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यक्षिणी का प्रेम सिद्धि और रक्षा

यक्षिणी का प्रेम सिद्धि और रक्षा

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक विचित्र अनुभव को लेंगे जो कि यक्षिणी के प्रेम और सिद्धि को दर्शाता है तो चलिए शुरू करते हैं और पढ़ते हैं इनके पत्र को। नमस्ते गुरुजी, मैं आपको यह अनुभव भेज रहा हूं। यह कहीं और प्रकाशित नहीं किया गया है और दर्शकों से मेरी विनम्र निवेदन है कि? आप सभी इस बात के लिए मुझे दोषी नहीं ठहरायेंगे यह सत्य है अथवा असत्य है क्योंकि मुझे यह अनुभव मेरे ही गांव के कुछ व्यक्तियों ने बताया है। मेरी इच्छा हुई कि गुरुजी के पास ऐसा अनुभव मैं अवश्य भेजूं। साथ ही गुरुदेव से प्रार्थना है कि आप मेरा कोई भी अनुभव जो प्रकाशित करें, उसे सार्वजनिक ना करें क्योंकि मेरी हैंडराइटिंग भी अच्छी नहीं है। गुरु जी अब देर न करते हुए इस अनुभव के विषय में बताता हूं जो कि मेरे गांव में कई सौ वर्ष पूर्व घटित हुआ था। मैं अभी कुछ ही दिन पहले अपने गांव में यूं ही घूम रहा था कि तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति जिनके हाथ में डंडा पकड़कर वह चलते हैं। उनका डंडा नीचे गिर गया था। मैंने उनकी हेल्प की और उन्हें जाकर एक पेड़ के नीचे बैठा दिया।

तभी वह कहने लगे। अरे तूने मुझे कैसी जगह बैठा दिया है चल मुझे यहां से ले चल। वह हमारे गांव का एक प्राचीन बरगद का पेड़ है। तब मैंने कहा, यहां बैठने में क्या समस्या है तो उन्होंने कहा कि कुछ विशेष दिनों पर यहां नहीं बैठना चाहिए। तब मैंने उनसे पूछा, ऐसा क्या इतिहास है इस जगह का तब उन्होंने बताया इस जगह? इस विशेष दिन जो कि मंगलवार का दिन था। यहां एक यक्षिणी आया करती थी और वह बहुत ही शक्तिशाली थी। तब मैंने उनसे पूछा, इसीलिए आप इस जगह के लिए मना कर रहे मैंने तब आपके चैनल के विषय में उन्हें बताया और कहा कि अगर आपके पास इस जगह से जुड़ी हुई कोई विशेष घटना की जानकारी हो तो मुझे बताइए मैं गुरु जी को पत्र लिखकर भेज दूंगा। तब उन्होंने कहा, सुनो सबसे पहले यहां से दूर चलते हैं। फिर मैं तुम्हें इस जगह के बारे में विस्तार से बताऊंगा।

वह एक गांव में जहां पर चाय की दुकान है वहीं पर जाकर बैठ गए क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग लोग उसी स्थान पर बैठकर गप्पे मारते थे। यह स्थान पर मैं भी उनके साथ जाकर खड़ा हो गया। उन्होंने चाय मंगवाई और गांव के अन्य कई सारे बुजुर्ग व्यक्तियों के पास बैठकर उन्होंने कहा कि ज्यादातर नए बच्चे उस बरगद के पेड़ के विषय में नहीं जानते हैं। चलिए आप लोगों को इसके बारे में बताया जाए। उनकी। बात को सुनने के लिए धीरे-धीरे वहां पर काफी भीड़ भी इखट्टा हो गई थी क्योंकि वह उसी गांव की पुरानी घटना को बताने जा रहे थे। तब उन्होंने कहा, मेरे भी दादा परदादा से मैंने यह बातें सुनी है। लेकिन अभी भी हम इस बात को मानते हैं। तब उन्होंने बताया कि कई सौ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति एक साधु महाराज से दीक्षा लेकर इसी पेड़ के नीचे बैठकर। यक्षिणी नाम की एक शक्ति की साधना शुरू किया था और वह इसी जगह प्रत्येक मंगलवार को मुर्गे की बलि भी देता था। इसीलिए कोई भी मंगलवार के दिन कुछ पेड़ के नीचे नहीं जाता है।

1 दिन इसी प्रकार उसे। जब वह मंगलवार को बलि दे रहा था। एक सुंदर सी स्त्री वहां पर आई। उसने कहा, तूने मेरे लिए मुर्गी काटी है। मुझे यह खानी भी तो है तब वह व्यक्ति बोला कि नहीं, यह मैं यहां पर देवी को देता हूं जो कि इस वृक्ष में निवास करती है तुम इस भोजन को नहीं कर सकती। तब वह कहने लगी नहीं। मुझे यह भोजन दो क्योंकि हो सकता है। मैं वही शक्ति हूं जिसकी तुम रोज पूजा करते हो। पर उस व्यक्ति को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ उसने उस स्त्री को कहा। तुम अगर वही हो तो मुझे धन दो तो उसने कहा ठीक है। मैं तुम्हें धन देती हूं और तभी ऊपर से सोने की एक थैली नीचे गिर गई। तब उसने उस सोने को उठाकर! चेक किया तो वास्तव में वह सोने के ही सिक्के थे। तब वह कहने लगी। अरे अब तो मुझे मुर्गे की बलि दे। अब मुझे मुर्गा पका कर खिला। तब उस व्यक्ति ने कहा ठीक है। मैंने यह जो मुर्गे की बलि दी है, अब मैं इसे तुम्हें पकाकर खिलाता हूं। फिर वह व्यक्ति वहीं पर लकड़ी जलाकर उसमें बर्तन को रखकर मुर्गे को पकाने लगा और फिर थोड़ी देर बाद जब अच्छी तरह मुर्गे की सब्जी बन गई तो फिर उसने उस स्त्री को खाने के लिए दिया।

