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भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है मठ और मंदिरों की कहानी एक बार फिर से आपके लिए हासिल की है और बहुत ही गोपनीय कहानी आज मैं सुना नहीं जा रहा हूं यह कहानी है भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति की और यह भाग 1 है आज इस कहानी के बारे में आप जब जानेंगे हम जानेंगे कि भद्रा देवी की शक्ति से 1 जिले का नाम कैसे पड़ गया आज की स्थिति में और वहां पर कैसे बहुत सारे रहस्य छिपे हुए हैं

यह मठ कहां पर रहा होगा इसके बारे में तो कुछ पता नहीं है लेकिन यह जाने की कोशिश हम इस कहानी के माध्यम से अवश्य ही करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति भाग 1 जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि उत्तर प्रदेश में एक स्थान है जिसको हम सोनभद्र जिले के नाम से जानते हैं इसमें कई सारी गुफाएं हैं जहां पर चित्रकला से संबंध में बहुत कुछ देखने को मिलते हैं

यहां की लखानीए गुफाएं कैमूर पर्वत माला में स्थित है अपने सुंदर चित्रों की वजह से यह जगह जानी जाती है और यहां की जो ऐतिहासिक पेंटिंग जो देखने में मिलती है 4000 साल पुरानी तो यह कहानी उससे भी पहले की हो सकती है यानी कि कई हजार साल पहले की यह कथा है इस कहानी और यह कथा चित्रकला से संबंधित और बहुत से ऐसे रहस्य हैं जो सोनभद्र नाम की पहाड़ी पर आपको देखने को मिल जाएगी और यहां आज की स्थिति में बहुत सारे बांध भी बने हैं जैसे कि रिहंद बांध है कंदरा बांध है जो इस तरह की कई सारे विशाल चट्टाने भी देखने में आती है

तो हम यहां पर सबसे पहले जानते कहानी की शुरुआत होती है उसे कैसे हो से पहले हम यहां के दिन के संबंध में अवश्य ही जान लेते है यहां की जो देवी है इन्हे हम भद्रा नाम से जाना जाता है और इन्हीं के नाम पर बाद में सोनभद्र का स्थान कैसे बना कैसे स्थिति जगह फेमस हुई इसके बारे में कहानी हमें मिलती है तो सबसे पहले जानते हैं यहां पर एक मढ़ हुआ करता था जो सोन पहाड़ी पर स्थित था और वह स्थान था वहां पर नहुषा नाम के एक व्यक्ति रहा करते थे अपने गुरु राजदेव से विद्या प्राप्त करते रहते थे नहुषा और गुरु राजदेव में जो है मित्रता भी थी

और इसके साथ ही उनकी पूरी तरह से आज्ञा मना करते थे नहुषा बहुत ही बड़ा तांत्रिक बनना चाहता है लेकिन यह जान गया था कि किसी भी प्रकार से जिसके पास धन संपदा होती है वह व्यक्ति अवश्य ही संसार में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हो जाता है नहुषा ने अपने गुरु राजदेव से कहा कि गुरु मुझे कोई ऐसी विद्या बताइए कोई ऐसी साधना बताइए जिसके माध्यम से मैं अत्यधिक धनवान हो जाऊं इतना अधिक धन मेरे पास हो जिसकी कल्पना देवताओं ने भी नहीं कि ऐसी स्थिति में गुरु राज देव ने उनसे कहा कि नहुषा सुनो अगर तुम धन प्राप्त करना चाहते हो तो केवल और केवल कुबेर जी की साधना सर्वोत्तम है

लेकिन कुबेर जी को प्रसन्न करने के लिए पूरी दुनिया लगी रहती है इसका एक अलग माध्यम और भी है अगर गुरुदेव कुबेर जी को प्रसन्न ना किया जाए इसके अलावा किसी और को प्रसन्न करके ऐसा ही धन प्राप्त किया सके क्या कोई और मध्यम नहीं है ऐसा नहुषा ने अपने गुरु से सवाल किया राजदेव थोड़ी देर सोचते रहे और कहने लगे सच में तंत्र की विद्या के माध्यम से अगर हम कुबेर जी को प्रसन्न करने जाते हैं तो लाखों की संख्या में लोग उन्हें प्रसन्न करने में लगे रहते हैं हम भला कुबेर जी को जल्दी कैसे प्रसन्न कर पाएंगे अगर हम उनकी ही जगह उनकी पत्नी को अगर हम प्रसन्न कर ले उनकी ही शक्तियां हम प्राप्त कर ले तो सहजता से कुबेर जी हमारे वश में हो जाएंगे इस संबंध में तुम्हें एक छोटी सी बात में बताता हूं

