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भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ती 4 अंतिम भाग

भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति कथा भाग 4 अंतिम

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है अभी तक के भाग में जाना की किस प्रकार से नहुषा देवी भद्रा की स्वर्ण मूर्ति को प्राप्त करने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रयोजन करता है जो कि उसके गुरुद्वारा बताया गया था गुरु राज देव ने कहा था कि तुम्हें भद्रा देवी की मूर्ति केवल नीलमणि को प्राप्त करने के बाद ही मिलेगी और अब वह नीलमणि के पास पहुंच चुका है तो जानते हैं आगे क्या हुआ जैसे ही वह नीलमणि के पास पहुंचा वहां पर एक सुंदर सी स्त्री उनसे प्रश्न पूछने लगी उन प्रश्नों में बहुत ही तीव्रता के साथ उसे भयभीत करते हुए यह कहा कि आज से अगर तुमने यह करवा मुझे नहीं सौंपा अथवा मुझसे विवाह नहीं किया तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी बड़ी ही मुश्किल में फंसे हुए नहुषा को कुछ समझ में नहीं आया इस समस्या के लिए वह किसी को बुला भी नहीं सकता था नहुषा यह बात समझ रहा था कि मां श्मशान काली भी अब उसकी मदद नहीं करेगी क्योंकि परीक्षा का वास्तविक चरण आ चुका है इसके संकेत माता श्मशान काली ने पहले ही दे चुके थे नहुषा को कुछ देर कुछ भी समझ में नहीं आया वह सोचता रहा कि आखिर उसे करना है

वह सोचता रहा उसे जो भी करना है जल्दी ही करना है तभी उसके मन में युक्ति आई कि क्यों ना इस स्वर्ण बर्तन को देने से अच्छा है कि मैं इससे विवाह ही कर लूं उसने कहा कि मैं आपसे विवाह करने के लिए तैयार हूं सबसे पहले इस करवे को मुझे उस मणि से लगाने दीजिए देवी प्रसन्न होकर के कहने लगी ठीक है मैं तैयार हूं अगर तुम मुझसे विवाह करने के लिए तैयार हो अवश्य ही इस करवे को उस मणि से छुआ सकते हो नहुषा प्रसन्न हो गया और जाकर के वह उस नीलमणि को छूता है उस करवे से छूने के कारण तुरंत ही वह नीलमणि करवे के अंदर चली जाती है नहुषा प्रसन्न हो जाता है क्योंकि अब उसे अपनी वापस उसी गिरी पर जाना है वह सोनगिरी है सोनगिरी पर ही जाकर के वह भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति मिल सकती है इसलिए वह तैयार हो गया और वह चलने लगा और उसके साथ वह स्त्री भी चलने लगी और कहने लगी जैसे ही आपको भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति प्राप्त होती है

आप उस मूर्ति की पूजा करने से पहले मुझसे विवाह करेंगे नहुषा कुछ देर सोचता है और उन्हें हां कह देता है क्योंकि इसके अलावा उसके पास कोई और चारा भी नहीं था नहुषा सोचते सोचते उस गिरी ओर चलने लगता है उसके बाद उस गिरी पर पहुंचकर अपने गुरु राजदेव के पास जाता है राजदेव उसके साथ खड़ी हुई स्त्री को देखकर कहते हैं यह किसे ले आए हो इस पर नहुषा कहता है कि यह देवी है जो नीलमणि की रक्षा के लिए वहां पर उपस्थित थी और उन्होंने कहा कि या तो मुझे यह करवा दे दो या तो मुझसे विवाह कर लो अगर मैं करवा इन्हें दे देता तो नीलमणि को कभी प्राप्त नहीं कर सकता था मेरे पास और कोई चारा नहीं था इसीलिए गुरुदेव मैंने इनसे विवाह करने के लिए स्वीकृति दे दी है अब वह समस्या नहुषा के सामने उपस्थित थी क्योंकि अब उससे विवाह करना आवश्यक हो गया था राजदेव तिरछी निगाहों से नहुषा की ओर देखते हुए कहते हैं प्रक्रिया तो पूर्ण करनी ही होगी और वह तैयार हो जाते हैं कहते हैं चलो उस विशेष स्थान पर जहां पर किसी काल में भद्रा देवी की मूर्ति गिरी थी वह एक विशेष स्थान पर जाते हैं और वहां पर करवे को रख दिया जाता है

