Site icon Dharam Rahasya

रहस्यमई किले का पारस पत्थर भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। रहस्यमई किले का पारस पत्थर भाग 1 में आपने जाना कि किस प्रकार से।

यहां पर तांत्रिक अपनी गलती कर जाता है और वह उस टिटहरी के बच्चों पर प्रहार कर एक बहुत बड़ा अपराध कर देता है। टिटहरी के बच्चे मारे जाते हैं और तब टिटहरी उन्हें श्राप देती है और कहती है जिस पत्थर को प्राप्त करने के लिए तू इतना बुरा कर्म कर चुका है। एक दिन वह तुझसे हमेशा के लिए छिन जाएगा। यह सुनकर तांत्रिक को बहुत अधिक क्रोध आता है, लेकिन वह कर भी क्या सकता था, उसने इन दोनों पक्षियों की ओर ध्यान नहीं दिया और चल दिया वह पत्थर लेकर खुशी खुशी, क्योंकि वह यह बात जानता था कि माता इस पत्थर के माध्यम से उसे अतुलनीय धन प्रदान करने की विद्या अवश्य ही देंगी। वहां से वह जल्दी ही निकल जाता है और।

विभिन्न रास्तों से होता हुआ आखिर वह उसी स्थान पर पहुंच जाता है। जहां पर माता कैला देवी बालिका रूप में विराजमान थी।

उन्होंने उसे आते देखकर बहुत ही क्रोध में भरकर जोर से कहा, मूर्ख गया था।पुण्य लेने लेकर पाप आ गया।

यह सुनकर तांत्रिक कहता है। माता मुझे क्षमा कीजिए। मैं क्रोध में भर गया था। मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है। कृपया आप मुझे क्षमा कीजिए और मुझे सिद्धि प्रदान कीजिए।

बालिका स्वरूपा माता उसे कहती हैं। अवश्य ही तूने पाप किया है और पाप से ही विभिन्न प्रकार के अन्य पाप पैदा होते हैं। इसलिए जिस पाप को तू लेकर आया है उसे स्वयं ही जल्दी समाप्त कर देना। अगर तू ऐसा नहीं कर पाया तो उस पक्षी की कही हुई बात सत्य सिद्ध हो जाएगी।

तब तांत्रिक ने कहा माता मैं इस बात का ध्यान रखूंगा कि मुझसे अब कोई गलती ना हो। तब माता उससे कहती हैं क्योंकि तूने मुझे इस बंधन में ले रखा है। इसलिए अब मैं तुझे एक अत्यंत ही गोपनीय विद्या प्रदान करती हूं। इस विद्या के माध्यम से तू जितना चाहे उतना स्वर्ण बना सकेगा और फिर तेरे आगे संसार में कोई भी धन में बराबरी नहीं कर पाएगा। तब उस तांत्रिक ने माता को प्रणाम करते हुए कहा, माता मुझे वह विद्या प्रदान कीजिए। मैं आपको मुक्त करता हूं।

माता! उसी स्थान पर। अपने! एक गुप्त स्वरूप में 1 कुंभ में बदल गई। और वहां से बाहर निकल कर उस कुंभ को दिखा कर कहने लगी कि इस कुंभ को तुझे इस पत्थर से भरना है और। तुझे? इसके लिए। शुद्ध पारद लाना पड़ेगा। यह पारद तुझे पास के ही। रियासत में एक वैद्य के पास प्राप्त हो जाएगा। जा तू वहां जा।

और शुद्ध पारद लाकर इस कुंभ में भर देना। इसके अंदर ही तुझे इस पत्थर को डालकर मेरे बताए गए गुप्त मंत्रों का जाप करना होगा। अगर तूने 21 दिन यह प्रयोग कर लिया। तो यह पत्थर चमत्कारिक हो जाएगा। इसलिए मैं तुझे यह विद्या प्रदान करती हूं।

जब तक इस महाकाली यंत्र पर अग्नि की धीमी आंच में तू उस कुंभ को गर्म करता रहेगा तब तक मेरे बताए गए गुप्त मंत्र का जाप करते रहना। और? जब पूरे 21 दिन समाप्त हो जाए तो फिर तू इस कुंभ को खोल देना और उसे खोल कर जब तू देखेगा तो यह चमत्कारी पत्थर बहुत ही अधिक दिव्य हो चुका होगा। इसकी विशेषता यह होगी कि इस पत्थर को तू जिस भी लोहे की वस्तु पर छुआ देगा, वह स्वर्ण में बदल जाएगी। इस प्रकार तू अनंत स्वर्ण बना सकेगा। अब मैं अपने निजधाम की ओर जाती हूं। और इस प्रकार देवी मां बालिका स्वरूप में वहां से अंतर्ध्यान हो गई।