उसे सुनो गुरु राजदेव अपने पुराने गोपनीय राजो को खोल रहे थे उन्होंने नहुषा से कहा शायद तुम्हें नहीं पता है कि हमारे धर्म में एक देवी है जो शिकार की देवी मानी जाती है लेकिन यह महारानी है भगवान कुबेर कि यह उनकी रानी है और यह भद्रा नाम से कहलाती है वास्तव में यह देवी सूर्य देवता की बेटी है और शनि महाराज की बहन ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव जब हलाहल विष पी रहे थे तो उसी हलाहल विष के संबंध में यह प्रकट हुई थी और उसी हलाहल विष से भरी हुई है इसीलिए बहुत ही अधिक तेजस्वी है शक्तिशाली है और कुछ भी बुरा करने की क्षमता रखती हैं असल में भद्रा सूर्य देवता की पुत्री है जो बहुत ही अधिक सुंदर थी कहते हैं धन देवता कुबेर से इन्होंने विवाह किया था और ऐसी ही एक कहानी आती है

कि भगवान वरुण भी उनके ऊपर आकर्षित हो गए थे क्योंकि भद्रा बहुत ही ज्यादा सुंदर थी इसीलिए उन्होंने ऊद्दत के आश्रम से भद्रा को अपहरण करने की कोशिश की नारद जी उन्हें लेने गए मगर उन्होंने भद्रा को वापस नहीं किया वह ऊद्दत पर क्रोधित हुए और पूरा समुंद्र पी गए लेकिन इसके बावजूद भी वह उनको वापस नहीं कर रहे थे अंततोगत्वा इस कहानी का अंत किस प्रकार से होता है कि अंततोगत्वा ऊद्दत से मान जाते हैं और कुबेर की पत्नी के रूप में बाद में उनसे विवाह हो जाता है इस समय जब कुबेर अपनी पत्नी को वापस ला रहे थे उस अवस्था में उनके शरीर में एक शक्ति अचानक से गिरती है और वह इसी स्थान यानी कि सोनभद्र गिरि पर गिर जाती है उनकी एक स्वर्ण प्रतिमा वह स्वर्ण प्रतिमा इसी के नीचे पहाड़ी पर जहां वास है

कहीं अंदर गड़ी हुई है लेकिन वह बिना तंत्र के प्रकट नहीं किया जा सकता अगर तुम किसी भी प्रकार से उस स्वर्ण प्रतिमा को प्राप्त कर लो तो इसके बाद फिर तुम अतुल्य धन के मालिक बन जाओगे क्योंकि कुबेर जी ने अपनी सारी शक्ति अपनी पत्नी को उस वक्त दे रहे थे उसी क्षण किसी कारण वश उनके हाथ से उनकी पत्नी को दी जाने वाली शक्ति स्वरूपा वह शक्ति नीचे गिर गई थी कुबेर अपने लोग लौट आए और अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक रहने लगे लेकिन वह गिरी हुई प्रतिमा उसी स्थान पर कहीं गिर गई कहते हैं वह प्रतिमा किसी को प्राप्त हो जाए तो वह अतुल्य धन के खजाने का मालिक होगा इसलिए हमें अवश्य ही उस मूर्ति की पूजा करनी है

