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यक्ष बेताल साधना 2 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक आपने बेताल साधना में जाना कि किस प्रकार से एक व्यक्ति अपने पिता से प्रश्न करता है और बेताल की सिद्धि के बारे में जानने की कोशिश करता है। वह जंगल में जाते हैं। उनके ऊपर कुछ चीजें गिरती है जिसकी वजह से वह भयभीत हो जाते हैं। आगे जानते हैं क्या क्या हुआ था?

नमस्कार गुरु जी, जंगल में प्रवेश करके उस बेल के वृक्ष के नीचे जब मुझ पर पत्ते गिरे तो मैं घबरा गया था किंतु जब मैंने ऊपर देखा तो एक बंदर पत्तों को गिरा रहा था। मुझे लगा कि मैं यूं ही डर गया हूं। मुझे डरना नहीं चाहिए था। पर क्या करें? जब भी साधना करने चलो तो कुछ ना कुछ चीजें भयभीत कर देती हैं। और वही मेरे साथ हो रहा था। मुझे अभी भी ऐसा महसूस होता था कि जैसे मेरे पीछे कोई खड़ा है। पर मैं डरा नहीं। मैंने सोचा, मुझे यह कार्य तो करना ही है। पिता ने पहले ही बता दिया था कि भय से सामना होने से घबराना नहीं। मैंने उस पेड़ और उसके बाद फिर अगले पेड़ से उनकी जड़ें एकत्रित कर ली।

उसके बाद पिताजी की बताई विधि से आगे उस कार्य को संपादित किया, इसके बाद फिर अब मेरी बारी थी साधना शुरू करने की। साधना मे मैंने सोचा घर में ही करूंगा। पिताजी से मैंने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, हमारा पुश्तैनी मकान खाली पड़ा है और वहां कोई रहता भी नहीं जाओ। उसी घर में जाकर यह साधना करो। याद रखना जिस जगह पर तुम यह साधना करोगे उसके बाद उसी जगह पर सो जाया करना ताकि तुम्हें अनुभव प्राप्त हों। सिद्धि प्राप्त करने का उद्देश्य दिमाग में मत रखना तो शायद तुम्हें सिद्धि भी मिल सकती है। मैंने उनकी बात को मान लिया और मैं उस अकेले घर में जाकर के सारी व्यवस्था के साथ साधना शुरू कर दिया, उस शक्तिशाली बेताल की साधना को।

पहले दिन मै साधना करने बैठा ही था कि तभी लाइट चली गई। सामने जल रहे दीपक से अब मैं क्या करूं? पर मैंने सोचा डरने की कोई जरूरत नहीं। भला जो चीजें होती ही नहीं है उनसे क्यों डरना? वैसे भी आज तक किसी को भूत तो दिखा नहीं। पर? टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रोग्रामो ने मेरे दिमाग को खराब कर रखा था। मुझे लगता था अभी इधर से कुछ निकलेगा। उधर से कुछ निकलेगा। ऐसा कुछ होता नहीं है। दिमाग का सारा यह बहम होता है, तो यही सोचकर मैं डर नहीं रहा था। पर अंदर से तो कोई कितना भी कहे डरता नही है पर दर तो सबको लगता है । मैं साधना करने में व्यस्त हो गया। मंत्र जाप करता चला जा रहा था। अभी करीब एक ही माला बाकी थी कि अचानक से मेरे दरवाजे पर खटखट होने लगी। खटखट बंद ही नहीं हो रही थी। मैंने कहा साधना बीच में छोड़कर उठके देख़ू क्या? यह कौन आ गया है। पिताजी ने तो कहा था, यहां कोई नहीं आता। पर यहां इस वक्त कौन आ गया?

मैंने सोचा बीच में साधना छोड़ना ठीक नहीं। इसलिए मैं साधना करता रहा, वह खटखट होती रही साधना चलती रही। समय समाप्त होने के बाद जैसे ही मैंने पूजा को संपन्न किया। मैं तुरंत दरवाजे की ओर गया और यह देखने के लिए कि आखिर इतनी देर से खटखट कर कौन रहा है पर आश्चर्य की बात? जो घटित हुई वह यह थी कि जैसे ही मैं दरवाजे के पास पहुंचने वाला था। खटखट बंद हो गई थी। मैंने दरवाजा खोला चारों तरफ यानी हर तरफ मै घूमता रहा। मैंने देखा वहां कोई नहीं था। तो किसकी है शरारत ? मैंने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं अकेले घर में मुझे कुछ करते और आवाज सुनने से कई लोग इस तरह की हरकतें मेरे साथ करने लगे हो।

