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माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 2

माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा पहले भाग में आप नहीं जाना कि कैसे एक स्त्री अपने शरीर के रोग से परेशान होकर माता विंध्यवासिनी के पर्वत क्षेत्र में जाकर साधना करना शुरू कर देती है। आप जानते हैं आगे शेर के हमले से उसके जीवन में क्या अंतर आया?

वह इस बात को लेकर बहुत ज्यादा परेशान हो गई। और लगभग शेर भी बड़ी तेजी के साथ उसकी ओर आ रहा था। उसने हमला करना लगभग शुरू ही किया था कि तभी उसके और शेर के बीच में एक स्त्री अपनी एक और सहेली के साथ आकर खड़ी हो जाती है जो। चिल्लाते हुए कहती है रुक जाओ। तुम्हारे खेलने की हर जगह नहीं है। यह बड़ी विचित्र बात थी। एक स्त्री इस प्रकार से किसी शेर को आदेश दे रही थी। इधर डर से थरथर कांपते हुए देवी पूरी तरह घबरा चुकी थी। वह तो पूरी तरह समर्पण करने को तैयार थी। उसकी बुद्धि कार्य करना बंद कर चुकी थी, लेकिन इस प्रकार एक स्त्री का आत्मबल देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह स्त्री ठीक से शेर के सामने जाकर खड़ी हो गई। शेर उसे देखकर जोर-जोर से दहाड़ने लगा। उस की दहाड़ने की आवाज मीलो दूर तक जा रही थी। उसकी सामर्थ्य बहुत ज्यादा थी। यह कोई आम शेर जैसा नहीं था। इसकी लंबाई और चौड़ाई भी बहुत ज्यादा थी। और अगर यह देवी को खाता तो सिर्फ मुंह में रखकर चबा सकता था। इतना बड़ा उसका शरीर था। लेकिन इस स्त्री को देखकर यह चुप क्यों हो गया। यह स्त्री बड़ी तेजी से शरीर की तरफ बढ़ने लगी और शेर अब उसके साथ छोटे बच्चे की तरह खेलने का प्रयास करने लगा। शेर कभी दाएं कुत्ता तो कभी बाय कुत्ता और इस प्रकार कूद कूद कर जैसे कोई। कुत्ते का बच्चा होता है और? उसका मालिक जब उसके पास आता है तो वह खेलने के लिए बिल्कुल तैयार हो जाता है। बिल्कुल उसी पालतू कुत्ते की तरह शेर व्यवहार करने लगा।

देवी को यह बातें समझ में नहीं आ रही थी। वह! कुछ बोल पाए। इससे पहले वह स्त्री उस शेर के पास जाकर उसके सिर को छूकर उसे शांत कर देती है और शेर पालतू पशु की तरह उसके साथ देवी की तरफ दोबारा वापस आने लगता है। अब जैसे ही देवी शेर और उस स्त्री को देखती है। अचंभे में उस से पूछती है। आप कौन हैं तब वह स्त्री कहती है मैं मेरी यह सखी और यह शेर।

हम सभी यहां निवास करते हैं। यहां पर कई सारे शेर मैंने पाल रखे हैं अपनी सुरक्षा के लिए। और मेरे क्षेत्र में कोई भी इसीलिए नहीं आ पाता है। जब तक कि मैं ना चाहूं। तब माफी मांगते हुए। देवी ने कहा। अगर ऐसा है तो मुझे माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था कि यह आपका क्षेत्र है।

मैं तो यहां सिर्फ माता विंध्यवासिनी की साधना के लिए आई थी। आप?

इसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। और मुझे अपने शेर से बचाइए। क्योंकि यह मुझे देखकर बहुत क्रोधित हो गया था। मुझे खा ही जाता। तब? उस स्त्री ने कहा। चलो देख लेते हैं कि तुम इस योग्य हो कि नहीं। मेरे!

स्थान पर रहने के लिए तुम्हारे अंदर अगर योग्यता मुझे नजर आती है तो ठीक है। वरना तुम्हें यह क्षेत्र छोड़ कर जाना होगा। तब वह कहती है नहीं नहीं, मैं यहां से नहीं जाना चाहती। मैं बहुत दुखी हूं। मुझे किसी भी स्तर में जाकर माता विंध्यवासिनी को प्रसन्न करना ही है। मेरे गुरु का यही आदेश भी है। तब उस स्त्री ने कहा, कोई बात नहीं इस बात के लिए परेशान मत हो, चलो, तुम्हारी परीक्षा ले लेते हैं मेरे बाग में चलो। उस बाग में मैंने एक माली को नियुक्त कर रखा है। लेकिन तुम्हें एक काम करना है। माली की नजरों से बचते हुए तुम्हें एक फल मुझे देना होगा। ठीक है और फिर मैं तुम्हें बताती हूं, आगे क्या करना है?