वह जैसे ही अपने मुंह में उस मुर्गे को खाने ही वाली थी कि तभी वहां पर। बड़ी जोर से हवाएं चलने लगी और कुछ डाकू लोग वहां पर दौड़ते हुए आए। उन्होंने उस स्त्री को मार दिया और उस पर तलवार चलाकर उसे काट डाला। यह व्यक्ति घबरा गया। इसे कुछ समझ में नहीं आया और उन डाकू ने कहा, जितना भी तुम्हारे पास सोना चांदी है मुझे दे दो नहीं तो यही हाल तुम्हारा भी होगा।

यह देखकर वह व्यक्ति घबरा गया। उसने वहां सोने की थैली उस डाकू को दे दी। तब डाकू ने कहा, इतने से काम नहीं चलेगा। अब हम तेरा सर भी साथ लेकर जाएंगे। वह अत्यंत ही घबरा गया और भागकर उस बरगद के पेड़ को पकड़ लिया। कि तभी वहां पर चमत्कार घटित हुआ डाकू जो कि उस व्यक्ति को मारने के लिए आ रहे थे।

तभी उन्होंने देखा एक स्त्री पेड़ से नीचे उतरी और उसने इस व्यक्ति को अपने कंधे पर उठाकर एक हाथ से लंबे भाले का इस्तेमाल करके उस भाले से सभी डाकुओ को जान से मार दिया। कि तभी अचानक से उस व्यक्ति ने देखा कि जिस स्त्री को इन डाकुओं ने मारा था वह भी उठ कर जिंदा होकर वहां से भागने लगी। और तब इस स्त्री ने जिसने इस व्यक्ति को कंधे पर उठाया था, नीचे रखा और कहने लगी कि मैं आज से तुम्हारी पत्नी हूं और तुम्हारी साधना से प्रसन्न होकर के ही मैं आ जाती। लेकिन फिर भी मैंने तुम्हारी परीक्षा ली। आज तुम्हारे प्राणों पर संकट था, इसलिए मुझे अपना स्वरूप धारण करके आना पड़ा। लेकिन क्योंकि तूने इस स्थान को अपवित्र किया है, साधना भंग की है इसलिए मैं इस मंगलवार को इस स्थान को श्रापित करती हूं और तब से वह स्थान श्रापित हो गया।

इसीलिए मंगलवार के दिन उस बरगद के पेड़ के नीचे कोई जाकर बैठना नहीं चाहता।

यही थी उस सच्चे यक्षिणी के प्रेम की सिद्धि और रक्षा की कहानी जो उस व्यक्ति की पत्नी बन कर उसके साथ रही थी और फिर वह दोनों उस गांव से हमेशा के लिए गायब हो गए थे। क्या हुआ उनके साथ कोई नहीं जानता। लेकिन यक्षिणी के उस श्राप को आज भी लोग जानते हैं इसलिए उस स्थान पर मंगलवार के दिन कोई भी नहीं रुकता है।

तो गुरु जी यह थी उस स्थान की एक सत्य घटना मेरा यह प्रश्न है। गुरुजी कि आखिर वह दूसरी स्त्री कौन थी जिसने उसे धन दिया और वहां से फिर भागने की कोशिश की। धन्यवाद सभी दर्शकों को, जिन्होंने मेरी इस कथा को सुना है और विशेष रूप से धन्यवाद गुरु जी का जिनके श्री मुख से हमें ऐसे ही अनुभव सुनने को मिलते रहते हैं। प्रणाम गुरुजी!

सन्देश- देखिए यहां पर इन्होंने जो अनुभव भेजा है, इसमें मैं बता दूं कि यह जो दूसरी स्त्री थी, यह एक पिशाचिनी थी और यह पिशाचीनी साधना का फल लेने के लिए। अपनी जो ऊर्जा है उसका इस्तेमाल करके वहां पर प्रकट हो गई थी क्योंकि वह यह बात जान रही थी कि यक्षिणी जल्दी नहीं आने वाली लेकिन अगर इसको दिया गया भोग मैं घर ग्रहण कर लेती हूं तो हमेशा के लिए इसकी पूजा का जो भी फल है, वह मुझे प्राप्त हो जाएगा। इसीलिए उसने धन भी दिया था और जो डाकू आए थे जिन्होंने उस स्त्री का वध किया, वह भी उसी के ही पिशाच थे जो पिशाच इसलिए आए थे ताकि।वह अपनी माया से इस व्यक्ति को भ्रमित कर सके और इसकी बलि लेकर इसकी सारी पूजा का फल स्वयं प्राप्त कर लें क्योंकि भोग तो वह पिशाचिनी को दे ही चुका था।
इसी कारण से ऐसा अनुभव घटित हुआ लेकिन यक्षिणी जो कि उस वृक्ष में निवास करती थी, प्रसन्न हो गई और आकर उसने। लंबे समय से हो रही साधना को पूर्ण किया और उस व्यक्ति को सिद्धि प्रदान कर उसकी पिशाचिनी और उसकी सेना से रक्षा की थी तथा आज का अनुभव अगर आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

https://youtu.be/uDr_fCOSMCY

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