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योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 4

योगिनी पुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसे की कहानी चल रही है आपने पढ़ा कि भाम को मोहिनी देवी की शक्ति प्राप्त हुई थी । मोहिनी देवी ने उन्हें एक नीलमणि प्रदान की थी । जो भोजन इच्छा और विभिन्न प्रकार की शक्तियों को देने वाली थी । इस बात से आकर्षित होकर के गुपचुप तरीके से उसके पास उस आश्रम के गुरु परंपरा में जितने भी शिष्य थे वह चुप चुप करके उनके पास आने लगे । और अपनी अपनी बातें बताने लगे उससे यह प्रार्थना वो करने लगे कि हमारी यह इच्छा है हमारी वह इच्छा है । सब की इच्छाओं को जान करके बड़ी खुशी खुशी के साथ में भाम उनकी इच्छा को पूरी करने का वादा करता साथ ही अपनी नीलमणि का प्रयोग करके उनकी सारी इच्छाएं पूरी कर देता । इस शक्ति के कारण अब धीरे-धीरे करके आश्रम व्यवस्था में खलल पड़ने लगा सब के सब चुपके चुपके उसके पास जाते और अपनी इच्छा की पूर्ति करा लेते । यह बात गुरु को भी पता लगने लगी लेकिन बेचारे वह भी भला क्या सकते थे उनके सामने कोई विकल्प नहीं था के वह कुछ भी कर पाए । इस तरह से साधना के कई दिन बीते चले गए ।

मोहिनी शक्ति के कारण गांव वाले भी वहां पर आकर इकट्ठा होने लगे साथ ही उनके मवेशी भी आने लगे । क्योंकि सबके लिए भोजन सब के विभिन्न प्रकार के सामानों का प्रबंध भाम कर दिया करते थे । भाम की शक्ति बढ़ती जा रही थी और प्रसिद्धि भी बढ़ रही थी इसी बात से बड़ी ही खतरनाक स्थिति पैदा होने लगी । सभी के सभी लोग बिना काम किए अपनी कामना पूरी करवाने के लिए रोज वहां लाइन लगा कर के खड़े होने लगे । इस प्रकार से गुरु को भी लगा कि कहीं मेरा भक्त यह व्यक्ति भटकना जाए और साधना के पथ से डीग ना जाए । लेकिन वह भी बेचारे क्या कर सकते थे उनकी भी कोई सामर्थ्य नहीं थी लेकिन यह तो एक परीक्षा थी । और परीक्षा में कुछ ना कुछ तो ऐसा ही होता है जिसके कारण परीक्षा देनी ही पड़ती है । मोहिनी शक्ति से बहुत ही ज्यादा संतुष्ट होकर भाम ने सोचा अब तो उसे साधना करने की भी आवश्यकता नहीं रह गई है लगता है कि इसी शक्ति के माध्यम से वह  तुल्य हो जाएगा । और उनका प्रभाव क्षेत्र उस में बढ़ता चला जा रहा था कई गांव के लोग वहां पर अपने मवेशियों के साथ आ गए थे ।

