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भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 8

भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 8

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग भानु अक्षरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 8 के विषय में जानेंगे। चलिए शुरू करते हैं इनके पत्र को और जानते हैं इस अनुभव के आगे के अध्याय को।

ईमेल पत्र -गुरुजी और चैनल के सभी भाई बहनों को मेरा प्रणाम आशा करता हूं। आप सब ठीक होंगे। इस 8 में भाग में मैं आप सभी को माता दुर्गा के दिव्य परमधाम के बारे में बताऊंगा जो मुझे भानू ने बताए थे पर पहले पिछले वीडियो के कमेंट में किए गए दो तीन प्रश्नों के बारे में बता देता हूं। कुछ लोगों ने कहा कि वह भानु अप्सरा साधना करना चाहते हैं तो आप सभी जरूर यह साधना कर सकते हैं पर उसका नाम भानु नहीं है। भानु का असली नाम चंद्र ज्योत्सना है। आप सभी को चंद्र ज्योत्सना अप्सरा साधना करनी पड़ेगी।

भानु नाम से तो बस मैं उसे पुकारता हूंl
 दो प्रश्न ऐसे थे की, क्या महिलाएं भी सहेली के रूप में यह साधना कर सकती है? और, क्या मां या बहन के रूप में यह साधना करने से अप्सरा हमारे सगे मां या बहन को मार देगी? तो हां, सभी महिलाएं सहेली, मा या बहन के रूप में भी यह साधना कर सकती हैंl पर इससे ऐसा कभी नहीं होगा कि अप्सरा आपके सगे मां या बहन को कोई नुकसान पहुंचाएगीl क्योंकि अप्सराएं बहुत ही सौम्य शक्तियां होती हैl पर अगर आप किसी यक्षिणी या पिशाचिनी की साधना करें, तब यह खतरा जरूर रहता हैl मेरे दो गुरुभगिनी है, जिन्हें मैं दीदी पुकारता हूंl उनमें से एक को मां के रूप में और एक को बहन के रूप में अप्सरा की प्रत्यक्ष सिद्धि है, और उनके सगे मां और बहन भी बिल्कुल स्वस्थ हैl यहां तक की मेरे एक गुरुभ्राता भैया है जो विवाहित भी है और उन्हें पत्नी के रूप में 9 अप्सराओ की सिद्धि भी हैl उन भैया ने मुझे बताया था कि वह सभी 9 अप्सराएं उनके सगे पत्नी को अपनी छोटी बहन की तरह ही देखती है, और उनकी वह पत्नी भी बिल्कुल स्वस्थ हैl तो अप्सरा साधना में कोई खतरे की बात नहीं होतीl
 एक प्रश्न था कि, जिन लोगों को दैनिक मंत्र जाप करने का समय नहीं मिलता उनके लिए कोई मंत्र है कि नहीं? तो हा, ऐसे लोग महादेव के ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का मानसिक जाप, मतलब मुंह से कुछ ना बोल कर केवल मन ही मन जाप करते रहे, और यह मानसिक जाप आपको सुबह सो कर उठने से लेकर रात को सोने जाने तक पूरे दिन करना है, चाहे आप कोई भी काम क्यों ना कर रहे होl इसमें और कोई भी नियम नहीं है, सिर्फ हर सोमवार आपको महादेव की पूजा जरूर करनी है, और पूजा के बाद महादेव के सामने बैठ कर एक या आधे घंटे मानसिक जाप कीजिएl जिस सोमवार से आप यह जाप शुरू करेंगे, उस दिन अपने कुलदेव या देवी का, अपने पितरों का और आपके घर के आसपास के ग्रामीण देवी देवताओं का भोग जरूर चढ़ाएं और उनसे अनुमति मांग लेl इससे आपको कोई लंबी साधना की भी जरूरत नहींl इससे आपका तपोबल भी बढ़ेगा, आपका जाप करने का स्थान जागृत होगा, आपको महादेव की कृपा भी प्राप्त होगीl 3 से 4 महीने के अंदर आप का मंत्र जब जागृत की अवस्था में पहुंच जाएगा, तब आप को अच्छी अनुभूतियां भी होंगी, आपके कुछ छोटे-छोटे परीक्षाएं भी लिए जाएंगे, आपको बाकसिद्धि भी मिलेगी, यहां तक की आपको शिवदूतो  की भी प्राप्ति होगीl
