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यक्षिणी माँ स्वरूप में पूजा किंतु पत्नी रूप में आना

यक्षिणी माँ स्वरूप में पूजा किंतु पत्नी रूप में आना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग एक बार फिर से रतिप्रिया यक्षिणी की साधना का अनुभव प्रकाशित कर रहे हैं। दर्शकों के बीच इस यक्षिणी को लेकर बहुत सारे प्रश्न और अनुभव आते रहते हैं। इसीलिए आज एक बार फिर से इस यक्षिणी की साधना से संबंधित एक अनुभव जो हमको प्राप्त हुआ है, उसी के बारे में जानेंगे और साथ ही कुछ प्रश्नों को भी लेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं आज के इस अनुभव पत्र को पढ़ना।

ईमेल पत्र-गुरुदेव को सादर चरण स्पर्श एवं धर्म रहस्य के दर्शकों को नमस्कार मेरा अनुभव मै धर्म रहस्य चैनल को भेज रहा हूं। इसके अलावा कोई अन्य जगह नहीं भेजा जाएगा। गुरुदेव मैं यहां पर अपनी पहचान छुपा रहा हूँ । फिर भी एक सामान्य परिचय के तहत में छत्तीसगढ़ का निवासी हूं एवं छत्तीसगढ़ शासन के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हूं। गुरुदेव मैंने सन 2002 में गुरु श्रीमान डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी से दीक्षा प्राप्त की थी। उसके बाद कुछ साधनाएं भी की थी। दीक्षा लेने के बाद जीवन में बदलाव आए जो कि मेरे प्रति सकारात्मक रहे थे और इस तरह 10-12 वर्ष बीत गए। इस बीच मेरी शिक्षा समाप्त कर नौकरी के लिए मध्यप्रदेश के एक शहर में गया वहीं

फिर बाबा महाकाल की नगरी जाने का भी सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। उज्जैन जाकर अध्यात्म की तरफ झुकाव होने लगा और मैं कभी-कभी उज्जैन में रात रुक कर एक दिवसीय साधना बाबा महाकाल भैरव के मंदिर के समीप साधना कर लिया करता था। उसके कुछ वर्षों के बाद मेरी सरकारी नौकरी लग गई और मैं घर पर आ गया। यहां भी कुछ साधनाएं और हवन प्रतिदिन करने लगा। मन में यक्षिणी साधना की तरफ काफी झुकाव पहले से ही था। पर कभी भी मैंने यह साधना नहीं की थी। घर में आने के बाद आर्थिक स्थिति थोड़ी खराब होने लगी थी। इसलिए मैंने दैनिक साधना में धनदा रतिप्रिया यक्षिणी के मंत्रों को जपना एवं होम और आहुति देना शामिल कर लिया। ऐसा करते करीब 2 से 3 वर्ष बीत चुके थे और मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी थी। फिर भी और अनुकूलता के लिए मैं इस गुप्त नवरात्रि में धनदा रतिप्रिया यक्षिणी की साधना संपन्न की प्रथम दिवस तो बहुत ही अच्छा लगा। द्वितीय एवं तृतीय दिवस साधना में मन नहीं लग रहा था। चौथे दिन ऐसा एहसास हुआ कि कोई शक्ति आई है और मुझे घूर रही है। मेरे बाल नोच रही है। इस तरह अष्टमी का दिन भी आ गया और अष्टमी के दिन भी थोड़ी, हलचल थी मां काली की प्रतिमा पूजन कर स्थापित है। साधना के दौरान वहां खड़ग नीचे गिर गई जिसे मां ने अपने हाथ में ले लिया था। नवमी के दिन दशांश हवन किया। इस दौरान भी मन में आनंद व्याप्त था। साधना समाप्ति के साथ में रात को मुझे एक सपना आया और मेरी पत्नी को एक मकान में मैं बैठे हुए देखता हूं और हम किसी का इंतजार कर रहे थे। शायद यक्षिणी का ही इंतजार कर रहे थे कि वह आएगी और हमें धन प्रदान करेगी। उस धन से हम अपने कर्मों से।

तो ठीक हो जाएंगे। इसी बीच एक सफेद रंग के कपड़ों में एक लड़की बरामदे में दिखती है। हम कहते हैं कि यक्षिणी आ गई है। इसके बाद वह लड़की बगल के कमरे में चली गई। तब मैं और मेरी पत्नी बरामदे में आकर मां धनदा मां रतिप्रिया कहकर पुकारने लगे। करीब 8 से 10 बार आवाज देने के बाद वह लड़की बाहर आई और वह मुझसे कहने लगी। इतनी देर से माता स्वरूप में में ही मुझे पुकार रहे हो। क्या पत्नी रूप में मुझे नहीं बुला सकते। मैंने पूछा, मैं समझा नहीं। आप क्या कह रही हैं उसने फिर कहा। मुझे पत्नी रूप में नहीं बुला सकते हो क्या और बगल में मेरी पत्नी को देखकर वह सकुचा गई और वह लड़की मेरी पत्नी के रूप को धारण कर ली। गुरुदेव इसके बाद मेरी नींद खुल गई। मैं यहां पर एक बात स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं कि यक्षिणी की साधना मैंने माता स्वरूप में की थी। गुरुदेव यह मेरा सपना और साधना अनुभव है। अब मैं कुछ प्रश्न आपसे पूछना चाहता हूं। कृपया मार्गदर्शन करें। सफेद वस्त्रों में आई वह लड़की यक्षिणी ही थी या अन्य कोई शक्ति थी। क्या यक्षिणी मुझसे पत्नी रूप में ही सिद्ध होना चाहती है क्योंकि मेरा विवाह हो गया है और दो संतानें भी हैं तो भविष्य में किसी प्रकार से मेरे परिवार को साधना की वजह से कष्ट तो नहीं भोगना पड़ेगा। गुरुदेव मार्गदर्शन करे और बताएं। आगे मैं क्या करूं। अंत में पुनः आपको प्रणाम एवं धर्म रहस्य के सभी मित्रों को नमस्कार गुरुदेव आप चाहे तो इसका वीडियो बना सकते हैं।