मवेशियों को भोजन अपनी इच्छा अनुसार नीलमणि प्रदान कर देती थी जानवरों को कहीं चरनें नहीं जाना पड़ता था । क्योंकि उस क्षेत्र के सारे मवेशी और उनके जो मालिक थे सब वहां  रहने लगे आश्रम का क्षेत्र बहुत ही विस्तार हो गया । और वह जगह एक बहुत ही विशालकाय नगर जैसा लगने लगा । लेकिन जीव जीव का भोजन है इसी वजह से वहां जितने भी क्षेत्र में जंगल में शेर रहते थे । वह सब के सब आ करके उस नगर के चारों तरफ इखट्टा हो गए और अपने भोजन के लिए उन जानवरों को देखने लगे और फिर वहीं से शुरू हुआ वह प्रक्रिया । जिसके माध्यम से सिंहो ने उन जानवरों का शिकार करना शुरू कर दिया लगातार शिकार करते चले जा रहे थे । और इस प्रकार जिस जगह क्योंकि जहां भी धन संपदा वैभव संपन्नता आती है उस जगह आतंक भी अवश्य ही आता है । इसलिए वहां पर सिंह के कारण आतंक होने लगा वहा बहुत सारे सिंह इकट्ठा हो गए थे । और वह शिकार करने के लिए आने लगे इन जानवरों के कारण बड़ी स्थिति गंभीर होती चली गई । आए दिन सिंह हमला करके जानवरों को मार रहे थे साथ ही साथ सिंहो के हमले के कारण धीरे-धीरे मनुष्य पर भी प्रभाव बढ़ने लगा ।और वह उनको भी मारकर खाने लगे वह सिंह इतने बलशाली होते चले जा रहे थे कि उनको रोकना का सामर्थ्य किसी में भी नहीं थी । वहां लोगों ने उन्हें रोकने के लिए अलग-अलग भिन्न-भिन्न प्रकार की शक्तियों का प्रयोग किया कोई भाला तीर कमान लेकर उनका सामना करने उठता ।

तो कोई आग लगा देता लेकिन अद्भुत नजारा यह बात का था कि ऐसा क्यों हो रहा है । कि इनका किया गया कोई भी वार प्रकार वो रोक ले रहे हैं । और उन्हें कोई भी क्षती नहीं हो रही है और उनकी शक्तियां बढ़ती चली जा रही थी । माया का ऐसा आडंबर रचा गया जिसमें सिंहो की शक्तियां अद्भुत रूप से बढ़ती चली गई और अब वह मनुष्य को भी उठा उठा कर ले जाने लगे । इस बात से भयभीत होकर सभी लोगों ने एक बार फिर से भाम से प्रार्थना की भाम से इसका हल पूछा गया । भाम को कुछ समझ में नहीं आया और भाम ने अपने गुरु से इस विषय में आज्ञा मांगी की । हे गुरुदेव मुझे इसका कोई मार्ग बताइए के किस प्रकार से मैं लोगों की इस समस्या का हल कर सकूं । गुरु ने कहा क्योंकि मोहिनी शक्ति के माध्यम से तुम्हें यह शक्ति प्राप्त हुई है तो मोहिनी देवी का ही आवाहन करो तुम्हें अवश्य ही कोई ना कोई मार्ग अवश्य बताएंगी । इसलिए तुम आज जब साधना और पूजा संपन्न कर लेना उसके बाद उनका ध्यान करके उन्हें पुकारने की कोशिश और चेष्टा करना । और अपनी नीलमणि पर उस शक्ति का ध्यान लगाना अपनी पूजा और उपासना उस दिन की रात को संपन्न करने के बाद वहां सोने से पहले एक बार फिर से    भाम ने लोगों की चेष्टाओ को देखते हुए । मोहिनी देवी का ध्यान किया मोहिनी देवी वहां पर प्रकट हो गई ।

