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वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 4

वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । अभी तक आपने वज्रयोगिनी मंदिर की विद्या धारणी शक्तिशाली प्रियंवदा के भाग 3 तक को जाना है ।आज मै भाग 4 की कहानी आप लोगों को बताता हूं । जैसा की अभी तक की कहानी में आप लोग जान चुके हैं । कि किस प्रकार से विद्याधारणी शक्ति की मालकिन और बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली होती चली जा रही कन्या प्रियंवदा । अपने राक्षस के द्वारा जो उसे अपने पति के रूप में और पत्नी बनाने के लिए उसके पीछे पड़ा हुआ था । उसके प्रभाव तथा उसकी मां जो सूअर के रूप में थी । दोनों के प्रभाव के कारण से उनकी बातों में आ चुकी थी । अपनी मां के प्रभाव के कारण ही अब प्रियंवदा ने मां के कहने पर शंभू नाथ के वध के बारे में सोचा । शंभू नाथ का अगर वध कर देती यानी कि अपने पिता को जान से मार देती तो उसके अंदर इतना अधिक पाप शक्ति बढ़ जाती कि उसके पाप शक्ति के कारण अब उसका सामना करने के लिए कोई नहीं रह जाता । कारण के नकारात्मक शक्तियां उसके शरीर में और भी तेजी से प्रवेश करती और जहां तक की जब कन्या अपने पिता का वध करती है । तो एक महान पाप माना जाता है । यही पाप कराने के लिए उसकी मां उसे प्रेरित कर रही थी । वह चाहती थी कि अगर उसका पति समाप्त हो जाएगा प्रियंवदा को फिर कोई नहीं समझा सकता है । और उसे जो भी निर्देश दिया जाएगा वह अवश्य ही पूरा करेगी । इसीलिए उसकी मां ने इस प्रकार का प्रपंच उसके लिए रचा था । प्रियंवदा उस प्रपंच में फस भी गई और वह उस स्थान की ओर गमन कर गई थी । जिस स्थान पर उसके पिता बैठ कर के वज्र योगिनी देवी की तपस्या कर रहे थे । प्रियंवदा ने उन्हें ललकारा और कहा कि अगर आपको अपनी मृत्यु देखनी है तो अपनी आंखें खोलिए ।

लेकिन शंभू नाथ साधना में लीन थे और उन्होंने कुछ भी जवाब नहीं दिए । प्रियंवदा ने गुस्से से चिल्ला कर उनके ऊपर तलवार चला दी । एक महान विस्फोट उस जगह पर हुआ और सब कुछ प्रकाश में हो गया । चारों ओर एक चमक सी फैल गई चमक इतनी तेज थी कि प्रियंवदा भी स्वयं नहीं देख पाई आखिर हुआ क्या है । फिर जैसे ही वह चमक हटी धुंध चारों तरफ फैल करके चारों ओर का दृश्य सामान हो जाता है । तो प्रियंवदा देखती है कि शंभूनाथ नहीं है केवल रक्त की एक बाढ़ सी आई हुई है । वह सोचती है कि लगता है मैंने अपने पिता का वध कर दिया है । और प्रसन्नता के साथ में अपनी मां को याद करती है । उसकी मां सूअरी के रूप में तुरंत वहां पर दौड़ती ही चली आती है । और फिर राक्षसी का रूप लेकर के देखती है और कहती है । प्रियंवदा क्या तूने अपने पिता को मार डाला । प्रियंवदा कहती है हा । और वह बहुत ही खुश हो जाती है । और कहती है यह जो रक्त है इसका पान कर वशीकरण प्रभाव के कारण प्रियंवदा देखती नहीं है और रक्त का पान करने लगती है । उसके पास से हजारों सी शक्तियां पाताल से निकलकर काले धुएं के रूप में उसके शरीर में प्रवेश करने लगती है । और कहते हैं मनुष्य या कोई भी देवता जब कोई पुण्य कर्म करता है तो देवता और उनकी शक्तियां उनके अंदर प्रवेश करती हैं । और जब कोई पाप कर्म करता है तो उसके अंदर नकारात्मक दुष्ट शक्तियां और बहुत ही भयानक पाताल में निवास करने वाली बुरी शक्तियां उसके अंदर प्रवेश करती है । क्योंकि वह उनका भाग हो जाता है गलत कार्य करने की वजह से पाप चढ़ता है । अपने पिता का वध करने की वजह से प्रियंवदा के अंदर वह नकारात्मक शक्तियां अपने आप आ रही थी । चुकी विद्याधरा थी वह इस वजह से राक्षसी शक्ति का वक्त भी था ।

