Site icon Dharam Rahasya

यातुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ कथा भाग 4

यातुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ कथा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । हमारी कहानी यतुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ कथा भाग 3 अभी तक आप जान चुके हैं । की क्या क्या घटित हुआ है । जैसा कि आप लोग जानते हैं कि यातुधान नाम के उस महा असुर ने पूरी कोशिश की वह रेवती नाम की कन्या जो कि पूर्व जन्म में एक महायोगिनी थी । उसको प्राप्त कर सके उसके लिए एक बड़ा सा प्रपंच रचा जिसमें उसने एक पिंडा नाम के लड़के का प्रयोग किया । पिंडा 18 वर्ष का और रेवती कन्या 16 साल की थी । और इस प्रकार गांव वाले के दबाव के कारण उनको अब शादी करने के लिए मानना पड़ा । रेवती ने अपने पिता से पूछा क्या आप सच में मेरी शादी करना चाहते हैं । रिजु ने कहा अब इसके अलावा कोई और मार्ग नहीं है । अगर हमें इस गांव में रहना है तो तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए । रेवती कहती है जैसी आपकी आज्ञा पिताजी । मैं अवश्य ही विवाह करूंगी और सभी के मन से यह संदेह मिटा दूंगी कि मैं किसी भी प्रकार से किसी भी राक्षसी शक्ति के वश में नहीं हूं । जिसकी वजह से गांव में इस प्रकार का प्रपंच हुआ है । पिंडा भी काफी खुश था उसने रेवती से जाकर पूछा कि क्या आप शादी के लिए राजी हैं । रेवती ने कहा हां मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरी भी एक शर्त है । आपको गुड़हल के फूलों से बनी हुई एक माला लानी होगी और उसका रस निकाल कर के एक पात्र तैयार करना होगा । उस पात्र में उसको पूरी तरह से निचोड़ कर उसके रस को उसमें लाल रंग मिलाना होगा । फिर मैं दो अंगूठियां तैयार करूंगी उनमें से अगर आपने दोनों अंगूठियां सही पहचानी तो मेरा विवाह और आपका विवाह एक अच्छे भविष्य की सूचना देगा । लेकिन अगर आपने गलत पहचाना तो निश्चित रूप से कुछ ना कुछ गलत अवश्य हो रहा ।

क्योंकि मैं यह कार्य अभिमंत्रित कर भिन्न-भिन्न शक्तियों का आवाहन करके करूंगी जैसा हो मुझे बता देना । मैं शादी से करके तुमसे मिलने को आऊंगा और हमारा पहला मिलन की रात होगी उसी रात को यह कार्य संपन्न करेंगे । पिंडा और रेवती के बीच इस प्रकार की आपसी बातें हुई । इधर चुकी 1 दिन पहले पिंडा ने वह साधना करने की सोची । क्योंकि वह अमावस की रात थी और अगले दिन शादी होनी थी । तो पिंडा एक बार फिर से उस स्थान की ओर चला गया जिस स्थान पर यातुधान नाम का राक्षस रहा करता था । और उसकी पूजा और एक वेदिका बनाई गई । जिस पर उसको सूअर का मांस चढ़ाया जाता था । वह धीरे धीरे करके उस स्थान पर पर गया और उसने अभिमंत्रित पूजा शुरू की । एक बार फिर से उसने सूअर की बलि दी उसको भाले से छेदा और उसके रक्त को कुंड में डालने लगा । प्रसन्न होकर कुछ ही देर बाद वहां पर यातुधान प्रकट हो गया । यातुधान ने उससे पूछा कि बता तेरी क्या इच्छा है । तब उसने कहा आपने मेरी शादी रेवती से करने की सोची है और यह बहुत ही शुभ बात है । इसलिए आप जो भी मुझे अग्रिम आदेश हो वह अवश्य दीजिए । यातुधान ने कहा बस तुझे इतना ही करना है कि इस साधना में जितना भी बचा हुआ रक्त है उसको एक खप्पर में ले ले । और उसे तांबे के पात्र से ढक दें उसे अपने विवाह से पूर्व तू पी लेना । पिंडा ने कहा रक्त पीना तो बहुत ही बुरी बात है वह भी सूअर का । मैं कैसे पी लूंगा । इस पर यातुधान कहा तुम्हें अद्भुत सिद्धियों की प्राप्ति करनी है । तो यह कार्य तो तुझे करना ही होगा । इस प्रकार से पिंडा ने जब यातुधान को सारी बात बताई । तो यातुधान ने उसे समझा कर के उस कार्य के लिए राजी कर लिया । यातुधान की बात सुनकर पिंडा थोड़ा असमंजस में था ।

