Site icon Dharam Rahasya

मधुमती योगिनी साधना अनुभव भाग 2

मधुमती योगिनी साधना अनुभव भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम मधुमती योगिनी साधना भाग 2 के विषय में जानेंगे। अभी तक आपने जाना एक व्यक्ति कैसे साधना के दौरान एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाता है और वहां एक लड़की उससे शादी करने के लिए कहती है। अगर वह उसे जवाब नहीं देगा तो बाहर खड़े अंग्रेज उसे पकड़ लेंगे। आप जानते हैं आगे क्या घटित हुआ था? जैसे ही यह बात वह व्यक्ति सुनता है, वह कहता है बाहर अंग्रेज आ चुके हैं। आप मेरी मदद कीजिए। इस तरह की बातें ना कीजिए। यह बातें हम कभी बाद में भी कर सकते हैं। लेकिन वह लड़की कहने लगी। आपको केवल मैं बचा सकती हूं। मेरा पति यहां से जब मुझे छोड़ कर गया तब उसने कहा था अब तेरी शादी कभी नहीं होगी और मुझसे उसकी लड़ाई हुई थी। तब से मैं दुनिया वालों को झूठ बोलकर यही कह रही हूं कि मेरा पति यहीं कहीं आसपास है। अगर तुम मुझसे शादी कर लेते हो तो मैं दुनिया को बता सकती हूं। और तब तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा। चाहे झूठे ही सही तुम्हें मुझसे शादी करनी पड़ेगी वरना जब यह लोग अंदर आएंगे तो मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगी। एक विचित्र से असमंजस में यह व्यक्ति फस जाता है। और? वह सोचता है अब क्या करूं? तो वह पूछता है शादी के लिए तो पंडित विधिवत मंत्र इत्यादि चीजों की आवश्यकता पड़ती है। तुम कैसी शादी मुझसे करना चाहती हो? और दूसरी मेरी शर्त यह है कि मैं तुमसे शादी तो कर लूंगा। लेकिन फिर मैं तुम्हें छोड़कर भी चला जाऊंगा। यह केवल मैं अपनी रक्षा के लिए कर रहा हूं।

तब वह कन्या उससे कहती है, ठीक है, मुझे यह बात स्वीकार्य है। पुराने समय में गंधर्व विवाह होता था। स्त्री और पुरुष आपसी रजामंदी से एक दूसरे के गले में वरमाला डालते और पुरुष स्त्री की मांग भर देता था।

तो उस पुरुष ने कहा ठीक है!

बताओ जल्दी से, क्योंकि अगर देर होती है तो फिर अंग्रेज अंदर आ जाएंगे और मुझे पकड़ लेंगे।

बहुत खुश होकर अपनी संदूक को खोल देती है जिसके अंदर दो वरमाला पड़ी थी। एक वरमाला वह इस लड़के को देती है और एक स्वयं धारण करते हुए कहती है कि यहां उपस्थित सभी। अदृश्य शक्तियों को साक्षी मानकर मैं आपको अपना पति स्वीकार करती हूं। आप भी यही बोलिए। वह लड़का भी वही बात कहता है। दोनों एक दूसरे के गले में वरमाला पहना देते हैं। तब लड़की कहती है अब मेरी मांग भरिए। और? ऐसी चीज से भरिये जो आपके शरीर से मेरा संबंध जोड़ती हो। तो वह कहता है ऐसी तो कोई चीज मेरे पास नहीं है। तो वह मुस्कुराते हुए कहती है। हम दोनों जब जुड़ेंगे तो रक्त संबंधी तो दुनिया में आएगा इसलिए आप अपने ही रक्त को मेरी मांग में भर दीजिए। यह सुनकर वह व्यक्ति फिर अचरज में आ जाता है। वह कहता है सिंदूर भरने के लिए होता है। पर आप तो कह रही हैं कि मैं रक्त भर दूं। तो वह कहती है देर मत कीजिए। अंग्रेज दरवाजा खटखटा रहे हैं। और तब वह कहता है ठीक है, वह अपने अंगूठे को हल्का सा चीर देता है। उससे रक्त निकलता है और उसी से वह उसकी मांग को भर देता है। मांग भरते ही वह बहुत ही सुंदर स्वरूप धारण कर लेती है। यह देखकर अब वह व्यक्ति और ज्यादा अचरज में आ जाता है। वह जाती है और तुरंत दरवाजा खोल देती है।

