Site icon Dharam Rahasya

रात में अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते #garudpuran #cremated

रात में अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते Why Hindus don’t cremate after Dark?

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। एक दर्शक ने पूछा था कि आखिर रात्रि के समय में हम किसी पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते हैं और इस संबंध में जो भी ज्ञान या कथा हो उसके विषय में भी हमें बताइए तो आज का धर्म रहस्य चैनल में हम लोग इस तरह के अन्य विषयों पर भी चर्चा करते रहेंगे तो चलिए शुरू करते हैं जैसे कि हम लोगों को मालूम है कि अगर मृत्यु से संबंधित किसी प्रश्न की बात आती है तो गरुड़ पुराण सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। कहते हैं महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ जो कि भगवान विष्णु के वाहन भी हैं तो एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति यमलोक कि उनकी यात्रा विभिन्न कर्मों से होने वाले पापों के आधार पर योनियों में उनकी दुर्गति से संबंधित प्रश्न पूछे थे। तब भगवान विष्णु ने गरुड़ कि इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए उपदेश दिया था। इसी उपदेश को पुराण के रूप में हम गरुण पुराण के नाम से जानते हैं क्योंकि भगवान विष्णु के श्री मुख से गरुड़ ने सुना था। और फिर यह गारुड़ी विद्या के रूप में भी जाने जाने लगा और फिर ब्रह्मा जी ने इस ज्ञान को महर्षि वेदव्यास जी को दिया था और फिर वेदव्यास जी ने अपने शिष्य सूत जी को और जिन्हें नैमिषारण्य में जानकारी मुनियों को इसका ज्ञान दिया था तो जैसे कि इस प्रश्न से आपको पता है कि आखिर सूर्यास्त के बाद में दाह संस्कार क्यों नहीं होता है? इसके पीछे की क्या वजह हो सकती है, कहते हैं गरुड़ पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद संस्कार करना निषेध है।
रात्रि के समय अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो अगले दिन उसका संस्कार करना चाहिए। शास्त्रों को अगर ध्यान में रखा जाए तो कहते हैं। इस समय मृतक की आत्मा को कष्ट भोगना पड़ता है। इसीलिए रात्रि के समय का संस्कार नहीं करते हैं। इसके अलावा दाह संस्कार से पहले एक छेद वाले घड़े में जल भरकर शव के आसपास परिक्रमा भी की जाती है। फिर उसे फ़ोड़ दिया जाता है। यह इसका वर्णित है कि मृतक की आत्मा अपने शरीर से मोहभंग कर दें क्योंकि इंसान का जीवन भी घड़े के समान ही हर वक्त क्षेत्र से टूटा रहता है और यह माना जाता है कि जीवन एक दिन समाप्ति की ओर बढ़ रहा है तो इन सब बातों के आधार पर बहुत सारी ऐसी चीजें निकल कर आती। क्योंकि अंतिम संस्कार के संबंध में बहुत सारी नियमावली मानी जाती हैं, लेकिन हम लोग प्रश्न कि जहां तक बात कर रहे हैं, उसके आधार पर एक स्वयं के मेरा भी अनुभव है कि एक गांव में में उत्तराखंड के रहता था। वहां पर एक स्त्री की जो काफी बूढ़ी थी। लगभग 85 वर्ष की उनकी उम्र थी। रात्रि के समय उनकी मृत्यु हो जाती है। हालांकि उस वक्त शाम का 5-6 बज रहा था तो लोगों ने कहा, इनको अभी जलाया जा सकता है क्योंकि अभी पूरा अंधेरा नहीं हुआ। फिर किसी ने कहा, ऐसा करना उचित नहीं होगा और फिर सब लोगों ने इस बात के लिए रुकना ही ठीक समझा तो कहते हैं। लगभग रात्रि में 3 या 4 घंटे के बाद अचानक से उनके शरीर में हलचल हुई और वह फिर से उठ बैठी।

