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योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 2

योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 2

नमस्कार दोस्तो धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । पिछले भाग में अपने जाना कि किस प्रकार से भाम ने अपने गुरु से आज्ञा लेकर के महायोगिनी की साधना को शुरू किया था l इसके लिए उसे नील सर्प विद्या का प्रयोग करना था, लेकिन वह उसमें गलती कर बैठा, गलती हो जाने की वजह से सर्प ने उसे ही काट लिया था l अपने प्राणों को बचाने के लिए भाम  दौड़ता हुआ अपने गुरु के आश्रम की ओर दौड़ रहा था और दौड़ते दौड़ते जब वो वहां पहुंचा तो दूर से उसने गुरु को देखा l गुरु को चिल्लाते हुए वहीं पर धड़ाम से गिर गया l गुरु ने उसकी ऐसी अवस्था देखकर तेजी से उसकी ओर दौड़ लगाई और उसे उठाया l मंत्रो को अभिमंत्रित करके फिर से उसी नील सर्प को बुलाया गया l नील सर्प ने अपना जहर वापस चूस लिया क्योंकि वह तांत्रिक सर्प था l इसलिए अपना जितना भी जहर था उसने वापस चूस लिया था l

धीरे-धीरे लगभग 12 से 13 घंटे बाद भाम को होश आ गया l भाम ने अपने गुरु की ओर देखकर अपनी आंखें खोली और आश्चर्यचकित सा हुआ उनसे बोला गुरुजी क्या मेरे प्राण बच गए है ? तब गुरु ने कहा हां तुम्हारे प्राण तो बच चुके हैं लेकिन तुम्हें हर बात में सावधानी को बरतना होगा l मैं तुम्हारे साथ नहीं होता या तुम आश्रम की ओर दौड़ नहीं लगाते तो, किस प्रकार से बचते, इस संबंध को हमेशा समझ लो यह बात समझना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है क्योंकि जब कोई भी साधना करने बैठो तो उसकी ऊंच-नीच को जानना बहुत ज्यादा आवश्यक हो जाता है l अगर आप उसकी ऊँच नीच को जाने बिना कोई साधना करते हैं तो उसका प्रतिफल आपके ऊपर उल्टा भी पड़ सकता है l किसी मायावी शक्ति ने तुम्हारा मार्ग रोकने की कोशिश की और उसी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया था l अब जरा सोचो साधना के प्रारंभ में ही तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है तो आगे क्या क्या हो सकता है l

विचार कर लो क्या तुम यह साधना करना चाहते हो अथवा नहीं, भाम उठा और अपने गुरु के पैरों को दबाने लगा और पैर दबाते दबाते उसने कहा गुरुदेव अगर आप मेरे साथ हैं तो भला मुझे किस बात का भय है l मैं अवश्य ही इस कार्य को संपन्न करूंगा, जीवन में प्राण तो कुछ समय के लिए ही मिला है और यह हर व्यक्ति को मिलता है, लेकिन उसमें भी वही व्यक्ति सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है जो जीवन मृत्यु को एक खेल समझकर आगे बढ़ता है l इसलिए मुझे इस खेल में अब आनंद आ रहा है l मैं इस बात से भयभीत नहीं हूं कि मेरे साथ महायोगिनी देवी क्या करेंगी, लेकिन इस बात के लिए सदैव तत्पर हूं कि मैं इस कार्य को अवश्य ही संपादित करूंगा l ऐसा सोचते हुए मैं सदैव आपका नमन करता हूं, मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए गुरु जी और अगले चरण की प्रक्रिया के लिए मुझे तैयार समझीये l गुरु उसकी इस बातों से काफी प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा ठीक है मैं तुम्हे गोपनीय विद्या बताऊंगा, जाओ सरोवर के तट से मटकी में जल भरकर के लाओ l भाम वहां से नजदीक ही एक सरोवर पर गया और वहां से उसने मटके में जल भरा जिसे गुरु के पास लेकर आ गया l

