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माता तारा तूरी रहस्य और साधना

माता तारा तूरी रहस्य और साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जो विशेष साधना और उसकी जानकारी लेकर उपस्थित हुए हैं, इसे हम तारा साधना कहते हैं। तारा साधना है, विभिन्न प्रकार से की जाती हैं, लेकिन तारा साधना को करने के लिए जो नियमावली है, वह सभी की अलग-अलग है। आज मैं जिस तारा देवी की साधना के विषय में आप लोगों से बात करूंगा इन्हें हम तारा तूरी साधना के रूप में जानते हैं और जो देवी है। यह बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में भी मानी जाती हैं और? हिंदू धर्म में भी तांत्रिक देवी के रूप में इन्हें जाना जाता है।

तारा देवी अपने कुछ स्वरूप बहुत ही भयानक दिखाई पड़ती है और इनका जो मूल मंत्र है, मंत्र : ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्  है।

यह! तारने वाली तारण देवी के रूप में जानी जाती है। अर्थात यह मोक्ष अवश्य ही प्रदान करती हैं। तारा महाविद्या! जो साधना है वह 12 बजे रात्रि से मानी जाती है। इनके बहुत सारे रूप है। और इन्हें तारा एक जटा नील सरस्वती।

विभिन्न रूपों में इनकी चर्चा की गई है। कहते हैं हैग्रीव का वध करने के कारण इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है। भगवती तारा नील वरणा नील कमल के समान तीन नेत्रों वाली हाथों में कैची, कपाल, कमल और खड़क धारण करने वाली व्याघ्र चर्म से विभूषित है।

कहते हैं तारा देवी का प्रादुर्भाव मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नाम की नदी के चोलत सरोवर के तट पर हुआ था। महाकाल संहिता के कामकला खंड में तारा जो वर्णन किया गया है। यह कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि तारा रात्रि के नाम से जानी जाती है। गुरु! वशिष्ठ जी जो थे इन्होंने ही सर्वप्रथम माता तारा की साधना की स्थिति इनको वशिष्टा आराधिता।

कहा जाता है?

उन्हें अदृश्य शक्ति से संकेत मिला कि में तांत्रिक पद्धति से चीनचारा साधना के तांत्रिक सिद्धि के आधार पर इन्हें सिद्ध किया उग्र होने के कारण देवी को उग्रतारा भी कहा जाता है। भयानक से भयानक संकटों से उतारने वाली सुरक्षित रखने वाली देवी है। उसी नाम से जानी जाती है। भगवती तारा की उपासना तांत्रिक पद्धति से मूल रूप से की जाती है और उनकी साधना करने से साधक बृहस्पति ग्रह के समान या वनस्पति गुरु के समान विद्वान भी हो जाता है। इन के तीन रूप बताए गए हैं तारा, एक जटा और नील सरस्वती। लेकिन इनके भिन्न-भिन्न कार्य और सामर्थ्य मानी जाती है। इनके बहुत सारे मंत्र भी माने जाते हैं। इसमें स्त्रीं भी जो है, वह इन्हीं का मूल भी माना जाता है। माता तारा भगवान शिव के समान शीघ्र ही प्रसन्न होने वाली सिर्फ हिंदू संप्रदाय में ही नही बल्कि बौधों में तिब्बती बौद्धों में बहुत ज्यादा महत्व रखती हैं ।

जयंती चैत्र मास की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इसे तारा रात्रि भी कहते हैं चैत्र मास की नवमी तिथि शुक्ल पक्ष के दिन। तारा देवी की साधना करना अभी तंत्र साधकों के लिए सिद्धि कारक माना जाता है। इसके अलावा गुप्त नवरात्रि जो भी आती हैं, उनमें माता तारा की जाती है।