 और एक भाई ने कमेंट किया था की जो समलैंगिक पुरुष, मतलब homosexual पुरुष है, वह प्रेमिका रूप में यह साधना नहीं कर सकते तो किस रूप में करें? और समलैंगिकता, मतलब homosexuality के बारे में भानु के क्या विचार हैं? तो, ऐसे लोग मा, बहन या मित्र के रुप में यह साधना करेंl और जब मैंने भानु से समलैंगिकता मतलब homosexuality के बारे में पूछा था, तब उसने बड़े ही कोमल स्वर में जवाब दिया कि, कभी-कभी समलैंगिकता मानव शरीर की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, तो कभी-कभी यह मानव शरीर में विपरीत ग्रहदोष के वजह से उत्पन्न होती हैl एक स्त्री और पुरुष में संभोग का केवल एक ही उद्देश्य होना चाहिए और वह है संतान की उत्पत्ति के माध्यम से वंश को आगे बढ़ानाl संतान उत्पत्ति के उद्देश्य को छोड़कर अकारण संभोग और ब्रम्हचर्य का नाश धर्म के अनुकूल नहीं हैl समलैंगिकता के वश में आकर जब दो पुरुष या दो नारी आपस में संभोग में लिप्त होते हैं, तो इसमें संतान उत्पत्ति का कोई संभावना नहीं होता, होता है तो सिर्फ दैहिक भोग वासना, जो पाप के श्रेणी में आती हैl ऐसे संभोग में लिप्त हुए दो नारी या दो पुरुष सदैव दंड के पात्र होते हैंl इसलिए समलैंगिकता के वशीभूत होकर समलिंग में संभोग महापाप हैl ऐसे पुरुष और स्त्रियों को ब्रम्हचर्य के प्रति अनुरक्त रहकर ध्यान और योग के माध्यम से इन विचारों से दूर रहना चाहिए और परमेश्वर की साधना भक्ति करनी चाहिएl
 अब मैं आप सभी को मा दुर्गा की परमधाम के बारे में बताता हूंl ठीक जैसे एक बच्चे को रात को सोने से पहले उसके घर के लोग कहानियां सुनाते हैं, ठीक वैसे ही जब जब भानु मुझसे मिलने आया करती है, तब तब रात को सोने से पहले वह मुझे बहुत से ज्ञान की बातें बताती रहती है, और मैं उन सबको डायरी में लिखता रहता हूंl ठीक ऐसी ही एक रात में, मैंने भानु से मा दुर्गा के परमधाम के बारे में पूछाl
 तब भानू ने मुस्कुराते हुए बोलना शुरू किया की, मां हर समय हर स्थान पर विराजमान है और विशेष करके शक्तिपीठों में निवास करती हैl वह एक ही समय पर इस ब्रह्मांड के अंदर कैलाश पर्वत में महादेव के पास विराजित है और साथ ही साथ ब्रह्मांड के बाहर भी निवास करती हैl ब्रह्मांड के अंदर कैलाश में उनकी पौराणिक मूर्ति और ब्रह्मांड के बाहर उनकी तांत्रिक मूर्तियां विराजित हैl तो हमारे ब्रह्मांड के अंदर कैलाश में हम सबके प्रिय महादेव, जो की ब्रह्मांड के संहार का कार्य करते हैं, उनके साथ मां दुर्गा अपनी पौराणिक मूर्ति में रहती है, जिन्हें हिमालय कन्या पार्वती, या फिर उमा देवी कहां जाता हैl अपने इस रूप में मां की शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान गौर हैl उनके ललाट में सुंदर त्रिनेत्र, बाए हाथ में एक नीला कमल का फूल और दाएं हाथ में एक सफेद चामड़ रहता है(आप सभी ने देखा होगा कि चामड़ एक पंखा जैसा होता है जीसे घोड़े की पूंछ से बनाया जाता है, और पूजा के समय भगवान के मूर्ति को हवा देने के लिए यूज़ किया जाता है)l मां पद्मासन मैं बैठती है और अपने दाएं हाथ से महादेव को आलिंगन किए हुए रहती हैl
 अब मैं तुम्हें ब्रह्मांड के बाहर स्थित मां दुर्गा के वैदिक और तांत्रिक मूर्तियों के बारे में बताती हूंl उनकी तांत्रिक मूर्ति बहुत ही गोपनीय है, पूरे संसार में ऐसा कोई नहीं जो उनके बारे में ठीक से बता सके, पर फिर भी मुझे जितना पता है बताती हूंl पाताल, भूतल, स्वर्ग और ब्रह्मलोक, यह सब हर एक ब्रह्मांड के अंदर विद्यमान हैl ब्रह्मांड के बाहर ब्रह्मलोक से एक लाख योजन की ऊंचाई पर भगवान सदाशिव का अविनाशी शिवलोक विद्यमान है जहां पर अनुग्रहकर्ता भगवान सदाशिव अपने गनों के सहित नित्य निवास करते हैंl जो शिव भक्त हैं, उन्हें इस लोक की प्राप्ति होती है और करुणानिधि देवदेव के प्रसाद से वह नित्य आनंदित रहते हैंl शिवलोक के दक्षिण भाग में बैकुंठ लोक है, जहां पर शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी बैकुंठपति नारायण, लक्ष्मी देवी के सहित निवास करते हैंl यह लोग भी शुद्ध और ज्योतिर्मय रत्नजालो से युक्त हैl विष्णुभक्त देवता, दानव और मनुष्य यहां पर श्री विष्णु के आशीर्वाद से विष्णुसालोक्य प्राप्त करके नित्य निवास करते हैंl पतगाधीप गरुड़ इस लोक के द्वाररक्षक हैl शिवलोक के वाम भाग में मां दुर्गा का मनोरम गौरीलोक विद्यमान है, जो दिव्य मनीओ से युक्त हैl यहां पर मां दुर्गा दशभुजाओ से युक्त महिषासुरमर्दिनि स्वरूप में निवास करती है, जो माता की वैदिक मूर्ति हैl इस वैदिक स्वरूप में, माता की मस्तक पर विशाल जटा-जूट और अर्धचंद्र, ललाट पर सुंदर त्रिनेत्र और चेहरे पर पूर्ण कलाओं से युक्त चंद्रमा की सुंदरता हैl देवी नवयोवनधारिणी है, हर प्रकार के आभरनों से सुसज्जित है, और उनके शरीर का रंग अतसी पुष्प के समान गौर हैl माता सदैव सिंह के ऊपर बैठी रहती हैl वह उनके दाएं तरफ के 10 हाथों में त्रिशूल, खर्ग, चक्र, वान और शक्ति नामक अस्त्र, एवं वाएं तरफ के 10 हाथों में ढाल, धनुष, पाश, अंकुश और घंटा धारण किए हुए रहती हैl देवी जिस मंदिर में निवास करती है वह अनेकों ध्वजा से युक्त है और उसके 16 द्वार हैl उस मंदिर के अंदर दिव्य रत्नवेदी के ऊपर देवी विराजित हैl अनेक देवता और मुनियों के बंदनाध्वनि से वह मंदिर हर पल मुखरित रहता है और असंख्य चेटीकागण और भैरवीगन उन 16 द्वारो की रक्षा करती हैंl असंख्य ब्रह्मांडो के असंख्य ब्रह्मा विष्णु और महेश, उन ब्रह्मांडो के देवताओं के साथ यहां पर आकर भगवती दशभुजा महिषासुरमर्दिनी की पूजा करते हैंl श्रीविष्णु के बैकुंठ लोक के बाम भाग में गोलोक विद्यमान है, जो अनेकों रत्न और कल्पवृक्षो से घीरा हुआ हैl इस गोलोक में रत्नस्तंभो से युक्त सुंदर मंदिर में महाप्रभु श्रीकृष्ण श्रीमती राधारानी के साथ निवास करते हैंl इस लोक के चतुर्दिक में ब्रह्मर्षिगनों के मुख से उच्चारित वेदध्वनि सुनाई देती हैl
