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माता लक्ष्मी चालीसा सम्पुट साधना

माता लक्ष्मी चालीसा सम्पुट साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम मां लक्ष्मी की एक अत्यंत ही सरल और सब के द्वारा की जा सकने वाली साधना पर विचार करेंगे। यह साधना माता श्री लक्ष्मी चालीसा के रूप में प्रसिद्ध है और इनकी इस प्रकार की साधना एक छोटा बच्चा से लेकर और एक वृद्ध व्यक्ति तक कोई भी साधना कर सकता है। इनकी साधना 40 दिन तक करने पर निश्चित रूप से माता लक्ष्मी का वास घर में होता है। सरल और सौम्य साधना होने के कारण हर व्यक्ति इस साधना को कर सकता है। चाहे उसने कोई मंत्र दीक्षा ली हो अथवा ना ली हो लेकिन किसी भी प्रकार से वह इस साधना के लिए योग्य ही होता है। हम जानते हैं कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु जी की पत्नी है और यह धन, संपदा, शांति और समृद्धि की देवी मानी जाती है। दीपावली पर भगवान गणेश के साथ इनकी पूजा की जाती है और इनका उल्लेख ऋग्वेद में भी श्रीसूक्त के रूप में मिलता है। कहते हैं जहां श्री होती हैं, वहां दरिद्रता कुरूपता टिक ही नहीं सकती है। लक्ष्मी शब्द का अर्थ होता है जिसे लक्ष्य बनाकर हासिल किया जाए। जीवन में वही व्यक्ति लक्ष्मीवान, श्रीमान, श्री को धारण करता है जो लक्ष्य बनाकर मेहनत करके अपने कार्यों को संपादित करता है। उसी के पास संसार का वैभव संपन्नता शक्ति सब कुछ आने लगता है।

माता लक्ष्मी हर प्रकार से अपने साधक को शक्ति संपन्न वह वैभववान और सुखी बना देती है।लेकिन इनका जो वाहन है वह उल्लू माना जाता है। इसलिए जिसके पास भी सद्बुद्धि नहीं है, वह अहंकारी, विलासी और दुरव्यसनी हो जाता है। धन पाकर लोग कृपण, विलासी, अपव्ययी और अहंकारी हो जाते हैं। इसी कारण उल्लू मूर्खता का प्रतीक है। जो भी व्यक्ति धन को संभाल नहीं सकता। वह उल्लू ही बनकर संसार में अपना जीवन नष्ट कर लेता है। इसी कारण गणेश जी के साथ में माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। ताकि बुद्धि के साथ सदैव धन की प्राप्ति हो। माता लक्ष्मी हर प्रकार से अपनी शक्तियां प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान करती हैं। चाहे वह उनका उपासक है अथवा नहीं है इसलिए मां रूप में यह स्वरूप जगत का सदैव कल्याण करने वाला है।

कहते हैं जहां उल्लास हो प्रसन्नता हो, स्वच्छता हो, सुंदरता हो, वहां महालक्ष्मी सदैव निवास करती हैं। इसलिए अपने आसपास सदैव ऐसा ही माहौल तैयार करके रखना चाहिए। कहते हैं महर्षि दुर्वासा के श्राप को फलीभूत करने के लिए जब माता लक्ष्मी ने इस संसार को छोड़ दिया था और समुद्र में जाकर निवास करने लगी। तब पाताल में सभी राक्षसों को धन की प्राप्ति हुई थी। देवताओं ने जब माता लक्ष्मी और अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था तब शरद पूर्णिमा के दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी पुनः प्रकट हुई थी। माता लक्ष्मी ने शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु से पुनः विवाह किया था और जगत का पालन करने वाली शक्ति के रूप में इन महामाई माता को सदैव ही पूजा जाता है। अब इनके चालीसा के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। माता की चालीसा का पाठ घर पर ही माता लक्ष्मी के यंत्र अथवा मूर्ति अथवा चित्र के सामने शुद्ध देसी घी का दीपक जलाकर साधक शुरू कर सकता है। इसे संध्या समय में करना चाहिए। अर्थात चाहे सुबह और चाहे शाम माता लक्ष्मी की साधना से परिवार में सदैव खुशहाली, शांति और समृद्धि सदैव ही व्याप्त रहती है।

इनका मंत्र पढ़ते हुए दोहा सहित इनके चालीसा को रोज एक माला पढ़ने से 41 दिन में माता की कृपा प्राप्त हो जाती है और फिर आपके घर में स्थाई निवास माता लक्ष्मी का बनता है। आप इन्हें किसी बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर मूर्ति को स्थापित करें। धूप दीप, अगरबत्ती इत्यादि दिखाकर माता लक्ष्मी को नमन करें और जल लेकर संकल्प करें कि मैं आपकी इस चालीसा को 41 दिन तक पाठ करूंगा। आप मेरे घर में स्थाई निवास बनाए और मुझे सिद्धि प्रदान करें। फिर लाल रंग की ऊनी आसन पर बैठकर माता की प्रार्थना शुरू करें।

दोहा इस प्रकार है –

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।
मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥ 

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

जै जै जगत जननि जगदम्बा । सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तुम ही हो घट घट के वासी । विनती यही हमारी खासी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

जग जननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगत जननि विनती सुन मोरी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

अपनायो तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन-इच्छित वांछित फल पाई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तजि छल कपट और चतुराई । पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

और हाल मैं कहौं बुझाई । जो यह पाठ करे मन लाई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे । इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

ताको कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना । अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं । उन सम कोई जग में नाहिं ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

करि विश्वास करैं व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

जय जय जय लक्ष्मी महारानी । सब में व्यापित जो गुण खानी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

भूल चूक करी क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी । तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई । ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥

ऊँ श्रीं महालक्ष्मी नमः

सूरज प्रताप अब कहै पुकारी । करो दूर तुम विपति हमारी ॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥

सूरज प्रताप धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

इस प्रकार आप माता के इस चालीसा को रोजाना पढ़कर 41 दिन में माता लक्ष्मी को अपने घर में स्थाई निवास हेतु आमंत्रित कर सकते हैं और सभी प्रकार की सुख समृद्धि और अगर माता की कृपा हुई 
तो गोपनीय सिद्धि भी प्राप्त अवश्य होती है। यह साधना प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है और इसके लिए सिर्फ नहा धोकर स्वच्छ होकर माता के सामने प्रार्थना करनी चाहिए और उनकी इसी प्रकार पूजा करके 
उनको प्रसन्न अवश्य ही कर लेना चाहिए, तो यह थी माता लक्ष्मी की चालीसा संपुट साधना अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। 
आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। 
https://youtu.be/OxeIxOrVIoE
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