मैंने सोचा चलो ठीक है। अगर किसी ने हरकत की भी है तो वह भी मैं पता लगा लूंगा और मैं साधना करने दोबारा अगले दिन बैठ गया। पिता ने मुझे यह बात समझा दी थी कि साधना के दौरान कुछ भी हो अपने साधना स्थल को नहीं छोड़ना। सुरक्षा कवच मंत्र को उन्होंने बताया था। मैंने लगा लिया था। मैं निर्भीक होकर दूसरे दिन करने लगा। दूसरा दिन एक बार फिर से वही हुआ गुरुजी दरवाजे पर खटखट, यह खटखट क्यों हो रही थी, मेरा दिमाग इससे खराब हो जाया करता था। मेरा ध्यान कम लगता था। पर पिताजी ने कहा था अपने ध्यान को भटकने मत देना। सो मैंने उसकी खटखट पर ध्यान नहीं दिया।

मैंने साधना पूरी कर लेने के बाद जाकर देखा तो फिर से वहां कोई नहीं था। पर इन सब चीजों से बड़ा डर लगता है। मैंने भी सोचा अच्छा तो यह बात है। मैंने पतले पतले धागे वहां बांध दिए क्योंकि साधना रात्रि में होती थी। इस वजह से मैंने जहां पतले पतले धागे बांधे थे, उनका दिखना रात को नामुमकिन सा था। उनसे छोटी-छोटी तश्तरियाँ बंधी हुई थी तो अगर कोई आकर। दरवाजा खटखटाने की कोशिश करेगा तो अबकी बार तश्तरियाँ जरूर बोलती। वहां पर मैंने एक सिस्टम बना रखा था कि एक छोटा सा कैमरा लगा दिया था। अगर खटखटा हो। तो उन धागों से लिपटी हुई वह आवाज करेंगी, उस आवाज से ऐसा सिस्टम बंधा था।

अगले दिन एक बार फिर से खटखट होने लगी। वह खटखट तब तक होती रही जब तक मैं साधना करता रहा। पर मैंने कुछ बात पर ध्यान नहीं दिया। अब जब मैं उठकर साधना पूरी करने के बाद उसी स्थान पर पहुंचा। तो मैंने देखा था, धागे बंधे हुए हैं। ना ही किसी का फोटो खींचा ना तश्तरियों से आवाज आई। धागे वैसे के वैसे ही बंधे थे। अब मुझे कुछ डर लगने लगा। क्योंकि यह बात बिल्कुल पहले ही बता दी गई थी कि यह सब चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं। इन चीजों के बारे में बहुत बड़े रहस्य छुपे हुए हैं। पर मैं कुछ बातें आपको नहीं बता सकता।

मैं साधना करते-करते बेहोश था हो गया। कुछ बेहोशी की अवस्था में सामने मुझे एक भयंकर राक्षस आता दिखाई पड़ा। जोर जोर से चिल्लाता हुआ। मेरी ओर आ रहा था कि मैं तुझे मार डालूंगा, भाग जा यहां से। पर मैं उसे देख कर ही इतना डर गया कि भागने की तो बात छोड़िए । यह सब बातें मेरे दिमाग में कुछ आई ही नहीं और मैं यह सोचता रहा कि अब तो मेरी मौत आ चुकी है। अब मरना ही है तो डरना क्या? और वह दौड़ता हुआ आया और उसने मेरी छाती पर बहुत जोर से मारा। मैं दर्द से चिल्ला उठा। वो मारता रहा, मैं चिल्लाता रहा। मारते मारते मुझसे कहने लगा क्यों मुझे बुला लिया तूने? तो मैंने कहा, आप मेरी सहायता कीजिए। आप कौन हैं? मेरी मदद कीजिए।

मुझमे इतनी सामर्थ्य नहीं है कि मैं आपकी सिद्धि कर पाऊं। क्योंकि वह इतनी तेजी से मार रहा था। ऐसा लग रहा था, मेरी छाती फट जाएगी। उस दर्द को मैं बता नहीं सकता। ऐसा था जैसे शरीर काट दिया गया हो और उसके बाद अपने शरीर को देखकर दर्द से बिलखते हुए इंसान के मन में जो भाव होते हैं, जो दर्द होता है। बिल्कुल वैसे ही मेरे साथ था। मैं चिल्लाते हुए उससे कहा, तुम जो भी हो चले जाओ, मुझे सिद्धि नहीं चाहिए। इस पर वह हंसने हुए कहने लगा कि ठीक है क्या तू मुझे यह वचन देता है तब मैंने कहा हां, मैं तुझे वचन देता हूं। तब उसने कहा कि अब तो मानता है ना कि मैं होता हूं। उसने यह कहा और मैंने कहा हाँ बिल्कुल! तुम्हारी बात में आज मान गया, तुम सच में हो, तुम जो भी हो, मैं नहीं जानता। अपना परिचय मुझे दे दो।