 अब मैं तुम्हें माता के तांत्रिक स्वरूप के बारे में बताती हूंl तो यह समस्त लोक मतलब, शिवलोक, गौरीलोक, बैकुंठलोक, गोलोक, इन सब से 50 करोड़ योजन की ऊंचाई पर देवी तांत्रिक दुर्गा का परम गोपनीय लोक विद्यमान है, जहां पर ब्रह्मा-विष्णु-रूद्रादि देवताओं का परमदुर्लभा देवी तांत्रिक दुर्गा विचरण करती है| इन्हें देवी जगतधात्री या फिर देवी महादुर्गा भी कहां जाता है| वेद, तंत्र, स्मृति और उपनिषद जैसे दर्शनों में जो एकमात्र परिपूर्ण ब्रह्म नाम से परिचित है, यही वह साक्षात नित्या भगवती है| योगीगन कठोर तपस्या के द्वारा इनके ही चरणों की नखज्योति को निसिदिन ध्यान नेत्र में देखते रहते हैं और देवी के चरणों की नाखूनों से निकलने वाली इस ज्योति को ही निराकार ब्रह्म कहां जाता है| देवी के अंशो से जन्म लेने वाले विष्णु और महेश का जो तत्व वेदों ने निर्णय किया है, हम तो उस के ही महत्व को समझ नहीं पाते, तो स्वयं देवी के तत्व को हम भला कैसे समझ पाएंगे? जो लोग सब कारणों के मूल कारण देवी को नहीं जानते, वही मूर्ख लोग ब्रह्मा-विष्णु-महेश को ब्रह्मांड के सृष्टि-स्थिति-लय का कारण समझते हैं| वह देवी माया के वशीभूत होकर यह नहीं जान पाते की मां महादुर्गा तो कोटि कोटि ब्रह्मांडोके कोटि कोटि ब्रह्मा विष्णु और महेश के भी जननी है| मां दुर्गा ही सिंधुनिमग्न विष्णु के रक्षा के लिए बटपत्रमई होकर जलराशि के मध्य, नारायण को धारण किए हुए रहती है, मां के दृष्टिहीनता के कारण पूरा जगत शबदेह के समान हो जाता है और उनके ही कृपा कटाक्ष से समग्र जगत में चेतना का संचार होता है| देवी के धाम में रत्नों से निर्मित और कल्पवृक्षो से युक्त एक महाद्वीप स्थित है जिसके चारों तरफ एक विशाल सुधासागर विद्यमान है| वहां हर पल वसंत ऋतु देखने को मिलता है| वहां पर पुण्यसलिला गंगा सदैव विराजमान है और वहां के कल्पवृक्षो में देवताओं के अंशो से उत्पन्न पक्षिया मधुर सूर मे देवी के प्रसन्नता के लिए भक्तिगीत गाते रहते हैं| सुगंध से युक्त पवित्र वायु हर पल वहां पर बहती रहती है| जिन जिन दुर्गाभक्तो को अपनी भक्ति से देवी की सालोक्य प्राप्त हुई है, सिर्फ वही वहां पर देहधारन करके विचरण करते हैं| वहां के समस्त महिलाएं देवीतुल्या और समस्त पुरुष भैरवतुल्य है| जिन स्त्री और पुरुषों ने पृथ्वीलोक पर अपने जीवन काल में नृत्य, गीत और वाद्य द्वारा मां महादुर्गा का मनोरंजन किया है, वह भी देवी धाम में नृत्य, गीत और वाद्य के माध्यम से देविका मनोरंजन करते हैं| देवी का धाम ऐसे ही आनंदमय है| अब इस नगर के मध्य में मां दुर्गा का जो स्थान स्थित है, वह भी ऊंचे ऊंचे दीवारों से घिरा हुआ है| इस पूर के चारों तरफ चार विशाल द्वार है, जहां पर अनेक रत्नदंडधारी और त्रिशूलधारी भीमलोचन भैरवगन और दंडधारी भैरवीगन नृत्य गीत करते हुए उन 4 विशाल द्वारो की रक्षा करते हैं| इस