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माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 4

माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा यह चौथा भाग है। अब जानते हैं आगे की कथा के विषय में तो जैसा कि हम लोगों ने जाना कि कैसे देवी इस बात को लेकर परेशान हो जाती है कि वह इतना ज्यादा क्यों रो रही है। उसके रोने का कारण क्या है तब बहुत दिनों की तपस्या के बाद अचानक से वह मूर्ति दोबारा से बोलने लगती है और वह मूर्ति कहती है। पुत्री तुम इतना ज्यादा क्यों रो रही हो? तब वह कहती है। इसका कारण तो माता मैं भी नहीं जानती। पर मैं रो तो रही हूं। अगर आप मुझे बता सकें कि इसका वास्तविक कारण क्या है तो आपकी बड़ी कृपा होगी। यह सुनकर मूर्ति ध्यान पूर्वक उसे देखकर कहती है। ठीक है। अगर तुम जानना ही चाहती हो कि आखिर तुम क्यों रो रही हो तो इसका मैं तुम्हें महत्व और अर्थ बताती हूं। हमारी अंतरात्मा सदैव मोक्ष के लिए तड़पती रहती है, लेकिन वह कभी वास्तविक मोक्ष को नहीं जान पाती है। इसलिए जब भी हम लोग साधना करते हैं और अपने प्रिय देवी या देवता की आराधना करते हैं। तब? कुछ समय साधना करने के पश्चात हमें उनके प्रति प्रेम उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। अंतरात्मा यह बात जानती है लेकिन शरीर कभी भी यह बात नहीं जान पाता है। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है तब? साधक इस रहस्य को जान ही नहीं पाता। और केवल अपने उस प्रिय देवी या देवता के प्रति समर्पण के कारण रोता रहता है। किंतु वास्तविक कारण यह है कि वह आत्मा मोक्ष के लिए तड़पने लगती है। उसे मोक्ष चाहिए। और यह मोक्ष उसका प्रिय देवी या देवता जिसकी भी वह आराधना और साधना कर रहा है, वही दे सकता है। इसीलिए अंतरात्मा के रुदन के कारण शरीर भी रोने लगता है। लेकिन इसका कारण उसे स्पष्ट नहीं हो पाता। असल में आत्मा का यह रूदन बहुत ही पवित्र होता है। इससे आप के पाप नष्ट हो जाते हैं और मायाजाल का पर्दा भी हटने लगता है। जब यह रुदन बहुत ज्यादा बढ़ जाए तब यह मोक्ष के द्वार भी खोल देता है। देवता।

आपसे प्रसन्न हो जाता है क्योंकि आप इस रुदन के कारण पवित्र हो रहे होते हैं। और माता की प्रसन्नता इससे बढ़ जाती है।

हर शक्ति यह चाहती है कि उसका सेवक उसका पुत्र। उसकी और बढ़ने वाली हर एक आत्मा उसके जैसे ही पवित्र हो जाए और यह तभी संभव है जब वह पूरी तरह से विषय का त्याग करके अंतरात्मा की पवित्रता को प्राप्त करें और इसके लिए उसका समर्पण तीव्र होना आवश्यक है। यह समर्पण इतनी जल्दी नहीं आता। इसमें समय लगता है।

लेकिन रोने के कारण जैसे बालक जब रोता है तो मां तक आवाज अवश्य पहुंचती है और बालक का रुदन! उसकी तीव्र तड़प को दर्शाता है। इसीलिए आवश्यक हो जाता है कि उससे भी उसकी इच्छा की प्राप्ति हो।

तुम ऐसा समझ रही थी कि यह आंखों से निकलने वाले आंसू।

तुम्हारे पति के लिए है या पति जो तुम्हें भूल चुका है, ससुराल के लिए है पर वास्तव में यह तो माता के प्रति समर्पण है उनसे। अपनी अंतरात्मा की मुक्ति का प्रयास है। यह सुनकर देवी प्रसन्न हो जाती है।

