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मधुमती योगिनी कथा और साधना भाग 4

मधुमती योगिनी कथा और साधना भाग 4

नमस्कार दोस्तों, धर्म रहे से चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम मधुमति योगिनी कथा के भाग चार के विषय में जानेगे पिछली बार हम लोगों ने जाना कि मधुमति योगिनी को ऋषि संजीवन नहाते हुए देख लेते हैं और इसके बाद उसे प्राप्त करने की इच्छा उनके मन में बहुत ज्यादा प्रबल हो जाती है। अब जब ऐसीस्थिति गुरु संजीवन के मन में पैदा हो गयी तो वह तुरंत ही अपने शिष्य के पास गए। माधव से उन्होंने कहा। मुझे एक वस्तु की इच्छा है। किंतु पहले तुम से एक वचन लेना चाहता हूँ। तब माधव ने कहा, गुरूजी, संसार में सब कुछ मुझे आपने ही प्रदान किया है इसलिए कुछ भी आप मांग लीजिये, मैं सब कुछ देने के लिए तैयार हूँ। तब गुरु संजीव ने कहा तुम्हें मेरे कारण ही सिद्धि की प्राप्ति हुई थी, इसलिए अब मैं तुमसे एक वचन सिद्धि के विषय में ही प्राप्त करना चाहता हूँ। माधव ने कहा, कुछ विचार मत कीजिए गुरूजी, आप केवल आदेश करिये तब। गुरु संजीवन कहते हैं कि मुझे। तुम्हारी इस योगिनी से अभयदान चाहिए? यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब कोई साधना बिगड़ जाए या किसी वजह से शक्ति नाराज हो जाए तो शक्ति अपनी वचन के कारण कुछ भी गलत उस व्यक्ति के साथ नहीं करती है। इस पर माधव ने कहा, ठीक है गुरु जी, मैं आज ही उससे वचन ले लूँगा कि चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो, आप मेरे गुरु संजीवन का किसी भी प्रकार से कभी भी गलत नहीं करेगी। उन्हें सदैव अभय प्रदान करेंगे।

अब शाम का वक्त था, माधव शांत बैठा था। तभी वहाँ पर हंसती खेलती मधुमति योगिनी प्रकट होकर अपनी प्रिय पति के पास आकर उसकी बाहों में बैठ जाती है और प्यार से माथे पर चुंबन लेते हुए कहती हैं क्या वजह है? आज आप कुछ परेशान नजर आ रहे हैं? क्या मुझसे सम्पूर्ण प्रेम आपको नहीं मिल पा रहा है? यह सुनकर माधव हंसते हुए कहता है, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, बस तुमसे मुझे एक वचन चाहिए था। तब मधुमति योगिनी कहती है अवश्य आप जो भी इच्छा चाहेंगे अगर मेरे वश में होगा तो मैं अवश्य ही उसे पूरी कर दूंगी। तब। वह कहता है की मेरे पास गुरु संजीवन आए थे। और उन्होंने अभय वरदान। तुम से प्राप्त करने के लिए कहा है। अर्थात किसी भी अवस्था में तुम मेरे गुरु को कोई हानि नहीं पहुंचाओगी। तब मधुमति विचार कर कहने लगी। अवश्य ही आप के गुरु के कारण ही मेरा आपके जीवन में पदार्पण हुआ है। इसीलिए। मैं अपनी स्वेच्छा से आपको वचन देती हूँ कि कैसी भी परिस्थिति हो। गुरु संजीवन का मैं। कोई अहित नहीं करूँगी। यह सुनकर। अब माधव प्रसन्न हो जाता है। क्योंकि उसे अपनी प्रिय पत्नी से वचन मिल चुका था।

अगले दिन। एक तूफ़ान जिंदगी में आने की तैयारी कर रहा था। गुरु संजीवन। अपने आश्रम में एक भयंकर तांत्रिक प्रयोग करने में लग जाते हैं। उन्होंने कोई शक्ति अब माधव और मधुमति की ओर भेजी थी। माधव से टकराकर वह शक्ति अचानक से ही रुक जाती है। क्योंकि माधव की रक्षा के लिए तुरंत ही मधुमति प्रकट हो जाती है। उस शक्तिशाली आत्मा से युद्ध करती है। काफी देर युद्ध चलने के बाद मधुमति अपनी भयानक रूप में उस शक्ति का भक्षण कर लेती है। यह सब जब माधव अपनी आँखों से देखता है तो अचरज में पड़ जाता है। और कहता है यह सब क्या था। तब मधुमति कहती हैं, किसी ने तंत्र प्रयोग आप पर किया था। और मुझ पर भी। कोई ऐसा है जो नहीं चाहता कि आप और मैं एक साथ रहे? मैं उसका विनाश कर दूंगी, जो मुझे मेरे पति से दूर करेगा। तब। थोड़ी देर तक आपस में बातचीत करने के बाद मधुमति कहती हैं कि अभी मैं आपकी सेवा में हूँ। सुबह के वक्त जब आप निद्रा में होंगे तो जाकर देखूंगी कि आखिर समस्या कहाँ से उत्पन्न हो रही है। यह सुनकर माधव ने कहा ठीक है, अब मधुमति माधव के चारों ओर सुरक्षा कवच बना चुकी थी क्योंकि उसके लिए उसके पति की जान से अधिक कीमती वस्तु इस संसार में नहीं थी। सुबह के वक्त। अचानक से मधुमति वहाँ से उड़कर उस शक्ति का पीछा करते हुए वहाँ पहुंचती है जहाँ पर से वह शक्ति आई थी। वह देखती है तो आश्चर्य में पड़ जाती है और साथ ही मन में क्रोध आ जाता है।