यानी मृत्यु के बाद उनके जीवन उनको फिर से प्राप्त हो गया था।  रात्रि का जो समय होता है, इसमें अधिकतर हम नहीं देख पाते हैं क्योंकि रोशनी के माध्यम से ही। हम जान सकते हैं कि अच्छी प्रकार से कि व्यक्ति की दिल की धड़कन चल रही है या नहीं। वह सांस उसकी रुकी हुई है या बहुत धीमी गति की तो नहीं हो गई है। इन सब कारणों की वजह से ही रात्रि को मूलता हम लोग ऐसा मानते हैं कि दाह नहीं करना चाहिए। इसके अलावा कुछ और भी बातें हैं जैसे कि सूर्य हमारी जो है उसे आत्मा का कारक भी माना जाता है। सूर्य ही जीवन देने वाला है। इसीलिए यह मानते हैं कि जब भगवान सूर्यनारायण हो, उसी वक्त आत्मा की मुक्ति की जाय तब सूर्य के प्रकाश के कारण उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी। और रात्रि को ज्यादातर हम यह भी जानते हैं कि उस वक्त भूत प्रेत पिशाच योनि की शक्तियां जागृत हो जाती है। इन्हीं के कारण आपकी जो। जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, कहीं वह आत्मा उन लोगों के साथ ना चली जाए या वह उन्हें अपने साथ ना खींच ले इसलिए भी रात्रि के समय अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। इतना ही नहीं रात्रि के समय जो भी कार्य किया जाएगा, प्रकाश की व्यवस्था ना होने के कारण वह अच्छी प्रकार से नहीं किया जा सकेगा।

अंतिम संस्कार के बहुत सारे नियम बताए जाते हैं जैसे कि अंतिम संस्कार के समय में जब किसी का अंतिम यात्रा हो रही हो तो उस घर के 100 गज दूर तक के घरों के लोगों को अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहिए। ऐसा शास्त्र बताते हैं और अंतिम संस्कार में शामिल व्यक्ति को उस को कंधा भी अवश्य देना चाहिए। शमशान ले जाने से पूर्व घर पर कुटुंब के सभी लोग पित्र के पार्थिव शरीर की परिक्रमा करें। बाद में दाह संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े से परिक्रमा करें और। हमेशा पार्थिव शरीर को ले जाते समय उसका सर आगे और पैर पीछे रखे जाते हैं। फिर उस स्थल पर मृत देह को एक वेदी पर रखा जाता है और अंतिम व्यक्ति संसार को अवश्य देख लें। इसलिए शव की दिशा बदल दी जाती है और फिर पैर आगे और फिर सर उसे पीछे किया जाता है। अर्थात जब मृत आत्मा को देखते हुए आगे बढ़े कहते हैं, उसका सिर चिता पर दक्षिण दिशा की ओर रखते हैं। कहता जाता है कि जो मरने वाला व्यक्ति उसका सिर उत्तर की ओर और मृत्यु पश्चात दाह संस्कार के समय उसका सिर दक्षिण की तरफ रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि किसी व्यक्ति के प्राण निकलने में कष्ट हो तो मस्तिष्क को उत्तर दिशा की ओर रखने से गुरुत्वाकर्षण के कारण प्राण शीघ्र और कम कष्ट के साथ प्राण निकलते हैं। वही मृत्यु पश्चात दक्षिण दिशा की ओर से रखने का कारण है कि दक्षिण दिशा और मृत्यु के देवता यमराज माने जाते हैं और यह शरीर हम उन्हीं को समर्पित करते हैं।

सूर्यास्त के पश्चात दाह संस्कार न किए जाने का कारण है कि मृतक की आत्मा परलोक भारी कष्ट भोग सकती है। अगर आप सूर्यास्त के पश्चात ऐसा कोई कार्य करते हैं। इसके अलावा श्मशान भूमि में हंसी मजाक करना किसी प्रकार का भी वार्तालाप करना यह सारी चीजें मनाही होती हैं। और यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम जिस जीव को पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ मानते हैं, उन्ही पांच तत्वों में फिर से मिला देते हैं। जैसे कि जब हम किसी शव को जलाते हैं तो अग्नि तत्व के कारण वह पवित्र होता है। जल तत्व के कारण उसके चारों ओर परिक्रमा की जाती है। पृथ्वी तत्व में वह स्वयं ही जलकर भस्म हो कर मिल जाता है। आकाश में वायु तत्व के रूप में जो जलकर धुआ बनता है, मिल जाता है। प्रकार से हम देखते हैं कि सभी तत्वों में अंततोगत्वा पांचों के पांचों में उसका मिलन हो जाता है और अंततोगत्वा अगर जल के रूप में अंतिम मुक्ति के लिए हम उनकी जो हड्डियां या अस्थियाँ जो होती है, उनको गंगा जल में प्रवाहित करते हैं तो यह सारी चीजें की जाती है। इसके अलावा मुंडन संस्कार उस वक्त किया जाता है। मुंडन करने का अर्थ होता है कि जो भी व्यक्ति उस मृतक के शरीर से जुड़ा हुआ था, उसके कारण उसके शरीर में जो बाल होते हैं, उन बालों में कीटाणु वगैरह जब आ जाते हैं तो उनको हटाने के लिए ही मुंडन संस्कार किया जाता है ताकि किसी वजह से कोई संक्रमणीय बीमारी दोबारा से फैल ना जाए। इसके अलावा पिंडदान किया जाता है। उसके बाद हम लोग भोज वगैरा भी देखते हैं किया जाता है और सारे लोगों को।

