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योगिनिपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 1

योगिनिपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 1

नमस्कार दोस्तो धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । हर साल दीवाली आती है और हर साल दशहरा आता है । तो आपके लिए मै अच्छी से अच्छी चीजें लाता रहता हूं तो यह को मै आपके लिए कहानी लेकर आया हूं । योगनिपुर की महायोगिनी और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसने अपना एक विशेष इतिहास रखा ।हलाकी यह बात पूरी तरह से छुप चुकी है लेकिन फिर भी आपको जो भी ज्ञान होगा । मैं उसके बारे में बताऊंगा साथी साथ कहानी में वह भी आप पढ़ेंगे । जिसकी वजह से एक बहुत ही अद्भुत घटना प्राचीन मठ मंदिरो में जैसे घटित होती थी यहां पर भी घटित हुई थी । सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि आपको शायद पता ही होगा साधना में योगिनी साधना जो होती है वह धन देने के मामले में सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है । यह कहा जाता है कि स्वयं कुबेर जी को तीनों लोगों का जो धन संपदा प्राप्त हुई योगिनी कृपा से है । अगर योगिनीयों की कृपा ना हो तो कुबेर जी के भाग पर भी उतना धन रुपया पैसा नहीं आता । इसलिए सदैव ही योगिनी साधना धन वैभव बढ़ाने वाली मानी जाती रही है ।

आपको पता होगा योगिनी पुर किसे कहा जाता है । योगिनी पुर पुरानी जो दिल्ली है जो हजारों साल पहले दिल्ली जिस तरह रही थी उसे हम उस समय योगिनी पुर के नाम से जानते थे । लेकिन पहले भी यह जो दिल्ली है यह महाभारत काल को लगभग आजकल वैज्ञानिक लोग तो 1400 साल पुराना मानते हैं । तो इस समय जो दिल्ली थी वह पांडवों की प्रिय नगरी इंद्रप्रस्थ के रूप में मानी जाती रही थी । हालांकि महाभारत काल के बारे में संदर्भ जो है वह वैज्ञानिक आधार अलग कहता है । और बाकी धार्मिक बातें अलग रहती हैं । लेकिन फिलहाल जो मोटी मोटी बातें है मैं आपको बता रहा हूं । तो इंद्रप्रस्थ की नगरी के नाम से यह पहले जानी जाती थी । और जब कुरुक्षेत्र का युद्ध यहां पर समाप्त हुआ तो उस समय हस्तिनापुर में पांडवों का शासन हुआ करता था । पांडवों में सबसे जो बड़े भाई थे युधिष्ठिर । पांडवों में उन्हें खांडवप्रस्थ का शासन भी बनाया गया था । यह को भूमि थी बहुत ही बियाबान और बेकार किस्म की थी । उस समय श्री भगवान कृष्ण ने इंद्र देवता को बुलावा भेजा था । और खुद युधिष्ठिर की मदद के लिए इंद्र ने विश्वकर्मा को भेजा था ।

तब भगवान विश्वकर्मा के अथक प्रयासों से इस नगरी को बसाया गया था । और इसको इंद्रप्रस्थ यानी इंद्र का शहर के नाम से जाना गया है । जो बाद में दिल्ली अंतोगतवा दिल्ली के नाम से जानी गई । अलग-अलग समूह में इसी प्रकार इसको जाना गया इसी प्रकार और वर्णन आता है । क्योंकि विश्वकर्मा ने इस नगरी को बनाया था इसलिए यहां पर धन सम्पदा ना कभी कम पड़े । इसलिए योगिनीयों का यहां वास हो गया था । लेकिन इनका जो उत्पत्तिकरण है वह बाद में साधनाओं के द्वारा होता है । लेकिन क्योंकि यहां पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा विशेष रूप से बरसनी चाहिए थी यह भगवान कृष्ण ने  कहा था इसलिए यहां पर योगिनी शक्तियों का आवाहन किया जाना बहुत ज्यादा आवश्यकता था । दिल्ली का एक नाम दिल्लुका के राजा दिल्ली का के नाम पर भी 800 ईसवी पूर्व में माना जाता है । मध्यकाल में इसका अलग से नाम रखा गया वर्तमान मेहरौली जगह वहां पर जो है माना जाता था । इसी तरह से कहा जाता है कि महायोगनी मठ उस जगह स्थित था जहां पर प्राचीन समय यानी 12 वीं शताब्दी में पारसनाथ मंदिर जहां पर था । उसी के आसपास कहीं यह महा योगनी मठ रहा होगा और योगिनी पूरा नाम योगिनी के नाम पर ही पड़ा । क्योंकि प्राचीन शक्तिशाली महा योगिनी जो थी चौसठ योंगनी का सम्मिलित रूप थी ।

