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रीठा के औषधीय और तांत्रिक प्रयोग

विविध नाम :
अरिष्टक, अरिष्ट, अरीठा, कुम्भबीजक, गर्भपातक, गुच्छफल,
फेनिल, सोमवल्कल।
सामान्य परिचय :
आमतौर से रीठा को बाल धोने या शैंपू में प्रयोग से लोग परिचित हैं, परंतु यह विभिन्न रोगों में भी बहुत उपयोगी है, यह कम लोग जानते हैं।हमारे देश में रीठा को अरीठा, कोटाइ, रिटेगाछ, बड़ा रीठा आदि नामों से जानते हैं।रीठा का दैनिक जीवन में बहुत अधिक प्रयोग होता है क्योंकि
इसके द्वारा- सिर (केश अर्थात् सिर के बाल) धोने, कपड़े धोने
आदि का साबून बनाया जाता है । इसके अतिरिक्त, रीठा का तन्त्र-शास्त्र
में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ।
उत्पत्ति एवं प्राप्ति-स्थान :
रीठा का वृक्ष प्रायः पूरे देश में पाया जाता
मुख्यत: इसके वृक्ष- दक्षिण भारत, राजस्थान, बंगाल, आसाम, हिमालय की तराईयाँ
आदि में पाये जाते हैं ।
स्वरूप :
रीठे का वृक्ष काफी बड़ा होता है जो कि कभी-कभी 20 फुट
से लेकर 30 फुट तक ऊँचा होता है । इसके पत्ते कुछ पीलापन लिये
हये होते हैं जो कि 6 इंच से लेकर 18 इंच तक के हो सकते हैं । इस
पर मई के महीने के आस-पास फल लगते हैं जो पकने पर भूरे रंग
के हो जाते हैं । यह फल बाजार में पंसारी आदि की दुकान पर
आसानी से मिल जाता है ।
गुण-धर्म :
यह- लघु, स्निग्ध, तीक्ष्ण, उष्ण वीर्य, रेचक, कृमिघ्न, विषनाशक
होता है । यह- सिर-दर्द, हिस्टीरिया, मूर्च्छा आदि में भी लाभकर रहता
है । गर्म स्वभाव वाले लोगों को रीठा नुकसान पहुँचाता है ।

यह त्रिदोषनाशक, ग्रहों को दूर करने वाला, तिक्त, कटु, उष्णवीर्य है। कम मात्रा में खाने पर भूख बढ़ाने वाला है। इसका जल पीने से उलटी होती है तथा उलटी होने से विष दूर होता है।

इसके जल का नस्य लेने से मस्तक रोग और आधाशीशी रोग दूर होता है।

प्रयोज्य अंग- फल, छाल और बीज।

मात्रा- काढ़ा 30 से 50 मिली, उलटी के लिए 5 ग्राम चूर्ण। सामान्य मात्रा आधा से 1 ग्राम चूर्ण।

आयुर्वेदिक मत- अफीम, हरताल आदि जिस भी तरह काविष (जहर)शरीर में भर गया हो रीठा का पानी या उसका स्वरस पीने से जहर नष्ट हो जाता है।

हिस्टीरिया, मूर्छा आदि में रीठा का नस्य देने से तुरंत होश आ जाता है।

रीठा के फेन में रूई भिगोकर योनि में रखने से तुरंत प्रसव हो जाता है।

झांई आदि त्वचा विकारों में रीठा का लेप लगाते हैं। सर्प, बिच्छू के दंश में रीठे को खाने योग्य औषधि के रूप में सेवन कराते हैं।

कंठमाला रोग में इसे सिरके में पीसकर लेप करते हैं।मिरगी रोग, सिरदर्द निवारण के लिए इसको पानी में पीसकर नस्य देते हैं।

इससे छींकें आती हैं या नाक से द्रव्य स्रावित होता है, रोग निवारण होता है।

1. बिच्छू के दंश में- कभी-कभी बिच्छू का दंश भी जानलेवा हो जाता है। बिच्छू के दंश के बाद तेज असहनीय दर्द होता है। ऐसी अवस्था में रीठा का सत्त्व 1 ग्राम लेकर पानी में घोलकर पिला दें या 2 ग्राम चूर्ण (रीठा के छिलकों का चूर्ण) पानी में घोलकर पिला दें।

2. अफीम का जहर उतारने के लिए-रीठा को पानी मेंडालकर उबालें। जब झाग आने लगे, तब उस पानी को अफीम खाने वाले व्यक्ति को पिला दें। उलटी lहोंगी और जहर निकल जाएगा।

3. पक्षाघात में-रीठे का छिलका और काली मिर्च बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं और शीशी में भरकर रख लें। यह आवश्यकता पड़ने पर सुंघा दिया करें तो इससे लकवा (पक्षाघात), मानसिक उन्मत्तता, जिसकी सूंघने की शक्ति (घ्राणशक्ति) चली गई हो तथा नींद न आती हो (अनिद्रा) में ये लाभ पहुंचाने वाला सरल प्रयोग है।

