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माता कालरात्रि परिचय साधना

माता कालरात्रि परिचय साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम बात करेंगे दर्शकों की मांग पर माता कालरात्रि के विषय में और इनकी साधना के भी विषय में। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में अगर माता कालरात्रि की साधना की जाए तो अधिक प्रभावशाली होती है। इसके अलावा कोई भी नवरात्रि में माता की असीम अनुकंपा हमें प्राप्त हो सकती है तो इनकी साधना और इनसे शनिदेव का संबंध तंत्र और सिद्धि इत्यादि के लिए। माता की पूजा और उपासना का प्रावधान हमारे युगो युगो से चलता चला आ रहा है। जगत जननी जगत माता मां दुर्गा का सप्तम स्वरूप ही श्री कालरात्रि नाम से जाना जाता है। कालरात्रि का मतलब होता है काल का नाश करने वाली अर्थात जो समय को भी अधीन कर दें और समय से मुक्त कर दे। इसको अगर गहरे अर्थ में समझेंगे तो जो देवी संसार चक्र जोकि टाइम यानी की समय से बंधा हुआ है, उस से मुक्त करती हैं। उन्हें हम कालरात्रि कहते हैं। अगर आप अंतरिक्ष में या ब्रह्मांड में देखेंगे तो ग्रह नक्षत्र और तारों के घूमने की वजह से ही समय का निर्माण होता है और यह समय बंधनकारक है क्योंकि किसी भी ग्रह नक्षत्र जहां पर भी इसी स्वरूप में कोई जीवात्मा जन्म लेगी तो वह बंधन में रहेगी। उस कालचक्र समय में लेकिन अगर इनकी उपासना की जाए और इन्हें जो पूर्ण सिद्ध कर लेता है, वह इसी बंधन से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है। यह तो आध्यात्मिक बात हुई लेकिन अगर भौतिक रूप से देखा जाए तो इनकी साधना करने से दुख संताप, दुश्मनों का नाश, मनोवांछित फल इत्यादि सभी कुछ प्राप्त होता है।

साधक जब इनकी साधना करता है तो तीव्रता से कुंडलिनी शक्ति सहस्त्रार चक्र में प्रवेश करती है। इसीलिए सहस्त्रार चक्र भेदने वाली देवी कालरात्रि ही कहलाती हैं। इन्हें सातवें दिन पूजने का विधान है। नवरात्रि के लेकिन अगर कोई इनकी विशेष रुप से साधना करना चाहता है तो पूरी नवरात्रि इन के मंत्रों का जाप कर सकता है। इनका जो मूल मंत्र है जो कि सर्व प्रसिद्ध है वह इस प्रकार से है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

अर्थात इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं इनकी नाक से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती रहती है और इनका वाहन गधा है। इस प्रकार देवी अद्भुत शक्ति संपन्न है। देवी का भयंकर रूप होने के बाद भी इनको हम शुभंकरी नाम से जानते हैं। अर्थात जो सदैव और हर प्रकार से किसी का भी शुभ करने वाली हैं, इसीलिए इनका नाम शुभंकरी है। इनकी सांसो से अग्नि की भयंकर प्रज्ज्वलित ज्वाला निकलती है। इसका अर्थ होता है कि प्राण शक्ति का उदय होना और उससे शुद्धीकरण होना लेकिन भयंकर रूप केवल शत्रुओं के लिए है। आध्यात्मिक रूप आपके अंदर प्राण शक्ति को बढ़ाता है और इसके माध्यम! जितने भी पाप हैं, उन सब का नाश हो जाता है। अग्नि तत्व सदैव शुद्ध करने के लिए ही प्रयोग किया जाता है और नाक से निकलने वाली अग्नि इस बात का प्रतीक है कि आपकी प्राण वायु शुद्ध हो चुकी है और आप अंदर तक शुद्ध होते जा रहे हैं। इसी कारण से सहस्त्रार चक्र जागृत होता है माता की साधना करने वाला कभी भी परेशान नहीं होता है। इन के संबंध में जो कथा आती है कि मधु और कैटभ नाम के असुरों को इन्होंने नष्ट किया था और भगवान विष्णु को निद्रा से जगा दिया था। यह देवी ही कालरात्रि हैं। यही विष्णु की योगनिद्रा के नाम से जानी जाती हैं। देवी के बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र है। इतनी बड़ी आंखें अपने भक्तों को जल्दी देख लेती हैं और उनकी परेशानियां हल करती हैं।

