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यातुधान आसुरी साधना और शक्तिपीठ कथा भाग 2

यातुधान आसुरी साधना और शक्तिपीठ कथा भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । प्राचीन मठ मंदिरों की कहानी में हम यातुधान नाम राक्षस और उससे जुड़ी माया के बारे में इस कहानी के माध्यम से जान रहे हैं । अभी तक आपने जाना कि किस प्रकार से यातुधान के राक्षस होते हैं । और यह एक ऐसी श्रंखला है राक्षसों की । जो मनुष्य पर हमला करते थे उनके निवास स्थानों पर हमला करते थे उनको मार डालते थे उनका कच्चा मांस खाते थे । उनकी शक्तियां जादूगरी वासना और माया रचने में बहुत ही ज्यादा समर्थ होते थे रात को घूमते थे । और अपने शिकार को बड़ी ही बेदर्दी से मार कर एक प्रकार की बलि देते थे । बड़े राक्षसों इसी प्रकार से उनका भोजन भी बनाकर वह खा जाते थे क्योंकि बलि देने के बाद उस शरीर को वो अपने लिए भी इस्तेमाल करते थे । यानी कि भोजन के रूप में तो यह बहुत ही शक्तिशाली राक्षस होते थे इनको यातुधान नाम से जाना जाता था इनका वर्णन ऋग्वेद में भी आया है । तो हम इसी कहानी में आगे जानते हैं कि किस प्रकार से यातुधान नाम के राक्षस की नजर है । वहा पर एक शक्तिपीठ के एक ऋषि थे जिनका नाम था रिजु था उनकी कन्या थी रेवती उस पर पड़ गई । क्योंकि रेेवती स्वयं पूर्व जन्म में एक योगिनी थी और उसने साकार रूप में जन्म लिया था । इस कारण से उसकी रश्मिओ को देख कर के यातुधान के उस राक्षस को बहुत ही ज्यादा आश्चर्य हो रहा था । उसकी उर्जा को प्राप्त करने के लिए बहुत ही ज्यादा व्याकुल था । ठीक वैसे ही जैसे कि कहीं दीपक जल रहा हो और पतंगे यानी कीड़े उसके नजदीक जा जा कर के उस दीपक की ऊर्जा को लेने की कोशिश करते हैं । लेकिन यह यातुधान जान गया कि उसके बस का नहीं है वह उस कन्या को खा सकें । तो लेकिन वो उसकी उर्जा को उसे प्राप्त करना चाहता था आखिर इसका क्या मार्ग हो सकता है उसने बहुत सोचा । तब उसने एक युक्ति लगाई और वह युक्ति कुछ इस प्रकार से थी कि उसने वहीं पर खड़े हुए एक छोटे से लड़के को जो उस कन्या से 6 साल बड़ा था । यानी कि 6 वर्ष की उम्र का वह रहा होगा उसका नाम था पिंडा था । पिंडा को देख करके उसने समझ लिया की पिंडा का इस्तेमाल किया जा सकता है ।

पिंडा के पास उसने अपने स्वरूप में पहुंचकर के एक सुंदर मनुष्य का रूप बनाया और उसे प्यार देने पहुंचा ।  पिंडा को देख कर के वह समझ गया था क्योंकि यह लड़का दिखने में सुंदर था निश्चित रूप से इसके माध्यम से वो रेवती को प्राप्त कर सकता है । रेवती को प्राप्त करने के लिए उसने पिंडा का इस्तेमाल करने की सोची । पिंडा को उसने अच्छा अच्छा भोजन कराने की बात कहकर अपने साथ कुछ दूर चलने को कहा । जंगल में जाने पर उसने पिंडा को बहुत सारी गोपनीय बातों को बताया पंडा ने कहा आप सिधवान कोई लगते है आप मेरी किस प्रकार से मदद कर सकते हैं । एक बालक से इस प्रकार कहने पर यातुधान ने कहा मैं तुम्हें अपनी शक्ति से जवान बना देता हूं और मैं तुम्हें जैसे ही जवान बनाऊंगा । तुम्हें मेरा एक कार्य करना होगा कार्य आवश्यक रूप से मेरा तुम जरूर करना मैं तुम्हें पहले भिन्न प्रकार की शक्तियां और चीजें प्रदान करूंगा । यातुधान ने अपनी माया रची और पिंडा को जवान कर दिया 18 वर्ष के बालक के रूप में पिंडा बदल गया । तब यातुधान ने कहा कि तुम्हारी यह 18 वर्ष की आयु सदैव रहने वाली है और जब तक मैं चाहूंगा तब तक तुम 18 वर्ष के ही बने रहोगे । आज तुम 6 वर्ष के हो अर्थात 12 वर्ष तक तुम 18 वर्ष के ही बने रहोगे । ऐसी शक्ति मैं तुम्हें प्रदान करता हूं लेकिन तुम्हें मेरा एक कार्य करना होगा । पिंडा ने कहा अवश्य मैं आपका कार्य करूंगा बताइए क्या कार्य करना है । तो उस यातुधान नाम के राक्षस ने कहा कि तुम्हें एक ऋषि की सेवा करनी है ऋषि का नाम रिजु उसके पास जाओ और उसकी सेवा करो । और सदैव उसके कार्यों को संपादित करते रहो मैं तुमसे जो जो चीजें मांगू जो जो चीजें प्राप्त करना चाहूं उन सब के बारे में तुम मुझे बताते रहना ।  मैं तुम्हें अपना एक मंत्र देता हूं तो इस प्रकार से उसने कहा ठीक है तो उन्होंने पूछा कि क्या मंत्र है । उन्होंने कहा ओम यंग यंग यातुधान आसुरी देव्य नमः ओम यंग यंग यातुधान आसुरी देव्य नमः ।