और माता से कहती है हे मा मुझे आगे का मार्ग दिखाइए। अब मैं क्या करूं? मैं अपने पति को प्राप्त करना चाहती हूं। ससुराल भी प्राप्त करना चाहती हूं। तो मैं क्या करूं तब वह मूर्ति कहती है पुत्री। इन सब से भी ऊपर मोक्ष का द्वार है, लेकिन अभी तुम पर माया का पर्दा बहुत तीव्रता के साथ हावी हो चुका है। जैसे? किसी चीज की प्राप्ति हो। और उस प्राप्ति में बड़ा संघर्ष लगा हो और वही चीज तुम्हारे हाथ से एकदम से निकल जाए तो तुम तड़प उठते हो? और उसको प्राप्त करने के लिए बेचैन हो जाते हो। बिल्कुल वही अवस्था तुम्हारी है इसलिए तुम इतना ज्यादा परेशान हो।

ठीक है, मैं तुमसे प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें 1 महीने का समय देती हूं। जाओ अपने ससुराल जाओ 1 महीने तक वहां रहना। सिर्फ!

इस दौरान तुम्हें एक बात का ख्याल रखना है तुम! अपनी भक्ति को नहीं छोड़ोगी?

इस दौरान सारा मायाजाल तुम्हारे इस शरीर पर हमेशा हावी रहेगा मेरी माया से। तुम्हारा शरीर सुगंधित हो जाएगा। तुम्हारे शरीर की चमक कई हजार गुना बढ़ जाएगी। रंग रूप यौवन में अप्सराओ को भी तुम पीछे छोड़ दोगी। इतनी ज्यादा सुंदरता मैं तुम्हें भर कर देती हूं।

मैं सिर्फ तुम से प्रसन्न नहीं, तुम्हें वास्तविकता का बोध भी कराना चाहती हूं। इसीलिए मैं तुम्हें 1 महीने का समय देती हूं। एक माह के अंदर तुम मुझे बताना कि तुम्हें अब क्या चाहिए? अगर तुम अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहना चाहो तो रह सकती हो? अथवा वापस मेरे पास आना चाहो तो भी आ सकती हो? एक माह के अंदर तुम्हें जगत और

वास्तविकता दोनों का ही बोध करवाऊंगी। ठीक है जाओ! मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं कि तुम्हारा रूप और यौवन कई हजार गुना बढ़ जाए। तुम्हारे शरीर का यह दाग हमेशा के लिए समाप्त हो जाए। पर इस प्रकार देवी माँ की कृपा से।

देवी नाम की साधिका स्त्री का शरीर पूरी तरह बदल गया। वह महान सुंदर हो गई। उसकी सुंदरता अप्सराओं को भी मार करने वाली थी। देवी के तेज के कारण उसके शरीर का रोग नष्ट हो गया। वह एक बहुत खूबसूरत कुंवारी कन्या। अद्भुत रहस्यमई शरीर से निकलती हुई ऊर्जा के कारण शरीर पर विद्यमान रहने वाली चमक इत्यादि सारी चीजें उसके अंदर अपने आप आ गई। उसकी सुंदरता इतनी ज्यादा थी कि वह स्वयं को आईने में देखकर कहने लगे। देवी मां आपने तो मुझे ज्यादा ही सुंदर रूप दे दिया है। कहीं ऐसा ना हो कि कोई पुरुष ही मेरे पीछे पड़ जाए। इस बात से वह बहुत ज्यादा प्रसन्न थी और वहां से निकल कर के।

माता! के दरबार को छोड़कर अब वह पहुंच जाती है अपने ससुराल! ससुराल पहुंचते ही वह द्वार खोलती है। सामने उसका पति अपने परिवार से लड़ रहा होता है और जोर-जोर से कह रहा था। मेरा विवाह किसी सुंदर लड़की से कराना पुरानी वाली की तरह नहीं, दरवाजा खोलने की आवाज से। सभी लोग दरवाजे की ओर देखने लगते हैं।