वह स्त्री देवी को अपने साथ लेकर अपने बाग के किनारे पहुंच गई और कहने लगी। वह देखो! सामने क्या दिख रहा है?

और जो कुछ भी सबसे अच्छा हो, वह मेरे लिए या स्वयं अपने लिए प्राप्त करो।

तब देवी ने बड़े गौर से उस बगीचे को देखा जिसमें बड़े ही सुंदर लाल रंग के सेब लगे हुए थे। यह अद्भुत था। क्योंकि हर पेड़ से प्रकाश निकल रहा था। और? सेब के बागान यहां होना भी दुर्लभ थी क्योंकि यह तो विशेष तरह के पहाड़ों पर ही उगते हैं। लेकिन अब जब सामने ही दिख रहा है तो भूख लगी हुई देवी के मन में यह हुआ कि चलो इस सेब को ही तोड़ कर खा लेती हूं और वह जाने लगी। गलत ही? उस सेब को देखकर उसके मन में लालसा जाग गई और वह चुपके-चुपके माली की नजरों से बचते हुए सेब के पास पहुंच गई। और तभी!

उसने जाकर बड़ी ही सावधानी से उस सेब को तोड़ लिया। सेब को पेड़ से तोड़ने के बाद उसे खाने ही जा रही थी।

तभी! माली की नजर उस पर पड़ गई और वह जोर से चिल्ला कर उसके पीछे भागने लगा। यह देखकर कि माली उसे डंडे से मारने आ रहा है। वह स्त्री देवी बहुत तेजी से भागने लगी पर माली बड़ा चतुर था। उसे उस बाग के लगभग सारे रास्ते पता थे। इसी कारण से उसे जरा भी समय नहीं लगा। उस तक पहुंचने में और बड़ी जोरदार तरीके से उसने डंडा उस देवी नाम की स्त्री की पीठ पर मार दिया। इतनी जोर से कि उसके छाप पीठ पर बन गई। और यह देखकर तभी वहां पर शेर आ गया। शेर ने तुरंत ही देवी की रक्षा की और देवी वहां से बचकर भागती हुई फिर से उस स्त्री के पास पहुंच गई। तब उस स्त्री ने पूछा, क्या हुआ तो उसने बताया मुझे भूख लगी थी मेरी आंखों ने?

एक सेब को देखा। और फिर मैं उसी प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ गई।

और अब इतनी जोर से उस माली ने मारा है कि मुझे आंसू आ रहे हैं।

तब उस स्त्री ने कहा, इससे तुम क्या समझी ? तब देवी ने कहा कि चोरी नहीं करनी चाहिए जो चीज़ अपनी नहीं है, उसे धारण नहीं करना चाहिए। अन्यथा आपका नुकसान हो जाता है तब स्त्री हंसने लगी क्योंकि जो स्त्री देवी के साथ में खड़ी थी। वह! कहने लगी कि ठीक है तुम्हें?

लगभग सामान्य जन की तरह ही बुद्धि है लेकिन फिर भी तुम्हारी बुद्धि इतनी योग्य है जिससे कि। तुम इस स्थान पर रहकर साधना कर सकती हो लेकिन फिर भी मैं तुम्हें इसका एक विशेष तरह से अर्थ बताती हूं।

तुम मुझे बताना इसका क्या मतलब है?

तब? देवी ने उस स्त्री से कहा ठीक है आप अपने ही शब्दों में मुझे इसके बारे में बताइए तब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, सुनो तुम्हारी आंखों ने अपराध किया जानती हो। तुम्हारी इस अपराध के कारण तुम्हारे मन में भूख के कारण तुम्हारा मन तुमसे पाप करवाने के लिए तैयार हो गया। और? जाने की स्थिति तुम्हारे पैरों को लगी, इस पूरे अपराध में दंड तुम्हारी पीठ को भोगना पड़ा। और? अंततोगत्वा जिसने पाप किया था उसे रोकर उसे भोगना पड़ा।

कुछ समझी?