तब उसने कहा कि मैं बेताल यक्ष हूं। मैं आश्चर्य से भर गया। मैंने सोचा, यह मैंने क्या किया, मैंने तो अपनी सिद्धि गवां दी। तब मैंने उससे कहा कि अब मैं क्या करूं तो कहने लगा। तू यह सब बातें भूल जाएगा। लेकिन तुझे याद रखने के लिए यही स्मरण तुझे हमेशा याद दिलाएंगे कि हम लोग होते हैं, हमारी शक्तियां भी होती हैं। क्योंकि तूने मेरी साधना की है इसलिए मैं? तेरी हमेशा सहायता करता रहूंगा। पर मेरी पूर्ण सिद्धि तू प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि तुझ में इतनी क्षमता ही नहीं है। और हां जब तू उठेगा तब तो यह सत्य जान जाएगा कि मुझ में कितनी शक्ति है? आश्चर्य की बात गुरुजी! मैंने जो कुछ देखा था वह एक सपने जैसा था। लेकिन जो सबसे बड़ा आश्चर्य मुझे हुआ वह यह था। कि जब मैंने अपनी आंखें खोली तो पिताजी सामने थे।

उन्होंने कहा बेटा उठ जा बेटा। मैंने आंखें खोली। मै हतप्रभ था। मुझे पता नहीं चला था कि मैं कब उस मकान से साधना करके लौट आया और अपने घर में लेटा हुआ था। मेरे पिताजी ने मुझसे कहा हो गई तेरी साधना! आखिरी दिन तूने साधना क्यों नहीं की तब मैंने उनसे कहा, ऐसा नहीं है। पिताजी पर मैं अब कभी इन बातों पर शक नहीं करूंगा कि यह सिद्ध नहीं होती है। यह सत्य तभी जान सकते हैं जब घटित होता है उसी तरह जैसे मौत है। मौत जब आती है तभी आदमी देख पाता है कि मौत आ गई। उससे पहले उस पर वह कभी यकीन नहीं करता। बेताल ने सिद्ध कर दिया था कि उसमें बहुत शक्ति है वरना मैं साधना करते करते अपने घर कैसे पहुंच गया? और मैं क्यों चिल्ला रहा था जब पिताजी मेरे सामने आए और उन्हें मुझे जगाया, तब मैं जागा।

उन्होंने सोचा कि मैं साधना के लिए गया ही नहीं, पर यह सच नहीं है। आखिरी दिन की साधना करने मैं उस घर में गया था। वहां मेरे साथ यह सब कुछ घटित हुआ। वही साधना मैंने आज गुरु जी आपको भेजी है, यह अनुभवजन्य है और सच्ची है। अब भले ही इसे कोई माने अथवा नहीं, लेकिन यह सत्य है। मैं इस साधना में मैं यह स्वीकार करता हूं। लेकिन यह विश्वास के साथ कहता हूं कि बेताल यक्ष होता है और उसकी सिद्धियां भी हैं। उसकी शक्ति से मैं साधना करते करते अपने घर तक पहुंच गया। इसका मुझे कोई भी भान नहीं था।

मैं सभी दर्शकों को प्रणाम करता हूं और कहता हूं कि आप सब लोग अगर इन बातों में यकीन नहीं करते हैं तो भी कभी किसी शक्ति का मजाक मत उड़ाइएगा और अगर इस क्षेत्र में इस रहस्य को जानना चाहते हैं। तो किसी अच्छे गुरु से जुड़ कर। जैसे कि हमारे यह गुरुजी हैं। ठीक उसी तरह साधना करके ही इन शक्तियों को जाना जा सकता है। इन शक्तियों को दुनिया को दिखाया नहीं जा सकता। लेकिन अपने अनुभव में आप सब कुछ जान सकते हैं। नमस्कार गुरु जी!

संदेश – यहां पर इन्होंने अपनी इस साधना के विषय में संपूर्ण ज्ञान दिया है। किस प्रकार से उनके साथ क्या अनुभव घटित हुआ और यह सिद्धि आते आते उन्हें रह गई। तो सिद्धि करना और सिद्धि प्राप्त कर लेना अलग-अलग बातें होती हैं। नीचे इन्स्टामोजो लिंक दिया है अगर आप इस साधना को buy करना चाहे तो कर सकते हैं ।धन्यवाद

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