इस प्रकार जब तुम मंत्र का जाप करोगे केवल एक माला जाप करने पर मैं प्रकट हो जाऊंगा मेरे लिए तुम्हें साधना करनी होगी । फिर उस बालक ने पूछा जिसका नाम पिंडा था आपकी साधना में किस प्रकार से करू । तो यातुधान ने कहा सुनो बालक तुम्हें मेरी एक मूर्ति घने जंगल में बनानी होगी उस मूर्ति पर हार लाल रंग के फूलों से निर्मित चढ़ाना होगा । और उसके सामने बैठकर के ही एक गड्ढा खोदना होगा उसमें लकड़िया डालनी होगी उसको जलाना होगा और मुझे सूअरों की बलि काट काट कर के देनी होगी । मेरे मंत्र का एक माला जाप करने के बाद तुम्हें एक सूअर को रोज काट करके देना होगा इस पर पिंडा ने कहा कि मैं आपकी बात तो समझता हूं लेकिन मैं सूअरों को पकड़ना मेरे बस में नहीं है । इस पर यातुधान ने कहा मैं तुम्हें एक विद्या दूंगा उस विद्या से तुम आकर्षित हो करके तुम्हारी तरफ अपने आप ही सूअर चले आएंगे । और फिर तुम्हें एक भाले का प्रयोग करना होगा जिसको तुम उसके सिर पर मारना और फिर उसके सिर को छेद देना । मैं तुम्हें इतनी शक्ति देता हूं कि तुम आराम से हर कार्य संपन्न कर लोगे । इस प्रकार उसने एक जादुई भाला उस लड़के पिंडा को दिया साथ ही साथ बताया कि एक मंत्र गोपनीय मंत्र उसने कहा कि इस मंत्र का तुम जप तुम करोगे तो तुम्हारे नजदीक ही स्वयं ही सूअर चले आएंगे । इस पर पिंडा ने पूछा कि अगर किसी सूअर ने मुझ पर हमला किया तब क्या होगा । तो यातुधान ने कहा नहीं वह तुम्हारे वशीकरण में होंगे तुम उसके शरीर के साथ जो भी करना चाहोगे और जितनो के साथ करना चाहोगे तुम्हें कोई नहीं रोक पाएगा । यातुधान की बात सुनकर पिंडा बहुत खुश हुआ पिंडा ने कहा अब मेरे लिए क्या आज्ञा है । तब यातुधान ने कहा इस वृक्ष के नीचे अभी तुम खोदो पिंडा ने वहां पर खुदाई शुरू की और वहां से एक छोटा सा मटका उसे मिला उस मटके के अंदर सोने की बहुत सारी अशरफीया यानी कि सोने के सिक्के उसके अंदर मौजूद थे । उसने देखा तो खुश हो गया और कहा कि यह सब क्या है  ।