और उसका प्रकृटी भी करना है यानी कि उसको फिर से प्राप्त कर लेना है उनकी बात को सुनकर बड़े आश्चर्य में पढ़ते हुए नहुशा ने कहा गुरु राजदेव आप कोई मार्ग बताइए इस प्रकार से हम उस मूर्ति को प्राप्त कर सकते हैं तो गुरु राज देव ने कहा यह जो सोना पहाड़ी है इसी पहाड़ी पर हम लोग अगर तांत्रिक पूजा उपासना करें भद्रा देवी की तो निश्चित ही हमें वह मूर्ति मिल सकती है और मैंने बहुत पहले यह कोशिश की थी इसीलिए मैं इस सोना पहाड़ी पर आकर रहने लगा था लेकिन असल में ऐसा हुआ नहीं मैंने बहुत कोशिश की पर उस उपासना से एक राक्षस की उत्पत्ति हो गई वह राक्षस उस स्वर्ण प्रतिमा की रक्षा कर रहा है

उस प्रतिमा को अगर वापस पाना है तो हमें उस राक्षस को मारना होगा और उसके हाथों से वह प्रतिमा छीननी नहीं होगी हालांकि वह धरती के अंदर गड़ी हुई है इसलिए स्वयं वह राक्षस भी उस प्रतिमा को वापस प्राप्त नहीं कर सकता इसमें कुबेर देवता की शक्ति प्रतिमा में स्थापित है इसीलिए वह राक्षस उस प्रतिमा को उसकी रक्षा के लिए उपस्थित रहता है ऐसा करने की वजह से उसकी ऊर्जा शक्ति स्वता ही उसे प्राप्त होती रहती है और उस ऊर्जा शक्ति के कारण वह राक्षस शक्तिशाली होता चला जा रहा है

नहुशा ने कहा गुरु राजदेव आप मुझे मार्ग बताइए क्या कोई तरीका नहीं है क्या हम उस राक्षस से इस प्रतिमा को वापस प्राप्त सके और इसके बाद मैं दुनिया का सबसे अधिक धनवान बन सकूं गुरु राज देव ने कहा ठीक है तुम्हें यहीं बैठ कर के कुछ तपस्या करनी होगी कुछ तंत्र साधनाएं करनी होगी देवी भद्रा को प्रसन्न करना होगा देवी भद्रा के प्रसन्न होते ही यह स्थान खुद ब खुद तुम्हें अपने राज बताएगा और यहां पर तुम्हें एक बड़ी मात्रा में सोने की अवश्य प्राप्ति हो सकेगी गुरु राज देव के वचन को सुनकर के नहुषा प्रसन्न हुआ और उसने कहा ठीक है

गुरुदेव मुझे तरीका बताइए किस प्रकार से हम इस शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं तो उन्होंने कहा तुम्हें सबसे पहले नीलम को लाना होगा नीलम नाम का रत्न अगर तुम प्राप्त कर लेते हो उसका मार्ग मैं तुम्हें बताऊंगा आखिर वह रतन तुम्हें कहां से और कैसे प्राप्त होगा एक गोपनीय जंगल है वहां पर एक बहुत बड़ी नीलमणि रखी हुई है उस नीलम को यहां ला करके स्थापित करो और उसके बाद फिर तुम पूजा अगर तुम करते हो तो निश्चित रूप से तुम्हें सिद्धियों की प्राप्ति होगी और अंततोगत्वा वह स्वर्ण प्रतिमा भी तुम्हें प्राप्त होगी राजदेव के वचन सुनकर के नहुषा प्रसन्न हो जाता है

और कहता है मुझे मार्ग बताइए किस प्रकार से उस मणि को प्राप्त कर सकते हैं वह विशालकाय नीलम आखिर रखा कहां है गुरु राज देव ने कहा यहां से कुछ ही दूरी पर एक स्थान है जिसको हरदी नाम से जाना जाता है और भविष्य में उसे इसी नाम से जाना जाएगा वहां पर बड़ी मात्रा में गोपनीय शक्तियां है उन्हीं गोपनीय शक्तियों से तुम्हारी भिड़ंत होगी उनसे बचना है तुम्हें और वहां से वह ला करके मणि तुम्हें यहां पर स्थापित करनी है