संदेश-तो देखिये यहां पर इनके जीवन में जब उन्होंने लगभग 2 वर्षों तक इस यक्षिणी शक्ति की आराधना किसी भी प्रकार से की। उसका लाभ भी इनको मिलता दिखा है लेकिन मैं यह बात बहुत पहले ही सभी को बता चुका हूं कि जैसा यक्षिणी या अप्सरा या योगिनी का स्वरूप होता है और उसे जो सबसे ज्यादा पसंद होता है उसी रूप स्वरूप में आप अगर उस शक्ति की आराधना करेंगे तो जल्दी सिद्धि मिलती है और वह शक्ति प्रसन्न भी होती है। रती का मतलब होता है प्रेम, संभोग और प्रेम से जुड़े हुए आनंद। इन सभी चीजों को प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला ही प्रतिक्रिया जैसी यक्षिणी को पुकारता है और उसकी साधना करता है। अब क्योंकि आपने इनकी साधना माता के रूप में की जिससे वह पसंद नहीं कर रही थी क्योंकि उनका जो मूल स्वरूप है, वह प्रेम का रूप है। प्रेम देना और इसी के माध्यम से शारीरिक सुख देना इत्यादि इनका मूल कर्म है तो अपने मूल कर्म के विरुद्ध वह कैसे जा सकती थी। इसीलिए उसने पत्नी रूप आपकी धारण किया और बताया कि वह पत्नी रूप में ही सिद्ध होना चाहती है । लेकिन प्रश्न आपने पूछा है कि अब जब कि आपका विवाह हो चुका है। तो आप इन्हें कैसे सिद्ध करेंगे? पत्नी स्वरूप में इसका एक उदाहरण नही कई सारे उदाहरण है या तो आप इन्हें पत्नी स्वरूप में प्राप्त कर इन्हे वचन में बांध लें और कहे कि मेरी पत्नी होते हुए भी आप दूसरी पत्नी के रूप में मेरे साथ रह सकती हैं और मेरी पत्नी का अधिकार कभी नहीं छीनेंगी। उसे और मेरी संतानों को कभी कोई कष्ट नहीं होने देंगी। इसके अलावा दूसरा तरीका है जो कि अधिकतर ग्रहस्थ लोग नहीं कर पाते हैं। वह है कि आप इस शक्ति को पत्नी रूप में सिद्ध करें और अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध सदैव के लिए त्याग दें।

दो ही मार्ग आपके पास हैं पहला मार्ग सरल है, लेकिन सिद्धि के दिन आपको उनसे वचन अनिवार्य रूप से लेना होगा। ऐसे कई उदाहरण है जब एक पुरुष की कई सारी पत्नियां शक्ति के रूप में सिद्ध हुई है। स्वयं रावण और इनके कुल के बहुत सारे राक्षसों के पास भी ऐसी ही शक्तियां थी। जहां पर कई सारी यक्षणी अप्सराएं इत्यादि पत्नी रूप में ही सिद्ध थी तो उन्होंने उन शक्तियों से वचन ले रखा था। इसके अलावा आपका गुरु मंत्र से दीक्षित होना और आपकी पत्नी का भी संतानों सहित गुरु मंत्र से दीक्षित होना अनिवार्य है। तभी सभी की रक्षा हो सकेगी। आगे किसी कारण से कभी कोई गलती होने पर कोई यक्षिणी क्रुद्ध हो जाती है तो इसलिए अगर आपने किसी महामंत्र की गुरु दीक्षा नहीं ली है तो आप ले करके उसके बाद ही साधना शुरू करें। साथ में आपकी पत्नी और बच्चों को भी गुरु मंत्र का जाप हमेशा करना चाहिए। तभी इस प्रयोग को आगे बढ़ाइए और इस सिद्धि को पूरी तरह से प्राप्त कीजिए। तभी वह आपकी पूर्ण मदद कर पाएगी क्योंकि वह अगर माता रूप में आपकी मदद पूरी तरह कर पाती तो अब तक कर चुकी होती। उसे आपकी पूरी शक्तियां चाहिए और वह केवल पत्नी स्वरूप में ही संभव है।

तो यह थे आज के कुछ प्रश्न और इनका एक अनुभव, नये साधकों के लिए यह अनुभव! अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि वह समझ सकते हैं कि यही परिस्थिति उनके लिए भी कई साधनाओ में आ सकती है।

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