पूर के अंदर ध्वजायो से युक्त बहुत से महल है जहां पर भी बहुत से द्वाररक्षक रहते हैं| इसके मध्य स्थल में मां का अन्तःपुर है, जिसके द्वारदेश को देवी के 2 पुत्र गणेश और कार्तिक रक्षा करते हैं| कोटी कोटी ब्रम्हांडोके कोटि कोटि ब्रह्मा, कोटी कोटी विष्णु और कोटि कोटि महेश उस अन्तःपूर मैं मां के दर्शन प्राप्ति के लिए ध्यानमग्न रहते हैं| इस पूरके अंदर चारों तरफ रत्नमय दीप जलते रहते हैं और पूरके मध्य भाग में एक विचित्र मणि मंडप है| मंडप के ऊपर सहस्त्र सूर्य के समान तेज से युक्त एक महा सिंहासन है जिसके ऊपर त्रीजगनमाता महादुर्गा बैठी रहती है| मां के शरीर का रंग सुबह के समय उगने वाला सूर्य के समान उज्जवल लाल है| मां अपने 4 हाथों में से दाएं तरफ के ऊपर के हाथ में चक्र, नीचे के हाथ में बान और बाई तरफ के ऊपर के हाथ में शंख, नीचे के हाथ में धनुष धारण किए हुए रहती है| मां के मस्तक पर अनेक कौस्तभ मणियो से युक्त सुंदर मुकुट और अर्धचंद्र, ललाट पर सुंदर त्रिनेत्र, गले में सुंदर मनीमय हार, कानों में कर्नाभरण और नाक में नासिकाभरण रहता है| देवी के चार हाथों में सुंदर आभूषण, शरीर में दिव्य लाल वस्त्र और कमर में सुंदर ध्वनि से युक्त कांची विद्यमान है| समग्र संसार में ऐसी कोई भी स्त्री नहीं जिससे माता के सुंदरता की तूलना की जा सके| मां के सिंहासन के ऊपर, उनके दक्षिण भाग में परमेश्वर परमशिव निवास करते हैं, जिनका नाम नीलकंठ है| परमशिव नीलकंठके शरीर का रंग माता के ही समान प्रभातकालीन उदीयमान सूर्य जैसे उज्जवल लाल है| परमशिव के 5 सिर है, जिनमें से हर एक सिर के ऊपर विशाल जटा-जूट, एक अर्धचंद्र और एक महानाग अपना फण फैलाए हुए बैठा है| भोलेनाथ के ललाट पर सुंदर त्रिनेत्र है, उनके चार हाथों में से दाएं तरह के ऊपर के हाथ में महाशूल, नीचे के हाथ में जपमाला और बाएं तरफ की ऊपर के हाथ में कपाल पात्र, नीचे के हाथ में एक दंड रहता है जिसके ऊपर कपाल की हड्डी रहती है जिसे खट्टांग कहते हैं| नीलकंठदेव बाघ की छाल वस्त्र के रूप में पहनते हैं और मां के दक्षिण भाग में पद्मासन के मुद्रा में बैठे रहते हैं| सिंहासन के दोनों तरफ मां के दो मुख्य सहचढ़ी जया और विजया खड़े होकर चामड़ के माध्यम से देवी को शीतल वायु प्रदान करती है| महाब्रह्मा, महाविष्णु और महामहेश देवी के सामने खड़े होकर अपना अपना हाथ जोड़कर देवी की स्तुति करते हैं| पद्महस्ता लक्ष्मी खड़े होकर माता को अगूरूआदि सुगंध द्रव्य प्रदान करती है और वीणाधारिणी सरस्वती खड़े होकर  दुर्गा देवी के  वेदागमसम्मत स्तुति करती है| मां दुर्गा के अंशरुपा देवी सावित्री और गायत्री भी वहां पर निवास करती है| अपराजिता आदि देवियां रत्नमय पात्र में देवी को सुधा प्रदान करती है और नंदिनी आदि देवियां रत्नमय पात्र में मां को तांबूल प्रदान करती है| रत्नदंड और खर्गहस्ता कोटी कोटी भैरवीया देवी की सेवा करते हैं| अनेक ब्रह्मांडो के इंद्रादि दिकपालगण देवी दर्शनार्थ उस पूर के बाहर खड़े रहते हैं| वहां पर छोटे बड़े का कोई भेद नहीं, जो भक्ति भाव से देवी की शरण में आते हैं, केवल वही मां के दर्शन कर पाते हैं| देवी की महिमा अवर्णनीय है, स्वयं वेद भी उनकी महिमा नहीं बता सकते|
