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भू निधि योगिनी साधना अनुभव 3 अंतिम भाग

भू निधि योगिनी साधना अनुभव 3 अंतिम भाग

 

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। भू निधि योगिनी साधना अनुभव में अभी तक आपने जाना कि किस प्रकार ब्राम्हण व्यक्ति भू निधि योगिनी की साधना करता है जहां पर उसके सामने एक विशालकाय सर्प प्रकट हो जाता है जो उसे तुरंत ही खाने वाला था। अब इसके आगे की कथा जानते हैं। इसके तुरंत बाद ब्राह्मण व्यक्ति इतना अधिक डर गया कि उसे लगा कि अब उसे यहां से तुरंत ही भाग जाना चाहिए। वह यह भूल गया कि यह जो समय है यह साधना का समय है और साधना काल के दौरान। किसी भी तरह से आप साधना को नहीं त्याग सकते पर क्योंकि वह एक नया साधक था। उसके जीवन में यह नई बात घटित हो रही थी। इसी कारण से अब वह इस बात के लिए तैयार हो गया था कि उसे यह साधना नहीं करनी बल्कि उसे अपने प्राण बचाने हैं और वह वहां से उठकर भागा, लेकिन वह उस जमीन से बाहर नहीं जा पाया।

उस सर्प ने एक बार फिर से उसके आगे खड़े होकर उससे कहा। सुन तू मुझसे भाग नहीं सकता है। एक तो तूने मेरी जमीन पर आकर। बिना मेरी मर्जी के यह सब कुछ किया है और तू! मेरी सारी संपत्ति लेकर जाना जाता है। मैं यह होने नहीं दे सकता। इसीलिए अब मैं तेरे प्राण ले लूंगा। तू इस जमीन से बाहर कभी भाग नहीं सकेगा। अपने आपको ब्राह्मण व्यक्ति ने जब इस प्रकार देखा तो उसने सोचा, अब तो मेरे जीवन का आखरी दिन आ ही गया है। कहां में धन के चक्कर में पड़कर अपना प्राण ही गवाने वाला हूं। मैं उन साधु पुरुष के आने को अपना दुर्भाग्य मानता हूं। उनकी प्रेरणा से मैंने यह साधना शुरू कर दी थी और अब मेरे प्राण ही संकट में पड़ गए हैं। बिना कुछ जाने तांत्रिक साधना में नहीं उतारना चाहिए। यही सोचते हुए वह कुछ कह पाता। इससे पहले ही सर्प ने कहा, तू चुप क्यों है क्या तू अपने प्राण देने के लिए तैयार है ? तब उस ब्राह्मण व्यक्ति ने अपना मुंह खोला और कहा। आप यहां पर विराजमान शक्ति हैं। मेरा उद्देश्य आपको जगाना नहीं था। मेरा उद्देश्य तो देवी की सिद्धि प्राप्ति करना था। किंतु मै तो वह भी नहीं कर पाया।

अब मैं क्या करूं?

तब वह सर्प हंसने लगा और इंसानी आवाज में एक बार फिर से बोला कि अगर तेरी साधना और उस शक्ति में इतना ही दम है तो मुझे यहां से हटा कर दिखा। मैं तुझे पूरा मौका देता हूं। तू बुला ले उस शक्ति को मैं भी तो देखूं कि उस में कितनी शक्ति है जो मुझ को इस जमीन से हटा सकें और इस प्रकार वह सर्प और अधिक विशालकाय होकर उस पूरी भूमि पर कुंडली मारकर बैठ गया। सर्प का आकार अब एक पर्वत के जैसा दिखाई दे रहा था। यह सोचकर ब्राह्मण व्यक्ति ने कहा, अब तो आज मेरे प्राण गए क्या करूं? तब उसने सोचा मेरे पास बचने का कोई उपाय अब नहीं रह गया है। सिवाय इसके कि मैं उसी शक्ति को मंत्रों के माध्यम से पुकारु अपनी रक्षा के लिए शायद वह मेरे प्राण बचा सके क्योंकि मुझे तो कोई दूसरे मंत्र भी नहीं आते हैं और ना ही मैंने उनकी सिद्धि की है। बिना सिद्धि के मेरी रक्षा तो वैसे भी नहीं होने वाली भगवान को याद करके मुझे अपना जीवन बचाने के बारे में तो तब सोचना चाहिए था जब मैं इस साधना में उतर रहा था। और भगवान को मैंने ज्यादा पूजा भी तो नहीं है, ना ही उनके किसी मंत्र का जाप किया है इसलिए वह तो आने से रहे।