तब यातुधान नाम के असुर ने कहा कि तुम इसे लेकर घर जाओ और अपने माता पिता दो और कहो कि मुझे यह देव कृपा से मिला है मैं जो भी साधना करना चाह रहा हूं जो भी करूं मुझे किसी प्रकार कोई रोके नहीं कोई टोके नहीं । मैं इसी प्रकार आपको धन वगैरह देता रहूंगा और मुझे एक ऋषि की सेवा करनी है जिनका नाम है रिजु ।  यातुधान इस प्रकार से कह कर के वहां से गायब हो गया और बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता में वहा से वह चला गया । यातुधान ने सोचा कि उसकी योजना पूरी तरह से सफल रही है यातुधान ने उस बालक को ना खाया बल्कि अपने किसी विशेष प्रयोजन के लिए करने का उसने जो निर्णय लिया था उसमें वह सफल हो रहा था । इधर पिंडा नाम का वह लड़का जो केवल 6 वर्ष का था अब इस वक्त 18 वर्ष का हो गया था । जब वह अपने घर पहुंचा तो अपनी मां के चरण छूए उसको देख कर उसकी मां बोली तेरी शक्ल तो बिल्कुल पिंडा जैसी लगती है पर वह तो बहुत छोटा है तू कौन है । पिंडा ने कहा मां में पिंडा ही हूं मैं 18 वर्ष का हो गया हूं इसपर उसकी मां ने कहा क्यों मजाक करता है बालक । पिंडा तो मेरा बहुत छोटा था वह केवल 6 वर्ष का था तू यहां पर आया है तो किस प्रकार से । मुझे तो तेरी उम्र मुझे 18 या 19 वर्ष की लगती है । पिंडा ने कहा माता आप चाहो तो सारे रहस्य मुझसे पता कर सकती हो जान सकती हो मुझ पर एक देव की कृपा हुई है । मुझे एक व्यक्ति मिले थे मुझे लगता है वह पूरी तरह से देवता ही थे क्योंकि उन्होंने मुझे भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियां और भिन्न-भिन्न प्रकार की देवीय उर्जा प्रदान की हैं उनकी वजह से ही मेरी उम्र 18 साल की हो गई है । उसकी मां आश्चर्य में उसको देखती है और अंदर से उसके पिता को आवाज देती है ओ पिंडा के पिता जरा बाहर आईए यह क्या हो रहा है । पिंडा का पिता बाहर आता है और अपनी पत्नी को देखकर कहता है यह लड़का कौन है । तब उसकी मां कहती है कि यह हमारा पिंडा है और यह कह रहा है की यह 18 साल का हो गया ।

उसका पिता हंसने लगता है कहता है सुबह-सुबह तुम्हें इस प्रकार से मनोरंजन करने के लिए मैं ही मिला हूं । लेकिन उसकी मां गंभीर हो करके उसे देखती है उसकी आंखों में देखकर उसका पिता समझ आता है कि बाद निश्चित रूप से गंभीर है । फिर वो उस लड़के से पूछता है अच्छा तो तू पिंडा है ।  वह लड़का कहता है  हां पिताजी मैं पिंडा हूं वही पिंडा जो 6 वर्ष का आपको अभी छोड़ कर गया था । मैं 18 वर्ष का होकर वापस आया हूं । इस पर उसके पिता ने कहा माना कि किसी देव की कृपा प्राप्त हुई है लेकिन तू हमारा सच में पुत्र है तो तू कुछ गोपनीय बातें अवश्य जानता होगा । तो मेरा पहला प्रश्न यह है की तेरा जन्म दिवस अब कब पड़ने वाला है तो पिंडा कहता है मेरा जन्म दिवस शिवरात्रि के 1 दिन बाद होता है । पिंडा की बात सुनकर उसका पिता कहता है कि यह बात तो सत्य है । तो वह पूछता है कि सबसे पहले तुझे कौन सा फल मैंने खिलाया था । इस पर वह बताता है कि वह अमरूद को सबसे पहले उसके पिता ने उसे खिलाया था । उसकी दोनों बातें सुनकर आश्चर्य से उसका पिता अपने पिंडा को देखकर अपने गले से लगा लेता है । और कहता है तू सच में महान है तुझ पर देव कृपा हुई है तभी तेरी उम्र इतनी जल्दी बढ़ गई लेकिन इसका कहीं गलत अर्थ ना निकले कहीं ऐसा ना हो जाएगी तू जल्दी ही वृद्ध हो जाए । इस पर पिंडा कहता है नहीं पिताजी मैं जल्दी वृद्ध नहीं होने वाला हूं मैं जल्दी बूढ़ा नहीं होऊंगा । मुझे ऐसी शक्ति मिली है कि मैं 18 वर्ष तक 18 वर्ष का ही रहूंगा बस आज से मैं अपना बालपन त्याग दिया और अपनी जवानी की ओर कदम रखा है । उसकी बात को सुनकर माता-पिता दोनों आश्चर्य में पड़ गए और अब उनका आश्चर्य और भी बढ़ने वाला था । और यह आश्चर्य था कि तभी पिंडा ने उन्हें एक बोरी ला करके दी उस बोरी को खोलने को कहा । पिंडा के माता-पिता ने उस बोरी को खोला तो उसके अंदर से एक मिट्टी का मटका निकला मिट्टी के मटके को उसको खोलने पर उन्होंने देखा उसके अंदर सोने की अशरफिया भरी हुई है ।

