होती है और उसके मध्य में ब्रह्मरंध्र होता है। सुषुम्ना नाड़ी। शिव जी के मुख से लेकर सदाशिव पर्यंत स्वयंभू लिंग को वामावर्त क्रम से विश्व तंतु के समान। फैलाए हुए हैं। इसी सूचना के मध्य में 9 पद में चक्र स्थित रहते हैं यह मेरुदंड रीड की। यह मेरुदण्ड (रीढ़) की आन्तरिक ऊर्जा-संरचना का वर्णन है। यह संरचना प्रत्येक प्राणी की, प्रत्येक भौतिक प्राकृतिक इकाई की केन्द्रीय धूरी में बनती है। यह क्यों और कैसे
बनती है, इसकी भी एक लम्बी प्रक्रिया है, जो प्रथम आदि योनि और सदाशिव लिंग के मिलन होते ही अस्तित्व में आ जाती है। यह संरचना मूलाधार से सहस्रार चक्र (रीढ़ और कमर
की सन्धि के मध्य से सिर के चाँद तक) बनती है। ये तीन मुख्य ऊर्जाधाराएँ हैं। एक बायें आवर्त क्रम में, दूसरी दायें आवर्त्त क्रम में, तीसरी बायें आवर्त्त क्रम में होती है।
यहाँ यह समझना चाहिए कि यह केवल मनुष्यों या पुरुषों में नहीं होती। यह जीवों की भी मल्कियत नहीं है। यह सभी प्राकृतिक इकाइयों में होती है और इनकी उत्पत्ति नियमों एवं
प्रक्रिया की एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गत होती है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया का यहाँ वर्णन करना सम्भव नहीं है और यह उचित भी नहीं होगा। आत्मकल्याण एवं ‘तन्त्र’ की सभी
शक्तियों की सिद्धि के लिए इनकी उत्पत्ति के रहस्य को जानना आवश्यक भी नहीं है। इन तीन नाड़ियों के नाम इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना है। इन्हें सरस्वती, यमुना और गंगा भी कहा जाता
है। ‘इड़ा’ चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करती है, अर्थात् यह चन्द्रमा के समान धवल वर्ण की नाड़ी है, जिसकी प्रकृति ऋणात्मक है। इसके अन्दर ‘पिंगला’ है, जो सूर्य का प्रतिनिधित्व करती
है और यह धनात्मक है। इसके अन्दर ‘सुषुम्ना’ है, जो ब्रह्माण्डीय ऊर्जा है और यह दोनों बाह्य नाड़ियों को ऊर्जा प्रदान करती है। इसी सुषुम्ना को आकाश गंगा, गायत्री, गंगा आदि भी
कहा जाता है। यह वह नाड़ी है, जो किसी अस्तित्व की समस्त जीवनदायिनी, अस्तित्वदायनी, मधुयामिनी शक्ति है। शेष सभी की उत्पत्ति इससे ही होती है। कुछ साधक इसे सरस्वती या
सावित्री भी कहते हैं, किन्तु ब्रह्माण्ड से गंगा का अवतरण होता है, इसलिए ‘गंगा’ ही मानना चाहिए। इस सुषुम्ना के अन्दर भी तीन धाराएँ हैं। सुषुम्ना के अन्दर चित्रा है, चित्रा के अन्दर
ब्रह्मरन्ध्र है और इसके अन्दर ‘शून्य’ है, अर्थात् ‘सदाशिव’पराशक्ति। यही ‘सदाशिव’पराशक्ति अमृततत्त्व है, जिससे शरीर की समस्त क्रिया आदि का संचालन होता है। जीवन, जीव, शरीर और उसके
समस्त गुण इसी तत्त्व की आपूर्ति से अस्तित्व में होते हैं। इसी की आपूर्ति कम होने से शरीर वृद्ध होता है और इसी की आपूर्ति रुकने से मृत्यु हो जाती है। इस वर्णन के अनुसार हमें इस
मेरुदण्ड में पाँच धाराएँ दिखायी पड़ रही हैं, किन्तु ‘पिंगला’ और ‘इड़ा’ भी तीन-तीन धाराओं में बँटी होती हैं। इस प्रकार इन नौ धाराओं के मध्य ‘शून्य’ स्थित होता है। साधक का साराध्यान सुषुम्ना पर होता है, इसलिए ‘इड़ा’ ‘पिंगला’ की अन्तर धाराओं का ज्ञान उसे नहीं होता। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना धाराएँ जहाँ-जहाँ एक-दूसरे को काटती हैं, वहाँ-वहाँ चक्र
उत्पन्न होता है और शिवलिंग प्रकट होता है, जिससे ऊर्जा निकलती है। ये है वास्तविक संगम, जिसमें गोता लगाने (ध्यानमग्न होकर डूबने) से भुक्ति-मुक्ति प्राप्त होती है। इसमें अनाहत
चक्र (नाभिक/हदय केन्द्र) का संगम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है; क्योंकि यहाँ साक्षात् ‘शिव’ (विष्णु/काकिणी) का निवास होता है। यही बैकुण्ठ है। इसे काशी भी कहा जाता
है। इन तीन धाराओं का भौतिक रूप भी सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। हमारी त्वचा, मांस और मेरु इन्हीं तीन वर्ग में वर्गीकृत है। ये तीन भी तीन-तीन में वर्गीकृत हैं। मध्य में सदाशिव हैं।
वनस्पतियों के शरीर में भी ये तीन-छाल, असरा और सारिल के रूप में होते हैं। इनके बीच भी शून्य का छिद्र देखा जा सकता है। बीजों को काटें, तो खोल, सद्य और अंकुर; अंकुर
के मध्य शून्य होता है। पृथ्वी में भी यह मिट्टी, जल, अग्नि के अन्दर ‘कोर’ के रूप में विद्यमान है। कोर के मध्य वही शून्य है। कोर तक तो वैज्ञानिक जानते हैं, पर कोर के अन्दर की
संरचना का ज्ञान तन्त्रसूत्र से होता है कि उसमें भी तीन स्तर होंगे और तीसरे के मध्य शून्य होगा। यह ‘कोर’ ही नाभिक है। यह सभी में विद्यमान है।।

माता ने आगे साधक को कुंडलिनी शक्ति का ज्ञान कैसे दिया जानेगे आगे के भाग मे –

भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा सच्ची घटना भाग 7

 

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