और साथ ही साथ शंभू नाथ की देवीय ऊर्जा उसके अंदर थी क्योंकि वह उसके पिता थे । इस कारण से वह बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली हो जाती है । अपने शरीर में अद्भुत शक्तियां संपन्नता महसूस करती है । और चारों तरफ बड़े ही क्रोध से पूरी धरा को देखती है । अपनी तीव्र नजरों से जिधर भी वह तीव्रता से अपनी नजरें गड़ाती है वह स्थान जला देती है । अर्थात उसके अंदर की शक्ति आ जाती है कि वह अपनी आंखों से किसी भी स्थान को किसी भी जगह को जला देने में सक्षम हो गई थी । क्योंकि एक पूर्ण कुंवारी कन्या जो विद्याधरा शक्ति से संपन्न थी । राक्षसी शक्ति के और उसकी माया को अंगीकार करती है । तथा देवीय ऊर्जा को भी प्राप्त की हुई होती है । इस वजह से उसके अंदर बहुत ही ज्यादा शक्तियां आ जाती है । विद्याधरा का स्वरूप लेकर के पैदा हुई प्रियंवदा अब बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली थी । वह अपनी मां से पूछती है कि अब आगे क्या करना है । उसकी शक्ति को देख कर के बहुत ही ज्यादा उसकी मां प्रसन्न हो जाती है । उसकी मां उससे कहती है आगे का कार्य अब बहुत ही सहज और सरल होगा । मुझे लगता है कि तुझे बता देना चाहिए की तुझे पांच नाथो को अपने वश में करना है । और वह पांच नाथ बहुत ही शक्तिशाली है अगर इनके किसी भी एक नाथ को भी तूने अपने वश में कर लिया । तो निश्चित रूप से तेरे बराबर कोई शक्तिशाली रह नहीं जाएगा । क्योंकि इनकी ऊर्जा को तूने बस में कर ली तो फिर त्रिलोक मे तुझे हराने वाला कोई पैदा ही नहीं होगा । वह पूछती है माता कौन है वह नाथ उनके नाम क्या क्या है । तो राक्षसी बताती है जल के अंदर जल नाथ अग्नि के अंदर अग्नि नाथ वायु के अंदर वायु नाथ धरती के अंदर भुवन नाथ अंतरिक्ष में अंतरिक्ष नाथ तपस्या कर रहे हैं । यह इनकी कई सौ वर्षों की तपस्या हो चुकी है ।