कि उसे सूअर का रक्त पीना होगा लेकिन उसने पूजा के बाद वह सारा रक्त निकाल लिया । और एक खप्पर में रक्त रख कर के उसे तांबे के पात्र से ढक दिया । उसे लेकर के वह अपने गांव आ गया । और अपने घर में उसको एक विशेष स्थान पर रखकर छुपा दिया । और बाकी लोगों से कहा किसी सामान को कोई छेड़े नहीं । यातुधान का आदेश था इसलिए उसने सबको यही बताया कि देवता ने मुझे ऐसा आदेश दिया है । और मेरे पास बहुत सी सिद्धियां और शक्तियां आने वाली है । भविष्य में इसलिए कोई भी किसी भी प्रकार से मेरे किसी कार्य में कोई बाधा उत्पन्न ना करें । पिंडा के माता-पिता ने भी उसकी बात को पूरी अच्छी तरह से माना । क्योंकि वह जानते थे कि उनके जीवन में परिवर्तन लाने वाला उनका पुत्र ही है । जब भी वह साधना करके आता था तो अपने साथ सोने की अशरफिया भी लाता था ।   जो यातुधान उसे दिया करता था । आज भी वह लेकर आया था । घर वाले इसी बात से खुश थे कि हर बार जब भी यह साधना करने जाता है देवता इसे सोना अवश्य ही देते हैं । इसी कारण से उनकी मर्यादा उस गांव में बहुत ही ज्यादा बढ़ गई थी । सभी लोग इसी बात से खुश थे कि यह एक संपन्न परिवार है । इसके बावजूद भी यह लड़का रिजु साधु की सेवा करता है । और इसी कारण से पूरे गांव वाले यही चाहते थे कि अब रेवती का विवाह अवश्य रूप से इस अच्छे लड़के से हो सकता है इसीलिए पिंडा को उन्होंने चुना था । इस प्रकार रात्रि संपन्न होने पर अगले दिन विवाह की तैयारी होने लगी । गांव वालों को आमंत्रण दिया गया साथ ही साथ वह दुष्ट राक्षस वहां थे ।