मोहिनी देवी ने कहा कि सुनो भाम इस समस्या का कोई हल नहीं है इसका हल बड़ा ही कठिन है क्या तुम कर पाओगे । भाम ने कहा मैं अवश्य करने की कोशिश करूंगा मेरी यह चेष्टा रहेगी कि अवश्य ही मैं यह कार्य संपन्न कर पाऊं । ऐसा करके मोहिनी देवी को संतुष्ट किया । मोहिनी देवी ने कहा तुम गोपनीय तरीके से सरोवर से जल लेकर आओ और उसमें नीलमणि को डाल दो । और उस नीलमणि को जब सिंह हमला करें तब उनकी तरफ फेंक देना । नीलमणि उनके शरीर से जैसे ही छूएगी वह सारे के सारे जितने भी सिंह हैं उन सब का हृदय परिवर्तन कर देगी । और वह सब जंगल की तरफ लौट जाएंगे । लेकिन एक बात का ध्यान रखना जैसे ही नीलमणि उनके शरीरो से छूएगी हमेशा के लिए नीलमणि गायब हो जाएगी । सोचलो इसके माध्यम से तुम हमेशा के लिए नीलमणि को खो दोगे । ऐसी अवस्था में अब भाम के लिए बड़ी ही दुखद उत्पन्न हो चुकी थी । भाम ने अपने गुरु से पूछा अपने मित्र साथियों से पूछा उन सभी की बातें सुनता रहा और  मन में एक भयंकर कुतूहल था ।कि इतनी प्यारी निलमणि वह किस प्रकार से गवा दे जो उसे इतनी शक्तियां और सामर्थ्य प्रदान कर रही है । मन में उसे बार-बार इस बात का विचार आ रहा था कि आखिर अब उसे क्या करना है । कुछ तो ऐसा करना होगा क्या वह अपनी नीलमणि को गवा दे या फिर यह स्थान छोड़कर भागकर चला जाए और हमेशा के लिए अपने पास इस नीलमणि को रखे रहे । उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था अब वह क्या करें तो क्या ना करें । पूरा दिन वह इसी उधेड़बुन में विचार करता रहा अंततोगत्वा एक बार फिर से वह अपने गुरु के पास गया । और गुरु से प्रार्थना कि गुरू जी क्या मैं अपनी इस नीलमणि की बलि दे दू जबकि मैं जानता हूं कि मुझे ऐसी मणि कभी प्राप्त नहीं होगी ।

आप कुछ तो बताइए कोई मार्ग बताइए गुरु ने कहा जीवन ऐसा ही है पुत्र की कुछ दे कर ही कुछ प्राप्त होता है । इसलिए अब तुम्हारी जो इच्छा हो वह करो लेकिन मैं तुम्हें सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि जीवन में सब कुछ अपने लिए ही करना उपयुक्त नहीं होता है । कभी-कभी दूसरों के लिए भी जीवन को समर्पित रखना चाहिए । उनकी बात को ध्यान पूर्वक रखके दिल को बहुत ही पसीजते हुए बहुत ही दुख भरे मन से उसने यह निर्णय लिया कि । वह जाएगा और सरोवर से जल भरकर मटकी में लाएगा और उसमें नीलमणि रखेगा । उसने अगले दिन वह आ गया और जब वह उसे लेकर आ रहा था उसके मन में इतना अधिक दुख हुआ कि वह रोने लगा और रोते-रोते उस नीलमणि को उस पानी में डाला सिंहो का हमला जैसे ही शुरू हुआ । उसने रोते रोते उनकी तरफ वह पानी उछाल दिया दिव्य शक्ति से संपन्न नीलमणि जाकर के तुरंत ही उन सिंहो के शरीर से चिपक गई । जैसे एक सिंह के शरीर से वह चिपकी उसका असर सभी सिंहो पर हो गया । सभी का हृदय परिवर्तन हो गया सिंह अचानक से ही शांत हो गए और सब के सब जंगल की ओर लौटने लगे ।