इन्होंने अपने योग्य बल के माध्यम से इन पांचों नाथ ने बहुत ही ज्यादा शक्ति उत्पन्न कर ली है । और वह देवीय स्वरूप हो चुके हैं मानव रूप से पैदा हुए अब भिन्न-भिन्न तत्व को इन्होंने अपने अधीन कर लिए हैं । इसलिए इनका नाम लोगों ने यहीं रख दिया है । तुम क्या कोई और भी उन्हें नहीं देख सकता है । लेकिन चुकि तुम्हारे अंदर मैं देख रही हूं तुम्हारे अंदर शक्तियां बढ़ती चली जा रही है तुम अवश्य ही इन्हें देख सकोगी । तो देखो आकाश की ओर वहां पर देखो तुम्हें वायु नाथ दिखाई देगा । और प्रियंवदा ऊपर सिर उठाकर देखती है तो हवा में लटका एक व्यक्ति तपस्या कर रहा होता है । उसको कई अदृश्य शक्तियां भी देख रही होती है और उसके सामने नतमस्तक होती है उसे प्रणाम कर रही होती है । उसे देख कर के प्रियंवदा का मन प्रसन्न हो जाता है । प्रियंवदा सोचती है अगर मैंने ऐसे वर हासिल किए मेरे तो अद्भुत सौभाग्य होंगे । इसके अंदर कितना अधिक तेज है यह सारा तेज मुझे प्राप्त होना चाहिए । उसकी मां इसी तरह उसे गोपनीय सरोवर में ले जाती है वहां जल नाथ को दिखाती है । इसी प्रकार एक जलती हुई अग्नि जो कई वर्षों से वहां रह करके लोक तपस्या पूजा किया करते थे । वह अग्नि लगातार जलती रहती थी । उस अग्नि के भीतर उसे अग्नि नाथ को देखाती है । इसी प्रकार धरती के भीतर उसे भुवन नाथ को और अंतरिक्ष में ले जाकर के उसे अंतरिक्ष नाथ को दिखाती है । और कहती है कि यह अपनी शक्तियों से नाथ हो गए हैं । इन्होंने इतनी अधिक तपस्या की कि इनको एक-एक तत्वों की विजय हो गई है । इसीलिए सब लोग इन्हें अलग-अलग नामों से कोई जल नाथ कोई अग्नि नाथ कोई वायु नाथ कोई भुवन नाथ तो कुछ अंतरिक्ष नाथ कहते हैं । तुम्हें इन्हीं सब से विवाह करना है और इन से विवाह करके इनके साथ संबंध बनाते हुए इनकी ऊर्जाओ को ग्रहण कर लेना । क्योंकि तू विद्याधरा है तू किसी की भी शक्ति को खींच सकती है । किसी भी शक्ति को ग्रहण कर सकती है और अपने पास रख सकती है ।

संसार में केवल तेरे में ही यह शक्ति है ऐसा कहने पर । प्रियंवदा बहुत ही ज्यादा खुश होती है । वह धरती पर उतर आती है तभी सामने से वही राक्षस जिसे उसकी मां ने घायल कर दिया था अपना रूप बना करके आता है । हाथ में कमंडल लिए उसके पास पहुंचता है । प्रियंवदा से कहता है मैं जल नाथ हूं तेरे को देखकर बहुत ही प्रसन्नता हुई है । चल ऐसा करते हैं कि मैं तुझे अद्भुत शक्तियों के बारे में बताता हूं । और उन्हें तुझे दिखाता हूं और तुझसे भी चाहूंगा कि तू भी अपनी कुछ शक्तियां मुझे दिखाएं । ताकि हम एक दूसरे की मदद कर सके । प्रियंवदा बोलती है हे जल नाथ मैं आप के ही विषय में सोच रही थी । आप यह बताइए कि आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं । जल नाथ कहता है मेरी जल तत्व पर विजय तो है । लेकिन जल तत्व बहुत देर तक धारण नहीं होता । इसलिए मुझे ऐसी शक्ति चाहिए कि सदैव सदैव जल मेरे अधीन रहे । और जल को मैं कोई भी आदेश दूं मेरा आदेश मान सके । अभी जल का मेरे पर प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन जल मेरे अधीन नहीं है । तो इसके लिए क्या करना होगा प्रियंवदा उनसे पूछती है । प्रियंवदा यह बात नहीं समझ पा रही थी कि यह वास्तव में राक्षस है और सारी बातें वह सुन चुका है । इसलिए उसने जल नाथ का रूप लिया है । जल नाथ कहता है इसके लिए तुम्हें मेरे साथ पानी ग्रहण संस्कार करना होगा । यानी कि तुम्हें मुझ से विवाह करना होगा । विवाह करने पर हम दोनों जब एक होंगे अर्थात एक दूसरे के साथ संबंध बनाएंगे । उस दौरान मेरी ऊर्जा तुम्हारी ऊर्जा में मिल जाएगी और तुम्हारी ऊर्जा मेरी उर्जा में मिल जाएगी । इससे अद्भुत शक्ति उत्पन्न होगी उस शक्ति और हम जल तत्व में विलीन करेंगे । और जल हमारे अधीन हो जाएगा । प्रियंवदा बहुत ही प्रसन्न होकर के कहती है अवश्य ही । तो कब करना होगा विवाह ।