इस प्रकार से दोनों की शादी को संपन्न कराने के लिए सभी प्रक्रिया शुरू की गई । और इस प्रकार रात्रि होते होते दोनों के विवाह को संपन्न करा दिया गया । दोनों ने अपने बड़ों के पैर छुए और गांव वालों से आशीर्वाद मांगा । गांव वाले भी इस बात से खुश हैं कि अब हमारे गांव पर आया हुआ संकट टल जाएगा । और जिस कुएं में पानी दूषित हो गया था वह भी नहीं होगा । इसी प्रकार जैसे ही रात्रि की बेला आई रेवती ने पिंडा को इशारों ही इशारों में समझाया कि उसे क्या करना है । पिंडा उस बात को समझते हुए तुरंत ही गांव से बाहर जंगल की ओर निकल गया और जल्दी ही वह बहुत सारे फूलों को ले कर के आ गया । उन सब लाल फूलों को उसने रेवती को दे दिया और रेवती ने उससे एक माला बनाई । उस माला को पूरी तरह से निचोड़ करके उसमें जल मिलाकर के लाल रंग का खाने वाला पदार्थ मिला करके उसे पूरी तरह से लाल रंग से रंग दिया गया । अब उसके अंदर उसने दो अंगूठियां डाल दी और आवाहन मुद्रा में उसने बहुत सारी देवी देवताओं का आवाहन किया । कि वह जो भी संकट उस गांव पर आया हुआ है उसके नियमित कार्य संपन्न करा दे । पिंडा की सुहागरात का समय नजदीक आ रहा था । इसकी वजह से पिंडा ने जाकर के अपने घर में जा कर के अपने माता पिता से आज्ञा ली । मैं आज वहां जा रहा हूं पिता और बाकी लोगों ने भी खुशी खुशी उनको आज्ञा दी । अब वह अपने कमरे में गया जिस जगह पर उसने वह रक्त सूअर का रखा हुआ था । उसने यातुधान नामक राक्षस का मंत्र जाप करते हुए उस रक्त को पीलिया । जैसे ही उसने उस रक्त को पीया उसके अंदर अद्भुत शक्तियां उसे दिखने लगी । लेकिन अब उसे कुछ भी दिखना सा बंद सा हो रहा था । उसका शरीर किसी और के कब्जे में आ चुका था । यह चाल यातुधान की सफल रही थी । यातुधान उस वक्त के माध्यम से उसके शरीर में प्रवेश कर चुका था । अब पिंडा का शरीर पिंडा का नहीं था यातुधान का था । यातुधान बहुत ही खुशी के साथ पैरों को पटक ते हुए चलने लगा । सामने जो भी आता उसे वह धक्का दे देता । सभी लोग उसकी इस हरकत से हंस रहे थे । उन्हें लग रहा था कि रेवती के पास जाने की इच्छा से ही वह इस तरह की हरकतें कर रहा है । और किसी के रोके रुकना नहीं चाह रहा था । जबकि सत्य कुछ और ही था । पिंडा धीरे-धीरे करके उस स्थान पर पहुंचा जहां पर रेवती और उसके कक्ष को सजाया गया था ।

कक्ष में उसने बाकी सभी लोगों को हटाकर खुद प्रवेश कर लिया । और रेवती के पास जाकर कहने लगा कि आज तो हमारी सुहागरात है । आज हमको दुनिया का संपूर्ण सुख प्राप्त होगा । रेवती ने उसकी आंखों की तरफ देखा और उसे कहने लगी । लेकिन मैंने तुमसे एक बात कही थी क्या तुम्हें याद नहीं है । तुरंत ही यातुधान ने अपना असर कम किया और पिंडा की आंखें जागृत हुई । पिंडा ने कहा हा हा मुझे याद है । तुमने कहा था कि हम पहले एक पात्र में रखे जल में कुछ परीक्षा करेंगे । कहां है वह पात्र लाओ मुझे दिखाओ । इस प्रकार कन्या रेवती ने किवाड़ बंद कर लिए । और दोनों के दोनों आपस में एक साथ बैठ गए । उस जल में उसने दो अंगूठियां पहले ही डाल रखी थी । उसने कहा इसमें एक अंगूठी मेरी है और एक अंगूठी आपकी है । अगर आपने मेरी अंगूठी चुनी तो निश्चित रूप से हमारा जीवन सुख में होने वाला है । लेकिन अगर आपने अपनी ही अंगूठी चुन ली तो जीवन में कुछ ना कुछ संकट अवश्य ही आएगा । मैं इस प्रयोग को करने वाली हूं । इसलिए आप तैयार रहिए इसी प्रकार अब ऐसी बात कह कर तुरंत ही पिंडा ने उसकी बात को मान लिया । रेवती ने उसके अंदर दोनों अंगूठियां डाल रखी थी । और कहा पहला प्रयास आप कीजिए पिंडा की आंखों पर फिर से यातुधान का असर पूरी तरह से आ गया । यातुधान ने अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया कि कौन सी अंगूठी किसकी है । उसने तुरंत ही पानी के अंदर हाथ डाला और रिजु कन्या रेवती की अंगूठी को पकड़कर बाहर निकाल लिया । जैसे ही उसने अंगूठी निकाली रेवती प्रसन्न हो गई ।