इसी के साथ मणि हमेशा के लिए गायब हो गई । और रात्रि के वक्त वह जब साधना करने बैठा तब वह रोते-रोते साधना कर रहा था । जब उसकी साधना उस दिन की संपन्न हुई तभी वहां पर एक महाशक्ति और प्रकट हुई । और उसने तुरंत ही उसे दर्शन देते हुए कहा मेरा नाम गोधनी है कहो तो सभी कुछ भस्म कर दू कहो तो सब को नष्ट कर दूं तू क्यों रोता है तू यह नहीं जानता के जिस मोह में तू नीलमणि के तू पड़ गया है वह एक माया है । और माया का कोई अस्तित्व नहीं है माया इच्छा से उत्पन्न होती है और जब इच्छा ही नहीं होगी तभी तो सिद्धि प्राप्त होती है । तू तो इच्छा में फस गया अगर ऐसा ही रहा तो तू अपनी साधना को कैसे पूरा कर पाएगा ।और उसको समझाने लगे सारी बात को समझ कर के अब पहली बार उसकी आंखें खुली भाम को लगा । यह तो मेरी परीक्षा मात्र थी वरना इतनी बड़ी माया कहां से रची होती किस प्रकार से सारी शक्तियां देने वाली नीलमणि ने ऐसी माया रची कि आखिर वो शक्ति मेरे हाथ से निकल ही गई ।लेकिन अच्छा है कि मैं अपनी इस परीक्षा में असफल नहीं हुआ अगर मैं उस नीलमणि को नहीं त्यागता तो निश्चित रूप से मेरी सिद्धि कभी मुझे प्राप्त नहीं होती । और मुझे साधना का फल भी नहीं प्राप्त होता और मेरी साधना यहीं पर रुक जाती और कभी ना कभी इस नीलमणि को कोई ना कोई तो छीन ही लेता मुझसे । और जिस प्रकार से सब कुछ मेरा नष्ट हो जाता है इस बात को समझते हुए उसने अपने गुरु को धन्यवाद कहा । और कहा कि मैं एक बार फिर से अगली परीक्षा के लिए तैयार हूं ।

इस बार मेरे शरीर में देवी गोधनी का प्रवेश हो गया है गुरु ने तुरंत ही उसे चेताया अबकी बार तुम्हें अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है । संसार में क्रोध से खतरनाक कुछ भी नहीं है अधिकतर क्रोध मन को नष्ट कर देता है मन के नष्ट हो जाने पर आदमी विचार शून्य हो जाता है । विचार होने पर वह कोई भी निर्णय जल्दी बहुत ही तीव्रता से ले लेता है ।और दूसरे के साथ अपना भी नुकसान कर बैठता है इस बात को समझते हुए । तुम्हें क्रोधनी देवी के वेग को सहन करना होगा जिस प्रकार मोहिनी देवी ने तुम्हारे मन को अत्यधिक भरम कर दिया था । और तुम अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे लगातार रोते जा रहे थे । इसी प्रकार अब अपने क्रोध को अपने वश में करने की पूरी शक्ति लगा देना । क्योंकि आप क्रोधनी देवी आपका परीक्षा लेगी क्रोधनी देवी की शक्ति कारण अब तुम किसी का भी नुकसान कर सकते हो । याद रखना इसलिए अपने क्रोध को वश में करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है । क्रोधनी देवी के कारण भाम के अंदर अधिक ऊर्जा का संचार हो चुका था भाम को लगता था वह जो भी करेगा उसे रोकने की सामर्थ किसी में भी नहीं और तभी उस नगर के राजा का वहां आगमन होता है । राजा जैसे उसके पास आता है क्रोधनी के प्रभाव के कारण इस स्थान पर भाम बैठा होता है वह उठता तक नहीं है । और जिस वजह से सामने से राजा जब वहां आता है तो उसे इस बात का अपमान महसूस होता है कि सारे स्वयं गुरु भी उठा । लेकिन यह एक क्यों नहीं उठा वह क्रोध से उसके गुरु से कहता है । क्या मैं इसे मृत्युदंड की सजा दे दो तो उसका गुरु से समझाता महाराज मेरी पहले बात तो सुनिए । अगर आपने ऐसा कुछ किया तो आपके लिए भी कुछ भयंकर हो सकता है । राजा गुस्से से कहता है एक राजा को रोकने का सामर्थ किसी व्यक्ति में नहीं होता है और अब मेरा निर्णय है कि मैं इसे जरूर दंड दूं । और ऐसा कह कर भाम की ओर बढ़ता है । आगे क्या हुआ यह जाने के अगले भाग में आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 5

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