उसके बाद मंत्रों के उच्चारण किए जाते हैं धरती के अंदर से अचानक ही हलचल होती है और वहां पर एक विशेष प्रकार की भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति निकलती है उस स्वर्णमई बहुत ही सुंदर भद्रा देवी की मूर्ति को बाहर निकालते ही वहां आकाश में दिव्य रूप में भद्रा देवी दिखाई देती हैं यह देखकर गुरु राजदेव और नहुषा प्रसन्न हो जाते हैं गुरु राजदेव कहते हैं कि यह देवी आपसे कोई बात नहीं करेंगी क्योंकि स्वर्ण मूर्ति की कृपा तभी प्राप्त होगी जब इसका पूजन किया जाएगा नहुषा पूजन की तैयारी करने लगता है लेकिन जैसे ही वह पूजन की तैयारी करने के लिए तत्पर होता है तभी देवी उससे कह देती है कि पहले मुझसे विवाह करो नहुषा के सामने कोई चारा नहीं था नहुषा उनसे विवाह कर लेता है दोनों का गंधर्व विवाह गुरु राजदेव के समक्ष होता है विवाह संपन्न होने के बाद नहुषा अब भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति को प्रणाम करता है और उसका पूजन आरंभ कर देता है 1 दिन की पूजा के पश्चात वहां पर भद्रा देवी प्रकट हो जाती है और खुश होकर के कहती है जिस स्थान पर मेरी यह प्रतिमा रखी गई है और जहां से तूने यह स्वर्ण  प्राप्त किया है वह दोनों ही स्थान स्वर्णमई हो जाएंगे

अब उस धरती के भीतर सदैव के लिए सोने का वास होगा लेकिन वह स्वर्ण केवल लोक कल्याण के लिए ही होगा और किसी ने उसे यूं ही प्राप्त करने की कोशिश की तो वह मती भ्रम का शिकार हो जाएगा भद्रा देवी प्रसन्न होकर के उसे वरदान देकर के वहां से चली जाती है तभी अचानक से जिस घर मे नहुषा और राजदेव रहते हैं वहां स्वर्ण भंडार भर गए नहुषा ने जाकर देखा तो वहां सचमुच में बड़ी मात्रा में सोना इकट्ठा हो गया था अद्भुत ऐसा चमत्कार देखकर के नहुषा प्रसन्न होता है और गुरु राजदेव को प्रणाम करता है और खुश हो जाता है नहुषा कहता है आज से यह धरती स्वर्णमई हो गई और हमें भी पर्याप्त मात्रा में धन की प्राप्ति हुई है और क्योंकि यह धन तांत्रिक है इस कारण से इसके अंतर्गत बहुत सारी दिव्य भी मौजूद होगी नहुषा और गुरु राजदेव यह बात जानते थे कि इस धन का उपयोग विशेष प्रकार से ही करना होगा अगर लोक कल्याण के लिए इस धन का उपयोग नहीं हुआ तो इसमें मौजूद शक्तियां नुकसान भी पहुंचा सकती है रात्रि के समय एक बिस्तर की सेज तक जाती है यह देख कर नहुषा आश्चर्यचकित हो जाता है सामने खड़ी हुई देवी कहती है आज उनकी सुहागरात है

और आपको यह मना ली होगी क्योंकि आपने मुझसे विवाह किया नहुषा गुरु राजदेव के पास जाता है कहता है गुरु राजदेव मुसीबत से मैं कैसे बचू और मैं क्या करूं यह देवी अब कह रही है कि मुझे इसके साथ अब शारीरिक संबंध बनाने होंगे मैं करूं तो क्या करूं गुरु राजदेव कहते हैं कि यह बात तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए कि अब मैं कुछ नहीं कह सकता तुम्हें जो करना है वह करो लेकिन ध्यान रखना किसी भी प्रकार से भ्रमित नहीं होना है जीवन में नहुषा और वह देवी दोनों अंदर कमरे में चले जाते हैं सुबह के समय दर्द से कराहते हुए नहुषा जब उठता है तो आकाश की ओर देखता है वह बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता था क्योंकि उसकी रात बहुत अच्छी कटी लेकिन यह क्या जब वह चारों तरफ देखता है तो वहां उसकी कूटी नहीं थी वह यूं ही पड़ा हुआ था कुछ ही देर बाद वहां पर गुरु राजदेव प्रस्तुत हो जाते हैं और नहुषा से कहते हैं बड़ी ही अचरज की बात है मैं जिस कुटिया में था वह कुटिया गायब है तुम जिस कुटिया में थे वह भी गायब है तुम्हारा बिस्तर और उस पर सजे फूल खुले आसमान के नीचे है तुम्हारी पत्नी कहां है नहुषा कहता है शायद कहीं गई होगी पर यह आश्चर्य की बात है कि हम लोग की कुटिया गायब हो चुकी है नहुषा इधर-उधर टहलते है पर उसे वह स्त्री कहीं दिखाई नहीं देती कुछ देर घूमने फिरने के बाद में वह उस स्थान की ओर जाते हैं जहां पर देवी की पूजा की गई थी