अंग्रेज अधिकारी और उसके साथ उसके कुछ सैनिक उसे पूछते हैं क्या तुमने यहां किसी पुरुष को देखा है तो वह कहती है। मेरे पति को छोड़कर यहां दूसरा अंदर कोई पुरुष नहीं है। तब अंग्रेज कहता है मुझे तुम्हारे पति को देखना है। तब अंग्रेज अंदर आता है और उस व्यक्ति को देखकर कहता है, ठीक है। अब हम लोग जाते हैं। अगर तुम्हें कोई पुरुष यहां पर दिखाई दे तो इसकी खबर आकर हवेली में कर देना।

और इस प्रकार अंग्रेज और उसके साथी  उस व्यक्ति को देख कर चले जाते हैं। अब यह बात उस लड़के को बिल्कुल भी समझ में नहीं आती कारण अंग्रेज तो उसकी शक्ल अच्छी तरह पहचानता था। पर यह क्या हुआ है?

ऐसी क्या वजह है जिसकी वजह से इन अंग्रेज और इनके सैनिकों ने मुझे नहीं पहचाना है? वह उस लड़की के पास जाता है और उससे पूछता है। तो वह कहती है। तुम चिंता मत करो, मैंने कहा ना मेरा पति तो मुझे छोड़ चुका था। आप जो मुझे पति रूप में प्राप्त हो चुका है उसकी जिम्मेदारी भी तो मेरी बनती है। उसके जीवन की रक्षा करना मेरी पूरी जिम्मेदारी है।

आप बिल्कुल भी मत घबराइए।आपकी हर प्रकार से रक्षा करूंगी। तब वह कहती है अब आप मेरे पति हो चुके हैं। आपको अब मेरे साथ ही रहना चाहिए। कहीं और जाने से कोई लाभ नहीं है। वह व्यक्ति अब और भी ज्यादा अचरज में आ जाता है। और कहता है! माना आपने मेरी जान बचाई है किंतु मैं तो पास के ही गांव में रहता हूं। अब मुझे परिवार के पास जाना होगा। आप चिंता मत कीजिए, आपकी यह सहायता मैं आजीवन! आपकी मदद करके चुकाऊंगा। कि मैं आपको किसी चीज की कमी भी नहीं होने दूंगा। मैं भी एक धनवान व्यक्ति का पुत्र हूं। तो वह हंसते हुए कहने लगती है। मेरे पास तो सब कुछ है, सिर्फ पति नहीं था। आपके आने से वह भी इच्छा पूरी हो चुकी है। अब आप जहां भी रहे खुशी से रहें। लेकिन मेरी प्रार्थना है कम से कम एक दिन मेरे साथ गुजारा कीजिए। आप इस बात का वचन मुझे दें।

तब वह व्यक्ति कुछ देर सोचता है और मन ही मन विचार करता है। इस कन्या ने मेरी बहुत मदद की है। और? इसने अगर मेरी जान नहीं बचाई होती तो आज वह अंग्रेज मुझे पकड़ कर। पूरी बिरादरी के सामने जान से मार देते। और इसका बुरा फल मेरे परिवार को भी भोगना पड़ता। इसलिए अब यह आवश्यक है कि इसकी मैं बात मानूं। तो वह कहता है कि हर सप्ताह में एक दिन मैं आपकी सेवा में उपस्थित रहूंगा। जिस चीज का भी सामान आपके पास ना हो, मुझे बता दीजिएगा, मैं लेकर आता रहूंगा और अगर किसी वस्तु की कोई कमी है, वह भी मुझे बताइएगा। मैं अवश्य ही आपके लिए लेकर आता रहूंगा। तब हंसते हुए कहती है ठीक है। वैसे तो मेरे पास कोई कमी नहीं लेकिन आपका साथ मुझे 1 दिन के लिए मिलेगा। यही मेरा अकेलापन दूर करेगा।

व्यक्ति ने इस बात को समझा आखिर एक लड़की भरी जवानी में जिसका कोई ना हो और पति साथ छोड़ गया हो। उसे जीवन किस प्रकार जीना पड़ रहा होगा? इसकी बात मुझे अवश्य ही माननी चाहिए।

इस प्रकार! वह उस लड़की से विदा लेकर अपने गांव की ओर चला गया। अपने गांव पहुंचने पर वह देखता है कि वहां अंग्रेज उसके घर के बाहर खड़े हो रखे हैं। इससे अब यह बात वह समझ चुका था कि परिवार वालों पर भी अब संकट आ चुका है। यह हार किस प्रकार पीछा छोड़ेगा मुझे नहीं पता? अपने पास इसे रखना ठीक नहीं है, ऐसा करता हूं। इस हार को उसी लड़की को वापस दे कर आ जाता हूं। और फिर वह जंगल में दोबारा गया। उसी कुटिया में और उस लड़की के पास पहुंचा तो वह कहने लगी। आप तो 7 दिन बाद आने वाले थे। इतनी जल्दी कैसे आ गए?