तारापीठ पश्चिम बंगाल बीरभूम में है। यह 1 शक्तिपीठ है और देवी सती की तीसरी आंख यही पर गिरी थी। इसीलिए स्थान को नयनतारा के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियों की प्राप्ति की थी और इस मंदिर को बामाखेपा नाम के साधक ने सिद्ध किया। महिषी उग्रतारा- यह बिहार में स्थित है और बिहार के सहरसा जिले में महिषी ग्राम में उग्रतारा का सिद्ध पीठ विद्यमान है। इसी तरह तारा देवी मंदिर कांगड़ा हिमाचल में भी है और कांगड़ा नामक स्थान पर बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ जहां पर देवी माता सती बायाँ स्तन गिरा था। माता बज्रेश्वरी देवी को नगरकोट की देवी कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना चाहता है। इनके अधिष्ठात्री देवी, त्रिपुरा काली और तारा को माना जाता है इसके अलावा देवी तारा का जो प्रादुर्भाव है, वह कैसे होता है, सभी जानते हैं एक पौराणिक मान्यता के हिसाब से जब समुद्र का मंथन हो रहा था। तो उस वक्त सबसे खतरनाक विष निकला था  इस हलाहल विष को ग्रहण करने की सामर्थ संसार में किसी के पास भी नहीं थी। केवल भगवान शिव की इस जहर को पीने के लिए तत्पर हो गए क्योंकि वह तामसिक गुणों को अपने अधीन रख सकते हैं।

तामसिक गुणों को संसार में कोई भी देवी या देवता अपने अधीन रखने की सामर्थ्य नहीं रखता था। तब भगवान शिव ने इसे ग्रहण तो कर लिया, लेकिन इससे उनके शरीर में काफी जलन, तकलीफ और उग्रता आने लगी। तब देवी तारा ने ही आकर इनके कंठ में उस विष को रोक दिया था। तीनों उँगलियों से कंठ को दबाने के कारण उनके गर्दन पर भी त्रिपुंड बन गया था और भगवान शिव तभी से नीलकंठ कहलाए जाने लगी। उसके अलावा। भगवान शिव ने भैरव स्वरूप धारण किया था और देवी ने उन्हें स्वयं अपना स्तनपान करवाया था। जब उनके मुख से दूध अंदर गया तो वह शांत हो गए और धर्म स्वरूप जिसे हम बटुक भैरव कहते हैं का प्रादुर्भाव भी इसी प्रकार भगवान शिव स्वरूप से हुआ माना जाता है। सब के कष्टों का निवारण करने वाली तारा कहलाती है।

इसके अलावा।

भगवान शिव से माता पार्वती का जब वार्तालाप होता है तब वह कहते हैं कि स्वर्ग लोक के रत्न द्वीप में वैदिक और कल्पित तथ्यों के विषय में जब वह देवी काली के रूप और प्रभाव को सुना रहे थे।

तब उन्होंने कहा देवी! आप महाकाली का स्वरूप है आदि काल में आपने ही भयंकर मुख वाले रावण का विनाश किया था। तब आश्चर्य युक्त होकर देवी ने पूछा, तब मैं क्या थी तब भगवान शिव कहते हैं। आप तारा नाम से विख्यात हुई थी। समस्त देवताओं ने आप ही वंदना की थी। उस वक्त हाथों में खड्ग नरमुंड वान अभय मुद्रा धारण किए हुए मुख से चंचल जीभ बाहर आकर विशाल स्वरूप में आप प्रकट हुई थी। सभी देवता भय से आपके सामने हाथ जोड़े खड़े थे। आपके? उग्र रूप को देखकर और आप कुछ शांत करने के लिए ब्रह्मा जी आपके पास के। ब्रह्मा जी के साथ देवी लज्जित होने लगी तब खड़क से लज्जा निवारण की चेष्टा होने लगी।