4. अधकपारी (आधाशीशी)- आधे भाग में तेज सिरदर्द हो, तब रीठे के छिलके और काली मिर्च को पानी में घिसकर नाक में टपकाने से तुरंत लाभी होता है।

5. बेहोशी (मरूच्छा), हिस्टीरिया और मिरगी में- रीठे के फल की गिरी को पानी में घिसकर 2 या 36 बूंद नाक में टपका दें। इससे बेहोशी दूरहोती है। आंख में भी आंज देते हैं। आंखों की जलन दूर करने के लिए गाय का घी या मक्खन आंख आंजने से शांति मिलती है।

6. प्रसवोपरांत वायु प्रकोप में- प्रसव के बाद वायु प्रकोप होने से स्त्रियों का मास्तिष्क शून्य हो जाता है। आंखो के आगे अंधेरा छाने लगता है। दांतों के दोनों जबड़े भिंच जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में रीठे को पानी में घिसकर झाग (फेन) पैदा कर आंखों में आंजने से रीठा जादुई असर दिखाता है। तत्काल रोग निवृत्ति होती है।

7. किडनी (गुरदों के) दर्द में- रीठे का छिलका पींस लें तथा अंदर के बीज (गिरी जिसका काला छिलका हटा दें।) महीन पीसकर पानी से पांच गोली बना लें। 1 गोली सेवन कराएं। एक से राहत न मिले तो फिर 1 गोली और सेवन कराएं।

8. फोड़े-फुंसियों पर- रीठ के छिलके को पीसकर लाल शक्कर मिलाएं तथा साबुन मिलाकर पानी के साथ मलहम जैसा बना लें और दिन में दो बार लगाएं। चमत्कारी लाभ होगा।

10. नजला और जुकाम में- रीठे का तेल पुराने जुकाम के लिए अति उत्तम है। इसे बनाने का तरीका इस प्रकार है। रीठे का छिलका 20 ग्राम, नीम के फल (निबोली) की मिंगी 20 ग्राम लेकर आधालीटर पानी में रातभर भिगोकर रखें। प्रात: कालपीसकर उबालें और आधा पानी शेष रहे, तब 125 मिली, सरसों के तेल में मिलाकर उबालें। जब उतार लें। तेल ठंडा कर शीशी में भरकर रखें। आवश्यकता पड़ने पर 2-3 बूंद इससे लाभ होगा।

11. बालों के रोग में- जूं-लीख मारने के लिए तथा बालों को काले, रेशमी, मुलायम बनाने के लिए उत्तम पाउडर घर में बनाएं।कपूरकचरी, नागरमोथा 10-10 ग्राम और कपूर तथा रीठे की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 150 ग्राम, 200 ग्राम आंवला सबको पीसकर चूर्ण बना लें। सबको मिलाकर रख लें। जब भी उपयोग करना हो, 50 ग्राम चूर्ण लेकर 400 मि.ली. पानी में 30 मिनट तक भिगोकर रखें। 30 मिनट बाद मसलकर छानकर उस पानी से बालों को धोएं।

12. मासिक धर्म की रुकावट में- रीठे के फलों की गरी को पीसकर उसकी बत्ती बनाकर स्त्री की जननेंद्रिय में रखने से मासिकधर्म की रुकावटदूर होती है। प्रसव के समय भी यह बत्ती रखने पर बिना विलंब के प्रसव हो जाता है।

13. दमा एवं कफजनित खांसी में- 5 ग्राम रीठे के छिलके का चूर्ण 250 मिली. पानी में काढ़ा बनाकरपिलाएं। उल्टी होने पर गरम पानी अधिक मात्रा में पिलाएं, जिससे खुलकर उल्टी हों तथा सारा कफ फेफड़े से निकल जाए, जिससे श्वास, खांसी कफजनित से मुक्ति मिल सके।

तान्त्रिक प्रयोग :
दृष्टि-दोषकरने के लिये- जबकि रविवार के दिन पुष्य
नक्षत्र हो तो रीठे के फल में छेद करके उसे दृष्टि-दोष से ग्रसित बच्चे
को पहना दें । इससे धीरे-धीरे लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है और उस
बच्चे की दृष्टि में सुधार होने लगता लेकिन उस बच्चे को उचित
मात्रा में पौष्टिक भोजन ( जैसे- दूध, मक्खन, मौसम के अनुसार फल
इत्यादि) भी अवश्य खिलाना चाहिये। गुप्त योगिनी सिद्धि में रीठे से

हवन करने पर सिद्धि मिलती है और चमत्कारिक जटा सिद्धि हो जाती है जिसमे तांत्रिक सिद्धियाँ रहा करती हैं और आपके आदेश से योगिनी जटा से उत्पन्न हो कोई भी चमत्कारिक कार्य कर डालती हैं ।

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