यह आध्यात्मिक बाद देवी के समझ में नहीं आने वाली थी तो उसने कहा, आप बहुत बड़े आध्यात्मिक बात को मुझे बता रही है। कृपया स्पष्ट रूप से मुझे समझाइए तब उस स्त्री ने कहा, भौतिक जीवन बिल्कुल इसी तरह होता है। ध्यान से सुनो अगर कोई व्यक्ति यह सोचता है कि वह पाप कर रहा है और बच जाएगा। संसार चक्र आवागमन के एक सिद्धांत पर बंधा हुआ है और हर स्थिति परिस्थिति वापस लौट कर अवश्य ही आती है। इसीलिए किया गया कोई भी कर्म कभी भी अपने फल से बच नहीं सकता है। देखो तुम्हारी आंखों ने पाप किया था। उस पाप के कारण मन! जो कि तुम्हारी आंख वहां तक नहीं पहुंच सकती थी। पहुंचाने का कार्य तुम्हारे पैरों ने किया। फल को तोड़ने का कार्य तुम्हारे हाथों ने किया। इन सब का दंड तुम्हारी पीठ को भोगना पड़ा जो कि इन सब के लिए बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं थी और इसके बावजूद अंततोगत्वा रोना तुम्हारी आंखों को ही पड़ा जिसने पाप किया था।

इससे यह समझो कि संसार चक्र में तुम चाहे कैसे भी कर्म करो, चाहे पाप या पुण्य? अंततोगत्वा तुम्हें उसके कर्म फल को भोगना पड़ता ही है बिल्कुल ऐसा ही मनुष्य के साथ में होता है। वह जो भी कर्म करता है, हो सकता है। उसका फल कोई और भोग रहा हो। उस वक्त वह कार्यप्रणाली में किसी और के ऊपर उसका प्रभाव पड़ रहा हो लेकिन अंततोगत्वा। उसका स्पष्ट रूप से वापस आना तय रहता है। आँख ने अपराध किया और अंततोगत्वा आंख को ही रोना पड़ा।

यह बातें सुनकर। देवी आश्चर्य में पड़ गई। वह सोच रही थी। ऐसी आध्यात्मिक बातें बताने की सामर्थ किसी साधारण स्त्री में तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती है। वैसे भी यह स्त्री बड़ी चमत्कारी नजर आती है क्योंकि जो शेरों को पाले और उसके पास कई तरह के विचित्र शेर और विचित्र बाग बगीचे हो, यह स्त्री किसी देवी से कम नहीं है। और नाम तो मेरा देवी है, पर मुझे लगता है। यह कोई साक्षात देवी है। तब पैरों को छूकर देवी ने उस स्त्री से कहा, आप मेरे लिए मार्गदर्शक बनिए। मैं यहां पर अपने शरीर के कोढ़ रूपी सफेद दाग को मिटाने के लिए आई थी।

इसके कारण मेरे पति ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया और अधूरा बना कर छोड़ दिया। मैं अपने सुंदर रूप को वापस प्राप्त करना चाहती हूं। लेकिन इसमें मेरी सामर्थ्य है या नहीं, मैं नहीं जानती। मैं माता विंध्यवासिनी को प्रसन्न कर पाऊंगी या नहीं, मैं नहीं जानती। मेरा पति बहुत सुंदर और बहुत ही धनवान परिवार से था। मैं अपने सुंदर और अति प्रिय पति और धनवान परिवार को छोड़कर यहां जंगल में अपनी विचित्र स्थिति को प्राप्त कर चुकी हूं, जहां जीवन का कोई भरोसा नहीं है। और मैं चाहती हूं कि मैं किसी प्रकार से अपनी वापस स्थिति को प्राप्त कर पाऊं। तब यह सारी बातें सुनने के बाद उस स्त्री ने बड़े गौर से देवी को देखा और कहा मुझे लगता है तुम्हें सुंदर पति और धनवान परिवार की आकांक्षा है। देखते हैं। इसमें? क्या हो सकता है लेकिन अभी के लिए तो जो तुम्हारा कर्म है, वह तपस्या करना है। चलो मैं तुम्हें अपने भव्य महल में पूजा करने का स्थान बता देती हूं। चलो वहां जाकर पूजा करो आराम से बैठकर। बिना किसी भय और शंका के माता विंध्यवासिनी की सेवा करो। माता अवश्य ही प्रसन्न हो जाएंगी और उनकी प्रसन्नता जैसे ही मिलेगी। तुम्हारी समस्त संकट पाप और दुर्भाग्य नष्ट हो जाएगा। अब चलो यहां से वह स्त्री और देवी दोनों एक साथ उस भव्य महल में प्रवेश कर जाती है और वहां देवी की प्रतिमा पहले से ही स्थापित थी जो कि बड़ी ही दिव्य और भव्य थी। उनके सामने बैठकर वह साधना करने लगती है। कि तभी वह मूर्ति अचानक से बोलने लगती है।

तू कौन और यहां पर क्यों आई है?

इस तरह की शब्द सुनकर देवी घबरा जाती है। इसके बाद क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में, तो अगर यह पौराणिक कहानी किवदंती आपको पसंद आ रही हो तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पाराशक्ति।

माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 3

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