यह सारी विद्या सुनकर। उस तांत्रिक की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। वह इतना अधिक खुश था जैसे उसे। सारा स्वर्ग लोक ही प्राप्त हो गया हो। वह मन ही मन विभिन्न प्रकार के विचार बनाने लग गया। वह सोच रहा था कि अब तो मैं जितना चाहे उतना स्वर्ण बनाकर राजाओं को भी अपने अधीन कर सकता हूं, जितनी चाहे उतनी सुंदर स्त्रियां अपनी सेवा में रख सकता हूं। जितने चाहे उतने नौकर चाकर मेरे आगे पीछे मेरे एक आदेश पर दौड़ते फिरेंगे। और अब तो मैं जीवन भर खुशी में ही रहूंगा यह सब बातें सोच कर वह तुरंत ही उस स्थान की ओर गमन कर गया जिसका संकेत देवी मां ने उसे किया था। वह उस रियासत में पहुंचा लोगों से उसने पूछा कि यहां पर वैद्यराज कहां रहते हैं? तब सभी ने बताया वह आज शाम तक अपने निजधाम को वापस आएंगे क्योंकि वह राजा की सेवा में गए हुए हैं। वह उस स्थान की ओर बढ़ा जहां पर वैद्यराज का आश्रम और घर स्थापित था। वहां उसने एक कन्या को इधर-उधर दौड़ते हुए देखा। उसके रूप को देखकर वह उस पर अत्यधिक मोहित हो रहा था। उसने कहा मैं? कुछ भी कर लूंगा किंतु इस कन्या को अवश्य ही प्राप्त कर लूंगा।

क्योंकि देवी मां ने पहले ही संकेत दिया था कि एक पाप कई पापों में बदल जाता है। इसी कारण से उसके अंदर कामवासना आ गई थी क्योंकि अब धन प्राप्त करने की। इच्छा! उसे दुनिया की हर एक वस्तु को स्वयं का अधिकार प्रदान कर दिया था। वह अब संसार की प्रत्येक वस्तु को अपना समझ रहा था। और उस पर अपना अधिकार प्राप्त कर लेना चाहता था। इसी बीच वहां पर बारिश होने लगती है। बारिश में उस कन्या को भीगते देखकर। और भी अधिक वहां तांत्रिक कामुक हो जाता है। किंतु तभी वहां पर वैद्यराज आ जाते हैं। और वैद्यराज की सेवा में वह तांत्रिक उपस्थित होकर कहता है। आपका नाम मैंने बहुत दूर से सुना हुआ है। मैं आपसे शुद्ध पारद प्राप्त करना चाहता हूं। तब वैद्यराज ने कहा, ठीक है अंदर आइए, क्योंकि काफी तेज बारिश हो रही है। ऐसी अवस्था में आपका बाहर रहना उचित नहीं है। उन्होंने अपनी कन्या को कहा जाओ। जल्दी से अपने कपड़े बदलो और इन महाशय के लिए कुछ भोजन का प्रबंध करो। एक बार फिर से तांत्रिक ने उसे 14 वर्षीय कन्या को देखा। और देखता ही रह गया क्योंकि वहां बारिश में भीगी हुई काफी खूबसूरत उसे नजर आ रही थी। अब! वैद्यराज कहने लगे यह बात सत्य है, लेकिन शायद तुम यह बात नहीं जानते हो कि पारद स्वयं भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। इसी कारण से यह बहुत ही दिव्य पदार्थ है जो धरती पर मौजूद है। आखिर तुम्हें इस पारद की आवश्यकता क्यों पड़ी? तब उस तांत्रिक ने कहा। वैद्यराज मैं एक तांत्रिक हूं और मुझे कुछ गुप्त सिद्धियां भी प्राप्त हैं। उन्हीं सिद्धियों में से मुझे पारद सिद्धि की आवश्यकता है। इसके प्रयोग से में जन सामान्य को ठीक कर सकूंगा। इसलिए मुझे आपसे पारद चाहिए, वह भी पूर्ण शुद्ध। तब वैद्यराज ने पारद मंगवाया और उसे अपने सामने ही दिव्य वनस्पतियों की सहायता से शुद्ध किया।

इस प्रकार उसे शुद्ध पारद प्रदान किया। अब वह वैद्यराज को नमस्कार कर मन ही मन यह सोचते हुए कि मैं यहां वापस अवश्य आऊंगा और। इसे अपना ससुर बनाऊंगा। क्योंकि इसकी यह कन्या मुझे बहुत अधिक पसंद आ चुकी है। इस प्रकार तांत्रिक वापस अपने उस मार्ग की ओर बढ़ चला जहां से वह आया था। रास्ते में उसने देखा कि कई सारे जीव जंतु उसे देखकर।

आश्चर्य से वहां पर खड़े हुए हैं। वह इस बात को समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसा क्यों है? आगे क्या घटित हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

रहस्यमई किले का पारस पत्थर भाग 3

Exit mobile version