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राहु कथा मंत्र कवच और रक्षा उपाय

राहु कथा मंत्र कवच और रक्षा उपाय

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम श्री राहु देव के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे। यह एक ऐसे ग्रह हैं जो अपनी पीड़ा देकर प्रत्येक मनुष्य को परेशान कर सकते हैं और इनकी शक्तियां बहुत ज्यादा प्रबल है। इसलिए कोई और ग्रह इनको रोक नही सकता है। इन की कथा और साधना के विषय में इस वीडियो के माध्यम से आज बताया जाएगा।

तो श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दनु से विप्रचित्ति नाम का पुत्र हुआ था। और इसका विवाह हिरण्यकश्यप की बहन सिंहिका से हुआ था।

कहते हैं कि राहु का जन्म सिंहिका के गर्भ से हुआ है। इसीलिए राहु का एक नाम सिंहिकेय भी है।

जब समुद्र मंथन हुआ था तो उस वक्त बहुत सारे रत्न निकले। उनमें अमृत की भी प्राप्ति हुई थी। इसीलिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं और दानवों को अपने बंधन में बांध लिया था और स्वयं अमृत बांटने का निर्णय देवताओं के पक्ष में किया। पहले देवता अमृत पान करने लगे। लेकिन केवल राहु पर भगवान का प्रभाव नहीं पड़ा और उसे संदेह हो गया। वह इसीलिए देवता का वेश धारण कर सूर्य देव और चंद्र देव के निकट जाकर बैठ गया। भगवान विष्णु जैसे ही राहुल को अमृत पान कराने लगे। सूर्य और चंद्र ग्रह ने भगवान विष्णु को उसके बारे में सूचित कर दिया कि वह एक राक्षस है। क्योंकि राहु को वह पहचान चुके थे इसीलिए उसी वक्त भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप से सुदर्शन चक्र धारण कर राहु के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया ताकि!

ऐसे पापी और दुराग्रही को रोका जा सके, लेकिन इससे पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में जा चुकी थी। इसी कारण उसका शरीर कटने के बावजूद भी सर और धड़ इन दोनों रूपों में जी रहा है यही सर और धड़ अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सर को राहु कहा जाता है और धड़ को केतु कहा जाता है? सूर्य और चंद्रमा ने इस सत्य को बताया था। इसीलिए ग्रहण का असर सदैव सूर्य और चंद्रमा पर राहु के माध्यम से पड़ता रहता है और प्रत्येक मनुष्य के जीवन में उथल-पुथल मचाने का कार्य राहु देव करते हैं क्योंकि राहु और केतु अमर हैं और देवता बनकर बैठे थे। इसीलिए वह अनंत काल तक जीवित रहने के लिए सदैव विद्यमान रहेंगे। अब अगर आपकी जन्मपत्री में आप राहु ग्रह की पीड़ा से पीड़ित हैं और इस ग्रह को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करना चाहते हैं तो यह कहा जाता है कि बड़े बड़े ग्रह आपके नियंत्रण में आ जाते हैं, लेकिन राहु और केतु आसानी से नहीं आते। इसीलिए! राहु की साधना आवश्यक हो जाती है। उनके लिए भी जो लोग राहु से पूरी तरह परेशान हैं तो राहु का जो यंत्र है। उसको मैंने आपके इस समय स्क्रीन पर डाल दिया है। इस यंत्र के माध्यम से आप राहु को स्थापित कर उसकी पूरी साधना कर उसके बुरे प्रभावों से अपनी जिंदगी में हो रहे नुकसान और प्रभावों को रोक सकते हैं।

इस ग्रह के बारे में जो हमारे वैदिक परंपरा है उसमें जो जो वर्णन आया है, मैं उसके बारे में भी आपको बताता हूं। यह कहा जाता है कि राहु रठिनापुर प्रदेश में पैदा हुए थे। इनका उद्भव वहीं पर हुआ था। इनका गोत्र पैठिनस और इनकी जाति असुर है। इनकी माता का नाम सिंहिका है। इनका वर्ण या रंग नीला और दिशा दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्यकोण बताई जाती है? यह एक क्रूर ग्रह माने जाते हैं और अपने भोग काल में बहुत कष्ट प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान करते हैं। इनका सामान्य भोग काल 547.5 दिन माना जाता है।