उनकी साधना उपासना यहां पर की गई थी बाद में । तो आप जानते हैं कि बाद में उसको जो है उसका महत्व तब हुआ । जब 12 वीं शताब्दी में अनंत पाल तोमर नाम के राजा तोमर वंश के जो थे । उनको उन्होंने लाल कोट से यहां शासन चलाया था । बाद में इसको अजमेर के शासक चौहान वंश राय पिथौरा जी ने पृथ्वीराज चौहान भी कहते हैं उन्होंने जीत करके इसके अपने हाथ में मतलब इसको ले लिया था । यह तो गया इसका इतिहास की योगनी पुर था क्या क्यो कहते है । किसी जमाने में एक राजा यहां पर हुआ तो उसके जो एक भतीजा हुआ था उस नाम था भांम । भांम जो था बहुत ही ताकतवर शक्तियां प्राप्त करने की इच्छा से यहां पर एक योगिनी मठ नाम से एक जगह थी । तो वहां पर जाकर के योगिनी की गोपनीय पूजा करने के लिए वह अपने गुरु से मिला था । अपने गुरु के पास जाकर के उसने कहा कि क्योंकि मेरे को चक्रवर्ती सम्राट बनना है और बहुत ही शक्तिशाली शक्तियां मुझे प्राप्त करनी है । तो आप मुझे योगिनीयों की साधना सिखाइए । जो भांम था भांम के गुरु ने कहा ठीक है मैं तुम्हें साधना और उपासनाएं बताऊंगा । लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि योगिनी साधना में योगिनीयों को कभी रुस्ट नहीं करना है । अगर आप  योगिनी को किसी भी प्रकार से अगर उनकी परीक्षा के दौरान अगर आप रुस्ट कर देते हैं तो फिर आपकी किए कराए पर सारा पानी फिर जाएगा ।

और वह महानतम शक्ति जो प्रकट होने वाली होगी वह भी आपके हाथ से चली जाएगी । इस बात का तुम्हें हमेशा ध्यान रखना है और इस आधार पर ही साधनाए उपासनाए तुम्हे करनी है । जो कि गुरु जो थे वह बहुत ही ज्यादा एक सिद्ध जैन गुरु थे । तो उन्होंने मंत्रों के माध्यम से ऐसे मंत्र बताएं गोपनीय जो उनको उनके उनके गुरु से प्राप्त हुए थे । कि इस मंत्र का अगर जाप किया जाएगा । तो सिद्ध महायोगिनी प्रकट हो जाएंगी और सिद्ध महायोगिनिया तो आ जाएंगी लेकिन पहले वह आपकी परीझा लेंगी । और आपके साथ किस प्रकार की क्रिया करेंगी यह आप ही जाने  । और अगर उस परीक्षा में आप सफल हो जाते हो तो फिर वह सब कुछ देने को तैयार हो जाएंगी । तो आप धन में तो कुबेर के समान हो ही जाएंगे । तो फिर उसने भांम ने पूछा कि गुरुदेव किस कारण से योगियों की साधना से धन की प्राप्ति होती है । तो उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में जब यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था । उसके बाद खांडवप्रस्थ जब युधिष्ठिर वगैरह भाइयों को दिया गया था तो श्री कृष्ण भगवान ने इन्द्र को बुलाकर के विश्वकर्मा की सहायता से इस नगर को बनाया था ।