और उन सिद्ध साधु महाराज भी मेरे पास नहीं आ सकते क्योंकि वह पता नहीं इस वक्त कहां होंगे। इतना समय मेरे पास नहीं है। मैं अगर अपनी पत्नी को बुलाऊ तो वह क्या रक्षा करेगी और अगर गांव वालों को बुलाता हूं तो भी उनकी सामर्थ्य इतनी नहीं है और तब तक शायद यह मुझे मार ही डाले। हालांकि इसने मुझे बचने का मौका और समय दोनों दे दिया है क्योंकि इसने खुद ही कहा है, मैं भी तो देखूं। तो मै ऐसा करता हूं कि उसी शक्ति की आराधना दोबारा शुरू कर देता हूं। अगर मरना ही है तो उसी की आराधना करते हुए मरूंगा। कम से कम उस शक्ति को तो यह आभास होगा कि उसने किसी के प्राण ले लिए हैं और शायद वह मुझ पर प्रसन्न हो जाए तो साक्षात प्रकट ही हो जाए। तब उस ब्राह्मण व्यक्ति ने उस सर्प को चुनौती देकर कहा। मैं अपनी साधना करने जा रहा हूं। अगर तुम में दम है तो मेरी साधना पूरी होने के बाद यहां पर रुक कर दिखाना। ऐसे तो तुम मुझे आराम से हरा सकते हो, लेकिन मेरी साधना पूरी हो जाने के बाद तुम्हारी कोई सामर्थ्य नहीं है। यह सुनकर वह सर्प हंसने लगा और कहने लगा। वैसे तो मैं तुझे तुरंत ही मृत्युदंड दे देता। लेकिन देखता हूं। तेरी चुनौती में कितनी सामर्थ्य है। मुझे यहां से संसार की कोई शक्ति नहीं हटा सकती। और यह कहकर सर्प हंसने लगा। कहने लगा ठीक है तू जब तक जिसकी भी साधना यहां करना चाहता है कर ले मैं तुझे पूरा मौका देता हूं। तेरी प्राण बचाने वाली शक्ति आए और मुझसे युद्ध करें। चाहे इसमें कितने भी दिन लग जाए तब तक मैं तेरे प्राण नहीं लूंगा।

यह सुनकर ग्रामीण ब्रम्हण व्यक्ति ने सोचा कि ठीक है कम से कम कुछ समय के लिए मेरे प्राण की रक्षा तो हो गई। मेरी चुनौती सुनकर यह ताव में आ गया है। इसी कारण से अब यह मेरी बात स्वीकार कर रहा है। मुझे इसे और भड़का कर अपने जीवन की रक्षा करनी चाहिए। तब ब्राह्मण व्यक्ति ने कहा, तुम्हारे जैसे सर्प की तो बिसात ही क्या है उन देवी ने तो स्वयं शेषनाग को भी अपने वश में कर लिया था। यह सुनकर वह सर्प

फिर हंसने लगा और कहने लगा। किसी में भी इतनी सामर्थ्य नहीं है जो उसे यहां से हटा सके। तब ब्राह्मण व्यक्ति उससे और बहस ना कर अपनी साधना में बैठ गया क्योंकि वह यह बात जानता था। अगर वह बहस करेगा तो कहीं ज्यादा गुस्सा आने पर सर्प तुरंत ही उसे जान से ना मार डाले। इसीलिए यह आवश्यक है कि वह उसे अपनी बातों में उलझाए और बाद में साधना करने बैठ जाए। क्योंकि जितनी देर बाद तक साधना करेगा उतनी देर उसके प्राण बचे रहेंगे।