सामने गुरु संजीवन हवन कर रहे थे और बार बार। शक्तिशाली शक्तियों को माधव और मधुमती पर वार करने के लिए भेज रहे थे। गुरु संजीवन जब मधुमति योगिनी को देखते है तो हंसकर कहने लगते हैं। तुम आ गयी मैं जानता था की तुम अवश्य ही आओगी। मेरी तंत्र शक्ति को तुमने देख ही लिया है। अब मेरी एक इच्छा पूर्ण कर दो, माधव को छोड़कर मेरी संगिनी बन जाओ, क्योंकि माधव को अगर तुम छोड़ भी दो तो उसके जीवन में कुछ विशेष अंतर नहीं पड़ने वाला। वह राजा के समान जी रहा है, लेकिन अगर तुम मुझे प्राप्त हो जाओ तो हम दोनों मिलकर अतुलनीय सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं और जिनका उपयोग कर पूरे संसार को अपने वश में करने के लिये करूँगा। यह सुनकर मधुमति  कहती हैं, आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं? अभी तक हालांकि मैं। मनुष्य। नहीं थी, किंतु अब मैं मनुष्य हूँ और इस जन्म अवस्था में मैं माधव की पत्नी हूँ। इस कारण आपकी पुत्री समान हुई। अब ऐसे में आप का मुझ पर नजर रखना बहुत गलत है। मैं जानती हूँ मैं जहाँ खड़ी हो जाती हूँ। वहाँ कामवासना भर जाती है। और मैं जान गई थी की आपने मुझे नहाते हुए देख लिया था।

इसलिए आपके मन में मुझे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा पैदा हो गई है, किंतु यह पूरी तरह गलत है और मैं आपकी पुत्री के समान हूँ। आप किसी और मधुमति योगिनी को सिद्ध कर लीजिए। तब संजीवन कहते हैं सिद्धि प्राप्ति में बहुत समय लगेगा। जबकि तुम मेरे समक्ष खड़ी हो। इसके अलावा तुम्हारे अंदर अपनी उच्च कोटि की ऊर्जा भी भर गई है। इसी कारण से तुम को प्राप्त करना कहीं सरल है। अगर तुम मेरा साथ नहीं दोगी तो मैं जबरदस्ती माधव को जान से मार दूंगा और तुम्हें उससे छीन लूँगा। तब क्रोध से भरी मधुमति योगिनी खड़क उठा लेती है। और फिर अचानक से ही रुक जाती है। क्योंकि उसे याद आ जाता है कि माधव को उसने वचन दे दिया था। और यह वचन था कि किसी भी अवस्था में गुरु संजीवन को वह हानि नहीं पहुंचाएगी। इस पर गुरु संजीवन हँसते हुए कहने लगे लगता है तुम्हे अपना वचन याद आ गया है इसलिए शायद तुम रुक गयी हो। अगर तुम नहीं मानी तो कल देखना मैं क्या करता हूँ। मधुमति गुरु संजीवन को चेतावनी देकर वहाँ से चली जाती है। अगले दिन अचानक से ही माधव को खून की उल्टियां होनी शुरू हो जाती है। और माधव की इस प्रकार तबियत खराब होते देख मधुमती। उसे विभिन्न प्रकार की शक्तियां और औषधियाँ खिलाती है। लेकिन वह ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था।

मधुमति समझ गयी कि एक बार फिर से गुरु संजीवन ने माधव पर तन्त्र प्रयोग किया है। इसी कारण से इसकी तबियत इतनी ज्यादा खराब हो रही है। और या तो इसका तोड़ मुझे ढूंढ कर लाना होगा अथवा संजीवन को एक बार फिर मिलना होगा। और उसे समझाना होगा।  इसके अलावा अब मुझे माधव को भी सच बताना ही पड़ेगा। ताकि मैं उनके वचन से मुक्त हो जाऊं। वह संजीवन के पास जाती है, लेकिन संजीवन उसकी एक बात नहीं सुनता और कहता है अगर अपने पति को जीवित देखना चाहती हो तो उसका त्याग कर दो और मेरी पत्नी बन जाओ। क्रोधित मधुमति वापस माधव के पास पहुँचकर उससे वार्तालाप करने की चेष्टा करती है, लेकिन अचानक से ही एक विचित्र घटना घट जाती है। वह घटना बहुत ही दुर्लभ थी और जीवन में एक भयंकर भूचाल लाने वाली थी। माधव को न तो सुनाई दे रहा था और ना ही वह कुछ बोल पा रहा था। ऐसा क्या हो गया? मधुमति अब योग साधना में बैठ जाती है। और माता का ध्यान करते हुए वास्तविक रहस्य का पता लगाने की कोशिश करती है। तो पता चलता है कि गुरु संजीवन ने माधव पर 10 महाविद्या में माता बगलामुखी का प्रयोग किया है। इसलिए माधव न तो सुन पा रहा है और ना ही कुछ बोल पा रहा है। और न सुनने और न बोलने की वजह से उसे वह उसके गुरु के सत्य से अवगत नहीं करवा सकती है। बिना उसके वह माधव के वचन को कैसे रोकेगी। जानेगे हम लोग अगले भाग में अगर यह साधना आप खरीदना चाहते हैं तो इंस्टामोजो से जाकर खरीद सकते हैं। आप सभी का दिन मंगल में हो। धन्यवाद।

मधुमती योगिनी कथा और साधना भाग 5

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