राक्षस कहता है आज ही शाम को अत्यंत ही शुभ मुहूर्त है । मैं तुम्हें सरोवर के पास मिलता हूं तुम आ जाना । उसकी बात को सुनकर के प्रियंवदा प्रसन्नता से जहरीली मुस्कान उसकी और बढ़ाती है । और ऐसी ही जहरीली मुस्कान वह राक्षस भी प्रियंवदा की ओर बनाता है । क्योंकि राक्षस जानता था कि जो कार्य प्रियंवदा उनके साथ उन नाथ के साथ करना चाहती है वही कार्य मै इसके साथ कर दूंगा । इससे मुझे सारी शक्तियां प्रियंवदा की मिल जाएगी । मैं संबंध बनाने के दौरान प्रियंवदा का गला काट दूंगा । प्रियंवदा ने भी यही सोचा कि जैसे ही यह मेरे साथ संबंध बनाएगा मैं इसकी ऊर्जा ग्रहण करूंगी फिर इसका गला काट दूंगी । दोनों एक दूसरे को देख कर ऐसी जहरीली मुस्कान दे रहे थे । जैसे कि सर्प एक दूसरे को देख कर के फन पटकने को तैयार रहते हैं । शाम का वक्त हुआ प्रियंवदा सरोवर की ओर चल पड़ी ।  राक्षस जल से निकलकर बाहर आया और कहने लगा मुझसे विवाह करो । प्रियंवदा ने अपनी इच्छा अनुसार एक वरमाला पकड़ कर ली । राक्षस ने भी अपनी माया से एक वरमाला प्रकट कर दी । उसने प्रियंवदा के गले में पहनाई प्रियंवदा ने उसके गले में पहनाई । और दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और चलने लगे एक कुटी की ओर । उस राक्षस ने कहा चलो कुटी के भीतर और वही हमारा मिलन होगा । मैंने देखो तुम्हारे लिए कमरा कितना सजाया हुआ है   । पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था । धरती में चारों तरफ फूल ही फूल बिछे हुए थे । और प्रियंवदा और वह राक्षस उस कमरे में प्रवेश करते हैं । और इसके बाद प्रियंवदा फूलों से सजे उस बिस्तर पर बैठ जाती है ।

राक्षस उसकी ओर बढ़ता है । और जैसे ही उसके बिस्तर पर अपना पांव धरता है । अचानक से प्रियंवदा को क्रोध आ जाता है । प्रियंवदा तुरंत उछल करके उसकी गर्दन को पकड़ती है और उसकी गर्दन को इतनी तीव्रता से शक्ति के साथ उखाड़ लेती है।  कि उसका धड अलग गिरता है और उसका सर उसके हाथ में आ जाता है । इस प्रकार उसे गर्दन से ही पूरा नोच देती है  । प्रियंवदा जोर से ठहास करते हुए कहती है मूर्ख कहीं का क्या समझता है क्या कोई भी बिना स्त्री की आज्ञा के उसके साथ ऐसा कर सकता है । और तूने कैसे सोच लिया कि मैं नहीं जानता पाऊंगी कि तू सच में जल नाथ है या नहीं ।अगर तू जल नाथ होता तो अवश्य ही जल शक्ति का प्रयोग कहीं ना कहीं तूने क्या होता । पर पर तू तो सूखे स्थान में फूलों के बीच इस तरह के कामातूर प्रयोगो को कर रहा है । क्या मुझे इतना मूर्ख समझता है यही नहीं तूने मेरी मांग भी नहीं भरी । अगर तू मेरी मांग भरता तो भी मैं समझ जाती की तू अवश्य ही जल नाथ हो सकता है । देवीय गुणों से भरे हुए देवता भी मानवीय गुणों को अपनाते हैं । उनके तौर तरीकों को जरूर अपनाते हैं । लेकिन एक राक्षस के लिए संबंध बनाने के अतिरिक्त और कोई इच्छा नहीं होती । और तूने वही किया जब मैंने तुझे देखा कि तू इस तरह की हरकत करने को उतारू है । तब मैं उसी समय समझ गई थी के तु जल नाथ नहीं है । तो कोई बहरूपिया है और अब मैं तेरी उर्जा को खींचती हूं । राक्षस की जितनी भी ऊर्जा और शक्ति बिखर रही थी उसको प्रियंवदा ने खींच कर अपने अंदर कर लेती है ।