सोने के काफी सारे सिक्के उसमें है यह देखकर पिंडा के पिता ने कहा इतना अधिक सोना तुझे कहां से प्राप्त हो गया । फिर पिंडा ने सारी बात बताई उसकी बात को सुनकर के पिंडा के पिता ने कहा कि अगर उस देवता ने कहा है कि तू रिजु नाम के साधु की सेवा कर तो तू अवश्य ही वहां जा । मैं तुझे साथ में स्वयं ही लेकर चलूंगा और इतने अधिक धन से तो हम यहां बड़े ही धनवान कहलाने लगेंगे । क्योंकि इतना धन हमारे गांव में किसी के भी पास नहीं है । पिंडा के पिता और माता अब अमीर हो गए थे । उनके पास धन की पूरी की पूरी एक पोटली सी तैयार हो गई थी । उस पोटली का इस्तेमाल वह जब चाहे तब जैसे चाहे कर सकते थे कठिन कार्य करने की भी आवश्यकता नहीं थी । पिंडा को लेकर के उसके पिताजी जल्दी ही रिजु नाम के साधु के पास जाने लगे । रिजु नाम के साधु सुबह की पूजा करके अभी अपनी कुटिया से बाहर ही आ रहे थे । तभी पिंडा ने जाकर के उनके चरण छुए चरण छूकर जैसे ही उसने उन्हें प्रणाम किया तो रिजु ने पूछा बालक तुम कौन हो और क्या चाहिए तुम्हें । अब पिंडा के पिता वहां आ कर के उन्होंने भी रिजु नाम के साधु को प्रणाम किया और उनसे कहा कि आपकी सेवा करने के लिए ही इसका जन्म हुआ है । आप इसे अपनी सेवा में रखिए इस पर सुनकर रिजु को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने कहा ऐसा कैसे संभव हुआ । तो पिंडा के पिता ने जितनी बातें वह जानते थे उन्होंने रिजु साधु को बता दी । रिजु साधु ने कहा अगर ऐसा है और यदि कोई देवता स्वयं सेवा के लिए किसी बालक को मेरे पास भेजता है तो मैं निश्चित रूप से इसको स्वीकार करता हूं । आज से यह मेरे पुत्र के समान ही यहां पर रहेगा । पिंडा ने भी तुरंत ही अपने कार्य को संभाल लिया रिजु साधु की सेवा वह करने लगा दिन भर में सेवा करता था रात को अपने माता-पिता के पास पहुंच जाता था । माता-पिता भी बहुत खुश थे कि एक साधु की सेवा भी हो रही थी और उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी ।

कुछ दिनों बाद अचानक से जंगल में उसे कोई आवाज सुनाई दी पिंडा सोया हुआ होता है । उस आवाज से आकर्षित होकर उसकी नींद खुल जाती है और वह जंगल की ओर जाने लगता है । तभी वहां पर एक सूअर उसे दिखाई पड़ता है जो उसे दौड़ा लेता है सूअर के भय के कारण वह भागता हुआ जंगल की ओर अंदर ले जाने लगता है । और काफी अंदर पहुंचने के बाद उसी जगह वह पहुंचता है जहां पर यातुधान नाम के राक्षस ने अपनी मूर्ति बनाने को कहा था । उसे अपनी सारी बात याद आती है और वह डर जाता है क्योंकि वह भूल चुका था कि यातुधान नाम की असुर की पूजा भी उसे करनी है । तभी वहां पर यातुधान प्रकट हो जाता है और गुस्से से चिल्लाता हुआ कहता है मूर्ख पिंडा मैं चाहूं तो तेरा अभी वध कर सकता हूं लेकिन मैं तुझे छोड़ रहा हूं । कहा था इतने दिन और क्या कर रहा था । इस पर पिंडा माफी मांगते हुए कहता है मैं बाल बुद्धि हूं मुझे कुछ भी याद नहीं रहा कि मुझे आपकी पूजा सेवा भी करनी है मुझे माफ कर दीजिए और एक बार फिर से मुझे आपकी सेवा करने का मौका दीजिए । यातुधान की बात सुनकर के इस प्रकार से पिंडा डर के मारे बोलता है । यातुधान ने कहा ठीक है तो मेरी मूर्ति बना और फिर पूजा प्रारंभ कर मैं तेरे लिए सूअरों की व्यवस्था करता हूं । तभी वहां पर बहुत सारे सूअर आ जाते हैं इस प्रकार वहां पर एक मूर्ति यातुधान नाम के राक्षस की जिसके मुख पर भयंकर शेर जैसे चिन्ह थे उसके दो दांत निकले हुए थे और उस विशालकाय मूर्ति को बनाने बाद में फिर उसे लाल फूलों की माला पहनाई जाती है । वह लाल गुड़हल से बनी हुई माला पहनकर यातुधान बहुत ही प्रसन्न होता है । उसी प्रकार अब उस जगह पर गड्ढा खोदकर के लकड़ियों का एक हवन कुंड सा बनाता है और उस पर सामने से जैसे ही वहां पर सूअर आते हैं उनमें से एक सूअर पर वह हमला करता है । और उसके सिर को छेद देता है और उसके बाद उसका सर काट कर उस हवन कुंड में डाल देता है ।