गुरु ने पूछा कि क्या तुम जल ले आए तो भाम ने कहा हाँ गुरुदेव तो गुरु ने इशारा किया, यह फावड़ा उठाओ और वह पवित्र भूमि पर नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए जमीन खोदना शुरू करो, उसके सहारे मिट्टी, एक गहरे गड्ढे के बराबर निकाल लो l ऐसे ही  नमः मंत्र का प्रयोग करते हुए वह आगे बढ़ा और उस स्थान को खोदने लगा l उस स्थान को खोदते खोदते उसने अच्छा खासा गड्ढा बना लिया l वहां जो पूरी मिट्टी थी वह कई बोरियों के बराबर थी, उन्हें वो लेकर के वह आ गया l अब गुरु ने कहा इस मिट्टी से अष्टभुजा धारिणी महायोगिनी देवी की प्रतिमा का निर्माण करो l उसने पूछा गुरुदेव यह रूप स्वरूप कैसा होगा? गुरु ने कहा ऐसी स्त्री का रूप स्वरूप बनाओ जिसकी आठ भुजाएं हैं और वह मां दुर्गा के समान हो l  तुम्हे समझने में आसानी हो इसलिए मां दुर्गा की प्रतिमा को देखो और वैसे ही प्रतिमा तुम्हें बनानी है, बाद में मैं तुम्हे बताऊंगा किस भुजा पर कौन-कौन से गोपनीय अस्त्र-शस्त्र आपको प्रदान करने है l इस प्रकार से उन्होंने अष्ट भुजा धारणी एक शक्ति का निर्माण किया, मिट्टी की प्रतिमा बिल्कुल उसी तरह बनायीं गयी जैसे मां दुर्गा की प्रतिमा बनाई जाती है l

आठ भुजाओं वाली उस शक्ति पर आठ -आठ तरह के अलग-अलग शक्तियां विराजमान की गई l प्रत्येक हाथ पर आठ शक्तियों का निर्माण किया गया था l इस प्रकार वह 8 शक्तियां मिलकर कुल 64 शक्तियों का निर्माण उनके हाथों पर हुआ था l इस प्रकार से वह 64 योगिनी देवी की साकार प्रतिमूर्ति के रूप में प्रस्तुत हो गई l इसके बाद गुरु ने कहा अब ये प्रतिमा तैयार हो चुकी है, जब यह सूख जाए तो फिर इसे लाल वस्त्र पहनाना और मुकुट भी धारण करवाना l इस प्रकार उन्होंने उस पर मुकुट पहनाया और साथ ही साथ उसे लाल वस्त्र भी पहनाए गए l और पुष्पों से पूरे शरीर को ढक दिया गया l लाल रंग के समस्त पुष्पों का उस पर प्रतिपादन किया गया l सारे पुष्पों से उसको ढक दिया गया और इस प्रकार से  उसकी आराधना शुरू हुई, उसी के आगे एक चौकी को बनाने की गुरु ने आज्ञा दी l गुरु ने कहा इसके आगे एक लाल वस्त्र बिछाकर के चौकी का निर्माण करो l चौकी पर चार दीपक चार कोने में और एक दीपक बीच पर रखो l इस साधना को शुरू करने को कहा l भाम ने भी ऐसा ही किया और 4 चार कोने में और बीच में एक दीपक स्थापित किया l इस प्रकार पंच शक्ति का निर्माण किया गया l पंचशक्ति दीपक बनाया गया, गुरु ने कहा प्रत्येक दीपक तुम्हारी तपस्या की परीक्षा भी लेगा, इसलिए इन 5 दीपको को ध्यान से देखो l

अब इसके आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता हूं और अब तुम्हे साधना करनी है, विश्वास रखना है कि देवी जो भी तुमसे कहे वह तुम्हें करना है l परीक्षा में तुम्हें सफल होना है, याद रखना किसी भी प्रकार से पराजित होने का अर्थ बहुत ही बुरा होगा l कुछ भी हो लेकिन पराजित मत होना l योगिनी साधनाओं में योगिनी देवी जल्दी ही रुष्ट हो जाती हैं और प्रसन्न होने पर तुरंत ही सब कुछ देने की क्षमता भी रखती हैं और तुम तो साक्षात 64 योगिनी स्वरूपा महायोगिनी की साधना कर रहे हो, इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने पक्के मन से इस साधना को करो गुरु की बात को मान करके तुरंत ही भाम ने वह सब कुछ किया जो गुरु ने उसे कहा था फिर गुरु ने उनके कान में वह गोपनीय मंत्र फूंका और कहा, इस मंत्र का तुम्हें उच्चारण करना है l इस मंत्र को प्रतिदिन तुम्हें 101 माला रात के पहले पहर से सुबह के पहले पहर होने तक करनी है l इस प्रकार से गुरु के आज्ञा अनुसार उस स्थान पर चारों तरफ सुरक्षा घेरा बना कर के भाम बैठ गया और साधना करने लगा, साधना की सारी विधियों को गुरु के द्वारा पहले ही बताया जा चुका था इसलिए साधना शुरू हुई l सुबह होते अचानक ही साधना जैसे ही समाप्त हुई भाम इतना थक चुका था कि सुबह के प्रकाश निकलने से पूर्व ही 101 माला जप करने के बाद वह उसी स्थान पर लेट गया अर्थात सो गया l