सामने खड़ी हुई देवी को देखकर सबकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। सामने इतनी ज्यादा सुंदर स्त्री खड़ी होगी। उसके पति ने कभी सोचा भी नहीं होगा तब तक द्वार से।

उस! पुरुष के मामा जी आ जाते हैं और कहते हैं। मैंने बहुत सुंदर एक स्त्री देखी है जो तुम्हारी योग्य है। दान दहेज भी बहुत बढ़िया देंगे। देखो, मैं उनके एक रिश्तेदार को भी लेकर आया हूं।

तो उसका पति अपनी पत्नी के सौंदर्य को देखकर सब कुछ भूल जाता है। परिवार के सारे सदस्य उसकी सुंदरता को देख कर चुप हो जाते हैं। उसका पति कहता है मुझे कोई और रिश्ता नहीं चाहिए। मुझे मेरी पत्नी ही वापस चाहिए।

और वह तेजी से दौड़ते हुए देवी के पास पहुंच जाता है। उससे कहता है तुम कहां से इतना सुंदर हो गया आई हो, क्या हुआ किसी ने कोई दिव्य जड़ी-बूटी तो नहीं खिला दी।  इतनी ज्यादा सुंदर हो, मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी।

मैं तुम्हारा पति हूं। अब तुम मेरे साथ ही रहोगी। मुझे इस बात के लिए माफ कर दो कि मैंने तुम्हारे बारे में पता नहीं। क्या क्या सोचा था?

तब बहुत खुश हो चुकी देवी उसके साथ कमरे की ओर बढ़ जाती है। उसका पति जरा भी देर नहीं करता और अपनी माता से कहता है दोबारा से सुहागरात की सेज उसी प्रकार शादी वाले दिन की तरह सजाई जाए और। मैं?

अब अपनी पत्नी से पूरी तरह संतुष्ट हूं। इसके बाद वह अपनी पत्नी को अंदर ले जाकर उसके साथ रति क्रिया करता है।

सुबह उठते ही देवी पूजा करने बैठ जाती है। इधर इसका पति अपने काम से शाम को वापस आता है तो शाम की पूजा के लिए देवी फिर से बैठ जाती है। तब उसका पति कहता है। पूजा-पाठ मत करो, चलो कमरे में चलते हैं। तुम्हारे बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह सकता हूं, तब देवी कहती है। मैं अपनी पूजा करके ही आपके पास आऊंगी। इसमें एक घंटा लग सकता है। तब वह कहता है किसके लिए इतनी पूजा कर रही हो। तुम्हें पति और ससुराल के साथ पूरा भरपूर सहयोग और प्रेम प्राप्त हो चुका है। चलो मेरे साथ!

पर वह कहती है मैं माता की पूजा करके ही आऊंगी। और पति इस बात से नाराज हो जाता है। और चुपचाप जाकर अपने बिस्तर में बैठ जाता है।

जैसे ही देवी अपनी पूजा समाप्त करके वहां पहुंचती है, उसका पति उसे बिस्तर पर पटक देता है और उसके साथ जबरदस्ती रतिक्रिया करता है। इससे वह एकदम घबरा जाती है कि आज उसका पति उसी का इस प्रकार से।

शोषण कर रहा है। यह बातें उसके लिए बहुत ही बुरी थी। सुबह के वक्त फिर से देवी पूजा करने चली जाती है तब उसका पति उसे बहुत सुनाता है और कहता है कल रात के बाद भी तुम सुधर नहीं रही हो।

और अपने काम पर वापस चला जाता है। शाम के वक्त फिर से वह आ जाता है और तब देवी एक बार फिर से माता विंध्यवासिनी की पूजा के लिए मंदिर में जाकर बैठ जाती है।