देवी की चार भुजाएं। हम देखने को पाते हैं। दाई और की ऊपरी भूजा से देवी मां भक्तों को वरदान देती हैं और नीचे की वजह से अभय अर्थात किसी का भी भय ना रहे इसी प्रकार बाई भुजा में क्रमशा, तलवार और खड़ग धारण किया है। बाल खुले हैं और हवा में लहराते हुए केस है। बाल खुले विभिन्न प्रकार के बंधनों से मुक्ति को दर्शाता है माता के 1-1 बाल अंतरिक्ष में करने वाले विभिन्न प्रकार के दैवीय शक्तियों के प्रतीक हैं और भौतिक अर्थ में जितनी भी आकाशगंगाए हैं, वह उनके बालों जैसी ही नजर आती हैं।देवी गर्दन पर सवार होती हैं। यानी गधे के ऊपर इसका अर्थ यह है कि जो भी इन महामाया की शक्ति को नहीं पहचानता, वह मूर्खता की तरह काल के वश में होकर गधा ही बना रहता है।

केवल इनकी साधना और सामर्थ्य से ही व्यक्ति वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर पाता है और मुक्ति को प्राप्त करता है। देवी तांत्रिक साधना के लिए बहुत ही अधिक प्रसिद्ध मानी जाती हैं। तांत्रिक साधना से कहते हैं साधक की आंखें खुल जाती हैं। यह मध्यकाल में यानी रात्रि के 12:00 बजे इनकी साधना सबसे उत्तम मानी जाती है और रात के 12:00 बजे इनकी आंखें भी खुलती हैं। ऐसा वर्णन ग्रंथों में हमें देखने को मिलता है। तंत्र! साधना करने वाले भक्त जो है षष्ठी तिथि को बिल्वपत्र से किसी एक पत्र को अभिमंत्रित करके आते हैं और उसे माता के सामने रखकर उसका भी पूजन करते हैं और विल्व पत्र से माता की आंखें बनाई जाती हैं। इससे सिद्धि की प्राप्ति होती है। देवी की पूजा जब भी की जाती है, उसके विशेष प्रभाव देखने को मिलते हैं। सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात्रि कहीं जाती है। जो भी साधक कुंडली जागरण हेतु साधना में लगे रहते हैं। उनके लिए यह दिन बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन सहस्त्रार चक्र का भेदन होता है और सहस्त्रार के वेतन के बाद ही असल में ब्रह्मांड की सिद्धियों का द्वार साधक के लिए खुलता है। साधक जब सिद्धियों का द्वार खोल लेता है तो फिर पूर्ण एकाग्र होकर माता का साक्षात्कार प्राप्त करता है। शिव तत्व में विलीन होता है। नारायण के समान योगनिद्रा धारी हो जाता है। इसलिए इनकी साधना उपासना शक्ति अतुलनीय है। इसकी कोई बराबरी नहीं की जा सकती है। देवी की साधना जो भी व्यक्ति प्रतिदिन करता है, उन्हें देवी की कृपा अवश्य मिलती है और उसके जीवन से दुख कष्ट ऐसे भाग जाते हैं। जैसे जीवन में कोई भी कभी भी ऐसी परेशानी आई ही नहीं कि देवी कालरात्रि ही सर्व विनाश भी करती हैं और सब ब्रह्मांड को अपनी माया जाल में फंसा कर भी रखती है। यही है इनका नाम महामाया, महामारी महाकाली, सुधा, कृष्णा, निद्रा, एकवीरा, दूर गया इत्यादि विभिन्न नामों से जानी जाती हैं। जिन लोगों को भी अग्नि में। आकाश में भूत पिशाच वह तंत्र बाधा वह किसी भी प्रकार की सिद्धियों को नाम मिलना इत्यादि की समस्याएं हैं। उन्हें इनकी पूजा और आराधना अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। वह निश्चित रूप से उस साधक को उस चीज से हमेशा के लिए बचा लेती हैं देवी अत्यंत ही