जैसे ही वह सोया पहली ही रात्रि में एक भयंकर देवी उसके सामने प्रकट हुई जिसका मुंह आगे से सूअर का था l सूअर के रूप में आई वह देवी ने उसके शरीर को अपने नथुनों से रगड़ना शुरु किया l उसकी छाती को जोर से रगड़ने लगी l सपने में बहुत ही ज्यादा भयभीत होकर हाथ जोड़ा हुआ उसने कहा हे देवी आप कौन हैं? आपका सारा शरीर तो स्त्री का है लेकिन मुंह पूरा सूअर का है l आप कौन हैं? इस प्रकार कहने पर सबसे पहले देवी ने कहा मैं लोभिनि शक्ति हूं तुम मुझे अपने शरीर में प्रवेश दो, मैं महायोगिनी की पहली शक्ति हूं उन पांच शक्तियों में से मैं पहली शक्ति हूं जो तुम्हारी परीक्षा भी लेगी और तुम्हारे सामर्थ्य को भी धारण करेगी l याद रखना साथ ही साथ तुम्हें अपनी साधना को भी नहीं त्यागना है और दिन के समय में जो भी घटनाएं घटेगी उसके लिए किसी से भी सहायता नहीं लेनी है l ऐसा कहकर के लोभिनि देवी उसकी छाती को जोर से अपने मुंह से काटने लगी भाम दर्द से चिल्ला उठा और उसकी छाती को फाड़ कर वह उसके शरीर में प्रवेश कर गई l दर्द से चीखता और चिल्लाता हुआ तुरंत ही वह उठ बैठा और जब उसने देखा तो वह पसीने से तरबतर था l जब वह उठा तो उसने देखा कि जैसे उसकी छाती कुछ भारी सी महसूस हो रही है, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि रात्रि को यह क्या हुआ है l

पहली रात्रि में ही ऐसा होना बड़े ही अचरज की बात थी लेकिन क्योंकि गुरु की आज्ञा थी कि साधना करते रहना है और किसी से कुछ भी सहायता नहीं लेनी है l यह तुम्हारा मार्ग है, तुम्हें ही आगे बढ़ना है l इस प्रकार सुबह काफी भोर हो जाने के बाद में वहां से उठकर अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गया तभी गुरु ने उसे आज्ञा दी की जाओ आश्रम के लिए लकड़ियों की व्यवस्था करके ले आओ l गुरु की आज्ञा को मान करके वह जंगल में चला गया l जंगल में कुछ दूर गया हुआ था तभी एक वृद्ध आदमी बड़ी जोर से कराह रहा था l उस आदमी को देखकर के इसने मन ही मन सोचा कि क्यों ना इस व्यक्ति की सहायता की जाए आखिर यह क्यों कराह रहा है l उसके पास जाकर के जैसे बैठा वह बूढ़ा आदमी कहने लगा मुझे थोड़ा सा जल दे दो कहीं से भी व्यवस्था करो और मेरे इस बक्से की सुरक्षा करो l उसके पास एक लकड़ियों का बना बक्सा था l उसकी ओर इशारा करते हुए बोला देख लो उसे, उसकी रक्षा तुम्हें करनी है l मेरे लिए पानी लेकर आ जाओ, जैसे ही भाम पास पहुंचा और  उस बक्से का ढक्कन खोला तो उसने देखा की उसमे अत्यधिक मात्रा में स्वर्ण भरी हुई है l