इस प्रकार से पता चल जाता है कि इस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो यह पूरी प्रक्रिया है। मृत्यु की जिसके कारण से हम लोग यह चीजें जान पाते हैं। इसके अलावा जहां तक शव रात्रि के समय प्रक्रिया की।

जाती है क्योंकि उस वक्त जो शव होता है उसकी जो आत्मा है अगर किसी कारण से अभी तक उस जगह पर भटक रही है तो फिर उसको सिद्ध किया जा सकता है। इस सिद्धि को प्राप्त करने के लिए रात्रि के समय ही जलती हुई चिता के ऊपर विभिन्न प्रकार की साधना और तांत्रिक प्रयोग किए जाते रहे हैं। हालांकि यह चीजें बहुत ही गोपनीय तरीके से की जाती है और विशेष प्रकार के तांत्रिक लोग इन प्रकार की जो प्रक्रिया है, उनको करते हैं। इसके कारण से भी एक बड़ा समस्या रहती है कि अगर कोई व्यक्ति जो मृत्यु को प्राप्त हो रहा था, उस व्यक्ति की आत्मा को अगर कोई तांत्रिक अपने वश में कर लेगा तो जो परिवार के लोग उसकी मृत्यु के बाद उसकी मुक्ति को चाह रहे थे, वह उसे नहीं मिलेगी। इसके अलावा कुछ विशेष तरह के जातियों की संबंध में भी कहा जाता रहा है कि उनकी सिद्धि से बहुत अधिक तीव्र शक्तियां प्राप्त होती है। जैसे की तेली की खोपड़ी की माध्यम से हम लोग तांत्रिक साधना को करते हुए देखते हैं तो उसमें भी हम यह बात जानते हैं कि।

ऐसी शक्तियों से विशेष प्रकार की तांत्रिक सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है और ऐसे प्रयोगों का जो निमित्त शरीर होता है उसी के साथ उसकी आत्मा वशीकरण में पूरी तरह आ जाती है तो रात्रि के समय में परिवार का कोई भी सदस्य श्मशान भूमि में अपने मृतक परिजन को रखना उचित नहीं समझता है और सिद्धि के लिए भी रात्रि बहुत तीव्रता से कार्य करती है। रात्रि के समय भी वह आत्मा जब तक रात रहती है तब तक उसे स्थान को नहीं छोड़ती है। इन सब वजहों के कारण ही रात्रि के समय कोई भी अपने परिवार का व्यक्ति अगर मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे श्मशान भूमि में लेकर नहीं जाता है। यही एक कारण यह भी है कि स्त्रियों को भी शमशान भूमि में नहीं ले जाया जाता है क्योंकि ऐसा मानते हैं कि स्त्रियों के जो शरीर के बाल है, वह नहीं काटे जा सकते हैं और अगर उनके बाल नहीं काटे जाएंगे तो उनको अगर वहां तक लेकर जाएंगे तो उन्हें भी बाल कटवाना पड़ सकता है। इसके अलावा स्त्रियों के बालों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की पैशाचिक आत्माएं आकर्षित भी होती हैं अगर किसी? स्त्री में आध्यात्मिक बल शक्ति नहीं है तो ऐसी शक्तियां उसे अपने वश में भी ले सकती हैं क्योंकि वह श्मशान भूमि में गई थी। इन सब कई चीजों के एक साथ मिल जाने के कारण ही यह प्रक्रिया ऐसी मानी जाती है कि यह समझा जाता है कि कोई भी व्यक्ति रात्रि के समय अंतिम संस्कार ना करें तो यह थी जानकारी कि आखिर क्यों सनातन हिंदू धर्म में रात्रि के समय में अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है और किसीकी मृत्यु अगर रात्रि में हो ही गई हो तो फिर अगले दिन ही उसका अंतिम संस्कार किया जाता है।

अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

Exit mobile version