भद्रा देवी की पूजा वाले स्थान पर पहुंच कर एक बार फिर से वह आश्चर्य में पड़ जाते हैं उस स्थान पर देवी की कोई मूरत नहीं थी अब दोनों आपस में बात करने लगते हैं कि आखिर रात्रि में ऐसी कौन सी घटना घट गई जिसकी वजह से स्वर्ण मूर्ति गायब हो चुकी है उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था काफी इधर-उधर ढूंढने के पश्चात भी नहुषा को उसकी पत्नी नहीं दिखाई थी ना हो सा रोने लगा क्योंकि उसे रात्रि में ही देवी से प्रेम हो गया था अब उसकी याद उसे बहुत ज्यादा आ रही थी वह उस से प्रेम करने लगा था और अब उसकी कहीं भी कोई गति दिखाई नहीं पड़ रही थी वह गायब हो चुकी थी आखिर कहां चली गई वह इधर उधर सब जगह ढूंढता है नीलमणि के स्थान पर भी जाता है लेकिन वह उसे कहीं नहीं दिखाई देती अंततोगत्वा वह जाकर के एक बार फिर से अपने गुरु राजदेव से कहता है गुरुदेव मुझे शक हो रहा है कि हमारा स्वर्ण भी ना चला जाए नहुषा और गुरु राज देव दोनों उस कुटिया की ओर बढ़ते हैं जिसमें अटूट धन रखा हुआ था पर वह जब वहां पहुंचते हैं तब वहां कुटिया सहित कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता वह स्थान खाली हो चुका था यानी कि धन भी नष्ट हो चुका था

नहुषा बैठ कर रोने लगा और सोचने लगा कि आखिर एक रात में ऐसा क्या घटित हो गया नहुषा ने और गुरु राज देव ने काफी देर मंत्रणा की उसके बाद नहुषा श्मशान काली का पूजा करने लगा कुछ देर बाद माता श्मशान काली प्रकट हो जाती है नहुषा उन्हें देख कर के प्रणाम करता है माता उसे देख कर के आश्चर्य से कहती है कि मैंने तुम्हें समझाया था लेकिन तू समझ नहीं पाया कि किसी भ्रम जाल में मत फसना देख तेरे साथ क्या हुआ है जीविका सब कुछ ले कर भाग गई नहुषा को कुछ समझ में नहीं आया नहुषा ने कहा माता यह जीविका कौन थी तो माता श्मशान काली कहती है पुत्र जीविका एक राक्षसी थी वह नीलमणि की रक्षा के लिए पाताल लोक से आई थी राक्षस यह चाहते थे कि नीलमणि की शक्तियां और वह स्वर्ण मूर्ति उन्हें प्राप्त हो जाए इससे पाताल लोक में स्वर्ण स्थाई रूप से बना रहेगा और इसीलिए उसने तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध भी बनाए तुम भ्रमित हो गए और वह तुम्हारी आधी शक्तियों की स्वामी भी हो गई अब क्योंकि पत्नी का अधिकार होता है कि उसका भी धन पर और शक्तियों पर हक होता है

इसलिए उसे वह शक्ति प्राप्त हो गई जिसके कारण वह कुटिया सहित सारा धन और भद्रा देवी की मूर्ति सब कुछ लेकर अपने साथ पाताल लोक में चली गई नहुषा बहुत ही परेशान हो करके कहता है माता इसका कोई उपाय नहीं है तो शमशान माता काली कहती है कि जिस उद्देश्य से तुमने यह प्राप्त करने की कोशिश की थी वह उद्देश्य भंग हो गया है तंत्र मंत्र के मार्ग में इन क्रियाओं का बहुत तेजी से प्रभाव होता है अगर प्रारब्ध ना बदल पाए तो निश्चित रूप से कर्म भी भस्म हो जाते हैं इसलिए तुमने जो कुछ भी किया वह सब कुछ समाप्त हो चुका है मैं तुम्हें स्वेच्छा से एक शक्ति प्रदान करती हूं तुम जिनका भी भला करोगे वह तुम्हें ध्यान दिया करेंगे और तुम्हारा जीवन बहुत ही अच्छी तरह से कट जाएगा

लेकिन तुम्हें अब यह धन नहीं प्राप्त हो सकता और मैं किसी के भाग्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती हूं तुमने वह सब गवा दिया है और अब हमेशा के लिए भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति पाताल लोक में चली गई है साथ ही साथ धन का एक बहुत ही बड़ा भाग पाताल लोक चला गया है इस जगह को लोग सोनभद्र के नाम से जानेंगे यहां के पहाड़ों में और मिट्टी में स्वर्ण मिला हुआ सदैव रहेगा लेकिन इसे निकाला नहीं जा सकेगा इसे केवल वही ही निकाल सकेगा जो कोई लोक कल्याण के लिए ही इसका उपयोग करना चाहेगा जब इसका लोक कल्याण के लिए उपयोग होगा तब इसका उपयोग हो सकेगा अन्यथा बार-बार धन पैदा होता रहेगा सोन नदी में सदैव ही कुछ मात्रा में सोना होगा क्योंकि सोन नदी उन पहाड़ों से होकर के गुजरती रहेगी इसमें सोने का अंश हमेशा बहता रहेगा इस प्रकार यह सब कहते हुए माता श्मशान काली अदृश्य हो जाती है नहुषा भी अपने मन से धन का लालच मिटा देता है और लोगों की सेवा करने लगता है इस प्रकार से यह कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है और सदैव के लिए सोन और सोनभद्र प्रसिद्ध हो जाते हैं तो यह थी भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति की कथा आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद

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