दयालु है और गुड़ से निर्मित मिष्ठान का भोग इनको बहुत प्रिय होता है और देवी को भोग लगाने के बाद दान अवश्य ही करना चाहिए। कहते हैं इनकी पूजा करने से व्यक्ति शोक से मुक्त हो जाता है और इनके व्रत और उपवास अगर सप्तमी को किया जाता है तो आने वाले आकस्मिक संकट भी टल जाते हैं। चीकू नाम का एक फल इन्हें प्रसिद्ध होता है और इन्हें वह भोग के रूप में चढ़ाया जाए तो उत्तम फलों की प्राप्ति होती है जिनके ऊपर भी ग्रह बाधा का असर हो, सांसारिक भय उन्हें लगते हो। अकाल मृत्यु भूत प्रेत बाधा व्यापार नौकरी शत्रु भय इन सब चीजों से देवी मां अवश्य ही छुटकारा दिला देती हैं। कहते हैं जिसका भी शनि ग्रह उपयुक्त ना हो और उसके दुष्प्रभाव, साढ़ेसाती इत्यादि किसी भी रूप में देखने को मिल रहे हो तब इनकी साधना करने से शनि। देव का? प्रभाव समाप्त हो जाता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य भगवान और शनि देव के पिता सूर्य देव है। अतः माता कालरात्रि एवं शनि देव का आपस में ऐसा नाता है कि दोनों अलग नहीं है।

कहते हैं सप्तमी के दिन माता कालरात्रि को दूध में शहद मिलाकर भोग लगाने से शनिदेव के बुरे प्रभाव का अंत हो जाता है। इनकी साधना की तांत्रिक विधि अलग प्रकार से की जाती है जिसको गुरु के सानिध्य में उनसे आज्ञा प्राप्त करके किया जा सकता है। इनकी तामसिक राजसिक और सात्विक तरीके से साधना की जा सकती है। तामसिक तरीके में श्मशान भूमि में मुर्गी मांस और शराब के माध्यम से शुद्धिकरण किया जाता है किंतु इससे तुच्छ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं, जिनमें भूत प्रेत, वेताल, पिशाच इत्यादि की शक्तियां सिद्ध होती हैं। राजस्व साधना में आप अपने घर परिवार से युक्त होकर सब मिलकर भी इनकी साधना कर सकते हैं। इससे धन, संपदा, वैभव, समृद्धि इत्यादि प्राप्त होती है। सात्विक साधना से सहस्त्रार चक्र जागृत होकर देवी मां के परम रूपों का अद्भुत दृश्य साधक को दिखाई देता है और ब्रह्मांड से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होने लगती है। इस प्रकार इनकी साधना बहुत ही उत्तम मानी जाती है। जो भी साधक तंत्र क्षेत्र में अगर इनकी साधना करता है तो फिर उसके लिए कोई भी तांत्रिक सिद्धि प्राप्त करने योग्य उसमें सामर्थ्य आ ही जाती है। हर प्रकार की। तामसिक शक्तियां इनके आगे भयभीत रहती हैं इसलिए इनका जो भी साधक है, अगर प्रतिदिन इनकी साधना करता है तो चाहे शमशान हो या फिर भयंकर से भयंकर तांत्रिक शक्ति की उपासना वह बड़े ही सहज रूप में कर लेता है। उसे जरा सा भी भय नहीं लगता और ना ही कोई शक्ति उस साधक का कुछ भी बिगाड़ करती है माता कालरात्रि संबंधित विशेष जानकारी। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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