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माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 5 अंतिम भाग

माता विंध्यवासिनी और देवी की परीक्षा भाग 5 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है जैसा कि अभी तक आपने जाना देवी के साथ उसका पति बहुत बुरा करता है और उसकी साधना पर ही प्रहार करके माता की मूर्ति और पूजा स्थल को जला देता है। इस बात से बहुत ज्यादा क्रोधित होकर देवी एक निर्णय लेती है। वह गुस्से से अपने पति को कहती है, तुमने मेरी साधना को भंग किया है। मैं अब यहां से सीधे अपने पिता के पास जा रही हूं और मुझे लेने मत आना। मैं अब तुम्हारे बुलाने पर नहीं आऊंगी। और इस प्रकार से देवी वहां से निकल जाती है। यह बात सुनने में बड़ी अजीब लगेगी। लेकिन यह सत्य था! कोई भी स्त्री अगर उसे प्रेम उसके मायके में। मिलता है तो वह वहां भी अवश्य ही जाती है। क्योंकि ससुराल के अलावा केवल मायका ही एक ऐसा स्थान है जहां पर एक स्त्री को उचित प्रकार से प्रेम मिलता है।

यही सोचते हुए और पुरानी सारी बातें भूल जाने की वजह से अब देवी अपने पिता की ओर जाने का निर्णय ले लेती है। गुस्से से घर से बाहर निकलते हुए। वह तेजी से। एक!

गाड़ी वाहक को कुछ पैसे देकर अपने। क्षेत्र में जाने का निर्णय ले लेती है। उसका पति क्रोधित होकर पीछे से कहता है। अगर तुम यहां से गई तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा और?

तुम्हें लेने भी नहीं आऊंगा।

वह उसकी बात को बिल्कुल भी नहीं सुनती। ससुराल के सारे लोग। जोर-जोर से उसे चिल्लाकर रोकने की कोशिश करते हैं। लेकिन वह किसी की नहीं सुनती है। और वहां से प्रस्थान कर जाती है।

अब देवी अपने गांव अपने पिता के घर पहुंचती है। घर पर परिवार के सारे सदस्य उसे देखते हैं। और सभी कहने लगते हैं देवी कितनी ज्यादा सुंदर हो गई हो, ससुराल का पानी लग गया है। ससुराल कितना अच्छा है तुम्हारा जो तुम्हें इतना सुंदर बना कर रखा है। चलो सब परिवार के सारे सदस्यों से अब एक-एक करके बातचीत करो।

उस परिवार में बहुत! खुशी आ गई थी। क्योंकि बहुत दिनों बाद उनकी पुत्री घर आई थी। और ससुराल में क्या घटित हुआ है, इस के संदर्भ में उन्हें कोई भी जानकारी नहीं थी।

उसकी मां!

जब अपनी पुत्री से बात करती है तो कहती है पुत्री तुम्हारा यह दाग कैसे समाप्त हो गया?

यह बात सुनते ही देवी को पुरानी बातें याद आ जाती हैं। और वह सोचती है अरे मैंने यह क्या किया, मैं तो ससुराल छोड़कर मायके आ गई हूं।

यह मैंने गलत कार्य कर दिया है। मैंने माता को भी नहीं बताया अपने पूजा स्थल के विषय में। यह कोई कार्य किया पूजा मेरी भले ही नष्ट हो गई है। किंतु फिर भी! मैं अभी भी माता की पूजा अवश्य करूंगी। उसने पूजा स्थल का निर्माण मायके में कर लिया और माता की पूजा करने लगी। इधर इसका पति? अपनी पत्नी के लिए तड़पने लगा। क्योंकि उसे ऐसा लगा कि इतनी सुंदर स्त्री वह खो देगा। ऐसी स्त्री किसी को जल्दी प्राप्त नहीं होती। वह परिवार वालों के साथ उसके घर जाने की तैयारी करता है। ताकि उसे समझा-बुझाकर वापस ले आए।

इधर परिवार वाले उससे पूछते हैं दामाद जी क्यों नहीं आए? तब वह कहती है, मैं उनसे लड़के आई हूं। उन्होंने मेरे पूजा स्थल को आग लगा दी। और तब मैंने गुस्से से यहां आना ही ठीक समझा। परिवार वाले कहते हैं इस बात के लिए तुम्हें अपने पति को समझाना चाहिए था। इस प्रकार लड़ना बिल्कुल भी उचित नहीं है। परिवार के सारे सदस्य कहने लगे। तुम्हें वापस अपने ससुराल जाना चाहिए। यहां रहकर स्थिति बिगड़ सकती है। तब?