उसका पति कहता है आज पूजा मत करो वरना कल की तो है मुझे फिर से बहुत क्रोध आएगा मैं तुम्हारा। शयन कक्ष में इंतजार कर रहा हूं। तुम्हारे बिना मैं नहीं रह सकता हूं। मुझे आकर जल्दी ही संतुष्ट करो। यह कह कर वह चला जाता है देवी फिर से अपनी पूजा में बैठ जाती है। उसके पति को बहुत क्रोध आता है वह। तीव्रता से उसकी ओर बढ़ता है और उसकी चोटी पकड़कर घसीटता हुआ कमरे की ओर लेकर जाता है और उसके साथ जबरदस्ती एक बार फिर से करता है।

इस प्रकार अब देवी के साथ रोजाना। उसकी मर्जी के बिना। इस प्रकार रतिक्रिया करने के कारण देवी को बहुत दुख होने लगता है।

वह यह बात समझने लगती है कि माता ने क्यों कहा था कि संसार कैसा है। वही बात समझने लगती है कि उसका पति केवल उसकी सुंदरता का भूखा है। और उसे प्रेम नहीं करता है। उसे केवल उसका शरीर ही चाहिए तब? एक शाम को फिर से माता विंध्यवासिनी की पूजा करने जब देवी बैठी थी तो माता से प्रार्थना करने लगती है। माता मेरे पति को समझा दीजिए।

आपकी कृपा से सब कुछ संभव है। वह सुधर जाएं। माता मन ही मन उसकी प्रार्थना को सुन लेती है। और अपनी कृपा से उस दिन उसका पति शांत हो जाता है। माता की कृपा के कारण। वह आकर देवी के साथ बैठकर पूजा करता है। और तब देवी भी बहुत प्रसन्न हो जाती है। कि चलो कम से कम आज मेरा पति मेरा सहयोग कर रहा है। लेकिन 1 घंटे की लंबी पूजा की वजह से आधे घंटे के बाद ही उसका पति फिर से क्रोधित हो जाता है। और वह बड़ा गुस्से में आकर अपनी पत्नी को देखता है। कि इसे तो मेरी कोई चिंता ही नहीं है।

यह पूजा स्थल ही सबसे बड़ी समस्या है। अगर यही नहीं रहेगा तो अवश्य ही यह मेरे वश में रहेगी। वरना दिन भर पूजा-पाठ की ही बातें करती रहती है।

देवी माँ के प्रभाव से वह मुक्त हो चुका था।

और क्रोधित होकर उसने वहां पर घास फूस लाकर मंदिर में आग लगा दी। सामने देवी की प्रतिमा पूरी तरह जल गई। सामने बैठी हुई देवी यह देखती है कि माता विंध्यवासिनी की मूर्ति को और पूजा स्थल को उसके पति ने जला दिया है और उसका पति क्रोधित होकर एक बार फिर से। जबरदस्ती देवी को उठाकर बिस्तर पर जाकर पटक देता है और उसके साथ एक बार फिर से जबरदस्ती करता है। उसकी इच्छा पूर्ति तो हो रही थी। लेकिन ना तो उसका पति और ना ही उसकी पत्नी प्रसन्न थी। इधर देवी को यह आभास हो गया था। कि संसार में कितना भी करो। लोग केवल अपने सुख के बारे में ही सोचते हैं। आज उसके पति ने इतना बड़ा अपराध कर दिया है। उसने माता की मूर्ति और पूजा स्थल दोनों को जला दिया। यह बात उसके लिए सामान्य नहीं थी क्योंकि माता विंध्यवासिनी के कारण ही उसके जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन आया था। माता की कृपा से ही उसे उसका पति और ससुराल मिला था। माता सेवा जो भी प्रार्थना करती थी, माता उसकी प्रार्थना को पूर्ण कर देती थी। लेकिन यहां पर तो हद हो गई है।

मेरे शरीर तो भले ही मेरे पति का अधिकार है। लेकिन माता की मूर्ति और पूजा स्थल पर तो केवल उसी का अधिकार था जिस को नष्ट करके उसके पति ने बहुत बुरा काम किया है। क्रोधित हो चुकी देवी एक बड़ा निर्णय लेती है। वह निर्णय क्या था? जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर आज की कहानी आपको पसंद आई है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 5 अंतिम भाग 

 

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