तब रावण वध के समय आपने ही रूद्र रूप में नग्न होकर संसार का विनाश किया था। राक्षसों का वध किया था। तब ब्रह्मा जी ने आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था। क्योंकि आपने बहुत ज्यादा भक्षण राक्षसों का किया उन्हें खा गई इसीलिए आपका पेट बाहर निकल आ गया था। इसी कारण आप लंबोदरी यानी लंबे उदर पेट वाली। स्वरूप में प्रकट हुई थी। वास्तव में राम तो केवल निमित्त मात्र थे। राम की विध्वंसक शक्ति तारा आप ही थी जिन्होंने लंकापति का वध किया था। इस गोपनीय रहस्य को कोई नहीं जानता। इसलिए सभी जो दिखते है उसे ही सत्य समझते हैं। आप ही हर स्वरूप में हर देवता के साथ शक्ति प्रदर्शन करती हो इसलिए तारा देवी के रूप में सभी को तारने वाली और तारण तारा हो!

इस प्रकार हम इस व्याख्यान से समझ सकते हैं कि कैसे देवी तारा का वर्णन है। इनका प्रभाव है। अब हम बात करते हैं देवी तारा के इस साधना के विषय में जिसे हम तारा तूरी स्वरूप कहते हैं असल में। इन्हें तारा तूरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब तुरीन संध्या होती है अर्थात रात्रि के 12:00 बजे का समय तक यह शक्ति जागृत होती है। इसलिए तारा तूरी साधना के लिए रात्रि 12:00 बजे का समय उपयुक्त होता है। साधक अगर हो सके तो श्मशान भूमि में अथवा आप श्मशान भूमि में जाएं वहां से विधिवत रूप से शमशान की आज्ञा आशीर्वाद प्राप्त कर योग्य गुरु के निर्देशन में वहां से शमशान की मिट्टी ले आए।

अगर आप सहज और सात्विक भाव से साधना करना चाहते हैं तब देवी तारा की साधना के लिए अपने घर के ही किसी कमरे में। पूरे कमरे को गुलाबी रंग से पुतवा दे और किसी का भी वहां आना जाना पूरी तरह बंद कर दीजिए। वहां पर देवी तारा के विग्रह मूर्ति के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। और उसी के सामने बैठकर देवी के तारा तूरी स्वरूप की साधना कीजिए। आप इसके लिए गुलाबी हकीक माला अथवा रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल कीजिए। सर्वथा नग्न होकर ही साधना कीजिए क्योंकि माता तारा स्वयं दिगंबरा है।दिशा पश्चिम,लाल रंग या गुलाबी रंग का ऊनी आसन बैठने के लिए,पहले गुरु मंत्र फिर बटुक भैरव मंत्र और फिर देवी का ध्यान करे .
देवी तारा की साधना आप गुप्त नवरात्रि से प्रारंभ कर सकते हैं क्योंकि यह सबसे अच्छा समय होता है देवी की साधना करने के लिए। देवी तारा।

इस साधना? जब भी करें। सबसे पहले देवी का ध्यान करें। उनकी ध्यान को अच्छी प्रकार।

कर लेने के बाद उनकी साधना करने का अलग ही महत्व माना जाता है।

तारा साधना। सबसे उपयुक्त साधना उनके लिए है जो कुछ विशेष जीवन में संकट में है। और? अद्भुत लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। इनका सात्विक राजस और तामस तीनों ध्यान किए जा सकते हैं। मैं यहां पर आप को राजस ध्यान से बता रहा हूं क्योंकि ज्यादातर हम इसी इच्छा से ही उनकी साधना करते हैं।

इनका जो अर्थ इस प्रकार से होगाराजसी ध्यान

रक्ताम्बरां रक्तसिंहासनस्थां हेमभूषिताम् ।

एकवक्त्रां वेदसंख्यैर्भुजैः संबिभ्रतीं क्रमात् ।।

अक्षमालां पानपात्रम-भयं वरमुत्तमम् ।

अर्थात् –

श्वेतद्वीपस्थितां ध्यायेत् स्थितिध्यानमिदं स्मृतम् ।।

रक्त वर्ण के वस्त्र धारण किये हुए, रक्त वर्ण के सिंहासन पर विराजित, सुवर्ण से बने आभूषणों से सुशोभित, एक मुख वाली, अपनी चार भुजाओं में अक्षमाला, पानपात्र, अभय एवं वर मुद्रा धारण किये हुए श्वेतद्वीप निवासिनी भगवती का ध्यान करें।