देवी ने सबसे कहा, क्या यह मेरा घर नहीं है? तो परिवार के सभी लोगों ने उसे समझाया कि शादी के बाद स्त्री का असली घर उसका ससुराल ही होता है। जहां उसके पति का वास होता है और उसका पति!

अगर उससे क्रोधित भी हो जाए तब भी उसे। उसको समझाना और उसी के साथ रहना चाहिए।

देवी सोचने लगी। इस संसार में सच में अपना कोई नहीं है।

इन लोगों को सिर्फ इस बात की पड़ी है कि उनकी बदनामी समाज में ना हो कि उनकी जवान बेटी अपने ससुराल से लड़के आई है। इस बात की चिंता नहीं है कि ससुराल में उसके साथ क्या घटित हुआ है?

कोई भी? दामाद जी को समझाने की कोशिश नहीं करना चाहता। सिर्फ मुझे ही समझाना चाहता है।

अब सच में मुझे लगता है इस संसार में सारे रिश्ते नाते केवल स्वार्थ के ही होते हैं।

इस प्रकार अब! यही सोच रही थी कि खबर आती है।

दामाद जी और उनका पूरा परिवार आ गया है बाहर!

यह सुनकर देवी स्तब्ध रह जाती है कि इतनी जल्दी! उसका पति उसे लेने के लिए कैसे आ गया?

जरूर! माता की ही कृपा होगी। इसलिए उसका क्रोध शांत हो जाता है और वह भी सज धज कर अपने पति के आगे आकर खड़ी हो जाती है। उसका पति कहता है भूल चूक माफ करो।

तुम पूजा-पाठ मत किया करो तुम्हें किस बात की समस्या है मैं? और मेरा परिवार तुमसे बहुत प्रेम करते हैं।

मुझे तुम्हारी जैसी सुंदर स्त्री मिली है जो कि बड़े सौभाग्य की बात है। जब से तुम गई हो, मैं अपने बिस्तर में बैठे सिर्फ तुम्हें ही याद कर रहा था। तुम्हारे अलावा मेरी आंखों में कोई और चेहरा नहीं आता है। तुम्हारी कमी तुम्हारा स्पर्श मुझे तुम्हारी बार-बार याद दिलाता है। इसलिए!

अपना क्रोध छोड़ो और वापस घर चलो।

तो देवी कहती है, ठीक है, आप आ ही गए हैं तो मुझे वचन दीजिए। आप मेरी पूजा नहीं रोकेंगे।

और साथ ही

आप? कभी भी! मेरा अपमान नहीं करेंगे। तो उसका पति और सारे ससुराल वाले।

हामी भरते हैं।

तब?

मायके के सारे लोग कहते हैं आप लोग इतनी दूर से आए हैं तो कम से कम 1 दिन मेहमान नवाजी तो करने का मौका दें। आप लोगों का स्वागत करना सौभाग्य की बात होगी।

देवी का परिवार यह बात जानता था कि इतने बड़े घर में रिश्ता होना बहुत बड़ी बात है। इसलिए बात कभी भी ना बिगड़े और इनकी सेवा सत्कार में कोई कमी ना रहे। ताकि! हमारा रिश्ता इसी प्रकार अच्छी प्रकार से चलता रहे।

देवी की बात। कोई नहीं सोच रहा था। एक पति था जिसे इस बात की चिंता थी कि उसकी जबान पत्नी जो उसे हर प्रकार के शारीरिक सुख दे सकती है। जल्दी उसे मिले।

उसका ससुराल यह सोचता था कि उनकी सुंदर और।

परिवार को संभालने वाली जल्दी वापस आ जाए। ताकि उन पर बोझ कम पड़े। साथ ही उन्हें जल्दी।

अपनी। पुत्र वधू! गर्भवती देखनी थी। ताकि! वंश परंपरा में उन्हें आगे की पीढ़ी मिल जाए।

देवी का मायका।

सिर्फ यह सोचता था कि हमारे संबंध और ज्यादा मजबूत हो जाए और इनके धन सम्मान की शक्ति हमें भी प्राप्त हो।

यानी सभी अपने अपने स्वार्थ में लीन थे। शाम के समय। सोने के लिए देवी अलग कमरे में जाती है। और? तब?