 अब भानु ने पूछा की प्रकाश, और क्या जानना चाहते हो? तब मैंने पूछा की मुझे मां दुर्गा के कुछ रहस्य के बारे में बताओ, तब उसने फिर से बोलना शुरू किया, आदि काल में महर्षि वेदव्यास जी ने ब्रह्मालोक में जाकर मूर्तिमान चार वेदों से ऐसा ही कुछ पूछा था, तब उन चार मूर्तिमान वेदों ने जो कहा था, मैं तुम्हें बताती हूंl श्री ऋग्वेद ने कहा था, जिनमें समस्त प्राणी विद्यमान रहते हैं, जिनमें से सबका उद्भव हुआ है, तत्वदर्शी पंडितगन ने जिनको परमतत्व माना है, वही साक्षात भगवती दुर्गा है| श्री यजुर्वेद ने कहा था, स्वयं ईश्वर निखिल यज्ञ के माध्यम से जिनकि आराधना करते हैं और जिनके प्रभाव से ही हम समस्त प्राणी प्रमाणीभूत हुए हैं, वही साक्षात भगवती दुर्गा है| श्री सामवेद ने कहा था, समस्त चराचर जगत जिनमें भ्राम्यमान रहता है, योगीगन सर्वदा जिनका ध्यान करते हैं, वही साक्षात भगवती दुर्गा है| और श्री अथर्ववेद ने कहा था, भक्ति के माध्यम से समस्त प्राणी जिनके दर्शन प्राप्त करते हैं, वही साक्षात परब्रह्म स्वरूपिणी भगवती दुर्गा है| इन चार वेद वाक्य के माध्यम से ही महर्षि वेदव्यास जी ने एकमात्र भगवती को ही परब्रह्म रूप में अपने हृदय में धारण किया था| एकमात्र भगवती दुर्गा ही परब्रह्म है, भगवती को छोड़कर परब्रह्म का और कोई उत्कृष्ट स्वरूप नहीं है, इस धारणा को हर पल याद रखना चाहिए| भगवती ना तो स्त्री है और ना ही पुरुष, वह तो शिव और शक्ति का सम्मिलित स्वरूप है जो लीला करने के लिए अपने दिव्य शरीर के दक्षिण भाग से परमशिव नीलकंठ के रूप में प्रकाशित होकर स्वयं ही स्वयं के स्वामी का रूप धारण कर लेती है| भगवती मां दुर्गा ही है जो कोटी कोटी ब्रह्मांडो मे निवास कर रहे कोटि कोटि भक्तिमान देव, दानव और मनुष्य के भाव अनुसार, कभी बामांग में देवी पार्वती शोभित शंकर का रूप धरते हैं, तो कभी लक्ष्मी सहित नारायण का| कभी सरस्वती सहित ब्रह्मदेव का रूप धरते हैं, तो कभी राधा सहित श्रीकृष्णा और सीता सहित श्रीराम का| पृथ्वी लोक मैं स्मार्त उपासकगण जिन पंचदेवता, मतलब शक्ति, शिव, विष्णु, गणेश और सूर्य देव की एक साथ उपासना करते हैं, उन पाँच स्वरूपो में से शक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि शिव, विष्णु, गणेश और सूर्य को कोई भी कार्य करने के लिए अपने अपने स्त्री शक्तियों की आवश्यकता पढ़ती है, पर क्योंकि भगवती ही स्वयं शक्ति है, तो उन्हें और किसी की भी आवश्यकता नहीं| मां दुर्गा का यह दो अक्षर का ‘दुर्गा’- नाम तारकब्रह्म मंत्र कहलाता है, काशी क्षेत्र में अपने प्राणों को त्याग करने वाला कोई भी प्राणी, चाहे वह कोई मनुष्य, दानव, पशु, पक्षी या फिर कोई कीट-पतंग ही क्यों ना हो, स्वयं महाप्रभु शंकर उस मरणशील जीव के कानों में यह तारकब्रह्म मंत्र ‘दुर्गा’ नाम प्रदान कर देते हैं, ताकि उस जीव को मुक्ति प्राप्त हो सके| केवल इस कारण