विद्याधारणी शक्ति होने के कारण वह किसी की भी शक्ति छीन सकती थी । मरते हुए उस राक्षस की सारी शक्ति उसने खींच ली । अब उसके अंदर एक भयंकर शक्ति और प्रकट हो चुकी थी । वह थी राक्षसी शक्ति अब राक्षसी कामातूर भाव भी उसके अंदर आ चुका था । अब प्रियंवदा प्रियंवदा नहीं रह गई थी प्रियंवदा में राक्षसी गुण आ चुके थे । अब उसके लिए भी वही सब भावनाएं थी क्योंकि जो जिस की शक्ति को ग्रहण कर लेता है । जैसा वह जिसको ग्रहण करता है जैसे स्वभाव वाले को ग्रहण करता है उसका स्वभाव भी वैसा ही हो जाता है । अब प्रियंवदा के मन में भी कामातूर भाव थे । और यह बात तो पहले ही देवी ने शंभूनाथ को बताई थी । की प्रियंवदा अगर किसी गलत गर्भ से जन्म लेगी तो उसके अंदर विशेष प्रकार का दुर्गुण होगा । उस दुर्गुण के कारण वह किसी का भी विनाश कर सकती है । और इसीलिए तुम्हें इस चीज से बचाना है । इधर शंभूनाथ अपनी तपस्या कर रहे थे तभी उनके सामने देवी प्रसन्नता पूर्वक वज्र योगिनी प्रकट हो जाती है । और एक छोटी सी कन्या के रूप में उन्हें दर्शन देते हुए कहती है । कि मैंने आपके प्राणों की रक्षा की है मैंने अपनी माया से वह स्थान को भ्रमित कर दिया था । जिस स्थान पर प्रियंवदा ने आप पर वार किया था । प्रियंवदा यह कार्य करने वाली है यानी कि वह जल नाथ अग्नि नाथ वायु नाथ भुवन नाथ और अंतरिक्ष नाथ को अपने वश में करके पांचों तत्वों को अपने अधीन करने के बारे में सोच रही है । इस कार्य में उसकी माता उसकी मदद कर रही है जो कि एक राक्षसी है । अब केवल आप ही है जो उसे रोक सकते हैं । इसलिए आपको अब यहां से जाना होगा अपनी पुत्री के पास । शंभू नाथ ने सारी बात को समझ कर देवी को प्रणाम किया और कहा कि देवी अगर वह इतनी क्रोधित है कि मेरा वध करने वह उसी समय आ गई थी । तो भला अब अगर मैं उसके पास जाऊंगा तो वह मुझे मार नहीं डालेगी । इस पर देवी उन्हें कहती है कि नहीं मैं तुम्हें एक गोपनीय बात बताती हूं । अगर तुम इस कार्य को करोगे और समझ लोगे तो फिर उसका प्रभाव तुम पर से जाता रहेगा । वह क्या बात क्या थी वह क्या क्या था यह सब हम जानेंगे वज्रयोगिनी मंदिर की विद्या धारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग पांच अंतिम में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 5

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