वह माता का ध्यान करती है।

तब माता स्वप्न में आती है और कहती है।

पुत्री तुम्हारी क्या इच्छा है?

तब वह कहती है माता अगर सब ठीक रहे और मुझे पूजा करने का यह मौका दें तो आप सबको माफ करिएगा। तब माता कहती है ठीक है। मैं तेरे कहने पर सभी को माफ करती हूं। लेकिन? इस परीक्षा को पूर्ण होने तक कोई निर्णय मत लेना उसके बाद ही तुम निर्णय लेना। यह कहकर माता अदृश्य हो जाती है।

इस बात को देवी अच्छी प्रकार से समझ नहीं पाती है कि माता ने ऐसा क्या कहा है? अगले दिन लगभग जब सभी लोग जाने की तैयारी में थे। अचानक से देवी का पति। देवी को देख कर कहता है। यह क्या हुआ?

ससुराल वाले भी। हाय तौबा करने लगते हैं। यह बात! देवी को समझ में नहीं आती। मायके वाले भी उसे देखकर अचरज में आ जाते हैं।

असल में एक मास पूरा हो चुका था। इसकी कारण देवी के शरीर में दोबारा से सफेद दाग। फिर से फैल चुका था। उसकी सुंदरता चमक सारी गायब हो चुकी थी।

उसके पति ने जाकर अच्छी प्रकार से देवी को देखा। और?

ससुराल वालों को कहा।

मुझे यह नहीं चाहिए। इसकी कोई शर्त मैं नहीं मान सकता। शायद कोई जादू टोना इसने किया होगा। तभी इस ने ऐसा रूप प्राप्त कर लिया था जो कुछ दिन ही चलता है। मैंने ऐसा सुना है। ससुराल वाले भी कहने लगे हैं। इस तरह की जादू टोने होते हैं जिसमें कुछ दिन के लिए रूप परिवर्तित हो जाता है।

आप लोग अपनी बेटी को यही रखो! हमें यह नहीं चाहिए। वैसे भी यह सब से जबान लड़ाती है।

यह सुनकर मायके वाले भी। उन सब का? मुंह देख कर गिडगिडाते हुए उनसे कहते हैं। हमारी बेटी की कोई गलती नहीं है और जैसे अभी ठीक हुआ था, बाद में भी ठीक हो सकता है। पर ससुराल वाले नहीं मानते। वह कहते हैं कि यही सफेद दाग उनकी आगे आने वाली पीढ़ी में भी आ जाएगा। इसीलिए हम तुम्हारी पुत्री को स्वीकार नहीं कर सकते।

इस प्रकार से ससुराल वाले क्रोधित होकर वहां से चले जाते हैं। एक क्षण में देवी का सौभाग्य। दुर्भाग्य में परिवर्तित हो जाता है।

बिचारी देवी सोचती रह जाती है। वह अपने परिवार मायके वालों से कहती है।

कि अब वह क्या करें? तो मायके वाले भी कहते हैं, तुम्हें अपने घर लौट जाना चाहिए वरना हम लोगों की बड़ी बदनामी होगी।

परिवार की अन्य लड़कियों की शादी भी नहीं होगी।

सभी लोग यही कहेंगे कि इसे ससुराल से भगाया गया है।

देवी को अब महसूस हुआ कि वास्तव में संसार के सारे संबंध। केवल स्वार्थ पर टिके होते हैं। इसलिए इनके पीछे भागना! मूर्खता होती है। उसे यह बात समझ में आ चुकी थी। की माता के अलावा कोई और उसका भला नहीं कर सकता है। वह वापस उसी। क्षेत्र में लौट आती है जहां पर उसने तपस्या करना शुरू किया था।

तब वहां पर। एक बार फिर से वही मूर्ति आ जाती है। और कहती है। अब बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है? क्या तुझे

रूप की प्राप्ति चाहिए, तुम्हें पति चाहिए। या फिर तुम्हें मोक्ष चाहिए?