और साथ ही साथ जमीन के अंदर काफी मात्रा में धन को गाड़ भी दिया था ।लाखों टन सोना चांदी जो है वह तुम वापस में प्राप्त कर सकते हो । क्योंकि वह जादुई शक्ति से बना हुआ है इसलिए धरती पर आने पर वह ढोस हो जाएगा । वैसे वह धरती के अंदर अदृश्य मान स्थिति में है । और आप उसको निकाल पाते हैं किसी तरह से प्राप्त कर पाते हैं । क्योंकि यह भगवान कृष्ण की कृपा से बना हुआ नगर है और स्वम़ इन्द्र का मायाजाल शहर है । याद रखना इस इंद्रजाल की वजह से यह नगर कई बार नष्ट होगा कई बार बनेगा । फिर कई बार नष्ट होगा और कई बार यह बनेगा । इसके साथ ऐसा हमेशा घटित होता रहेगा । क्योंकि यह माया जाल नगरी बनाई गई है । और इसलिए इसका समय समय पर नष्ट होना भी आवश्यक है । सत्ताए एक के हाथ से दूसरे के हाथ में जाएंगे फिर दूसरे के हाथ से पहले के हाथ में आएंगी । इस तरह से सत्ता का हस्तांतरण लगातार इस भूमि पर होता रहेगा । और हमेशा यही जमीन जो है केंद्र बिंदु है कि पूरे के पूरे संपूर्ण भारतवर्ष की । तो आज हम देखते भी हैं कि दिल्ली हमारे देश की राजधानी बनी और दिल्ली कई बार उजड़ी है बसी है । तो यह सब उनके गुरु की जो कही हुई बातें हैं वह आज भी सत्य है । क्योंकि यह महायोगिनी नगर है योगनियो की योग माया इतनी फैली हुई है ।

इस वजह से इस चीज को हम क्योंकि अपनी संस्कृति को छोड़ चुके हैं अपनी सनातन परम्परा को छोड़ चुके है  हम इस चीज का महत्तव नहीं समझते हैं । लेकिन यह जड़ है धन वैभव संपन्नता और शक्ति केंद्र है । यह जगह योगिनी पुर है यही कि महायोगिनी मठ की कहानी और उसके गुरु के मध्य हुई थी । तो भाम ने जब पूछा गुरुदेव मुझे वह विधि बताए कि किस प्रकार के महायोगिनी को हम सिद्ध करेंगे । तो उन्होंने कहा तुम इस प्रकार से करना कि शक्ति के रूप में महायोगिनी की साधना तुम करोगे । वह तुम्हें मित्र के रूप में प्राप्त होंगी । लेकिन उनसे कोई रिश्ता नहीं बनाना है कोई भी रिश्ता अगर तुम बनाओगे तो वहीं पर तुम्हारी पराजय हो जाएगी । क्योंकि शक्तियां उस परीक्षा में आपको अपने स्वभाव और केंद्र के रूप में स्थापित कर लेंगी । करण की किसी भी रिश्ते में माया प्रकट होती ही है इसलिए तुम कोई रिश्ता नहीं बनाओगे । और उन योगिनी की साधना प्रेम पूर्वक और पूरे सच्चे मन से करोगे । तो उन्होंने पूछा गुरुदेव इसके लिए क्या मार्ग है । तो गुरु जी ने कहा उसी स्थान पर जाओ जहां पर युधिष्ठिर बैठा करते थे । और उस स्थान की खोज करो ।

इसके लिए मैं तुम्हें विद्या देता हूं नील सर्प । इस विद्या मै तुम्हें एक अदृश्य सर्प दूंगा । जिससे तुम ही केवल देख पाओगे । उस पर तुम जब मंत्र उच्चारण करोगे तो वह चलता हुआ जाएगा । वह केवल सौ पग जा करके रुक जाएगा उसके बाद तुम्हें फिर से मंत्र जपना पड़ेगा । उस पर फिर वह निल सर्प अर्थात नीले रंग का जादुई सर्प फिर आगे बढ़ेगा । और फिर सौ कदम जा करके रुक जाएगा । तो हर बार उस पर मंत्र जाप करना और हां इतना ध्यान रखना । कि कोई व्यक्ति बीच में तुम्हें अगर कुछ बोले और कहे तो उस वक्त उसकी बात को अनसुना करके अपने कार्यों को सिद्ध करना । अगर उस कार्य को तुमने मान लिया उसकी या उसकी बात सुन ली तो तुम मंत्र भूल जाओगे । अगर ऐसा होता है तो फिर सर्प तुम्हारी तरफ ही उल्टा दौड़ा चला आएगा और तुम्हें काट लेगा । इस बात का ध्यान रखना तो उन्होंने कहा ठीक है गुरुदेव । आप जो चरण बंध तरीके से आप मुझे इनकी साधना के बारे में बता रहे हैं मैं अवश्य ही उसी प्रसार से ऐसा ही करूंगा । इसके बाद भाम ने उनकी बात को मान कर के अपने गुरु की । वह  कार्य को शुरू किया ।