इस प्रकार प्रत्येक दिन बीतता गया और वह ब्राह्मण साधना करता चला गया। साधना के आखिरी दिन सर्प ने उससे कहा, तूने कहा था, यह साधना इतने दिन चलेगी। आज तो आखिरी दिन है। आज तो तेरी मृत्यु निश्चित है बुला अपनी शक्ति को। क्या वह मुझसे डर गई है क्योंकि अगर उसमें इतनी भी हिम्मत नहीं है कि मेरे सामने आकर खड़ी हो सके तो तूने तो इतने दिन बेकार में ही बर्बाद कर दिए।

अब वैसे भी, मैं बहुत दिन से भूखा हूं। अब तेरे शरीर मेरे भोजन की कुछ कमी तो दूर करेगा ही। तुझे मैं निगल कर अपना शरीर और मोटा बनाऊंगा। यह सुनकर अब ब्राह्मण व्यक्ति और अधिक घबराने लगा। उसने कहा कि आज तो वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होगा। इसी कारण से बिल्कुल स्थिर मन से और प्राण संकट में होने के कारण सटीक ध्यान लगाकर उसने उस दिन की साधना पूर्ण की अचानक से ही आखरी माला जाप करते समय दे। भू निधि योगिनी। साक्षात उसके सामने प्रकट हो गई और कहने लगी। तुमने मेरी अतुलनीय भक्ति की है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें अब तुम्हारी इच्छा अनुसार भू निधि यानी धरती के भीतर का धन प्रदान करूंगी। तभी वहां पर वह सर्प एक बार फिर से प्रकट हो गया।

और कहने लगा तू कौन है और यहां क्यों आई है। अब मैं तुझे भी जानसे मारूंगा और तेरे भक्त की भी जान लूंगा। अगर तुझ में समर्थ है तो मुझे रोक कर दिखा और सर्प ने उस ब्राह्मण पर वार कर दिया, लेकिन ब्राह्मण को कुछ भी नहीं हुआ। सामने से उसे भू निधि योगिनी ने उसका सर पकड़ लिया और फिर अपने पैर से दबाकर जमीन के अंदर उस तक उसको धसा दिया।

अंदर धसने के बाद वह सर्प अब माफी मांगते हुए कहने लगा। मैंने तो भगवान शिव की आराधना की थी। इसी कारण मैं अजेय था और अपने धन की रक्षा के लिए ही मैं इस पर मृत्यु के बाद बैठ गया। लेकिन तू कौन सी शक्ति है। तब भू निधि योगिनी ने कहा कि स्वयं भगवान शिव ने मुझे इतनी शक्ति दी है कि किसी भी जमीन पर जहां मेरे पैर पड़ जाए। मैं उस जमीन की स्वामिनी हो जाती हूँ। इसीलिए तेरे सारे धन की मालकिन मैं हो गई हूं। अब तू तुरंत ही इसे इस ब्राम्हण को समर्पण कर और आज से तुम मेरी सेवा में मेरा सेवक बनकर रहेगा क्योंकि इस जमीन की मालिक मैं हूं और तू इस जमीन का रक्षक था। अपनी शक्ति का प्रयोग कर अब उस सर्प को भू निधि योगिनी अपने वश में ला चुकी थी।

अपने वश में लाकर भू निधि योगिनी ने ब्राह्मण को राजा का पुराना धन प्रदान किया और इससे ब्राह्मण अत्यंत ही संपत्ति शाली हो गया।

सर्प भी देवी की सेवा में चला गया और उसे भी सर्प योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई। इसीलिए यह साधना करने वाला साधक हर प्रकार से भू अर्थात जमीन के नीचे की निधि यानी धन प्राप्त कर लेता है। बस उसकी साधना सच्ची और सटीक होनी चाहिए। इस साधना का लिंक मैंने नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे दिया है। वहां से आप क्लिक करके इंस्टामोजो में जाकर इस साधना को खरीद सकते हैं और इस साधना को अपने लिए कर सकते हैं तो अगर यह कहानी और यह विधि पसंद आई हो तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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