तुम्हारे अंदर जो भी इच्छा होगी, मैं अवश्य ही तुम्हें प्रदान करूंगी। तब वह कहने लगी माता। मेरे मन में सुंदर बनने की इच्छा सदैव से विद्यमान थी और सुंदर बनते ही सारे लोग मेरे पीछे पीछे हो गए थे। मैं वापस से अपना रूप चाहती हूं। मैं अपने पति के पास वापस नहीं जाऊंगी क्योंकि वह तो केवल शरीर की ही भूख। मिटाने के लिए जैसे बैठा हो। सबको अपना अपना स्वार्थ दिखता है। मैं सुंदर हो जाना चाहती हूं, लेकिन सब को लज्जित भी करना चाहती हूं। इसलिए मैं वापस भी नहीं जाना चाहती।

अब आप ही मेरे लिए मार्ग निकालिए। मोक्ष की मेरी इच्छा नहीं है क्योंकि मेरे जैसी स्त्री के मन में पूर्ण मोक्ष की कामना कभी नहीं आ सकती। मैं कामना में फंसी हूं।

तक देवी ने कहा, ठीक है पुत्री। जैसी तुम्हारी इच्छा। शीघ्र ही तुम! अप्सरा का स्वरूप धारण करोगी। तुम्हारी सुंदरता चरम पर रहेगी। तुम्हारी इसी सुंदरता को देखते हुए स्वर्ग से एक महान सुंदर गंधर्व नीचे आएगा। और? तुमसे उसका प्रेम विवाह हो जाएगा।

माता के ऐसा कहते ही माता अदृश्य हो जाती हैं और एक बार फिर से देवी वहां तपस्या करने लगती है। कुछ वर्षों की तपस्या के बाद अचानक एक दिन एक बहुत सुंदर रथ पृथ्वी पर उतरता है, उसमे बैठा हुआ एक राजकुमार। जैसा दिखने वाला पुरुष था जो कि बहुत ज्यादा सुंदर था। उसके शरीर से तेज प्रकाश निकल रहा था।

तब वह देवी के पास आकर कहने लगा। तुम जैसी सुंदर और तेज वाली स्त्री मैंने नहीं देखी। मैं तुम्हें देखते ही पसंद कर लिया था। मैं तुम्हें प्राप्त करना चाहता हूं। क्या तुम मुझसे विवाह करोगी? मैं तुम्हें वचन देता हूं। तुम्हारे अलावा संसार में हर स्त्री को अपनी मां और बहन ही समझूंगा।

देवी!

एक क्षण में उसके प्रेम में आ जाती है। इस प्रकार दोनों गंधर्व विवाह कर लेते हैं। और तब दोनों एक बार फिर से उस नगर में जाते हैं जहां उसका पति! और उसका परिवार विद्यमान था। उसके पति ने दूसरा विवाह किया था उसकी पत्नी!

बहुत ही कर्कश स्वभाव की थी जो हर वक्त उसे कष्ट देती थी।

उसका पति जब इस प्रकार देवी को एक सुंदर राजकुमार के साथ देखता है तो लज्जित हो जाता है और कहता है कि मैंने मूर्खता की तुम्हें छोड़कर। तुम तो महान सुंदरी हो।

देवी सब कुछ देखती है और वहां से आगे बढ़ जाती है। अपने मायके पहुंचती है। उसके परिवार वाले उसे देखते हैं और कहते हैं पुत्री।

क्या यह दामाद है?

हमारे साथ रुको हमें सेवा का मौका दो।

उन्हें भी देवी देखती है और फिर वहां से आगे बढ़ जाती है। तब वह राज कुमार गंधर्व। उसे कहता है। तुम्हारे कहने पर मैं तुम्हारे साथ यहां तक आया हूं। अब तुम्हें भी मेरी बात माननी होगी। यह पृथ्वी स्वार्थ से भरी हुई है।

हरेक का अपना अपना निजी स्वार्थ है। इसीलिए यह दुनिया तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं है। चलो मेरे साथ मैं तुम्हें गंधर्व लोक ले चलता हूं जहां तुम मेरे साथ सदैव विद्यमान होगी। इसके लिए सिर्फ तुम्हें अपना यह शरीर!

माता को समर्पित करना होगा और तुम मेरे साथ आत्मा स्वरूप में चलोगी।

तब देवी ने तपस्या करते हुए अपने शरीर को मिट्टी में मिला दिया और स्वयं उस गंधर्व के साथ विवाह करके स्वर्ग में चली गई।

इस प्रकार इस कथा का समापन होता है। जहां पर? हम इस संसार के रहस्य को समझ पाते हैं कि यह संसार स्वार्थ से भरा हुआ है। सभी को अपना अपना स्वार्थ दिखता है और इसके लिए वह दूसरे का उपयोग करता है। इसीलिए हमें इस संसार से निकलकर मोक्ष की राह पकड़नी चाहिए।

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