रेवती ने कहा अद्भुत तुमने तो मेरी ही अंगूठी निकाली । अब मुझे पहनाओ इस प्रकार पिंडा ने वह अंगूठी रेवती को पहना दी । अब रेवती ने भी दूसरी अंगूठी निकाल कर के अपने पति को पहना दी । पिंडा ने कहा अब मैं व्यग्रता से मरा जा रहा हूं । चलो हम दोनों प्रेमालाप करें यह कहकर के दोनों उस बनाए गए बिस्तर पर पहुंच गए । जैसे ही पिंडा ने रिजु कन्या रेवती को अपने गले से लगाया । उसी समय रेवती को अचानक से अत्यंत ही भय का एहसास हुआ । पिंडा भी एकदम से हड़बड़ा गया क्योंकि वास्तव में पिंडा के रूप में यातुधान आसुरी राक्षस था । और वह एक सती कन्या को दूषित करने का प्रयास कर रहा था । जोकि रेवती में अद्भुत शक्तियां पहले से ही विद्यमान थी । अचानक से ही वह शक्तियां धीरे-धीरे करके जागृत हो गई । उन शक्तियों के जागरण के कारण रेवती में अद्भुत शक्तियां पैदा होने लगी । उसके स्पर्श मात्र से क्योंकि नकारात्मक शक्तियां जब भी सकारात्मक शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करती है । तो फिर विस्फोट अवश्य ही होता है उस विस्फोट के कारण अचानक ही रेवती का मूलाधार चक्र जागृत हो गया । उस मूलाधार चक्र के जागृत होने के कारण से उसके अंदर उसकी सारी खोई हुई शक्तियां वापस लौट आई । और क्रोध से जलती हुई रेवती की आंखें प्रज्वलित सी हो गई । पिंडा पिंडा नहीं रहा पूरी तरह से यातुधान बन चुका था ।

यातुधान राक्षस ने अब भयानक रूप में आ चुका था । यातुधान ने कहा मुझे तेरी शक्तियां प्राप्त करनी थी इसलिए मैं तेरे साथ अवश्य ही मेंथुन करता । मेंथुन क्रिया के बाद मैं तेरी सारी शक्तियां खींच लेता और अब भी वही करूंगा । तो भला मुझे क्या रोक पाएगी रेवती को क्रोध आ गई । रेवती ने अभिमंत्रित मंत्रों का प्रयोग किया और पास रखे जल के कटोरे को उछाल कर के यातुधान की ओर फूंका । यातुधान के शरीर पर गिरते ही उसका शरीर जलने लगा और उसका वास्तविक पूर्ण स्वरूप बाहर आ गया । जिसमें वह बहुत ही ज्यादा भयानक असुर के रूप में परिवर्तित हो गया । लेकिन अब रेवती जो भी मंत्रों का प्रयोग उस पर कर रही थी कोई भी असर उस पर नहीं हो रहा था । कन्या रेवती इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा आखिर क्यों हो रहा है । रेवती द्वार खोलकर वहां से भागी । यातुधान उसके पीछे पीछे भागा रेवती दूत गति से ऐसी भागी कि पता ही नहीं चला की जंगल में वह कहां चली गई । इधर यातुधान इधर उधर उसे ढूंढने और खोजने लगा चारों तरफ वह उसे ढूंढ रहा था । कि आखिर वह कन्या गई कहां चली गई ।  रेवती थोड़ी दूर आगे निकलकर भागती चली जा रही थी । तभी उसे नजदीक में ही उस शक्तिपीठ के दर्शन हुए और वह भाग करके उसी मंदिर में जाकर के छिप गई । आगे क्या हुआ यह हम लोग जानेंगे अगले भाग में । आखिर क्यों रेवती इतनी शक्तिशाली होते हुए भी यातुधान नाम के असुर का कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रही थी । यह सभी कुछ हम अगले भाग में यानी कि अंतिम भाग में जानेंगे । आखिर इस कहानी का किस प्रकार अंत हुआ । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

यातुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ कथा भाग 5

Exit mobile version