दिए गए गुरु के मंत्र के द्वारा नील सर्प प्रकट हो गया नील सर्प काफी विशालकाय था । लेकिन वह धीरे-धीरे बिल्कुल अजगर की तरह से चल रहा था । सौ गज यानी कि सौ पैर के कदम चलने के बाद में वो रुक गया । उसने फिर मंत्र जपा फिर सौ गज़ चलने के बाद वो रुक गया फिर मंत्र जपा फिर सौ कदम चला और अलग-अलग दिशाओं की ओर लेता हुआ जंगल के रास्ते से जा रहा था । तभी वहां पर एक ब्राम्हण प्रकट हो गए ब्राम्हण उस तरफ आने लगे । और उससे कहने लगे हे पुत्र मुझे बहुत जोर से प्यास लगी हुई है । कृपया मुझे पानी पीने की जगह का रास्ता बताओ । तो इसपर भाम ने कुछ भी जवाब नहीं दिया । फिर दोबारा से उसने पूछा तो इस बार भी भान ने जवाब नहीं दिया । तीसरी बार पूरी जोर से क्रोधित होकर के ब्राह्मण ने कहा क्या तुझ में इतनी भी समझ नहीं है तू जो भी विद्या जानता होगा भूल जाएगा अगर तुझे इतना ही घमंड है । अपने आप पर कि तुम मेरी बात को अनसुना कर रहा है । इस बात से घबराकर भाम ने तुरंत उसे बताया कि आप बाई तरफ जा करके एक जगह है वहां पर एक कुआं है । उस जगह पर आप जाकर के पानी पी लीजिए ।

ऐसा कहने के बाद वह ब्राह्मण वहां से चला गया । लेकिन तभी उसने देखा कि जो सर्प सामने उसके आगे जा रहा था वह वापस पलट चुका था । और गुस्से से अपना फन पुकारते हुए उसकी तरफ दौड़ने लगा । अब क्योंकि कोई मार्ग नहीं था भाम को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । कि यह सब क्या हो गया है गलती उसी की थी उसे बोलना नहीं चाहिए था । उसे इशारे में ही समझा देना चाहिए था । क्यों उसे अपनी बुद्धि का प्रयोग करना नहीं आया । चुकीं वह महान योगिनीयों की साधना करना चाहता है । तो इस प्रकार की बाधाएं उसके सामने आना तो स्वाभाविक सी बात थी । और सर्प ने उस नीले सर्प ने बड़ी ही तेजी के साथ उसके पैर में काट दिया । पैर में काटने की वजह से उसे नशा चढ़ने लगा । भाम को कुछ न सूझा भाम तीव्रता से भागता हुआ । अपने गुरु की ओर चलें लगा गिरते पड़ते गिरते पड़ते । उसका यही उद्देश्य था कि किसी भी तरह अपने गुरु तक पहुंच जाए । क्योंकि अगर वह गुरु तक नहीं पहुंच पाया तो बीच में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा ।इसलिए वह दौड़ता हुआ जाने लगा । हालांकि उसकी सांस फूलती जा रही थी । और वह भय से व्याकुल भी था । शरीर और होंठ उसके सब हिलने से लगे थे ऐसा लग रहा था । और जहर का असर उस पर तीव्रता के साथ में होने लगा । अपने गुरु के द्वार पर धीरे-धीरे पहुंचते-पहुंचते जैसे उसने गुरु को देखा तब अपने को संभाले नहीं रख सका और उसी मठ के द्वार पर ही गिरकर बेहोश हो गया । अब आगे क्या हुआ यह हम भाग 2 में जानेंगे । तो अगर आपको योगीपुर कि महायोगिनी मठ कथा पसंद आ रही हो तो लाख लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

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