नहुषा ने कहा ठीक है गुरुदेव मैं पूरी कोशिश करूंगा लेकिन सबसे पहले हमें क्या करना होगा गुरु राज देव ने कहा भगवान भद्र को यहां पर स्थापित करो सबसे पहले उनकी पूजन करो उनके मंत्रों का जाप करते हुए तुम्हें उन को प्रसन्न कर लेना है ताकि तुम्हें इस बात की इजाजत मिल सकेगी तुम आगे जाकर मणि यहां ला पाव और उनकी ही दिव्य शक्ति भद्रा को प्राप्त कर सको भद्रा देवी को प्रसन्न करने के लिए पहले भद्र राज को प्रसन्न करना आवश्यक हो गया है

नहुषा ने कहा ठीक है तो मुझे मंत्र बताइए गुरु राज देव ने कहा ॐ भद्राय नमः इस मंत्र का जाप करते हुए तुम्हें यहां पर बहुत अधिक गहन तपस्या करनी होगी उसकी तैयारी तुम कर लो अब नहुषा ने अपने गुरु राजदेव से इसकी आज्ञा मांगी और भद्र राज्य की पूजा तपस्या करने के लिए वह तैयार हो गया उसने एक विशालकाय प्रतिमा का निर्माण किया जो मिट्टी से बनी हुई थी भद्र राज्य की पूजा करने के लिए वह बैठ गया उनके सामने बैठ कर के ॐ भद्राय नमः ॐ भद्राय नमः मंत्र का जाप करने लगा कुछ देर मंत्र जाप करने के बाद अचानक से ही उसकी प्रतिमा टूट कर बिखर गई उसे बड़ा आश्चर्य हुआ यह कैसे संभव हो गया

आखिर इतनी मुश्किल से बनाई गई मेरी प्रतिमा कैसे टूट गई चारों तरफ वह देखता है और उसके बाद वह अपने गुरु के पास जा करके पूछता है और गुरु कहते हैं कि साधना खंडित हो चुकी है ऐसा करो दोबारा से मिट्टी से एक प्रतिमा बनाओ और फिर से पूजन प्रारंभ करो उनकी बात को मानते हुए नहुषा फिर से एक बार भगवान भद्र की प्रतिमा स्थापित करता है और ओम भद्राय नमः मंत्र का जाप करते हुए एक बार फिर से वही तपस्या करने लगता है तपस्या के बीच में ही अचानक से एक बार फिर से मूर्ति टूट जाती है नहुषा अपनी आंखें खोल कर देखता है

और कहता है एक बार फिर से मूर्ति टूट गई है यह कैसा राज है यह मूर्ति बार-बार क्यों टूट जा रही है वह गुरु राजदेव के पास जाता है और कहता है कि गुरुदेव मार्ग बताइए मैं बार-बार भगवान भद्र की मूर्ति स्थापित करता हूं लेकिन इसके बावजूद बार बार ऐसा होता है कि वह मूर्ति टूट जाती है गुरु राजदेव कहते हैं मूर्ति में जान नहीं बसती इसका अर्थ यह है कहीं ना कहीं तुम्हारा मन खंडित है कोई भी पूजा लालच से नहीं की जाती है पहले लालच का त्याग करो और अबकी जब मूर्ति बनाना तो भगवान शिव को जरूर याद कर लेना क्योंकि भद्र स्वरूप उन्हीं का ही है

राजदेव की आज्ञा मानकर के नहुषा अब अब की बार मिट्टी की मूर्ति बनाते हुए भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने लगता है ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय के मंत्र का जाप करते हुए वह मूर्ति बनाने लगता है मूर्ति बन जाती है और जब वह मूर्ति को स्थापित करता है और उसके आगे बैठकर मंत्र जाप कर रहा होता है तब अचानक से ही उसके ऊपर काफी मात्रा में मिट्टी गिरने लगती है वह आंखें खोल देता है और देखता है कि उसकी मूर्ति को तोड़ने के लिए एक राक्षस कोशिश कर रहा है पर वह तोड़ नहीं पा रहा है और नहुषा सारी बात समझ जाता है कि वह मूर्ति स्वता ही नहीं टूट रही थी बल्कि उसे कोई तोड़ रहा था नहुषा उसे ललकारता है तभी वह बड़े वेग से उसके सिर पर डंडा मार देता है नहुषा के सिर से खून निकलने लगता है

आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे भाग 2 में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद

भद्रा देवी की स्वर्ण मूर्ति भाग 2

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