बीज मंत्र रां राहवे नमः। षडक्षर मन्त्र (ऋषि-ब्रह्मा, छन्द-गायत्री, देवता-राहु)

ॐ रां राहवे नमः। सप्ताक्षर मन्त्र (ऋषि-ब्रह्मा, छन्द-पंक्ति, देवता-राहु) • ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः।

– ॐ राहवे नमः। • तांत्रिक मंत्र ॐ भ्राँ भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः।

ॐ सांसीं सौं रां राहवे स्वाहा। दशाक्षर मन्त्र

ॐ क्रीं क्रीं हूँ हूँ टं टंकधारिणे राहवे रं ह्रीं श्रीं 8 स्वाहा। आगमलहर्याम् वैदिक मंत्र ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा।

कया शचिष्ठया वृता॥ • पुराणोक्त मंत्र ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम।

सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम॥ • अधिदेवता-कालम् ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वा क्षित्या ऽउन्नयामि ।

समापो ऽअद्धिरग्मत समोषधीभिरोषधी:॥ • प्रत्यधिदेवता-सर्प ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च प्रथिवी मनु ।

ये अंतिरिक्षे ये दिवि तेभ्यो : सर्पेभ्यो नमः ॥ • जप संख्या 18,000 कलयुगे चतुर्थगुणो अर्थात 72,000

+ दशांश हवन 7.200 + दशांश तर्पण 720

+ दशांश मार्जन 72 = 79,992 जप समय रात्रीकाल 12 बजे

हवनवस्तु

दूर्वा

रत्न

गोमेद – 6.5 रत्ती, शनिवार, नैऋत्य दिशा, संध्या वेला, मध्यमा

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी, करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः, सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु महायम् ॥ नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिये वरदायी हों।

राह का व्रत

१८ शनिवारों तक करना चाहिये। काले रंग का वस्त्र धारण करके राहु के व्रत में ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ इस मन्त्र की १८, ११ या ५ माला जप करे । जप के समय एक पात्र में जल, दुर्वा और कुशा अपने पास रख ले । जप के बाद इनको पीपल की जड़ में चढ़ा दे। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी, भूजा और काले तिल से बने पदार्थ खाये । रात में घी का दीपक पीपल वृक्ष की जड़ में रख दिया करे । इस व्रत के करने से का भय दूर होता है, राजपक्ष से (मुकदमे में) विजय मिलती है, सम् 3/8

सलोध्रगर्भणमदेभदाने, रणोऽम्बुद श्रीफलपर्णवणः । हरेदभद्रं विषमागुजातं, शरीरिणामाप्लवनं सर्वैः ॥ राहु की अनिष्ट-शान्ति के लिये सुगन्धबाला, मोथा, बिल्वपत्र, लाल चन्दन, लोध, कस्तूरी, गजमद और दूर्वा से स्नान करना चाहिये।

राहोदनं कृष्णमेषो गोमेदो लौहकम्बलौ। सौवर्ण नागरूपं च सतिलं ताम्रभाजनम्॥ गोमेदरत्नं च तुरंगमश्च सुनीलचैलामलकंबलं च। तिलाश्च तैलं खलु लोहमिश्रं स्वर्भानवे दानमिदं वदंति ॥ काली भेड, गोमेद, लोहा, कम्बल, सोने का नाग, तिल पूर्ण ताम्र पात्र का

दान करने से राहु जनित दोष शान्त होते हैं। • राहु ग्रह के दोष निवारण हेतु बहुमूल्य खड्ग (तलवार) का दान करना

चाहिये। शीसा, तेल, घोडा, गेहुँ, कृष्ण पुष्प, नील वस्त्र, अर्भक

॥राहु वैदिक मन्त्र न्यासादि प्रयोगः॥

वैदिक मंत्र

ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥

ॐ कयान इति मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः । गायत्री छन्दः । राहुर्देवता। कयान इति बीजम् । शचिरिति शक्ति: । राहु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ऋष्यादि न्यास

ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि । ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे। ॐ राहु देवतायै नमः हृदये। ॐ कयान इति बीजाय नमः गुह्ये। ॐ शचिरिति शक्तये नमः पादयोः । विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