ही काशी में मरने वाला हर एक प्राणी मुक्त हो जाता है| जो भी व्यक्ति भगवती के नाम का जाप और कीर्तन करता है, साक्षात त्रिशूलधारी रूद्र और चक्रधारी नारायण उस देवीभक्त के साथ साथ चलते हैं| काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, जयदुर्गा और महिषासुरमर्दिनि त्रीगूणा महालक्ष्मी, यह सब उन परमब्रह्म भगवती दुर्गा के ही दिव्य नाम है| दुर्गा नाम का रहस्य और महिमा अनंत है, स्वयं परमेश्वर शिवशंभू भी अपने पंचानन से भगवती के गुणो की व्याख्या करने में असमर्थ है, तो हम तुच्छ जीव भला उन के संबंध में क्या बता पाएंगे? हम तो केवल उनके शरण में ही जा सकते हैं, ता की हम बच्चों को मां के कृपादृष्टि का एक बिंदु मिल जाए|
 अब यह सब कुछ सुनने के बाद मैंने भानु से कहा की अब मुझे मां काली के परमधाम के बारे में बताओ| तब वह कहने लगी, नहीं नहीं प्रकाश, अब और कोई प्रश्न नहीं, तुम्हें अब सो जाना चाहिए क्योंकि बहुत रात हो गई है| देर रात तक जागोगे तो ब्रह्ममुहूर्त मे उठ नहीं पाओगे| मैंने उसे कहा की नहीं मैं अभी नहीं सोना चाहता, मुझे अभी और सुनना है| तब भानु ने मुझसे मेरी डायरी और पेन ले लि और मुझे जबरदस्ती सुला दिया| फिर वह मेरे पास बैठ गई और मेरे सर पर अपने कोमल हाथ फेरते हुए मीठी सी आवाज में मुस्कुराते हुए बोली की, जैसे मैंने अभी तुम्हें मां दुर्गा के पौराणिक, वैदिक और तांत्रिक मूर्तियों के बारे में बताया, वैसे ही जब मैं अगली बार तुमसे मिलने आऊंगी, तब मैं तुम्हें मां काली के परमधाम के बारे में बता दूंगी, पर अभी तुम सो जाओ| फिर में सो गया और भानु मेरे ही बिस्तर के ऊपर माता का ध्यान करते हुए ध्यानमग्न हो गई| फिर सुबह जब मेरी आंखें खुली तो देखा कि भानु जा चुकी है|
  तो गुरुजी, मैं अपने अगले पत्र में आप सभी को मां काली के धाम के बारे में बताऊंगा पर हो सकता है कि मुझे थोड़ी देर हो जाए| क्योंकि जनवरी महीने में मेरे कॉलेज के लास्ट ईयर के एग्जाम खत्म होने के बाद मैं हमारे ही डिस्ट्रिक्ट में एक प्राइवेट सेक्टर में जॉब कर रहा हूं और साथ ही साथ सरकारी नौकरी के लिए पढ़ाई भी करनी पड़ रही है, तो मुझे पत्र लिखने के लिए समय बहुत कम मिलता है, पर जितनी जल्दी हो सके भेज दूंगा, तब तक के लिए आपको और चैनल के सभी को मेरा प्रणाम|
  संदेश-तो देखे यहां पर इन्होंने बहुत अच्छी तरह से माता की वंदना और उनके स्वरूप का गुणगान करते हुए यह पत्र भेजा है। इसके लिए यह बधाई के पात्र हैं। निश्चित रूप से माता के भक्तों में और गुरु मंत्र के साधकों के लिए यह वर्णन और विवरण उत्कृष्ट साबित होगा। आगे इसी प्रकार अपने अनुभव को भेजते रहें क्योंकि दर्शकों को इस के माध्यम से मां की उचित वंदना करने का एक माध्यम मिल रहा है।आपको मैं और भी अधिक बधाई देता हूं कि आप इसी प्रकार माता के स्वरूपों का वर्णन करते रहे। अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आए तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 9

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