उसकी शक्ति से यातुधान नामक असुर की शक्ति बढ़ती है । और वह तृप्त होता हुआ मुख से अहो अहो कह कर खुश होता है यातुधान नामक असुर की एक माला जाप करने के बाद उस रक्त को वह उस कुंड में डालता जाता है । जिस सूअर से वह रक्त बह रहा था उसका संपूर्ण रक्त प्रवाहित करने के बाद उस दिन की साधना संपन्न हो जाती है । यातुधान प्रकट हो जाता है और उसकी शक्तियों में कई गुना इजाफा हो चुका होता है ।  यातुधान कहता है तुम्हें यही क्रिया लगातार करते रहना है मैं तुम्हें हर माह के अमावस के दिन यहां पर बुला लूंगा तुम्हे यहां आना होगा । और मेरी इसी प्रकार पूजा करनी होगी मैं तुम्हें संसार में सब कुछ दूंगा और एक चमत्कारिक मणि वह उस पिंडा नाम के अपने उस बालक को देता है और कहता है तुम्हें मेरा एक कार्य करना होगा । तुम्हें यह मणि उस कन्या जो उस रिजु नाम के साधु की करना है उसको देनी होगी उसके शरीर को छूते ही उसका निश्चित रूप से चमत्कारिक प्रभाव होगा । और वह भी बहुत ही जल्दी जवान हो जाएगी तुरंत ही वह 16 वर्ष की कन्या में परिवर्तित हो जाएगी यह मेरी शक्ति अवश्य ही कार्य करेगी और याद रख तुझे एक विशेष कार्य संपन्न करना है । तुझे उसी कन्या रेवती से विवाह करना है उसके बिना मेरा यह सारा प्रयोजन असफल है इस प्रकार वह उसे समझा देता है ।

पिंडा अपनी साधना संपन्न करके रिजु साधु के पास रात में ही पहुंच जाता है और उस कन्या रेवती के शरीर पर उस मणि को रख देता है । मणि का प्रभाव चमत्कारिक होता है सुबह जब रिजु साधु उठते हैं तो उनकी पत्नी के बगल में लेटी एक नव युवती कन्या को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं । और अपनी पत्नी को उठाकर कहते हैं तुमने बगल में किसे सुलाया हुआ है हमारी रेवती कहां गई । तभी वह उठकर बोलती है  मैं रेवती ही हूं पर पता नहीं ऐसा चमत्कार कैसे हुआ कि मेरा शरीर इतनी तीव्रता के साथ बढ़ गया मेरी शक्तियां क्या है यह सब आप मुझे बताइए । तब रिजु साधु को रेवती कन्या की सारी बात याद आती है कि उसने कहा था कि उसमें संपूर्ण शक्तियां मौजूद होगी । लेकिन उसको सारी शक्तियां उसे याद करानी होगी और उसे संपूर्ण तरह की साधनाएं भी करानी होगी । रिजु साधु कहता है कि पुत्री तुम शक्ति के कारण एक ही दिन में बड़ी हो गई हो इसलिए अब तुमको मुझे विशेष कार्य संपन्न कराने होंगे । तभी पिंडा वहां पहुंचता है रिजु साधु कहता है तुम्हें रेवती का विशेष खयाल रखना है और इसको भिन्न-भिन्न प्रकार की साधनाओ के लिए पारंगत बनाना है । पिंडा कहता है अवश्य ही गुरुदेव मैं जीवन भर साथ निभाने का वादा करता हूं । इस प्रकार के कहने पर रिजु साधु उसकी और बड़ी तीखी नजरों से देखते हैं । इसके आगे क्या हुआ हम जानेंगे अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

यातुधान आसुरी साधना और शक्तिपीठ कथा भाग 3

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