यह देखकर भाम के मन में विचार आया कि क्यों ना मैं इस बक्से को लेकर चला जाऊं बूढ़ा आदमी तो हिल डुल भी नहीं सकता है फिर याद आया कि उसे अपनी साधना भी तो पूरी करनी है l उसके मन में आया क्या साधना करके करूंगा? इतने अधिक धन के बाद तो मैं स्वयं ही राजा बन जाऊंगा l इस दौरान वह कुछ नही  सोच पा रहा था फिर उसने मन को मजबूत किया और अपने आपको को समझाया कि, ऐसा करना गलत होगा, यह बूढ़ा बेचारा मुझसे कुछ मांग रहा है l इसके बाद वह व्यक्ति पानी भरने के लिए आगे सरोवर पर गया और वहां से पानी भर कर आ गया l उसने वह पानी उस बूढ़े व्यक्ति को पिलाया l बूढ़े व्यक्ति को पानी पिलाने के बाद में उसने कहा आपका समान सुरक्षित है जाकर देख लीजिए l बूढ़ा उठा और मुस्कुराता हुआ कहने लगा कौन सा सामान बच्चा ? भाम को बड़ा आश्चर्य हुआ, भाम ने उस तरफ इशारा कर के कहा जिधर आपकी पेटिका रखी हुई है जिसमें सोना भरा हुआ है l बाबा हंसते हुए कहने लगा क्या कह रहे हो उधर तो कुछ भी नहीं है l वहां तो एक सिर्फ मेरी पोटली पड़ी हुई है जाकर देख लो उसमें फटे पुराने कपड़े हैं l

वहां पर जाकर देखा तो वास्तव में फटे पुराने कपड़े थे, आखिर वह पोटली गायब कहां हो गई थी l यह जो पोटली के रूप में दूसरी पोटली आ गई थी, वह क्या थी ? यानी जो पहला बक्सा था वह अब पोटली कैसे बन गया l यह सब सोचने वाली बात है, ऐसा चमत्कार उसने पहली बार देखा था या किसी ने इसे बेवकूफ बना दिया था उसे कुछ भी समझ में नहीं आया l एक बार फिर से वह साधना करने के लिए उस रात बैठ गया l मंत्र जाप करते-करते जैसे ही उसकी सौ माला खत्म हुई उसे फिर से नींद आ गई और वह गिर पड़ा, जैसे ही वह गिरा फिर से सपना देखना शुरू किया उसकी छाती में भयंकर दर्द हुआ और उसकी छाती फाड़ करके वह सूअर के मुंह वाली देवी बाहर निकल आई और उससे कहने लगी अच्छा हुआ जो तू मेरे इस लोभीनी शक्ति के मार्ग से बच गया l अगर तूने वह सोना ले लिया होता तो मैं तुझे जान से मार डालती l आज तुझे मैं मुक्त करती हूं और तेरी पहली परीक्षा में तुझे सफल करती हूं l यह कहकर के वह सुअर के मुख वाली देवी वहां से गायब हो गई l भाम अब अच्छा महसूस कर रहा था उसे चारों तरफ सुगंध सी आने लगी थी और जब वह उठा तो बहुत ही ज्यादा प्रसन्न था l

उसकी  प्रसन्नता को देखकर गुरु ने भी मुस्कुराते हुए कहा, लगता है पहली परीक्षा में तुम सफल हो गए हो l लेकिन आगे आने वाली परीक्षाएं इतनी आसान नहीं होने वाली हैं, लोभिनि से तो बच गए लेकिन आगे और चार शक्तियां तुम्हारा इंतजार करेंगी उनसे भी तुम्हें बचना होगा, लेकिन मैं इसमें तुम्हारी कोई सहायता नहीं करूंगा l ध्यान रखना किसी भी प्रकार से असफल मत होना l इस प्रकार कहकर के गुरु वहां से चलें गए और फिर अगली रात उसने तपस्या चालू की रात्रि में ही 101 माला करते समय उसे ऐसा लगा उसकी पीठ में जैसे कोई नाखून रगड़ रहा हो उस भयंकर पीड़ा होने लगी बिना इस बात कि परवाह करते वक्त उस भयंकर दर्द को सहते हुए उसने अपनी 101 माला पूरी की उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी पीठ जल गई है । आगे क्या हुआ यह हम जनेगे अगले 3 भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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