तब वह कहने लगा जब तक मेरे पास यह हार रहेगा। इस मंगलसूत्र की वजह से मैं अवश्य ही पकड़ा जाऊंगा।

मैं अब इसे आपको देता हूं। इसे अपने पास रख ले और वह मंगलसूत्र! निकाल कर अपनी जेब से उस लड़की को दे देता है। लड़की बिना कोई देर किए उसे अपने गले में पहन लेती है। यह देखकर फिर वह व्यक्ति अचरज में आता है और कहता है आपको किसी भी। स्त्री के मंगलसूत्र को इस प्रकार नहीं पहनना चाहिए। यह अच्छा नहीं होता है। तो वह कहती है आपकी लाई कोई भी भेंट में अस्वीकार नहीं कर सकती।

अब आप जल्दी से अपने घर जाइए और इस प्रकार वह लड़का फिर से अपने गांव की ओर निकल पड़ता है।

अपने घर के पास पहुंच कर अंग्रेज सैनिकों को बैठा हुआ फिर से देखता है। इससे वह फिर परेशान हो जाता है। और मन में सोचता है उस अंग्रेज अधिकारी ने तो मेरे घर में पहरेदारी ही बिठा दी है। अब मैं अपने घर नहीं जाऊंगा। तो कहां जाऊंगा? क्या करूं? फिर उसके मन में विचार आता है कि वह जिस लड़की से प्रेम करता है, उसी के पास जाना उचित रहेगा। वह कहीं ना कहीं मेरे रहने की व्यवस्था कर देगी और वह गांव की उस लड़की के घर के पास आ जाता है। वहां से वह छोटे छोटे पत्थर उठाकर उसकी ओर फेंकता है। लड़की उसे घूरती है।

पर वह जानता था कि वह उसकी ओर जरूर आएगी और लड़की फिर गुस्से में उसकी और आती है और कहती है ऐसे पत्थर क्यों मार रहा है तेरा दिमाग खराब है।

मधुमती योगिनी साधना pdf प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे 

ऐसी हरकतें करेगा तो मैं गांव के लोगों को बुला लूंगी। तो यह हंसते हुए कहने लगा। माना कि मैं? गलती करके गांव से भागा हूं लेकिन इसकी वजह से तुम ऐसा व्यवहार मुझसे नहीं कर सकती हो।

मुझे अंग्रेजों से बचना है। मैंने वह हार देखा था और फिर वह सारी बात बताने लगता है। यह सब सुनकर वह कहती है, मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। तुम कोई मेरे प्रेमी थोड़े ही हो जो मैं तुम्हारी मदद करूं?

यह सुनकर अब जैसे उस लड़के के पैरों से जमीन ही खिसक गई हो। वह कहता है हमारे इतने दिनों का प्रेम तुम कैसे भूल सकती हो? क्या तुम? इतने दिनों में मुझे भूल गई और? या तो तुम उस घटना की जिम्मेदार मुझे समझ रही हो। मैंने उस डोली पर हमला नहीं किया ना ही उस लड़की के साथ कुछ गलत किया। बस मेरे पास उसका मंगलसूत्र अवश्य था। लेकिन इसकी वजह से तुम! मेरे साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकती हो?

ऐसी बातें मत करो! तो वह लड़की कहने लगी। पहली बात तो मैं तुझे जानती ही नहीं हूं। और तू है कौन इस गांव के किस घर का रहने वाला है? और इस प्रकार मुझसे क्यों बातें कर रहा है? अगर तू इसी प्रकार मुझे छेड़ेगा तो मैं गांव वालों को बुलाकर तुझे पिटवा आऊंगी।

यह सुनकर अब उस व्यक्ति को रहा नहीं गया और वह कहने लगा तुम्हारा ऐसा व्यवहार! मैं सोच भी नहीं सकता था।

आखिर उस लड़की ने जो कि उस लड़के से प्रेम करती थी। उसे नकार क्यों रही थी? जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह अनुभव आपको पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

मधुमती योगिनी साधना अनुभव भाग 3

dr suraj pratap
Exit mobile version