देवी की जब साधना करने बैठेंगे तो विनियोग इस प्रकार से करेंगे- सबसे पहले आप तांबे के लोटे में जल अपने हाथ में ले और अपने हाथ में उसे बाएं हाथ में पकड़ के दाहिने हाथ में गिराते हुए विनियोगपड़ेंगे-

विनियोग :- ॐ अस्य श्री तारा मंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषिः, बृहती छन्दः, तारा

देवता, ह्रीं बींज, हुं शक्तिः आत्मनोऽभिष्ट सिद्धयर्थं तारामंत्र जपे विनियोगः।

यहां पर आत्मनों अभीष्ट सिद्धि अर्थ जो बोला गया है।

इसमें आत्मनों अभीष्ट में आप चाहे तो वह चीज बोल सकते हैं। जिस कार्य के लिए आप यह साधना करना चाहते हैं।

इस के बाद nyas करेंगे

ऋष्यादिन्यासः- ॐ अक्षोभ्य ऋषये नमः शिरसि । ॐ बृहती छन्दसे नमः मुखे ।

ॐ तारादेवतायै नमः हृदि ।

ॐ ह्रीं ( हूं) बीजाय नमः गुह्ये।

ॐ हूं ( फट् ) शक्तये नमः पादयोः ।

ॐ स्त्रीं कीलकाय नमः सर्वांगे ।

करांगन्यास :-

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ हूं मध्यमाभ्यां नमः।

ॐ हैं अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रः करतल-कर- पृष्ठाभ्यां नमः । करांगन्यास के समान ही हृदयादि न्यास करें।

मंत्र जो है आप चाहे तो छोटे मंत्र का जाप कर सकते हैं। ओम तारा तूरी स्वाहा और अगर बीज मंत्र के साथ करेंगे तो ज्यादा उपयुक्त होता है, तब होता है

मंत्र : ॐ ह्रीं स्त्रीं तारा तूरी हुं फट् ।
किसी मंत्र का आपको उच्चारण करना है। बीज मंत्रों के साथ में ज्यादा पावरफुल मंत्र हो जाता है।
इस मंत्र का उच्चारण करने से लगातार रोजाना रात्रि के समय 51 माला का जाप 41 दिन करने से तारा देवी की सिद्धि इस मंत्र के द्वारा प्राप्त होती है। इस दौरान आपको भयानक अनुभव हो सकते हैं और काम क्रोध मद मोह लोभ की परीक्षा होती है। 41 दिन वाले प्रयोग को जो नहीं करना चाहता है वह प्रतिदिन 100 मालाएं करें। और अगर 7 या 8 दिन की प्रयोग करने हैं तो फिर 300 मालाएं प्रतिदिन करनी चाहिए तो सिद्धि की प्राप्ति होती है जहां पर भी जॉप करते हैं वहीं पर आपको सो जाना चाहिए। अपने हाथ का भोजन खाएं। किसी स्त्री को ना छुएं मन में कोई भी। गलत बात ना आने दे। तू भी निश्चित रूप से प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन देती है। यह वीडियो मुख्य रूप से एक साधक की विशेष साधकप्रार्थना पर मैंने बनाया है।

आशा है कि उन्हें इस वीडियो के माध्यम से सारी जानकारी मिल गई होगी। अगर फिर भी कोई प्रश्न है तो वह पूछ सकते हैं मुझसे ईमेल के माध्यम से।

तो यह था देवी तारा तूरी यानी तुरीन संध्या रात्रि 12:00 बजे से होने वाली साधना के विषय में ज्ञान अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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