करन्यास

ॐ कयान इत्यङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ चित्र इति तर्जनीभ्यां नमः । ॐ आभुव इति मध्यमाभ्यां नमः । ॐ दूतीसदावृध इत्यिनामिकाभ्यां नमः । ॐ सखाकया इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ शचिष्ठयावृता इति करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः॥

हृदयादि न्यास

ॐ कयान इति हृदयाय नमः । ॐ चित्र इति शिरसे स्वाहा। ॐ आभुव इति शिखायै वषट् । ॐ दतीसदावृध इति कवचाय हुं। ॐ सखाकया इति नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ शचिष्ठयावृता इत्यत्राय’

मंत्रन्यास

ॐ कया शिरसि । ॐ न इति ललाटे। ॐ चित्र मुखे। ॐ आभुव दरती नाभी। ॐ सदावृधः कट्याम् । ॐ सखा ऊर्वोः । ॐ कया जानुनोः । ॐ शचिष्ठया गुल्फयोः । ॐ वृता पादयोः॥

 

॥राहु कवचम्॥

• विनियोग अस्य श्रीराहु कवचस्य । चन्द्रमा ऋषिः । अनुष्टुप छन्दः । श्री राहूदेवता। राँ बीजं ।

नभ: शक्तिः । स्वाहा कीलकम् । राहु कृत पीडा निवारणार्थे, धन-धान्य, आयु

आरोग्य आदि समृद्धि प्राप्तयर्थे पाठे विनियोगः। ऋष्यादिन्यास शिरसि चन्द्रमा ऋषये नमः । मुखे अनुष्टप छन्दसे नमः। हदि राह देवतायै नमः।

गुह्ये राँ बीजाय नमः । पादयोः शक्तये नमः । नाभौ स्वाहा कीलकाय नमः । सर्वांगे श्री राहु प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगाय नमः। राँ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। रीं तर्जनीभ्यां नमः । मध्यमाभ्यां नमः ।रै अनामिकाभ्यां

नमः । रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। र: कर-तल-कर पृष्ठाभ्यां नमः। • हृदयादि अङ्गन्यास राँ हृदयाय नमः। रीं शिरसे स्वाहा । ऊँ शिखायै वषट् ।” कवचाय हम् ।

रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । रः अस्त्राय फट्।

प्रणमामि सदा राहं शूर्पाकारं किरीटिनम् ।सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानां भयप्रदम् ॥ • नीलाम्बरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥ ॥२॥ • नासिका मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम। जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रिकः॥ ॥३॥ भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ। पातु वक्षःस्थलं मन्त्री पातु कुक्षिं विधुन्तुदः॥ ॥४॥ कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः। स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥ गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः । सर्वाणि अंगानि मे पातु निलचन्दनभूषणः॥ ॥६॥ राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो। भक्त्या पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन्॥ ॥७॥ प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायुरारोग्यम्। आत्मविजयं च हि तत्प्रसादात्॥

॥८॥ ॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्र-संजय सम्वादे द्रोणपर्वणि राहु कवचम् सम्पूर्णम् ॥

॥राहु स्तोत्रम् ॥

विनियोग

अस्य श्री राहु पंजविंशन्नाम स्तोत्रस्य । वामदेव ऋषिः । गायत्री छन्दः। राहुर्देवता । राहुप्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः॥

विनियोग

शिरसि वामदेव ऋषये नमः । मुखे गायत्री छन्दसे नमः। हृदि श्री राह देवतायै नमः । सर्वांगे श्री राहु प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगाय नमः॥

राहनव मन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः । अर्धकायः सदा क्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः॥

॥१॥

रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुभीतिदः। ग्रहराजः सुधापायी राकातिथ्यभिलाषकः॥

॥२

कालदृष्टिः कालरुपः श्रीकण्टहृदयाश्रयः । विधंतुदः सैहिकेयो घोररुपो महाबलः॥

ग्रहपीडाकरो द्रष्टी रक्तनेत्रो महोदरः । पञ्चविंशति नामानि स्मृत्वा राहं सदा नरः॥

॥४॥

यः पठेन् महती पीडा तस्य नश्यति केवलम् । आरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशुंस्तथा ॥

॥५॥

ददाति राहुस्तस्मै यः पठते स्तोत्र मुत्तमम् । सततं पठते यस्तु जीवेद् वर्षशतं नरः॥

॥ इति श्रीस्कन्द-पुराणे राहु स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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